अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) का दाखि़ली बग़ावतों का कुचलना - 17

अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) का दाखि़ली बग़ावतों का कुचलना - 17

मुसलमान कु़रैश के साथ अपनी पहली जंग, यानी जंगे बदर में मुअस्सिर कामयाब हुये थे, इस कामयाबी की वजह से कु़रैश अपनी हवास खो बैठे उधर मदीना में यहूदियों की साज़िशें और शरारतें भी ख़त्म हो गईं और अन्दुरूनी बग़ावतें भी मान्द पड़ गईं इसके नतीजे में यहूद मजबूर हो गये के मुसलमानों के साथ मुआहिदे करने लगे और बाज़ को मुल्क बदर कर दिया गया, मुसलामानों की ताक़त में इज़ाफ़ा हुआ लेकिन कु़़रैश भी ख़ामोश न बैठे, वोह मुसलमानों से अपनी शिकस्त का इन्तेक़ाम लेने के लिये तैयारी में जुट गये, उसका उन्हें अगले ही साल उहद में मिला जब मुसलमानों के कुछ तीर अन्दाज़ों ने अपने क़ाइद के हुक्म की खि़ालाफ़ वरजी़ करते हुये महाज़ छोड़ दिया और मुसलमानों को शिकस्त का मुंह देखना पड़ा क़ुरैश अपनी इस कामयाबी पर सैर होकर वापस लौटे के बदर की रुसवाई का बदला ले लिया और मुसलमान शिकस्त ख़ुर्दा मदीना लौटे, मुसलमानों के चेहरों पर उनकी हार अ़यां थी हालांके मुसलमानों ने जंग के बाद कुफ़्फ़ार का हमरा अल असद के मुक़ाम तक पीछा भी किया था, इसके नतीजे में जो मुसलमानों की ताक़त पर असर पड़ा तो मदीना में कई लोग और अ़रब के कई क़बाइल बग़ावत पर उतर आये जो उहद की जंग से पहले एैसा करने की हिम्मत भी नहीं पाते थे, अब मदीना के बाहर अ़रब क़बाइल और मदीना के यहूदी और मुनाफ़िक़ीन हुज़ूर अकरम सल्ल0 के इक़्ितदार को चैलेंज करने के मन्सूबे बनाने लगे और मुसलमानोें को भड़काना शुरू कर दिया मदीना के बाहर अ़रब क़बाइल जो मुसलमानों से अब तब मरऊ़ब थे, उहद के बाद वोह भी मुसलमानों की मुख़ालिफ़त और हुज़ूर अकरम सल्ल0 के इक़्ितदार को चैलेन्ज करने की फ़िक्र मे लग गये, हुज़ूर अकरम सल्ल0 को इस बात की फ़िक्र थी के उहद की शिकस्त से जो मुसलमानों का वक़ार मजरूह हुआ है, उसका फिर से एहया किया जाये और हर उस कोशिश को जो मुसलमानों को ज़ेर करने और उन्हें क़ाबू में रखने के लिये की जा रही है, उसे नाकाम बनाया जाये।
जंग ए उहद के तक़रीबन एक माह बाद आप (صلى الله عليه وسلم) को इत्तिला मिली के बनू असद का क़बीला इस ताक में है के मदीना पर हमला करके आस-पास के चरागाहों से मवेशी पकड़कर ले जायें, लिहाज़ा आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़ैसला किया के उनके हमला करने से पहले ही उनपर हमला कर दिया जाये, इस ग़र्ज़ से आप (صلى الله عليه وسلم) ने हज़रत अबू सलमा बिन अ़ब्दुल असद रज़ि0 को क़ाइद बनाकर एक सौ पचास सहाबा की पल्टन तर्तीब की और हज़रत अबू सलमा रज़ि के हाथ पर अपना फ़ौजी निशान (ठंददमत) बान्धा। इस पल्टन में मुसलमानों के बेहतरीन और बहादुर तरीन अफ़्राद को शामिल किया गया था जिनमें हज़रत अबू उ़बैदा बिन अल-जर्राह रज़ि0 हज़रत सअ़द बिन अबी वक़्क़ास रज़ि0 और हज़रत उसैद बिन अल हुदै़र रज़ि0 भी थे इनको हुक्म दिया गया था के वोह आम रास्ता के बजाये दूसरा रास्ता इख़्तियार करें, दिन में छुपे रहें और रात के वक़्त सफ़र करें ताके इस हमला की ख़बर दुशमन को न हो और वोह अचानक हमला की ज़द में आ जाये। हज़रत अबू सलमा रज़ि0 रवाना हुये और बनी असद पहुंचकर अ़लस्सुबह सहाबा को जिहाद की तरग़ीब देते हुये बनी असद पर हमला कर दिया और जल्द ही उन्हें शिकस्त देकर और उनके माल मवेशी लेकर मदीना लौट आये, इससे दोबारा मुसलमानों का रोअ़ब और उनकी ताक़त का असर क़ायम हो गया।

इसके बाद हुज़ूर अकरम सल्ल0 को इत्तिला हुई के ख़ालिद बिन अबी सुफ़्यान अल हज़ली नख़ला या उर्ना के मुक़ाम पर है और मदीने पर हमला करने की ग़र्ज़ से फ़ौज जमा कर रहा है। चुनांचे आपने अ़ब्दुल्लाह बिन उनैस रज़ि0 को इस बात की मुख़बिरी के लिये भेजा अ़ब्दुल्लाह बिन उनैस जब ख़ालिद के पास पहुंचे तो उसने पूछा यह कौन शख़्स हैं? अ़ब्दुल्लाह रज़ि0 ने जवाब दिया के वोह एक अ़रब हैं और उन्हें यह इत्तिला मिली है के ख़ालिद मदीना पर हमला करने के लिये फ़ौज जमा कर रहा है और वोह इसी ग़र्ज़ से उसके पास आये हैं, ख़ालिद ने अ़ब्दुल्लाह बिन उनैस रज़ि0 ने हमले वाली बात नहीं छुपाई और उन्हें बता दिया, और येह दोनों चलते-चलते बातें कर रहे थे, जब येह एैसे मुक़ाम पर पहुंचे जहां से ख़ालिद के आदमी उन्हें देख नहीं पाते, तो अ़ब्दुल्लाह बिन उनैस रज़ि0 ने अपनी तलवार से ख़ालिद का क़त्ल कर दिया और मदीना आकर सारी ख़बर हुज़ूर सल्ल0 को दी। इससे क़बीला ए हुजै़ल के बनू लिहयान ठंडे पड़ गये और बाक़ी अ़रब से भी मदीना पर आने वाला ख़तरा मांद पड़ गया।
इसके बाद गो के अ़रब का ख़तरा किसी हद तक टल गया था, लेकिन बहरहाल अब भी अ़रब मुसलमानों के इक़्ितदार को कमज़ोर करने की फ़िक्र में थे और तौहीन करने से बाज़ नहीं आ रहे थे इसी दौरान हुज़ैल के पड़ोस के एक क़बीला का वफ़्द हुजू़र अकरम सल्ल0 के पास आया और कहा के वोह इस्लाम में आना चाहते हैं और यह गुज़ारिश रखी के उनके साथ कुछ साहाबा को भेजा जाये जो उन लोगों को दीन सिखायें, कुऱ्आन सुनायें और इस्लामी शरीअ़त से आगाह करें। हुजू़र अकरम सल्ल0 ने उनके अपने साथ छहः सहाबा को रवाना किया, जब येह लोग हुजै़ल के इलाक़ा के कूँओं तक पहुंचे तो उनको धोका दे दिया गया और चीख़ कर क़बीला-ए-हुज़ैल के लोगों को बुलाया गया, सहाबा इस अचानक हमला के सबब घिर गये, उन्होंने अपनी तलवारें निकालीं और लड़ते-लड़ते उनमें से तीन शहीद हो गये और बाक़ी तीन ने हथियार डाल दिये और वोह क़ैदी बना लिये गये। उन तीनों को मक्का ले जाया गया ताके उन्हेें बेचा जाये, रास्ते में उन तीन में से एक सहाबी, यानी हज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने तारिक़ ने उन लोगों की ग़फ़्लत का मौक़ा पाकर भाग जाना चाहा, वोह अपनी तलवार भी निकालने में कामयाब रहे लेकिन दुशमनों ने उन्हंे ज़ेर करके क़त्ल कर दिया, बाक़ी दो को मक्का में बेच दिया गया। उन्में से एक जै़द बिन दस्ना रज़ि0 थे जिन्हें सफ़्वान इब्ने उमैय्या ने अपने बाप उमैय्या इब्ने ख़लफ़ की मौत का बदला लेने के लिये ख़रीदा था ताके वोह इन्हें मानकर अपने बाप का इन्तेक़ाम ले सके। जब वोह जै़द बिन दस्ना को क़त्ल करने लगा तो उन्हें अल्लाह का वास्ता देकर पूछा के सच बतावो क्या तुम्हें येह पसंद नहीं होगा के इस वक़्त यहां मुहम्मद (सल्ल0) होते और उनकी गर्दन पर वार होता और तुम मज़े से अपने अहल ओ अ़याल में होते? हज़रत जै़द रज़ि0 ने फ़रमाया बख़ुदा मुझे येह गवारा नहीं के इस वक़्त यहां मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) होते और उन्हें एक कांटा भी चुभ रहा होता जबके में अपने घर में अपने अहल ओ अ़याल के साथ होता। सफ़्वान को बहुत हैरत हुई और उसने कहा के मैंने किसी को अपने दोस्त से इतनी मुहब्बत करते नहीं देखा जितनी मुहम्मद(सल्ल0) के साथी उनसे करते हैं। फिर उसने हज़रत जै़द को क़त्ल कर दिया।
दूसरे साहाबी हज़रत ख़ुबैब रज़ि0 थे, उन्हें सूली चढ़ाने तक क़ैद में रखा गया था, जब उन्हें सूली पर चढ़ाने के लिये लाया गया तो उन्होंने दो रकअ़त नमाज़ पढ़ने की इजाज़त मांगी और खुशूअ़ के साथ अपनी नमाज़ अदा की फिर फ़रमाया अगर मुझे यह ख़याल न होता के तुम येह सोचोगे के मैंने मौत के खौ़फ़ से नमाज़ तवील कर दी है तो मैं और पढ़ता। फिर उन्हें लकड़ी पर लटकाया गया और हज़रत ख़ुबैब उन लोगों को गुस्से से देखते रहे और अल्लाह तआला से मुख़ातिब होकर केहते रहे के एै अल्लाह हमने तेरे रसूल का पैग़ाम पहुंचा दिया, एै अल्लाह तू इन कुफ़्फ़ार के एक-एक शख़्स को इस तरह ख़त्म कर दे के इनमें से कोई न बचे। कुफ़्फ़ार हज़रत खुबैब रज़ि0 की चीखों से दहल उठे और फिर उन्हें क़त्ल कर दिया गया।

हुज़ूर अकरम सल्ल0 को इन छहः सहाबा-ए-किराम के क़त्ल किये जाने का बहुत रंज हुआ और मुसलमानों को भी इस वाक़िया का बहुत अफ़सोस हुआ, सबसे बढ़कर अफ़सोस की बात येह थी के हुज़ैल ने उन्हें बहुत बड़ा धोका दिया था और सहाबा-ए-किराम का ज़रा भी ख़याल नहीं किया था। हुजू़र अकरम सल्ल0 इन हालात के सबब गेहरी फ़िक्र में थे के नज्द से एक शख़्स अबुल-बरा आमिर इब्ने मालिक हाज़िर हुया, येह शख़्स तीर अन्दाज़ी का माहिर था, आप ने उसको इस्लाम के बारे में तआरुफ़ कराया और दीन में दाखि़ल होने की दावत दी। गो के उसने दावत कु़बूल नहीं की लेकिन इस्लाम के लिये कोई मुख़ालिफ़त भी नहीं की और यह दरख़्वास्त की के उसके साथ कुछ साहाबा-ए-किराम को भेजा जाये जो अहले नज्द को इस्लाम से तआरुफ़ करायें साथ ही उसने कहा के उसे क़वी उम्मीद है के अहले नज्द इस दावत का मुस्बत जवाब देंगें, हुज़ूर अकरम सल्ल0 अभी हाल के वाक़िआ के वजह से जिस में क़बीला-ए-हुजै़ल ने साहाबा को धोका दिया था, फ़िक्र मंद थे लिहाज़ा अबुल-बरा की दरख़्वास्त ना मंज़ूर कर दी, लेकिन अबुल-बरा ने हुज़ूर अकरम सल्ल0 को यक़ीन दिलाया के वोह इन सहाबा की हिफ़ाज़त का ज़िम्मेदार है, अबुल-बरा बहरहाल एक मोअ़तबर शख़्स था जिसकी बात में वज़न था और कोई भी शख़्स जो उसकी हिफ़ाज़त में हो, उसे धोका दिये जाने का खौ़फ़ नहीं हो सकता था चुनंाचे उसने इस्रार किया के सहाबा को उसके साथ रवाना किया जाये जो अहले नज्द को इस्लाम की दावत दें।
यह लोग रवाना हुये और मऊ़ना के कूँवों तक पहुंचे, जहां से उन्होंने अपने एक साथी को हुज़ूर अकरम सल्ल0 का ख़त देकर आमिर इब्ने तुुफ़ैल के पास भेजा, जब येह नामा बर आमिर तक पहुंचा तो आमिर उस पर झपट पड़ा और बग़ैर हुज़ूर सल्ल0 का ख़त देखे ही उस नामा बर को क़त्ल कर दिया फिर अपने क़बीला यानी बनी आमिर को चिल्लाकर पुकारा के वोह मुसलमानों को घेर कर क़त्ल कर दें। बनी आमिर ने आमिर इब्ने तुफ़ैल की बात मानने से इनकार कर दिया और अबुल-बरा के साथ मुसलमानों की हिफ़ाज़त का वादा किया आमिर इब्ने तुफ़ैल ने इस पर ख़ामोश होने के बजाये क़रीब के दूसरे क़बाइल को आवाज़ दी जिन्होंने मुसलमानों को, जो अपने ऊंटों पर सवार थे घेर लिया, मुसलमानों ने तलवारें निकाल लीं और अपने आख़िरी शख़्स तक मुक़ाबला किया लेकिन सिवाये दो सहाबा के सब के सब शहीद हो गये, उनकी शहादत का हुज़ूर अकरम सल्ल0 और तमाम मुसलमानों पर शदीद असर पड़ा और आप (صلى الله عليه وسلم) इस अम्र की फ़िक्र करने लगे के किस तरह उन अ़रब क़बाइल को बाज़ रखा जाये और मुसलमानों का रोअ़ब ओ दबदबा किस तरह बहाल किया जाये।

हुज़ूर अकरम सल्ल0 ने मेहसूस किया के इन हादसात की वजह से मदीना ही में हालात बिगड़ रहे हैं लिहाज़ा पहले मदीना पर तवज्जोह फ़रमाने को तर्जीह दी के जब उन पर क़ाबू पा लिया जाये फिर रियासत के ख़ारिजी अहवाल से निमटा जाये, जंगे उहद, बीरे मऊना और रजीअ़ के हादसात से मुुसलमानों के वक़ार को ठेस पहुंची थी जिसके सबब मुनाफ़िक़ीन और यहूद की हिम्मतें बढ़ गईं थीं, येह लोग मौक़े की तलाश में थे। हुज़ूर अकरम सल्ल0 ने उनकी नियतों को भांप लिया था, चुनांचे आप (صلى الله عليه وسلم) ने मुहम्मद इब्ने मुस्लिमा को उनके पास भेजा और फ़रमायाः   
बनी नज़ीर के यहूद के पास जाओ और उनसे कहो के अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है और हुक्म दिया है के तुम मेरे मुल्क से निकल जाओ क्योंके तुमने धोका देकर उस अ़हद को तोड़ा है जो रसूलुल्लाह सल्ल0 ने तुम्हारे साथ किया था, तुम्हारे पास दस दिन की मोहलत है, इसमे मुल्क छोड़ दो उसके बाद अगर कोई दिखा तो उसका सर क़लम कर दिया जायेगा।
बनो नज़ीर मुल्क छोड़ने पर तैयार हो ही गये थे के अ़ब्दुल्लाह इब्ने उबैइ और हैइ इब्ने अख़तब ने उन्हें हिम्मत दिलाई और इस बात पर मना लिया के वोह अपनी क़िल्अ़ों में महसूर रहें, लिहाज़ा हुज़ूर अकरम सल्ल0 ने उन पर घेरा तंग कर दिया, अब वोह मुसालिहत की तरफ़ आये के उनकी जान बख़्श दी जाये और वोह मुल्क छोड़ने पर आमादा हैं, चुनांचे हुज़ूर सल्ल0 ने हुक्म दिया के वोह अपने तीन-तीन अफ़्राद को एक ऊंट पर जिस क़दर खाने-पीने का सामान ले जा सकें चले जायें इसके अ़लावा उसका कुछ नहीं होगा। इस तरह यहूदियों ने मुल्क छोड़ा और उनका बाक़ी सामान और असासा जैसे ज़मीन, बाग़ और अस्लेहा, छोड़ गये। हुजू़र अकरम सल्ल0 ने यह सारा माल मुहाजिरीन में और अंसार के सिर्फ़ दो अशखा़स, अबू दुजाना और सहल इब्ने हुनैफ़ जो के मुहाजिरीन की ही तरह बेसरो सामान थे तक़्सीम फ़रमा दिया।
इस तरह यहूदियों को मुल्क बदर करके आप (صلى الله عليه وسلم) ने मुल्क की दाखि़ली हालात की सियासत पर क़ाबू पाया और मुसलमानों की ताक़त का सिक्का बिठाया और उनका दबदबा बहाल कर दिया अब आप (صلى الله عليه وسلم) ने ख़ारिजी सियासत की जानिब तवज्जोह फ़रमाई। जाहिर बात थी के सबसे पहले कु़रैश को चैलेंज किया जाये लेकिन क़ुरैश मुक़ाबिले के लिये नहीं आये, वाक़िया येह था के जंगे बदर के मौक़ा पर अबू सुफ़्यान ने चैलेंज किया था के आज ही की तारीख़ यानी यौमे बदर को हम अगले साल फिर मुक़ाबला करेंगे, हुज़ूर अकरम सल्ल0 को जब अबू सुफ़्यान का येह क़ौल याद आया तो आप (صلى الله عليه وسلم) ने ज़रूरी समझा के इस चैलेंज का जवाब देना चाहिये चुनांचे आप (صلى الله عليه وسلم) ने मुसलमानों को तैयार किया और अ़ब्दुल्लाह इब्ने अ़ब्दुल्लाह इब्ने सलूल को मदीना में अपना नायब मुक़र्रर करके मैदाने बदर पहुंचे और कु़रैश से क़िताल के मुन्तज़िर रहे, मक्का से अबू सुफ़्यान दो हज़ार फ़ौजियों के साथ रवाना हुआ लेकिन रास्ता ही से अपने फ़ौजियोें के साथ मक्का लौट गया, हुज़ूर अकरम सल्ल0 मुसलसल आठ दिन तक वहीं ख़ैमा ज़न रहे लेकिन कु़रैश नहीं आये बिल आख़िर हुज़ूर अकरम सल्ल0 को कु़रैश के वापस लौट जाने की इत्तिला हुई और आप (صلى الله عليه وسلم) अपने सहाबा के साथ मदीना लौट आये, लेकिन उन आठ दिनों के क़याम में बदर में तिजारत का काफ़ी मूनाफ़ा हासिल कर लिया था।
यह वापसी फ़तह के साथ हुई गोेके कु़रैश मुक़ाबिला के लिये नहीं आये। फिर आपने नज्द के ग़तफ़ान पर हमला किया जो बगै़र मुक़ाबला किये अपनी औरतों और सामान को छोड़कर गये जो मुसलमान माले ग़नीमत के तौर पर अपने साथ मदीना ले आये। इसके बाद हुजू़र अकरम सल्ल0 ने दौमतुल-जंदल का क़स्द किया जो शाम और हिजाज़ की सरहद पर वाके़अ़ था, इसका मक़्सद उन क़बाइल को ज़ेर करना और ख़बरदार करना था को कारवानों पर हमले किया करते थे। दौमतुल जंदल ने भी मुक़ाबला नहीं किया और वोह अपना माल ओ मताअ़ वहीं छोड़कर फ़रार हो गये जिसे माले ग़नीमत के तौर पर मुसलमान लेकर फ़तहयाब होकर मदीना लौटे।
इन ख़ारिजी ग़ज़वात और मदीना के दाखि़ली में की गई कार्रवाइयों से हुज़ूर अकरम सल्ल0 ने मुसलमानों की कु़व्वत की धाक अ़रबों और यहूद पर बिठा दी और उनका वक़ार ओ रोअ़ब बहाल करने में कामयाब हुये। अब जंगे उहद की शिकस्त के असरात पूरी तरह ज़ाइल हो गये थे।
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