मदनी इस्लामी रियासत का ढांचा - 27
अल्लाह के रसूल सल्ल0 मदीने पहुँच कर रोज़े अव्वल से ही मुसलमानों के उमूर मुआमिलात का एहतेमाम करने लगे थे और इस्लामी तर्ज़े फ़िक्र के मुआषिरेह की बिना डाली थी। हुज़ूर अक़दस सल्ल0 ने यहूदियों से मुआहिदा किया फिर बनी ज़मराह और मदलज से फिर क़ुरैश मक्का से, इस के बाद इला जरबाए और जरआ से मआहिदात तैय किये गये थे। लोगांे से ये वादा किया के हज के वक़्त किसी को नहीं रोका जायेगा और न ही हराम महीनों की हुरमत ख़त्म होगी। आप (صلى الله عليه وسلم) ने हज़रत हमज़ा बिन अ़ब्दुल मुत्तलिब, हज़रत उ़बैदह बिन हारिस और हज़रत सअ़द बिन अबी वक़ास रज़ि0 की क़यादत में क़ुरैश से मुक़ाबले के लिये फ़ौजी मुहिम्मात भेजीं। फिर रूमियों से मुक़ाबले के लिये हज़रत ज़ैद बिन हारिसा, हज़रत अ़ब्दुला बिन रवाहा और हज़रत जाफ़र इब्ने अबी तालिब रज़ि0 की क़यादत में फ़ौजी मुहिम्मात भेजीं। हज़रत अ़ब्दुल रहमान इब्ने अ़ौफ़ रज़ि0 को क़बीला दोमतुल जंदल से मुक़ाबले के लिये रवाना किया।
हज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब और फिर हज़रत बशीर इब्ने सअ़द रज़ि0 को फ़दक की मुहिम पर भेजा, अबू सलमा इब्ने अ़ब्दुल असद को नज्द में क़तना की मुहिम की ज़िम्मेदारी सौंपी, हज़रत जै़द इब्ने हारिस रज़ि0 को पहले बनी सुलैम फिर जज़ाम वादी क़री में बनी फज़ारह और फिर मदयन भेजा, हज़रत अ़म्र बिन अल-आस रज़ि0 को बनी अज़राए के ज़ात सलासिल भेजा, इस के अलावा और भी कई लोगांे को मुख़्तलिफ़़ मुक़ामात के लिये रवाना किया और बज़ाते ख़ुद भी शदीद ख़ूंरेज़ ग़ज़वात में शिरकत फ़रमाई।
इसी के साथ हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने रियासत के मुख़्तलिफ़़ सूबों के लिये वाली और शहरों के लिये आमिलों की तक़र्रुरी की। मसलन फ़तहे मक्का के बाद वहां अ़ताब इब्ने उसैद को वाली मुकरर्र किया, बाजाऩ इब्ने सासान ने जब इस्लाम क़ूबूल किया तो उन्हें यमन का वाली मुकरर्र किया, हज़रत मआज़ इब्ने जबल अल ख़ज़र्जी रज़ि0 को जनद का वाली बनाया, ख़ालिद इब्ने सईद बिन अल-आस को सनआ का, ज़्याद बिन लबीद सअ़लबा अल अंसारी को हदरमूत का आमिल मुतईन किया। हज़रत अबू मूसा अल अशअ़री रज़ि0 को ज़बीद पर और फिर अदन पर मुकरर्र किया, हज़रत अ़म्र बिन अल-आस रज़ि0 को उ़मान पर, अल मुहाजर इब्ने अबी उमइया को सनआ पर आमिल मुकरर्र फरमाया, अ़दई बिन हातिम अत्ताई रज़ि0 को तैई का आमिल बनाया अल-अ़ला बिन अल-हद़रमी रज़ि0 को बहरैन का वाली बनाया और मदीने पर हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) ने अबू दुजाना रज़ि0 को आमिल मुतअैय्यन किया।
इन कामों के लिये हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) लोगांे में से जिसको उस काम के लिये मुनासिब तरीन पाते, उसे चुना करते थे के वोह शख़्स एैसा हो जो लोगांे के दिलों में ईमान को ताज़ा रखे। आप (صلى الله عليه وسلم) उन लोगों से येह पूछते थे के वोह किस तरीक़े पर चलेंगे? उन्होंने जवाब दिया के अल्लाह अज़्जा व जल की किताब से फिर पूछा के अगर अल्लाह की किताब में इस बारे में कुछ न मिले तो? जवाब मिला के अल्लाह के रसूल सल्ल0 के सुन्नत से, फिर पूछा के अगर उसमें न मिले तो? हज़रत अबू मूसा रज़ि0 ने कहा के फिर में अपनी राय से इज्तिहाद करूँगा। इस जवाब से हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) बहुत ख़ुश हुये और फ़रमाया।
الحمد لله الذي وفق رسول رسول الله لما يحبـه الله و رسوله
अल्हमदु लिल्लाह, के उसने अपने रसूल के वाली को वोह फे़हम दिया जिससे अल्लाह और उसका रसूल राज़ी है।
इसी तरह आप (صلى الله عليه وسلم) से मर्वी है के जब आप (صلى الله عليه وسلم) ने हज़रत अबान इब्ने सईद रज़ि0 को बहरैन का वाली बनाया तो उन्हें नसिहत फ़रमाई के वोह अ़ब्दे कै़स का एैहतेराम करें।
अल्लाह के रसूल सल्ल0 लोगांे में बहतरीन शख़्स को वलायत की ज़िम्मेदारी के लिये मुनतख़ब करते और इन वलीयों को नसिहत करते के जो लोग इस्लाम में दाखि़ल हों उन्हें दीन सिखायें और उन से सदक़ात वसूल करें। अकसर औक़ात आप (صلى الله عليه وسلم) का येह मअ़मूल रहा के वाली को ही लोगों पर महसूल आइद करने की ज़िम्मेदारी सौंपा करते थे। वालीयों को नसिहत फ़रमाते थे के लोगों को अच्छी बातें बतायें, क़ुरान की तालीम दें, और दीन समझायें उनके साथ हक़ के मुआमले में नरमी बर्तें और आगर वोह जु़ल्म करें तो उनके साथ सख़्ती से पेश आयें।
उनके दर्मियान अगर किसी बात में इख़्तिलाफ़ हो तो मुआमले को क़बीलों या बिरादरी में ले जाने से रोकें और सिर्फ़ अल्लाह वहदहु ला-शरीक के एहकाम से उसका तसफ़ीया करें। उनके अमवाल में से पांचवां हिस्सा वुसूल करें और जो सदक़ात उन पर वाजिब होते हों वोह हासिल करें। कोई यहूदी या ईसाई अगर सिदके़ दिल से दीन में दाख़िल होता है और इस्लाम को अपने दीन के तौर पर इख़्तियार करता है तो वोह मोमिनों में षुमार होगा और उसके हुक़ूक़ और वाजिबात मुसलमानों जैसे ही होंगे। किसी यहूदी या ईसाई को उस के दीन के सबब इज़ाएं नहीं पहुँचाई जायेंगी। जब आप (صلى الله عليه وسلم) ने हज़रत मुआज़ इब्ने जबल रज़ि0 को यमन का वाली मुकरर्र किया तो फ़रमाया।
إنك تقدم على قوم أهل الكتاب فليكن أول ما تدعوم إليهعبادة الله عز وجل فإذا عرفوا الله فأخبرهم أن الله فرض عليهم خمس صلوات في يومهم وليلتهم فإذا فعلوا فأخبرهم أن الله قد فرض عليهم زكوة تؤخذ من أغنيائهم فترد إلى فقرائهم فإذا أطاعوا فخذ منهم وتوق كرائم اموالهم
तुम अहले किताब पर मुतअ़ैय्यन किये जा रहे हो, सो सबसे पहले उन्हें अल्लाह अज़्ज़ा व जल की इ़बादत के लिये बुलाओ, फिर उन्हें बताओ के अल्लाह तआला ने उन पर दिन और रात में पांच नमाज़े फ़र्ज़ की हैं, जब वोह ये करलें तो उन्हें बताओ के अल्लाह ने उन पर ज़कात फ़र्ज़ की है के उनके अमीरों से वसूल की जाये और उनके ग़ुरबा में बांटी जाये, जब वोह मान लें तो उनसे (ज़कात) ले लो और उनके माल के बहतर हिस्से कीे हिफ़ाज़त करो।
बसा औक़ात आप (صلى الله عليه وسلم) किसी ख़ास को सिर्फ़़ अमवाल का हिसाब करने और उसे वुसूल करने के लिये भेजते थे। हर साल हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन रवाहा रज़ि0 को खै़बर के यहूद के पास भेजते जो उनके फलों और काश्त की पैदावार का हिसाब करते और अमवाल वसूल करते थे। यहूदियों ने हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) से शिकायत की के हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन रवाहा रज़ि0 हिसाब में बहुत सख़्त हैं, फिर उन्हें रिश्वत देने की कोशिश की, अपनी औरतों के ज़ेवरात सामने लाकर रख दिये और कहा के ये आप के लिये हैं और दरख़्वास्त की के वोह हिसाब किताब आसान करें। हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन रवाहा ने जवाब दिया एै एहले यहूद अल्लाह की मख़लूक़ में तुम लोगों से मुझे सब से ज़्यादा बुग़्ज़ है, लेकिन में इसे तुम्हारे मुआमिले पर असर अंदाज़ नहीं होने दूँगा। और ये जो तुम ने रिश्वत की पेशकश की है तो हम येह नहीं खाते। उन लोगो ने जवाब दिया के तुम्हारे इस इंसाफ से ज़मीन ओ आसमान क़ायम हैं।
हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) अपने मुकरर्र किये हुये वालीयों और आमिलों के एहवाल से बा ख़बर रहते और इनकी जो ख़बरें आती उन्हें बग़ौर सुनते थे। आप (صلى الله عليه وسلم) अपने आमिलों से मुकम्मल हिसाब लिया करते थे और आमदनी ओ मसारिफ़ की पूछताछ करते थे। एक शख़्स को सदक़ात वसूल करने की ज़िम्मेदारी दी थी जब वोह वापस आया और उससे हिसाब तलब किया तो उसने कहा ये आप (صلى الله عليه وسلم) का है और येह मुझे अज़ राहे हदिया मिला है। आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया:
فما بال العامل نستعمله فيأتينا فيقول هذا من عملكم ، وهذا الذي أهدي لي ، أفلا قعد في بيت أبيه وأمه فينظر هل يهدى له أم لا
इस शख़्स को क्या हुआ है? उसे हमने एैसे काम पर रखा जो अल्लाह तआला ने हमें सौंपा था, वोह शख़्स आकर केहता है ये आप के लिये है और ये मुझे तोहफतन मिला है। तो वोह अपने बाप और अपनी माँ के घर बैठे फिर हम देखें के इसे हदिया मिलता है या नहीं।
फिर फ़रमायाः
من استعملناه على عمل فرزقناه رزقا ، فما أخذ بعد ذلك فهو غلول
जिस किसी को हमने किसी काम पर रखा और उसे कुछ अजरत दी फिर उसने इसके बाद जो कुछ (इज़ाफ़ा) लिया वोह ग़बन है।
यमन के अ़वाम ने हज़रत मुआज़ रज़ि0 की शिकायत की के वोह नमाज़ें लम्बी पढ़ाते हैं। हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) ने उनकीे सरज़निश की और फ़रमायाः
من أم في النَّاس فليُخَفِّف
जो लोगों की इमामत करे सौ उसे चाहिये के वोह नमाज़ सहूलत से पढ़ाये।
आप (صلى الله عليه وسلم) क़ाज़ीयों को मुकरर्र फ़रमाते थे, हज़रत अ़ली रज़ि0 को यमन का काज़ी मुक़र्रर किया और हज़रत अबू मूसा अल-अशअ़री और मुआज़ इब्ने जबल रज़ि0 को यमन के क़ाज़ी बनाकर भेजा और उनसे पूछाः
بما تحكمان؟ فقالاरूإن لم نجد الحكم في الكتاب ولا في السنَّة قسنا الأمر بالأمر فما كان أقرب إلى الحق عملنا به
तुम किस (चीज़) फै़सले करोगे, तो (उन लोगो ने) कहा के हमको अगर क़ुरआन और सुन्नत में हुक्म न मिला तो हम एक मुआमिले को दूसरे मआमिले पर क़यास करेंगे और जो हक़ के क़रीब तर होगा, उस पर अ़मल (फैसले) करेंगे।
आप (صلى الله عليه وسلم) इस बात पर उनसे मुत्तफ़िक़ हुये। येह इस बात का सबूत है के आप (صلى الله عليه وسلم) क़ाज़ीयों का तक़रर्र भी फ़रमाते और उनसे उनके तरीक़े अ़मल की जाँच भी फ़रमाते थे। फिर मेहज़ क़ाज़ीयों के तअ़ैय्युन और उनके हालात से बाख़बर रहने पर आप (صلى الله عليه وسلم) ने इक्तिफ़ा नहीं कर लिया बल्के उनकी निगरानी के लिये क़ाज़ी मज़ालिम का तक़र्रुर फरमाया जो क़ाज़ीयों के फैसलों पर नज़र रखे।
हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) अ़वाम के मुआमिलात की निगेहदाश्त फ़रमाते, हर नौईय्यत के अफ़आल के लिये एक शख़्स को ब हैसिय्यत अफ़सर उस काम पर निगराँ मुकरर्र करते जिनकी हैसिय्यत (क्पतमबजवत) की तरह थी। मसलन मुअ़इक़ीब इब्ने अबी फ़ातिमा अद्दौसी रज़ि0 को मुहर ए नुबुव्वत और माले ग़नीमत की ज़िम्मेदारियां दी थीं, हुज़ेफ़ा बिन यमान रज़ि0 को इलाक़ा हिजाज़ में फ़लों की पैदावार के हिसाब की ज़िम्मेदारी दी थी, हज़रत ज़्ाुबैर बिन अल अ़व्वाम रज़ि0 सदक़ात पर मुतअ़ैय्यन थे, मुग़ीरह बिन शअ़बा क़रज़ांे और दीगर मुआमिलात का हिसाब रखते थे, हज़रत अ़ली बिन तालिब रज़ि0 के ज़िम्मे सुलह और दीगर मुआहिदात के लिखने का काम था। शरजील इब्ने हसना रज़ि0 बादशाहों को ख़ुतूत लिखने के ज़िम्मेदार थे। इस तरह जिस क़दर भी काम होते थे उन का ज़िम्मा एक मुत्तईन शख़्स के सुपर्द था।
हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) अपने सहाबा-ए-किराम से कसरत से मशवरे किया करते थे और कभी समझदार लोगों या एहले राय और सहाबा अक़्ल ओ फ़हम और जिसमें कव्व़ुते ईमानी पाते, राय लेने से हरगिज़ गुरेज़ न फ़रमाते। इनमें सात अफराद मुहाजरीन में से और सात अंसार के थे। हज़रत हमज़ा, हज़रत अबू बक्र, हज़रत जाफ़र, हज़रत उ़मर, हज़रत अ़ली, हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन मसूद, हज़रत सलमान, हज़रत अ़म्मार, हज़रत अबूज़र, हज़रत हुज़ैफ़ा, हज़रत मिक़दाद और हज़रत बिलाल रज़ि0। इनके अलावा दीगर अफ़्राद से भी मशवरे किया करते थ, लेकिन चूंके इन ही अफ़्राद से अकसर राय लिया करते थे इस लिये इन की हैसिय्यत आप (صلى الله عليه وسلم) की मजलिस शूरा के मुतरादिफ़ थी।
आप (صلى الله عليه وسلم) ने ज़मीन की दो अक़्साम, फलौं की पैदावार और मवेशियों पर, ख़्वाह वोह मुसलमानों के हों या गै़र मुस्लिमों के महसूल (ज्ंग) मुक़रर्र फ़रमा दिये थे। यह ज़कात उष्र, ख़राज, फै़य, और जिज़्या की मदों में थे। अन्फ़ाल और माले ग़नीमत बैतुल माल में जाती थी, ज़कात का माल उन आठ मदों पर ही खर्च होता था जो कुऱ्आन में मुतअैय्यन करदी गई हैं, इनके अ़लावा ज़कात और किसी मद में ख़र्च नहीं की जाती थी और न ही हुकूमत के मसारिफ़ इससे पूरे किये जाते थे। हुकूमत के मसारिफ़ के लिये फैय, जिज़्या, ख़राज, और माले ग़नीमत का पैसा इस्तेमाल किया जाता था जो काफ़ी हुआ करता था और कभी भी हुकूमत के मसारिफ़ के लिये कम नहीं पड़ा।
इस तरह अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने बज़ाते ख़ुद इस्लामी हुकूमत का़यम की और अपनी ज़िंदगी ही में उसकी तक्मील फ़रमाई, आप (صلى الله عليه وسلم) रियासत के सरबराह थ,े आप (صلى الله عليه وسلم) के मुआविनीन थे, वालियान, क़ाज़ी, फौ़ज, मुख़्तलिफ़़ कामों के लिये मख़्सूस अफ़्सर और राये मशवरे के लिये मजलिसे शूरा थी, रियासत का येह ढांचा या हैकल अपनी षक्ल ओ तसर्रुफ़ात के एैतेबार से तवातुर से साबित शुदा और वाजिबुल इत्तिबाअ़ है। हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) मदीना मुनव्वरा तशरीफ़ लाने के फ़ौरन बाद से अपनी वफ़ात तक इस रियासत के सरबराह रहे, हज़रत अबू बक्र और हज़रत उमर रज़ि0 आप (صلى الله عليه وسلم) के मुआविनीन यानी वुज़रा रहे और आप (صلى الله عليه وسلم) के बाद तमाम सहाबा रज़ि0 का इस बात पर इज्माअ़ रहा के आप (صلى الله عليه وسلم) के बाद रियासत का एक सरबराह हो जो हुजू़र सल्ल0 का बहैसिय्यते सरबराह ए रियासत वारिस हो, न के बहैसिय्यते रसूल जानशीन हो, क्योंके रिसालत आप (صلى الله عليه وسلم) पर ख़त्म हो गई। इस तरह आप (صلى الله عليه وسلم) ने अपनी जिंदगी ही में हुकूमत का हैकल तैयार किया और एक रियासत का वाजे़ह और मारूफ़ ढांचा अपने पीछे इत्तिबाअ़ के लिये छोड़ा।
अल्लाह के रसूल सल्ल0 मदीने पहुँच कर रोज़े अव्वल से ही मुसलमानों के उमूर मुआमिलात का एहतेमाम करने लगे थे और इस्लामी तर्ज़े फ़िक्र के मुआषिरेह की बिना डाली थी। हुज़ूर अक़दस सल्ल0 ने यहूदियों से मुआहिदा किया फिर बनी ज़मराह और मदलज से फिर क़ुरैश मक्का से, इस के बाद इला जरबाए और जरआ से मआहिदात तैय किये गये थे। लोगांे से ये वादा किया के हज के वक़्त किसी को नहीं रोका जायेगा और न ही हराम महीनों की हुरमत ख़त्म होगी। आप (صلى الله عليه وسلم) ने हज़रत हमज़ा बिन अ़ब्दुल मुत्तलिब, हज़रत उ़बैदह बिन हारिस और हज़रत सअ़द बिन अबी वक़ास रज़ि0 की क़यादत में क़ुरैश से मुक़ाबले के लिये फ़ौजी मुहिम्मात भेजीं। फिर रूमियों से मुक़ाबले के लिये हज़रत ज़ैद बिन हारिसा, हज़रत अ़ब्दुला बिन रवाहा और हज़रत जाफ़र इब्ने अबी तालिब रज़ि0 की क़यादत में फ़ौजी मुहिम्मात भेजीं। हज़रत अ़ब्दुल रहमान इब्ने अ़ौफ़ रज़ि0 को क़बीला दोमतुल जंदल से मुक़ाबले के लिये रवाना किया।
हज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब और फिर हज़रत बशीर इब्ने सअ़द रज़ि0 को फ़दक की मुहिम पर भेजा, अबू सलमा इब्ने अ़ब्दुल असद को नज्द में क़तना की मुहिम की ज़िम्मेदारी सौंपी, हज़रत जै़द इब्ने हारिस रज़ि0 को पहले बनी सुलैम फिर जज़ाम वादी क़री में बनी फज़ारह और फिर मदयन भेजा, हज़रत अ़म्र बिन अल-आस रज़ि0 को बनी अज़राए के ज़ात सलासिल भेजा, इस के अलावा और भी कई लोगांे को मुख़्तलिफ़़ मुक़ामात के लिये रवाना किया और बज़ाते ख़ुद भी शदीद ख़ूंरेज़ ग़ज़वात में शिरकत फ़रमाई।
इसी के साथ हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने रियासत के मुख़्तलिफ़़ सूबों के लिये वाली और शहरों के लिये आमिलों की तक़र्रुरी की। मसलन फ़तहे मक्का के बाद वहां अ़ताब इब्ने उसैद को वाली मुकरर्र किया, बाजाऩ इब्ने सासान ने जब इस्लाम क़ूबूल किया तो उन्हें यमन का वाली मुकरर्र किया, हज़रत मआज़ इब्ने जबल अल ख़ज़र्जी रज़ि0 को जनद का वाली बनाया, ख़ालिद इब्ने सईद बिन अल-आस को सनआ का, ज़्याद बिन लबीद सअ़लबा अल अंसारी को हदरमूत का आमिल मुतईन किया। हज़रत अबू मूसा अल अशअ़री रज़ि0 को ज़बीद पर और फिर अदन पर मुकरर्र किया, हज़रत अ़म्र बिन अल-आस रज़ि0 को उ़मान पर, अल मुहाजर इब्ने अबी उमइया को सनआ पर आमिल मुकरर्र फरमाया, अ़दई बिन हातिम अत्ताई रज़ि0 को तैई का आमिल बनाया अल-अ़ला बिन अल-हद़रमी रज़ि0 को बहरैन का वाली बनाया और मदीने पर हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) ने अबू दुजाना रज़ि0 को आमिल मुतअैय्यन किया।
इन कामों के लिये हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) लोगांे में से जिसको उस काम के लिये मुनासिब तरीन पाते, उसे चुना करते थे के वोह शख़्स एैसा हो जो लोगांे के दिलों में ईमान को ताज़ा रखे। आप (صلى الله عليه وسلم) उन लोगों से येह पूछते थे के वोह किस तरीक़े पर चलेंगे? उन्होंने जवाब दिया के अल्लाह अज़्जा व जल की किताब से फिर पूछा के अगर अल्लाह की किताब में इस बारे में कुछ न मिले तो? जवाब मिला के अल्लाह के रसूल सल्ल0 के सुन्नत से, फिर पूछा के अगर उसमें न मिले तो? हज़रत अबू मूसा रज़ि0 ने कहा के फिर में अपनी राय से इज्तिहाद करूँगा। इस जवाब से हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) बहुत ख़ुश हुये और फ़रमाया।
الحمد لله الذي وفق رسول رسول الله لما يحبـه الله و رسوله
अल्हमदु लिल्लाह, के उसने अपने रसूल के वाली को वोह फे़हम दिया जिससे अल्लाह और उसका रसूल राज़ी है।
इसी तरह आप (صلى الله عليه وسلم) से मर्वी है के जब आप (صلى الله عليه وسلم) ने हज़रत अबान इब्ने सईद रज़ि0 को बहरैन का वाली बनाया तो उन्हें नसिहत फ़रमाई के वोह अ़ब्दे कै़स का एैहतेराम करें।
अल्लाह के रसूल सल्ल0 लोगांे में बहतरीन शख़्स को वलायत की ज़िम्मेदारी के लिये मुनतख़ब करते और इन वलीयों को नसिहत करते के जो लोग इस्लाम में दाखि़ल हों उन्हें दीन सिखायें और उन से सदक़ात वसूल करें। अकसर औक़ात आप (صلى الله عليه وسلم) का येह मअ़मूल रहा के वाली को ही लोगों पर महसूल आइद करने की ज़िम्मेदारी सौंपा करते थे। वालीयों को नसिहत फ़रमाते थे के लोगों को अच्छी बातें बतायें, क़ुरान की तालीम दें, और दीन समझायें उनके साथ हक़ के मुआमले में नरमी बर्तें और आगर वोह जु़ल्म करें तो उनके साथ सख़्ती से पेश आयें।
उनके दर्मियान अगर किसी बात में इख़्तिलाफ़ हो तो मुआमले को क़बीलों या बिरादरी में ले जाने से रोकें और सिर्फ़ अल्लाह वहदहु ला-शरीक के एहकाम से उसका तसफ़ीया करें। उनके अमवाल में से पांचवां हिस्सा वुसूल करें और जो सदक़ात उन पर वाजिब होते हों वोह हासिल करें। कोई यहूदी या ईसाई अगर सिदके़ दिल से दीन में दाख़िल होता है और इस्लाम को अपने दीन के तौर पर इख़्तियार करता है तो वोह मोमिनों में षुमार होगा और उसके हुक़ूक़ और वाजिबात मुसलमानों जैसे ही होंगे। किसी यहूदी या ईसाई को उस के दीन के सबब इज़ाएं नहीं पहुँचाई जायेंगी। जब आप (صلى الله عليه وسلم) ने हज़रत मुआज़ इब्ने जबल रज़ि0 को यमन का वाली मुकरर्र किया तो फ़रमाया।
إنك تقدم على قوم أهل الكتاب فليكن أول ما تدعوم إليهعبادة الله عز وجل فإذا عرفوا الله فأخبرهم أن الله فرض عليهم خمس صلوات في يومهم وليلتهم فإذا فعلوا فأخبرهم أن الله قد فرض عليهم زكوة تؤخذ من أغنيائهم فترد إلى فقرائهم فإذا أطاعوا فخذ منهم وتوق كرائم اموالهم
तुम अहले किताब पर मुतअ़ैय्यन किये जा रहे हो, सो सबसे पहले उन्हें अल्लाह अज़्ज़ा व जल की इ़बादत के लिये बुलाओ, फिर उन्हें बताओ के अल्लाह तआला ने उन पर दिन और रात में पांच नमाज़े फ़र्ज़ की हैं, जब वोह ये करलें तो उन्हें बताओ के अल्लाह ने उन पर ज़कात फ़र्ज़ की है के उनके अमीरों से वसूल की जाये और उनके ग़ुरबा में बांटी जाये, जब वोह मान लें तो उनसे (ज़कात) ले लो और उनके माल के बहतर हिस्से कीे हिफ़ाज़त करो।
बसा औक़ात आप (صلى الله عليه وسلم) किसी ख़ास को सिर्फ़़ अमवाल का हिसाब करने और उसे वुसूल करने के लिये भेजते थे। हर साल हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन रवाहा रज़ि0 को खै़बर के यहूद के पास भेजते जो उनके फलों और काश्त की पैदावार का हिसाब करते और अमवाल वसूल करते थे। यहूदियों ने हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) से शिकायत की के हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन रवाहा रज़ि0 हिसाब में बहुत सख़्त हैं, फिर उन्हें रिश्वत देने की कोशिश की, अपनी औरतों के ज़ेवरात सामने लाकर रख दिये और कहा के ये आप के लिये हैं और दरख़्वास्त की के वोह हिसाब किताब आसान करें। हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन रवाहा ने जवाब दिया एै एहले यहूद अल्लाह की मख़लूक़ में तुम लोगों से मुझे सब से ज़्यादा बुग़्ज़ है, लेकिन में इसे तुम्हारे मुआमिले पर असर अंदाज़ नहीं होने दूँगा। और ये जो तुम ने रिश्वत की पेशकश की है तो हम येह नहीं खाते। उन लोगो ने जवाब दिया के तुम्हारे इस इंसाफ से ज़मीन ओ आसमान क़ायम हैं।
हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) अपने मुकरर्र किये हुये वालीयों और आमिलों के एहवाल से बा ख़बर रहते और इनकी जो ख़बरें आती उन्हें बग़ौर सुनते थे। आप (صلى الله عليه وسلم) अपने आमिलों से मुकम्मल हिसाब लिया करते थे और आमदनी ओ मसारिफ़ की पूछताछ करते थे। एक शख़्स को सदक़ात वसूल करने की ज़िम्मेदारी दी थी जब वोह वापस आया और उससे हिसाब तलब किया तो उसने कहा ये आप (صلى الله عليه وسلم) का है और येह मुझे अज़ राहे हदिया मिला है। आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया:
فما بال العامل نستعمله فيأتينا فيقول هذا من عملكم ، وهذا الذي أهدي لي ، أفلا قعد في بيت أبيه وأمه فينظر هل يهدى له أم لا
इस शख़्स को क्या हुआ है? उसे हमने एैसे काम पर रखा जो अल्लाह तआला ने हमें सौंपा था, वोह शख़्स आकर केहता है ये आप के लिये है और ये मुझे तोहफतन मिला है। तो वोह अपने बाप और अपनी माँ के घर बैठे फिर हम देखें के इसे हदिया मिलता है या नहीं।
फिर फ़रमायाः
من استعملناه على عمل فرزقناه رزقا ، فما أخذ بعد ذلك فهو غلول
जिस किसी को हमने किसी काम पर रखा और उसे कुछ अजरत दी फिर उसने इसके बाद जो कुछ (इज़ाफ़ा) लिया वोह ग़बन है।
यमन के अ़वाम ने हज़रत मुआज़ रज़ि0 की शिकायत की के वोह नमाज़ें लम्बी पढ़ाते हैं। हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) ने उनकीे सरज़निश की और फ़रमायाः
من أم في النَّاس فليُخَفِّف
जो लोगों की इमामत करे सौ उसे चाहिये के वोह नमाज़ सहूलत से पढ़ाये।
आप (صلى الله عليه وسلم) क़ाज़ीयों को मुकरर्र फ़रमाते थे, हज़रत अ़ली रज़ि0 को यमन का काज़ी मुक़र्रर किया और हज़रत अबू मूसा अल-अशअ़री और मुआज़ इब्ने जबल रज़ि0 को यमन के क़ाज़ी बनाकर भेजा और उनसे पूछाः
بما تحكمان؟ فقالاरूإن لم نجد الحكم في الكتاب ولا في السنَّة قسنا الأمر بالأمر فما كان أقرب إلى الحق عملنا به
तुम किस (चीज़) फै़सले करोगे, तो (उन लोगो ने) कहा के हमको अगर क़ुरआन और सुन्नत में हुक्म न मिला तो हम एक मुआमिले को दूसरे मआमिले पर क़यास करेंगे और जो हक़ के क़रीब तर होगा, उस पर अ़मल (फैसले) करेंगे।
आप (صلى الله عليه وسلم) इस बात पर उनसे मुत्तफ़िक़ हुये। येह इस बात का सबूत है के आप (صلى الله عليه وسلم) क़ाज़ीयों का तक़रर्र भी फ़रमाते और उनसे उनके तरीक़े अ़मल की जाँच भी फ़रमाते थे। फिर मेहज़ क़ाज़ीयों के तअ़ैय्युन और उनके हालात से बाख़बर रहने पर आप (صلى الله عليه وسلم) ने इक्तिफ़ा नहीं कर लिया बल्के उनकी निगरानी के लिये क़ाज़ी मज़ालिम का तक़र्रुर फरमाया जो क़ाज़ीयों के फैसलों पर नज़र रखे।
हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) अ़वाम के मुआमिलात की निगेहदाश्त फ़रमाते, हर नौईय्यत के अफ़आल के लिये एक शख़्स को ब हैसिय्यत अफ़सर उस काम पर निगराँ मुकरर्र करते जिनकी हैसिय्यत (क्पतमबजवत) की तरह थी। मसलन मुअ़इक़ीब इब्ने अबी फ़ातिमा अद्दौसी रज़ि0 को मुहर ए नुबुव्वत और माले ग़नीमत की ज़िम्मेदारियां दी थीं, हुज़ेफ़ा बिन यमान रज़ि0 को इलाक़ा हिजाज़ में फ़लों की पैदावार के हिसाब की ज़िम्मेदारी दी थी, हज़रत ज़्ाुबैर बिन अल अ़व्वाम रज़ि0 सदक़ात पर मुतअ़ैय्यन थे, मुग़ीरह बिन शअ़बा क़रज़ांे और दीगर मुआमिलात का हिसाब रखते थे, हज़रत अ़ली बिन तालिब रज़ि0 के ज़िम्मे सुलह और दीगर मुआहिदात के लिखने का काम था। शरजील इब्ने हसना रज़ि0 बादशाहों को ख़ुतूत लिखने के ज़िम्मेदार थे। इस तरह जिस क़दर भी काम होते थे उन का ज़िम्मा एक मुत्तईन शख़्स के सुपर्द था।
हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) अपने सहाबा-ए-किराम से कसरत से मशवरे किया करते थे और कभी समझदार लोगों या एहले राय और सहाबा अक़्ल ओ फ़हम और जिसमें कव्व़ुते ईमानी पाते, राय लेने से हरगिज़ गुरेज़ न फ़रमाते। इनमें सात अफराद मुहाजरीन में से और सात अंसार के थे। हज़रत हमज़ा, हज़रत अबू बक्र, हज़रत जाफ़र, हज़रत उ़मर, हज़रत अ़ली, हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन मसूद, हज़रत सलमान, हज़रत अ़म्मार, हज़रत अबूज़र, हज़रत हुज़ैफ़ा, हज़रत मिक़दाद और हज़रत बिलाल रज़ि0। इनके अलावा दीगर अफ़्राद से भी मशवरे किया करते थ, लेकिन चूंके इन ही अफ़्राद से अकसर राय लिया करते थे इस लिये इन की हैसिय्यत आप (صلى الله عليه وسلم) की मजलिस शूरा के मुतरादिफ़ थी।
आप (صلى الله عليه وسلم) ने ज़मीन की दो अक़्साम, फलौं की पैदावार और मवेशियों पर, ख़्वाह वोह मुसलमानों के हों या गै़र मुस्लिमों के महसूल (ज्ंग) मुक़रर्र फ़रमा दिये थे। यह ज़कात उष्र, ख़राज, फै़य, और जिज़्या की मदों में थे। अन्फ़ाल और माले ग़नीमत बैतुल माल में जाती थी, ज़कात का माल उन आठ मदों पर ही खर्च होता था जो कुऱ्आन में मुतअैय्यन करदी गई हैं, इनके अ़लावा ज़कात और किसी मद में ख़र्च नहीं की जाती थी और न ही हुकूमत के मसारिफ़ इससे पूरे किये जाते थे। हुकूमत के मसारिफ़ के लिये फैय, जिज़्या, ख़राज, और माले ग़नीमत का पैसा इस्तेमाल किया जाता था जो काफ़ी हुआ करता था और कभी भी हुकूमत के मसारिफ़ के लिये कम नहीं पड़ा।
इस तरह अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने बज़ाते ख़ुद इस्लामी हुकूमत का़यम की और अपनी ज़िंदगी ही में उसकी तक्मील फ़रमाई, आप (صلى الله عليه وسلم) रियासत के सरबराह थ,े आप (صلى الله عليه وسلم) के मुआविनीन थे, वालियान, क़ाज़ी, फौ़ज, मुख़्तलिफ़़ कामों के लिये मख़्सूस अफ़्सर और राये मशवरे के लिये मजलिसे शूरा थी, रियासत का येह ढांचा या हैकल अपनी षक्ल ओ तसर्रुफ़ात के एैतेबार से तवातुर से साबित शुदा और वाजिबुल इत्तिबाअ़ है। हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) मदीना मुनव्वरा तशरीफ़ लाने के फ़ौरन बाद से अपनी वफ़ात तक इस रियासत के सरबराह रहे, हज़रत अबू बक्र और हज़रत उमर रज़ि0 आप (صلى الله عليه وسلم) के मुआविनीन यानी वुज़रा रहे और आप (صلى الله عليه وسلم) के बाद तमाम सहाबा रज़ि0 का इस बात पर इज्माअ़ रहा के आप (صلى الله عليه وسلم) के बाद रियासत का एक सरबराह हो जो हुजू़र सल्ल0 का बहैसिय्यते सरबराह ए रियासत वारिस हो, न के बहैसिय्यते रसूल जानशीन हो, क्योंके रिसालत आप (صلى الله عليه وسلم) पर ख़त्म हो गई। इस तरह आप (صلى الله عليه وسلم) ने अपनी जिंदगी ही में हुकूमत का हैकल तैयार किया और एक रियासत का वाजे़ह और मारूफ़ ढांचा अपने पीछे इत्तिबाअ़ के लिये छोड़ा।
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