पड़ोसी मुमालिक को इस्लाम की दावत - 20

पड़ोसी मुमालिक को इस्लाम की दावत - 20


जब हुजू़र सल्ल0 को जज़ीरानुमा-ए-अ़रब में दावत के काम की तरफ़ से इतमिनान हो गया तो आप (صلى الله عليه وسلم) ने हिजाज़ के बाहर दावत को फैलाने के लिये इक़्दामात किये क्योंके दीने इस्लाम सारे आलम के लिये है और हुज़ूर सल्ल0 को तमाम लोगों के लिये मब्ऊ़स फ़रमाया गया है, अल्लाह अ़ज़्ज़ा व जल को सूरहः अन्बिया में इरशाद हैः
وَمَاۤ اَرۡسَلۡنٰكَ اِلَّا رَحۡمَةً لِّـلۡعٰلَمِيۡنَ‏ ﴿۱۰۷﴾
और हमने आप तमाम जहान वालों के लिये रहमत बनाकर ही भेजा है (तजुर्मा मआनी र्कुआन करीमः सुरहः अंबियाः आयतः107)
और सुरहः सबा में फ़रमायाः
وَمَاۤ اَرۡسَلۡنٰكَ اِلَّا كَآفَّةً لِّلنَّاسِ بَشِيۡرًا وَّنَذِيۡرًا
हमने आपको तमाम लोगों के लिये खुशख़बरियां सुनाने वाला और धमका देने वाला बना भेजा है। (तजुर्मा मआनी र्कुआन करीमः सुरहः सबा, आयतः28)
هُوَ الَّذِىۡۤ اَرۡسَلَ رَسُوۡلَهٗ بِالۡهُدٰى وَدِيۡنِ الۡحَـقِّ لِيُظۡهِرَهٗ عَلَى الدِّيۡنِ كُلِّهٖۙ وَلَوۡ ڪَرِهَ الۡمُشۡرِڪُوۡنَ‏ ﴿۳۳﴾
उसी ने अपने रसूल हिदायत और सच्चे दीन के साथ भेजा है के उसे तमाम मज़हबों पर ग़ालिब करदे अगरचे मुश्रिक बुरामानें, (तजुर्मा मआनी र्कुआन करीमः सुरहः तौबा, आयतः33)

अब रियासत के इस्तेहकाम और दावत की तरफ़ से इतमिनान होने के बाद आप (صلى الله عليه وسلم) ने ख़रिजी राब्तों की तरफ़ क़दम उठाया और बैरून में क़ासिद रवाना फ़रमाये ख़रिजी राब्तों से आप (صلى الله عليه وسلم) की मुराद दर अस्ल कुफ्फ़ार के वोह इलाके ़थे जो अब तक रियासते इस्लामी के इक़्तिदार से बाहर थे। इससे पहले जब आप (صلى الله عليه وسلم) का इक़्तिदार मेहज़ मदीना तक महदूद था तो ख़रिजी राब्तों से मुराद कु़रैश और मदीना के बाहर दीगर अ़रब क़बाइल थे, फिर आप (صلى الله عليه وسلم) का इक़्तिदार वसीअ़ होकर सारे हिजाज़ पर मुहीत हुआ तो हिजाज़ के बाहर के इलाक़ों से तअ़ल्लुक़ात को ख़रिजी तअ़ल्लुक़ माना जाने लगा, बाद मे जब हुज़ूर अकरम सल्ल0 को इक़्तिदार फैल कर जज़ीरानुमा पर मुहीत हुआ तो ख़रिजी राबितों से मुराद जज़ीरानुमा ए अ़रब के बाहर, मसलन फ़ारस और रूम से तअ़ल्लुक़ात के हुये, क्योंके अब सुलह हुदैबिया और अहले ख़ैबर से निमटने के बाद क़रीब क़रीब सारे हिजाज़ पर इस्लामी रियासत का इक़्तिदार हो गया था और अब कु़रैश की वोह ताक़त नहीं रह गई थी के हुजू़़र अकरम सल्ल0 के रास्ते में आ सकें। अब आप (صلى الله عليه وسلم) ने पहले इस बात को यक़ीनी बनाया के अन्दुरूनी इक़्तिदार मज़्बूत है और आने वाली नईं ख़रिजा मन्सूबा बन्दी का तहम्मुल है, फिर दूसरे मुमालिक में अपने सुफ़रा रवाना किये। जब आप (صلى الله عليه وسلم) खै़बर से लौटे तो एक दिन सहाबा से मिले और फ़रमायाः
إن االله قد بعثني رحمة وكافة فلا تختلفوا علي كما أختلف الحواريون على عيسى ابن مريم
बे शक अल्लाह अज़्ज़ व जल ने मुझे सारे लोगों के लिये रहमत बनाकर भेजा है सो तुम मरे बाद मेरे बारे में इख़्तिलाफ़ में न पड़ जाना जैसे हज़रत ईसा अलै0 के बाद उनके हवारी पड़ गये थे।

सहाबा रज़ि ने दरयाफ़्त फ़रमाया के या रसूल अल्लाह हवारी किस तरह इख़्तिलाफ़ में पड़ गये थे तो आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
دعاهم إلى الذي دعوتكم إليه فأما من بعثه مبعثا قريبا فرضى و سلم وأما من بعثه مبعثا بعيدا فكره وجهه و تثاقل
(हज़रत ईसा अ़लै0 ने) वहीं दावत दी जो मैं तुम्हें दी फिर जिस किसी को क़रीब के इलाक़ा में भेजा गया तो राज़ी ख़ुषी चला गया और जिस किसी को दूर दराज़ भेजा तो उसे गिरां गुज़रा और उसने सुस्ती की।

उसके बाद आप (صلى الله عليه وسلم) ने उन्हें बताया के सुफ़रा ए हिरक़्ल, किसरा, मकू़कस, हीरह, के बादशाह हारिस अल ग़स्सान, यमन के बादशाह हारिस अल हिमयरी, हबषा के नजाशी, उ़मान, बहरैन, और यमामा के बादशाहों के पास सफ़ीर की हैसिय्यत से भेजना चाहते हैं, सहाबा ने बखूशी अपनी रज़ामन्दी ज़ाहिर की और आप (صلى الله عليه وسلم) के लिये एक चांदी की अंगूठी तैयार करवाई जिस पर मुहम्मद रसूलुल्लाह, तह्रीर था, आप (صلى الله عليه وسلم) ने उन बादशाहों को ख़ुतूत तह्रीर करवाये जिन में उनको इस्लाम की दावत दी गई थी, फिर देहय्या बिन ख़लीफ़ा अल-कलबी रज़ि0 को हिरक़्ल के पास, अ़ब्दुल्लाह इब्ने हुज़ाफ़ा अल सहमी रज़ि0 को किसरा के पास, नजाशी के पास, अ़म्र इब्ने उमैय्या अज़्जुमरी को, मकू़िकस के पास, हातिब इब्ने अबी बल्ता रज़ि0 को, उ़मान के बादशाह के पास अ़मरूबनुल आस अस सहमी रज़ि0 को, सुलैत इब्ने अमर रज़ि0 को यमामा के बादशाह के पास, अल-अ़ला बिन अल हज़रमी रज़ि0 को बहरैन के बादशाह के दरबार में, शुजा बिन वहब अल-असदी रज़ि0 को हारिस अल ग़सानी बादशाह तखूम शाम के पास, और यमन के बादशाह हारिस अल हिमयरी के पास अल मुहाजिर बिन उमैय्या अल मख़जूमी रज़ि0 को रवाना फ़रमाया और यह लोग अपनी अपनी मनज़िल को जहाँ के लिये भेजा गया था बयक वक़्त ही रवाना हुये, अपने-अपने ख़ुतूत मुक़र्ररह बादशाह तक पहुंचाये और मदीना लौटे।

जिन बादशाहों को ख़ुतूत इरसाल किये गये थे, क़रीब-क़रीब सबके जवाब आये और येह जवाबात ज़्यादा तर मुस्बत थे, गो के बाज़ जवाबात मनफी़ और गुस्ताख़ाना भी थे। अ़रब बादशाहों में उ़मान और यमन के बादशाहों के जवाबात गुस्ताख़ाना जबके बहरैन के बादशाह को जवाब बहुत अच्छा था और और उसने इस्लाम कु़बूल भी कर लिया। यमामा के बादशाह ने लिखा के इस्लाम कु़बूल करने को तैयार है, बशर्तेके उसे ही वहां का हाकिम बनाया जाये, इस बात पर हुजू़र सल्ल0 ने उस पर मुलामत भी की।
गै़र अ़रब बादशाहों में फ़ारिस के बादशाह किस्रा को जब हुज़ूर अकरम सल्ल0 को ख़त दिया गया तो वोह बहुत ग़ज़बनाक हो गया और उसने ख़त फ़ाड़ दिया और यमन में अपने हाकिम बाज़ान को लिखा के हिजाज के इस शख़्स का सिर उसे भेजा जाये। हुज़ूर अकरम सल्ल0 को जब उसकी इत्तिलाअ़ मिली तो आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
مزق الله مُلكـه
यानी अल्लाह उसके मुल्क को फाड़दे। बाज़ान को जब किस्रा का येह हुक्म मिला तोे उसने इस्लाम के बारे में अपनी छान बीन की और दीने इस्लाम कुबूल कर लिया और उसका एैलान कर दिया। नबी करीम सल्ल0 ने उन्हें वहां का आमिल बनाये रखा। बाज़ान यमन के एक और इलाक़ा के बादशाह हारिस अल-हिमयरी से मुख़्तलिफ़़ थे, क़बती ईसाइयों के सरबराह मकूक़िस ने ख़त का अच्छा जवाब दिया और नबी करीम सल्ल0 के लिये तोहफ़े भी भेजे। नजाशी ने भी मुस्बत जवाब भेजा और लिखा के उसने इस्लाम कु़बूल कर लिया है हिरक़्ल ने हुज़ूर नबी करीम सल्ल0 के उस ख़त पर कोई तवज्जोह नहीं की और न तो अपनी फा़ैजें भेजी और न ही कोई और बात कही और जब हारिस अल ग़स्सानी ने मकू़क़िस से इजाज़त तलब की के वोह नुबुव्वत की इस दावे दार पर चढ़ाई करे तो मकू़क़स ने इजाज़त देने से मना कर दिया और हारिस अल-ग़स्सानी को अपने पास बैतुल-मक़दिस तलब कर लिया। इन खुतूत के नतीजे में अ़रब जौक़ दर जौक़ और फ़ौज दर फ़ौज इस्लाम के दायेरे में आने लगे जो वुफूद की षक्ल में अल्लाह के रसूल सल्ल0 के पास आते और इस्लाम कुबू़ल करने का एैलान करते थे। रहे ग़ैर अ़रब, तो अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने उनसे जिहाद के लिये फ़ौजी तैयारियां शुरू कर दीं।
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