मदीने में दावते इस्लाम - 9

मदीने में दावते इस्लाम - 9

इब्ने इस्हाक़ लिखते हैं के जब येह लोग मदीने लौटने लगे तो आप (صلى الله عليه وسلم) ने हज़रत मुस्अ़ब इब्ने उ़मेर रज़ि0 को उनके साथ कर दिया और उन्हें हुक्म दिया के वोह अहले मदीने को क़ुरआन पढ़कर सुनाये, इस्लाम की तालिम दें और दीन की बातें समझायें। मुस्अ़ब रज़ि0 मदीने में असद इब्ने जु़रारह रज़ि0 के साथ रहते थे और अहले मदीना आप (صلى الله عليه وسلم) को अलमुक्ऱी या क़ारी केहकर बुलाते थे। आप (صلى الله عليه وسلم) लोगों के घर जाते या क़बीलों में जाते, उन्हें क़ुरआन पढ़कर सुनाते और इस्लाम की तरफ़ बुलाते थे। शुरू में एक-एक, दो-दो लोग इस्लाम में दाखि़ल होते यहां तक के इस्लाम सारे मदीने में ग़ालिब हो गया, सिवाये औस के उन घरों में जैसे ख़त्मा, वाइल और वाक़िफ़ में।
मुस्अ़ब रज़ि0 एक-एक को क़ुरआन सिखाते फिर आप रज़ि0 ने हुज़ूर सल्ल0 को लिख कर इजाज़त चाही के अब वोह लोगों को इकट्ठा करें। आप (صلى الله عليه وسلم) ने इजाज़त मरहमत फ़रमाई और लिखा के यहूदियों के मुक़द्दस दिन यानि सब्बात का इंतेज़ार करो और उस दिन दोपहर के बाद अल्लाह के हुज़ूर दो रकअ़त नमाज़ अदा करके अल्लाह का तकर्रुब हासिल करो फिर इन लोगों में ख़ुतबा दो। इस हुक्म की तामील में हज़रत मुस्अ़ब रज़ि0 ने सअ़द बिन ख़ैसमा रज़ि0 के घर बारह लोगो को जमा किया और उन के खाने के लिये एक भेड़ ज़िबह की। इस तरह हज़रत मुस्अ़ब रज़ि0 को तारीख़े इस्लाम में पहला जुमा पढ़ने का शर्फ़ हासिल है।

इस तरह हज़रत मुस्अ़ब रज़ि0 मदीने में जगह-जगह जाते और लोगों को दीने इस्लाम के बारे में बताते। एक दिन आप रज़ि0 असद इब्ने जु़रारह रज़ि0 के हमराह बनी अशहल और बनी ज़फ़र के मोहल्ले में पहुँचे, वहां पहुँचकर बनी ज़फ़र के एक कुँवें जिसका नाम बीरे मरक़ है के पास बैठे और आस पास से उन लोगांे को बुलाया जो पहले ही इस्लाम के दायरे में आ चुके थे। सअ़द इब्ने मुआज़ रज़ि0 और असद इब्ने हुदैर रज़ि0 उस वक़्त अपने क़बीले अ़ब्दुल अशहल के सरदार हुआ करते थे। और मुश्रिक थे और हज़रत सअ़द रज़ि0 हज़रत असद इब्ने ज़ुरारह रज़ि0 जो मुस्अ़ब रज़ि0 के साथ थे, के ख़ालाज़ाद भाई भी थे। हज़रत सअ़द रज़ि0 ने असद इब्ने ज़ुराराह रज़ि0 से कहा के जाओ इन दोनों लोगों को यहां से भगा दो येह हमारे ना-समझ लोगों को वरग़लाते हैं, इन्हें फिर इस इलाके में न घुसने देना, अगर असद रज़ि0 मेरा ख़ालाज़ाद भाई न होता तो मैं तुम्हें येह ज़हमत भी न देता, मैं इसे नुक़्सान नहीं पहुँचा सकता। जब उसैद रज़ि0 तलवार हाथ में लिये क़रीब पहुँचे तो हज़रत असद इब्ने ज़ुरारह रज़ि0 ने मुस्अ़ब रज़ि0 ने से कहा के येह शख़्स अपने क़बीले का सरदार है, इस से अल्लाह की सच बात करना, मुस्अ़ब रज़ि0 ने फ़रमाया के अगर वोह बैठा तो मैं उससे बात करूँगा।

उसैद इब्ने हुदैर रज़ि0 क़रीब आकर खड़े हो गये और ग़ुस्से भरे लेहजे में कहा के तुम हमारे कमज़ोर लोगों को गुमराह करते हो, इसका क्या मतलब है? अगर तुम्हें अपनी जानें प्यारी हैं तो यहां से चले जाओ। मुसअ़ब रज़ि0 ने फ़रमाया के क्या आप बैठकर हमारी बात न सुनेंगे? अगर आपको बात अच्छी लगे तो इसे क़ुबूल कीजिये वरना तर्क कर दीजिये। येह बात उसैद इब्ने हुदैर रज़ि0 को मुनासिब लगी और वोह अपनी तलवार ज़मीन में गाड़कर नीचे बैठ गये। मुस्अ़ब रज़ि0 ने इस्लाम के बारे में बात की और क़ुरआन पढ़कर सुनाया। मुस्अ़ब रज़ि0 और असद इब्ने जु़रारह रज़ि0 फ़रमाते हैं के हमारी बात ख़त्म होने पर ही हम इस्लाम का नूर उस शख़्स यानि उसैद इब्ने हुदैर के चेहरे पर देख रहे थे, इससे पहले के वोह कुछ केहते, उसैद इब्ने हुदैर रज़ि0 ने कहा येह क्या ही अच्छी बातें हैं अगर कोई इस दीन में दाखि़ल होना चाहे तो इसे क्या करना होगा? मुस्अ़ब रज़ि0 ने बताया के वोह ग़ुस्ल करे, पाक लिबास पहने हक़ की शहादत दे और दो रकअ़त नमाज़ पढ़े। येह सब फ़ौरन उसैद इब्ने हुदैर रज़ि0 ने अदा किये और कहा के मेरे पीछे एक शख़्स है अगर येह इस्लाम में दाखि़ल हो गया तो इसके पीछे इसकी सारी क़ौम दाखि़ल हो जायेगी, मैं इसको तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, येह सअ़द बिन मुआज़ हैं रज़ि0 हैं इस तरह उसैद इब्ने हुदैर ने अपनी तलवार ज़मीन से निकाली और वापस जाने लगे। जब हज़रत सअ़द इब्ने मुआज़ रज़ि0 के पास पहुँच रहे थे तो हज़रत सअ़द रज़ि0 ने अपने साथ बैठे लोगांे से कहा के बख़ुदा मैं देख रहा हूँ येह (उसैद इब्ने हुदैर रज़ि0 का) चेहरा बदला हुआ है, येह एैसा नहीं है जैसा वोह गया था।

जब उसैद रज़ि0 उन तक पहुँचे तो हज़रत सअ़द रज़ि0 ने पूछा के क्या किया? उसैद इब्ने हुदैर रज़ि0 ने फ़रमायाः मैंने उन दोनों से बात की और मुझे उनकी बातों में कोई ग़लत बात नहीं लगी। मैंने उन्हें चले जाने का हुक्म दिया और उन्होंने कहा हम वही करेंगे जो तुम चाहते हो, मुझे येह बताया के बनी हारसा असद अब्ने ज़राराह को इसलिये मारना चाहते हैं। इस पर हज़रत सआद रज़ि0 भड़क गये और उसैद इब्ने हुदैर रज़ि0 से कहा के तुम कुछ भी न कर सके। येह केहकर सअ़द रज़ि0 ने अपनी तलवार उठाई और इन दोनांे की तरफ़ बढ़े क़रीब पहुँचकर जब देखा के येह दोनों तो इतमिनान से बैठे हैं तो समझ गये उसैद इब्ने हुदैर रज़ि0 का मंशा येह था के इन दोनों की बात सुनी जाये। इनके क़रीब आकर बड़े गैज़ से उनको देखा और असद इब्ने ज़ुराराह रज़ि0 से कहा के एै अबू उमामा, अगर हम दोनों में क़ुर्बत का येह रिश्ता न होता तो तुम मुझसे एैसा नहीं कर सकते थे, क्या तुम हमारे इलाके में इस तरह पेश आओगे जो हम ना पसंद करते हैं? हज़रत सअ़द रज़ि0 के आने से पहले ही असद इब्ने ज़ुरारह मुस्अ़ब रज़ि0 को बता चुके थे के येह शख़्स अपनी क़ौम का सरदार है अगर येह तुम्हारी बात मान गया तो हर शख़्स मान लेगा। ग़र्ज़ येह के मुस्अ़ब रज़ि0 ने सअ़द रज़ि0 ने फ़रमाया क्या आप बैठकर हमारी बात न सुनेंगे? अगर आपको पसंद आये तो क़ुबूल कीजिये वरना एैसे छोड़ दीजिये।

चुनांचे सअ़द रज़ि0 ने भी अपने साथी उसैद इब्ने हुदैर रज़ि0 की तरह तलवार ज़मीन में गाड़ दी और बैठ गये। मुस्अ़ब रज़ि0 ने हस्बे साबिक़ इस्लाम के बारे में समझाया और क़ुरआन पढ़कर सुनाया। मुस्अ़ब रज़ि0 और असद इब्ने ज़ुरारह से रिवायत है के क़बल इसके के सअ़द रज़ि0 कुछ बोलते हमने उनके चहरे पर इस्लाम की चमक देखी। हज़रत सअ़द रज़ि0 ने क़ुरआन सुनने के बाद फ़रमाया के क्या ही अच्छी बातें हैं। अगर कोई दीन में शामिल होना चाहे तो वोह क्या करे? उन्हें बताया गया के पहले वोह ग़ुस्ल करके पाक हो जाये फिर पाक कपड़े बदल ले और हक़ की गवाही दे और अल्लाह के हुज़ूर दो रकअ़त नमाज़ अदा करे। येह सब हज़रत सअ़द रज़ि0 ने किया फिर अपनी तलवार निकाली और उसैद इब्ने हुदैर रज़ि0 के साथ अपने साथियों में गये। जब येह दोनों वहां पहुंचने लगे तो लोगों ने कहा के सअ़द रज़ि0 का चेहरा बदला हुआ है, येह एैसा नहीं था जैसा वोह गये थे। हज़रत सअ़द रज़ि0 ने उनसे पूछा एै बनू अशहल तुम लोग अपने ऊपर मेरा इक़्ितदार कैसा तस्लीम करते हो? लोगों ने जवाब दिया के आप हमारे सरदार हैं, आपकी राय बेहतरीन और आपकी क़यादत मुसल्लम है। हज़रत सअ़द रज़ि0 ने जवाब दिया के मेरी तुम सब मर्द और औरतों से गुफ़्तगु उस वक़्त तक हराम है तब तक तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान न लाओ। लोगों ने कहा के अगर येह बात है तो बनी अशहल मे एक भी मर्द अ़ौरत नहीं होगा सिवाये इसके के वोह मुस्लिम या मुस्लिमा हो।

हज़रत मुस्अ़ब रज़ि0 फिर असद रज़ि0 इब्ने ज़ुरारह के घर रहे और अपनी दावत जारी रखी और आगे एक साल में मदीने कोई घर एैसा न बचा जिसमें कोई न कोई इस्लाम को मानने वाला न हो। इस दौरान मुस्अ़ब रज़ि0 लोगों को इस्लामी अफ़्कार की तालीम देते, उनकी रोज़मर्रा के उमूर में राय को इस्लाम से मुतअस्सिर करते। आप रज़ि0 एक-एक घर जाते, आस-पास के नख़्लिस्तानों में जाते लोगों से गुफ़्तगू करते, इस तरह वोह क़बाइल के सरदारों के पास जाते और इस्लाम की तरफ़ बुलाते। इस तरह रोज़-बरोज़ इस्लाम के मानने वालों की तअ़दाद में तरक्क़ी होती रही जिससे मुस्अ़ब रज़ि0 ख़ुश थे। लोगों तक हुस्न ओ ख़ूबी से बात पहुँचाने के लिये मुस्अ़ब रज़ि0 मुनासिब तदबीरें भी करते जैसे के उसैद इब्ने हुदैर रज़ि0 के साथ की थी। इस तरह एक साल तक मेहनत के बाद अब अहले मदीना के अफ़्क़ार बोसीदा बुत परस्ती और ग़लत एैहसासात से बदल कर तौहीद इलाही, ईमान और इस्लामी एैहसासात में ढल गये थे जो झूठ, धोकाधाड़ी और शिर्क से इंसान को बाज़ रखते हैं। हज़रत मुस्अ़ब रज़ि0 और आपके साथ ईमान लाने वालों की मेहनत के ज़रिये इस एक साल में मदीना एक दारुल-कुफ्ऱ से तब्दील होकर दारुल इस्लाम बन गया था।
Share on Google Plus

About Khilafat.Hindi

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments :

इस्लामी सियासत

इस्लामी सियासत
इस्लामी एक मब्दा (ideology) है जिस से एक निज़ाम फूटता है. सियासत इस्लाम का नागुज़ीर हिस्सा है.

मदनी रियासत और सीरते पाक

मदनी रियासत और सीरते पाक
अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) की मदीने की जानिब हिजरत का मक़सद पहली इस्लामी रियासत का क़याम था जिसके तहत इस्लाम का जामे और हमागीर निफाज़ मुमकिन हो सका.

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास
इस्लाम एक मुकम्म जीवन व्यवस्था है जो ज़िंदगी के सम्पूर्ण क्षेत्र को अपने अंदर समाये हुए है. इस्लामी रियासत का 1350 साल का इतिहास इस बात का साक्षी है. इस्लामी रियासत की गैर-मौजूदगी मे भी मुसलमान अपना सब कुछ क़ुर्बान करके भी इस्लामी तहज़ीब के मामले मे समझौता नही करना चाहते. यह इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी की खुली हुई निशानी है.