➡ सवाल नं. (19) क्या खलीफा को अपनें पद से हटाया जा सकता हैं?
✔ हाँ, बिलाशुबाह, खलीफा को अपनें पद से हटाया जा सकता हैं।
✅ इस्लाम व्यवस्था मे एक स्वतंत्र और ताक़तवर अदालत होती हैं। इस्लामी अदालत की शक्तियाँ लोकतंत्र की अदालत से कही ज़्यादा हैं।
❌ लोकतंत्र में अदालतें राजनीति और राजनेंताओं से प्रभावित रहती हैं। यहाँ तक कि अदालतों में फैसलें जनता की राय के हिसाब से होते हैं।
❌ लोकतंत्र में अदालतें राजनीति और राजनेंताओं से प्रभावित रहती हैं। यहाँ तक कि अदालतों में फैसलें जनता की राय के हिसाब से होते हैं।
❌ अदालतों नें कुछ बडे अहम मुद्दों पर फैसला देते वक्त यह बात कही हैं कि हम लोगों की राय को नजरअंदाज नहीं कर सकते। इससे ज्ञात होता हैं, कि यह अदालते फैसले देनें में स्वतंत्र नहीं हैं।
✳ अदालत की स्वतंत्र से तात्पर्य यह कि सारी दुनिया किसी फैसले को गलत मानें तब भी अदालत को वो फैसला देना पडे़गा।
❌लोकतंत्र में किसी घटना पर अदालतें जनता की राय के खिलाफ फैसला देनें से घबराती हैं।
✅ यह बात खिलाफत में बिल्कुल भी नहीं होगी।
जैसे की उपर बयान किया जा चुका हैं कि महकमतुल मज़ालिम नाम की एक स्वतंत्र अदालत होगी। जिसके न्यायप्रिय क़ाज़ी (Judges), ''क़ाज़ी मज़ालिम'' कहलायेगें।
✅ उनको इतनी ताक़त प्राप्त होगी कि वोह विलायत (स्टेट) के किसी भी अफसर, बड़े से बड़े औहदेदार, यहाँ तक कि वोह खलीफा तक को भी हटा सकते हैं।
✅ हर शहरी को सरकार के खिलाफ अपनी शिकायत दर्ज़ करानें का अधिकार होगा।
✅ एक और बडा़ फर्क़ महकमतुल मज़ालिम की अदालत और दूसरी अदालतों में यह हैं कि अगर किसी नें कोई शिकायत नहीं भी की तो क़ाज़ी मज़ालिम खुद अपनें विवेक से भी खोजबीन चालू कर सकता हैं।
🅾 लोकतंत्र में किसी सरकारी संस्था की गलत पॉलिसी या योजना को रोकनें के लिये पी.आई.एल. (Public Interest Litigation) नाम का प्रार्थना पत्र भरा जाता हैं। उदाहरण स्वरूप एक नदी पर बांध बनेंगा, इस बांध के बननें की वजह से एक लाख लोगों के घर बर्बाद हो रहे हैं एंव इसके कारण एक लाख लोगों को वहाँ से हटाया जायेगा और उनकी तरफ से कोई अवाज़ उठानें वाला नहीं हैं। ऐसे में कुछ एन.जी.ओ./ग़ैर-सरकारी संघठन पी.आई.एल. के द्वारा उनके खिलाफ मुकदमा करते हैं, यानी बताते हैं कि यह लोगों के हित में गलत हैं।
⭕ इस तरह, जब तक कोई पी.आई.एल. नहीं डालेगा और अदालत के पास केस नहीं आयेगा तब तक अदालत कोई कार्यवाही नही करती।
✔ इस्लामी खिलाफत में अदालत खुद बिना किसी की पी.आई.एल. के जांच कर सकती हैं।
✅ क़ाज़ी हुक्मरानों कि कार्यवाहीयों पर निगरानी रखेगें और यह सुनिश्चित करेगें, कि कही किसी पर कोई ज़ुल्म तो नही हो रहा हैं ।
✅ दुनिया के किसी भी निज़ाम में ऐसी मिसाल नहीं मिलती हैं। इसके साथ जब ऐसा मैकेनिज़्म होगा जिसमें काजियों को अपनी मर्ज़ी से खुद मुक़दमा चलाने और खोजबीन चालू करने का अधिकार होगा तो यह चीज़ गलत हुक्मरानों के लिए यह एक बडा़ सरदर्द होगी।
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