➡ सवाल नं. (33): क्या शरीअत मुसलमानों के पक्ष (फेवर) में है और गै़र-मुस्लिमों के पक्ष (फेवर) में नही है?
✅ हक़ीक़त में ऐसा नही है, शरीअत क़ायदे क़ानून के मामलें में मुस्लिम और गै़र-मुस्लिम में कोई फर्क़ नही करती । जो फायदे मुस्लिम को मिलेगें वही गै़र-मुस्लिम को भी मिलेगें और जो सज़ा मुस्लिम को मिलेगी वही गै़र-मुस्लिम को मिलेगी।
✔ क़ायदे क़ानून के मामले मे सिर्फ क़ानून का शासन होगा, जहाँ किसी भी मामलें में कोई फर्क़ नही होगा सिवाय कुछ चीज़ो के। सामाजिक नज़रिए (दृष्टिकाण) से इस्लाम सभी इंसानों को सिर्फ इंसान के रूप में देखता है, न कि नस्ल, जाति, रंग, मज़हब या पंथ के आधार पर। इसीलिए इस्लामी रियासत में रहने वाले हर शख्स को वहाँ का शहरी और नागरिक माना जाएगा, चाहे वह किसी भी धर्म, नस्ल या रंग से हो।
✔ खिलाफत कि नागरिकता, शहरियत की बुनियाद पर होगी न कि जन्म या शादी कि बुनियाद पर। खिलाफत के दायरे मे रहने वाला हर शख्स चाहे वह मुस्लिम हो या ग़ैर-मुस्लिम, एक अर्सा गुजारने के बाद वह खिलाफत का नागरिक कहलाएगा, इस तरह अगर कोई मुसलमान खिलाफत से बाहर रहता है तो वह खिलाफत का नागरिक नही है।
✔ जो कोई भी खिलाफत के नागरिक होगें, उनके मामलात की देखरेख, उन्हें सुरक्षा और सही प्रबन्धन मुहैया कराना बिना किसी पक्षपात के खिलाफत पर फर्ज़ होगा। इस तरह खिलाफत का हर नागरिक चाहे वह मुस्लिम हो या गैर मुस्लिम शरियत द्वारा दिए गए अधिकारो व फायदो का लाभ उठा सकता है। इसलिए जो मुसलमान खिलाफत का शहरी नही है वह उस फायदो से मेहरूम रहेगा जो उस खिलाफत में रहने वाले शख्स को मिलते हैं।
✅ जहॉ तक गै़र-मुस्लिम शहरियों की बात है, उनके अक़ीदो और इबादात के मामलात में, कोई दखलअंदाजी नही होगी, उन्हें पूजा-पाठ करने कि, अपने धार्मिक स्थल बनाने कि, अपने ईलाक़ो में अपने धार्मिक तरीक़ो से रहने कि ईजाज़त होगी.
✅ इसी तरह उन्हें उनके खान-पीन और वस्त्र (मल्बूसात) वग़ैराह के मामलात में अपने धर्म के अनुसार चलने कि आज़ादी होगी। इसीलिए दारुल इस्लाम में गै़र-मुस्लिम साडी़ पहन सकते है, सुअर का गोश्त खा सकते है, शराब पी सकते है वग़ैराह। बशर्ते कि वोह यह सब क़ानून के दायरे और अपने ईलाक़ो में ऐसा करें। ऐसा करने की इजाज़त उन्हे सार्वजनिक स्थलो पर नही होगी लेकिन निजी स्थलो पर होगी.
✔ इसी तरह उनके शादी-ब्याह व तलाक़ के मामलात में उनके धर्म के मुताबिक़ उन्ही के धर्म के क़ाज़ी और जजो को नियुक्त करके फैसले किए जाएगें। यानी ग़ैर मुस्लिमो के धर्म के जानकार लोगो को शादी-ब्याह व तलाक़ के मामलात में फैसले करने का अधिकार दिया जाएगा।
✔इस्लाम सार्वजनिक क्षेत्र में बिना किसी भेदभाव के मुस्लिम और ग़ैर-मुस्लिम दोनों पर समान तौर से क़ानून लागू करता। इसीलिए खिलाफत, शरीअत के क़वानीन बिना किसी भेदभाव और पक्षपात के मुस्लिम और गै़र-मुस्लिम दोनों पर समान तौर से क़ानून लागू करेगी।
🔱🔱 खिलाफते राशिदा सानी (IInd) पर 100 सवाल 🔱🔱
➡ सवाल नं. (34): क्या खिलाफत मे औरतों को मुक़दमें में गवाही देने का अधिकार है या नही?
👉 हॉ, औरतें गवाही दे सकती है। कई दूसरे इस्लामी क़वानीन कि तरह इस्लाम में गवाही के क़वानीन बहुत तफ्सीली दलायल से निकाले गए है यानी क़ुरआन और सुन्नत में तफ्सील से इसके दलायल मौजूद है।
✳ यह बात सही है कि शरीअत में ऐसे कुछ दलायल आए है जिसमें बताया गया है कि औरतों की गवाही मर्दो के बराबर नही है, लेकिन क़ुरआन कि यह आयत जिस पसमंज़र में नाज़िल हुई है उसमें यह समाज में औरतों और मर्दो के किरदार को बताती है। यह इसलिए क्योंकि औरत का प्रथम किरदार एक मॉ और बीवी का होता है (हालाँकि औरत कि भूमिका सिर्फ इन दोनों कार्यो तक सीमित नही हैं मगर यह बुनियादी किरदार है )
✔ इस्लाम हर औरत पर इस रोल (भूमिका/किरदार) को निभाने को फर्ज़ क़रार देता है एंव वोह किसी भी तरह इस ज़िम्मेदारी को नजरअंदाज़ नही कर सकती। इसके बाद वह दूसरे काम भी कर सकती हैं। जबकि मर्द इंतजाम का ज़िम्मेदार होता है जैसे रहन-सहन, खान-पीन, जीवन प्रंबधन, मेंटिनेंस वगैराह।
✔ जहाँ तक दो औरतों की गवाही एक मर्द के बराबर वाली बात की गई है, तो यह चीज़ सभी केसेज़ में लागू नही है बल्कि सिर्फ उन केसेज़ में है जो मर्दो की दुनिया में आते है, जहॉ मर्द से लेन-देन हो और उस तरह के कैसेज भी है जो फाइनेंशियल (इक़्तसादी) अधिकार से सम्बन्धित हो यानी सार्वजनिक क्षेत्रों में जहॉ मर्द रहते है वहाँ गवाही देने की बात आयेगी तो फिर दो औरतों की गवाही एक मर्द के बराबर मानी जायेगी
✔ लेकिन अगर यह गवाही औरतों की दुनिया के मामलात में है तो वहॉ पर औरत को मर्द के बराबर ही माना जायेगा। जैसे एक मर्द की गवाही काफी है वैसे उन मामलात में एक औरत की गवाही काफी होगी, उसके लिए दो औरतों की ज़रूरत नही पडे़गी। जैसे अगर लेडीज़ रूम के अंदर कोई जुर्म किया गया तो वहॉ पर यह ज़रूरी नही कि दो औरतें गवाही दे, वहॉ पर एक औरत की गवाही भी वैसी मानी जायेगी जैसी एक आदमी की मानी जाती है।
✔ उसी तरह से ऐसे बहुत सारे मामलात है जो औरतों की ज़िन्दगी से ताल्लुक रखते है तो वहॉ पर एक औरत की पूरी मुकम्मल गवाही मानी जायेगी। जैसे कि वर्जिनिटी (औरत की पाक दामिनी) का मामला. एक औरत डॉक्टर की ऐसे मामले मे गवाही को माना जायेगा। इस तरह के और भी बहुत सारे केस है जिनमें औरतों की गवाही मानी जायेगी। औरतों के ताल्लुक से औरतों की गवाही पूरी मानी जायेगी लेकिन जो मर्दो का मैदान है उसमें दौ औरतो की गवाही एक मर्द के बराबर मानी जायेगी।
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