ग़जवा-ए-खै़बर - 21

ग़जवा-ए-खै़बर - 21

हुदैबिया के मुआहिदे से फ़ारिग़ होकर मदीना लौटे पन्द्रह रातें ही गुज़री थीं के अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने मुसलमानों को हुक्म दिया के वोह ख़ैबर के यहूद के लिये जंग के लिये तैयार हो जायें और येह शर्त रख़ी के इस ग़ज्वे मे सिर्फ़ वही अशख़ास हिस्सा ले सकेंगे जो हुदैबिया में शामिल थे। वाक़िया येह था के हुदैबिया से पहले येह बड़े राज़ की ख़बर मिली थी के खै़बर के यहूद कु़रैश के साथ साज़िश करके मदीना पर चढ़ाई कर मुसलमानों को ख़त्म करने का मन्सूबा बना रहे हैं, चुनांचे हुज़ूर अकरम सल्ल0 का मन्सूबा येह था के पहले कु़रैश से मुआहिदा करके यहूद को अलग-थलग कर दिया जाये फिर उनकी ख़बर ली जाये। लिहाज़ा अब अपने मन्सूबे का पहला हिस्सा यानी कु़रैश से हुदैबिया का मुआहिदा, कामयाबी के साथ मुकम्मल करने के बाद अब यहूद का ख़ात्मा करने के अगले मरहले पर तवज्जोह मरकूज़ फ़रमाई। इस पस मंज़र में अब आप (صلى الله عليه وسلم) एक हज़ार सिपाहियों के साथ जिनमें दो सो घुड़ सवार थे, खै़बर की तरफ़ बढ़े, इस फ़ौज को अल्लाह जल्ला जलालुहू की मदद ओ नुस्रत का पूरी तरह यक़ीन था।

उन्होंने मदीना और खै़बर का फ़ास्ला तीन दिन में तय किया और इस दौरान यहूदे खै़बर इनकी आमद से बेख़बर थे, जबके मुस्लिम फ़ौज ने रात उनही के क़िल्अे के बाहर गुज़ारी थी, यहां तक के सुबह हुई। जब सुबह यहूद अपने कुदाली फावडे़ लेकर खेतों की तरफ़ निकले और उन्होंने मुस्लिम फ़ौज को देखा तो पीठ फेरकर चिल्लाते हुये भागे के मुहम्मद (सल्ल्0) और उनके सिपाही आ पहुंचे हैं। अल्लाह के रसूल ने जब येह सुना तो फ़रमायाः
الله أكبر خربت خيبر إنا إذا نزلنا بساحة قومٍ فساء صباح المنذَرين
अल्लाहु अकबर ख़ैबर बर्बाद हूये, हम किसी क़ौम पर चढ़ाई करते हैं तो जिन्हें ख़बरदार किया जा चुका है उनकी षामत आ जाती है।
जब से उन्हें कु़रैश के साथ मुसलमानों के मुआहिदे ख़बर मिली तो यहूदे खै़बर को येह अन्दाज़ा था के हुज़ूर अकरम सल्ल0 अब खै़बर पर हमला करेंगे, उनके नज़दीक कु़रैश ने उनके साथ किये हुये वादे से पल्टे थे। उनके बाज़ लोगो ने येह राय रखी थी के वादी-उल-कु़रा और तैमा के यहूदियों के साथ मिलकर दूसरे अ़रब क़बाइल के बगै़र ही एक फ़ौज तैयार की जाये ताके मदीना पर हमला किया जा सके, क्योंके अब कु़रैश ने मुसलमानों से मुआहिदा कर लिया है। यहूद में बाज़ लोग एैसी भी थे जो ख़तरा मेहसूस कर रहे थे और एक दूसरे को इससे आगाह भी करते रहते थे, उनकी राये थी के मुसलमानों से मुआहिदा कर लिया जाये ताके उनके दिलों में यहूदियों के लिये नफ़्रत ख़त्म हो।

येह लोग जानते थे के हुजू़र अकरम सल्ल0 ने कु़रैश पर येह ज़ाहिर किया था के उनकी यहूद के साथ साज़िश चल रही है, लेकिन बहरहाल किसी को येह तवक़्क़ो नहीं थी के मुसलमान इस क़दर फुर्ती से हमला कर बैठेंगे। लिहाज़ा अब इन्हें बड़ी हैरत हुई और उन्होंने क़बीला ए ग़तफ़ान की मदद हासिल की। यहूदियों ने कोशिश की के मुसलमानो का सख़्ती से मुक़ाबला किया जाये और अपने क़िल्ओं में महफू़ज़ रहा जाये, लेकिन मुसलमानों का हमला इतना शदीद और चुस्त था के उनकी मुज़ाहिमत ज़रा काम न आई और उनके तमाम क़िल्अ़े फ़तह हो गये, मायूस होकर यहूदियों ने सुलेह की पेशकश की के उनकी जान बख़्श दी जाये। हुजू़र अकरम सल्ल0 ने यहूदियों को वहीं रहने दिया और अब फ़तह खै़बर के बाद क्योंके वोह इलाक़ा इस्लामी रियासत के ज़ेरे इक़्तिदार आ गया था इसलिये अब यह ज़मीनें मुसलमानों की थी, यहूदियों को वहां काम करने दिया गया और उन्हें ज़मीनों की आधी पैदावार अपने लिये रखकर आधी पैदावार मुसलमानों के लिये देने का पाबंद बनाया गया। इसके बाद हुजू़र अकरम सल्ल0 मदीना लौट आयेे और उ़मरा-ए-क़ज़ा के लिये निकलने तक वहीं क़याम रहा।

इस तरह यहूदे खै़बर की सियासी हैसिय्यत को ख़त्म करके और उन्हें इस्लामी रियासत के ज़ेरे इक़्तिदार लाने के बाद अब शिमाल में मुल्क शाम तक मुसलमानों के लिये अम्न हो गई थी, जिस तरह कु़रैश से मुआहिदे के बाद जुनूब तक अम्न क़ायम हो गई थी, अब दावते इस्लामी को सारे जज़ीरानुमा-ए-अ़रब में फैलने के लिये रास्ता साफ़ हो गया था और जज़ीरानुमा-ए-अ़रब के बाहर के लिये रास्ता खुल गया था।
Share on Google Plus

About Khilafat.Hindi

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments :

इस्लामी सियासत

इस्लामी सियासत
इस्लामी एक मब्दा (ideology) है जिस से एक निज़ाम फूटता है. सियासत इस्लाम का नागुज़ीर हिस्सा है.

मदनी रियासत और सीरते पाक

मदनी रियासत और सीरते पाक
अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) की मदीने की जानिब हिजरत का मक़सद पहली इस्लामी रियासत का क़याम था जिसके तहत इस्लाम का जामे और हमागीर निफाज़ मुमकिन हो सका.

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास
इस्लाम एक मुकम्म जीवन व्यवस्था है जो ज़िंदगी के सम्पूर्ण क्षेत्र को अपने अंदर समाये हुए है. इस्लामी रियासत का 1350 साल का इतिहास इस बात का साक्षी है. इस्लामी रियासत की गैर-मौजूदगी मे भी मुसलमान अपना सब कुछ क़ुर्बान करके भी इस्लामी तहज़ीब के मामले मे समझौता नही करना चाहते. यह इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी की खुली हुई निशानी है.