खिलाफ़ते राशिदा सानी पर 100 सवाल (04-05)

➡ सवाल नं. (4) क्या  खिलाफत एक लोकतांत्रिक या एक तानाशाही हुकूमत होती है? 




👉🏻 खिलाफत में खलीफा के पास बहुत सी शक्तियॉ होती है, इसलिए कुच्छ लोग खिलाफत को तानाशाही तर्ज़े हुकुमत करार देते है। पश्चिमी फिक्र के अनुसार जब किसी हुक्मकरॉ के पास सता की ज़्यादा ताक़त चली जाती है तो वो तानाशाह बन जाता है। इसलिए वोह खलीफा को तानाशाह बताने की कोशिश करते हैं।
👉🏻 दर हक़ीक़त, इस्लातमी रियासत ना तो लोकतांत्रिक होती है और ना ही यह तानाशाही होती है। इस्लाीमी निज़ाम एक मुमताज़ (Unique/अद्भुत) निज़ाम है, जिसकी तुलना दुनिया में पाई जाने वाली किसी भी व्य वस्थां से नहीं की जा सकती। ये सब व्य्वस्थाीओं से भिन्नस है। पश्चिसमी साम्राज्यवादी ताक़तों ने जनता के ज़रिये हुक्मराँ के चुनाव के मुद्दे का इस्तिमाल करके लोकतंत्र को इस्लाम का दूसरा रूप (पर्यायवाची) साबित करने की कोशिश की है ।

👉🏻 खिलाफत में, हुक्मरानों के निर्वाचन (चुनाव) के लिए चुनाव होंगे, लेकिन खिलाफत और लोकतंत्र में सबसे बडा़ अंतर ये है कि खिलाफत में चुने जाने वाले नुमाईन्दे को व्यक्तिगत तौर पर या इज्तिमाई तौर पर क़ानून बनाने का अधिकार नहीं होता जबकि लोकतंत्र में निर्वाचित व्यक्ति को क़ानून बनाने का अधिकार होता है । इसका मतलब यह कि लोगो को अपने नुमाइन्दे (प्रतिनिधी) चुनने का अधिकार होगा मगर उसके साथ-साथ नुमाइन्दगान को क़ानून से (शरियत से) मुन्हरिफ होने (हटने) का अधिकार नहीं होगा. यानी इस्लाम मे हुक्मरान कानून साज़ नही है बल्कि उसका काम सिर्फ शरीअत के कानून को लागू करना है. इस्लाकम के क़ानून पहले से ही तय है। सिवाए उन चीज़ों के जो मुबाह है इसमें खलीफा को अधिकार होगा कि वोह क़वानीन को तबन्नीा (इख्तियार) करें और उसमें मजलिसे उम्मा  उसे मश्व रा दे सकती है।

👉🏻 खिलाफत और लोकतंत्र में दूसरा बडा़ अंतर ये भी है कि लोकतंत्र में हुक्मरानों को एक खास तरह की सुरक्षा दी जाती है इसको ''राजनैतिक प्रतिरक्षा (Political Immunity)'' कहा जाता है। इसके अन्तुर्गत यदि कोई शासक भ्रष्टे भी हो तब भी उसके विरूद्ध मुकदमा नहीं चल सकता है, जबकि खिलाफत में यह सुरक्षा खलीफा को भी हासिल नहीं होगी। हिन्दु्स्ता न में लोकपाल बिल लागू करने की मांग चलाई गई जिसके लागू होने के बाद राष्ट्रदपति और प्रधानमंत्री भी इसके अधीन हो जाऐंगे और उन पर मुक़दमा चलाया जा सकता है, लेकिन इस क़ानून को पास कराना अपने आप में एक मुश्किल काम है। खिलाफत में यदि खलीफा भ्रष्टल है तो इसको पद से हटाया जा सकता है।

👉🏻 अगर हम तानाशाही की बात करे तो यह एक खुद मुख्तार (निरंकुश) तर्ज़ की हुकुमत होती है, जिसमें हुक्मारॉ बिना किसी पाबंदी के जो चाहे क़ानून बना सकता है, जो चाहे लागू कर कर सकता है। वो संविधान से भी सर्वोपरि है। वोह जब चाहे संविधान को बदल दे। यह बात खिलाफत में नहीं है, उसमें खलीफा क़ानून से ऊपर नहीं होगा बल्कि खलीफा खुद क़ानून के ताबेअ (अधीन) है।

👉🏻 इसलिए खिलाफत तानाशाही नहीं है। खलीफा को रोकने के लिए ऐसे कई क़वानीन है जिससे खलीफा को संतुलित रखा जायेगा। उसको कभी भी अपनी शक्तियों का दुरूपयोग करने नहीं दिया जायेगा। खलीफा क़ानून से ऊपर नहीं होगा, जिस तरह से हर शहरी क़ानून से बंधा हुआ है उस तरह से खलीफा भी बंधा हुआ होगा।




🌙🌙खिलाफ़ते राशिदा सनी पर 100  सवाल 🌙🌙

 

➡ सवाल नं. (5) पहले चारों खुलफा जनता द्वारा चुने गये थे, क्या यह लोकतंत्र नहीं है?













✳ जब कभी मुसलमान लोकतंत्र के बारे में कहते हैं, तो उनकी नज़र में लोकतंत्र में हुक्मराँ जनता द्वारा चुने जाते हैं और चुनाव का मतलब एक जवाबदेह हुकुमत, क़ानून का शासन और प्रतिनिधित्व वाली सरकार होता है । जबकि लोकतंत्र के लिए यह अक्सर कहीं जाने वाली बात इसमें बहुत कम ही पाइ जाती है ।
 
✳ इस्लाम विभिन्न माध्यम से हुक्मरानों (शासको) का चुनाव कराता हैं और इसके ज़रिए वोह अपने सिद्धांतो को सुरक्षित रखता हैं । पहले चार खुलफा जनता द्वारा चुने गए थे मगर बाक़ी के सभी खुलफा नामंकित किए गए थे । हालांकि सिर्फ तरीक़ा बदला था मगर इसमें बेहतरीन शासन व्यवस्था और उम्मत की मंशा को बाक़ी रखा गया था ।

✳ इसी तरह अधिकतर लोग खिलाफत को लोकतंत्र समझ लेते है। वो तर्क ये देते है कि चारों  खलीफाओं को जनता ने चुना था और लोकतंत्र में भी जनता शासक को चुनती है इसलिए ये एक समान व्यवस्था है। दरअसल खिलाफत और लोकतंत्र में शासक को चुनने का तरीका एक है यानी जनता के द्वारा चुनाव।

✅ लोकतंत्र और खिलाफत में बहुत सारी असमानताऐं हैं। लोकतंत्र के अनुयाइओं के अनुसार ये एक व्यवस्था है जिसमें इंसानों की खुशी को ध्यान में रखकर कोई क़ानून बनाया जाता है। इंसानों के द्वारा बनाये गये क़ानूनों को हम जिम्मेदारी से लागू भी करते है जिसके द्वारा सबको खुशी मिलती है, जबकि ये एक बहुत बडा़ फरेब है। क्योंकि लोकतंत्र के ऊसूलों में अनियमितता और टकराव पाया जाता है.

❌ एक तरफ ये लोगों को सज़ाऐं देने की बात करते है दूसरी तरफ अपराध ना बढे़ ऐसे कोई क़दम नहीं उठाते है।

❌ एक तरफ बलात्कारियों के खिलाफ क़ानून बनाये जाते है तो दूसरी तरफ उन स्त्रोतों का दरवाज़ा खुला छोड़ देते है जिनके द्वारा अश्लीलता समाज में दाखिल होती है।

✳ इस मामलें में खिलाफत बिल्कुल भिन्न व्यवस्था है।

✅ खिलाफत में सज़ाऐं देने से ज़्यादा इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि समाज में अपराध पैदा ही ना हो उन स्त्रोतों को कैसे बंद किया जाऐ।

✅ खिलाफत में लोगों को इस्लामी मूल्यों से परीचित कराया जाता है। लोगों को अपनी नजरे नीची रखने और अपने शर्मगाहों की हिफाजत करने का हुक्म दिया जाता है।

✅ अश्लीलता फैलाने वाली तमाम चीज़ों पर पूर्णता रोक लगाई जाती है, जिसके परिणाम स्वरूप लोगों के व्यवहार में परिवर्तन आता है।

✅ इसी तरह मंहगाई पर पूरी तरीके से रोक लगाई जाती है। लोगों को रोजगार से लगाया जाता है ताकि चोरी जैसे अपराध को रोका जा सके। ऐसे बहुत से क़वानीन है जिनके ज़रीये अपराधों पर लगाम कसी जाती है। अत: हम कह सकते है कि खिलाफत लोकतंत्र से भिन्न है
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