खिलाफते राशिदा सानी (IInd) पर 100 सवाल (17-18)

➡ सवाल नं. (17) खलीफा से जवाब तलबी कैसे की जायेगी, यानी खलीफा के कामों का हिसाब कैसे लिया जायेगा?

 

 

 








✳ खलीफा के पास राजनैतिक प्रतिरक्षा (Political Immunity) नहीं होगी। पॉलिटिकल इम्यूनिटी के तसव्वुर के मुताबिक़, शासक, जब तक हुक्मरानी के पद पर बना रहता हैं तब तक उस पर कोई मुक़दमा दायर नहीं किया जा सकता। इंडिया में इसके खिलाफ लोकपाल बिल लाये जानें की बात की जा रही हैं। जिसके मुताबिक़ अगर कोई शासक भ्रष्ट पाया जाता हैं तो उस पर मुकदमा चलाया जा सकता हैं। लेकिन पूंजीवाद में यह क़ानून बनना मुश्किल हैं।

✅ इस्लाम में खलीफा को ऐसी कोई पॉलिटिकल इम्यूनिटी हासिल नहीं होती, कि भ्रष्टाचार करते हुऐ पाये जानें के बाद भी कोई उस पर कार्यवाही ना हो।

✅ यदि खलीफा कोई इस्लामी क़ानून बदल दे या लागू करनें में लापरवाही करे तो उसके खिलाफ मुक़दमा दायर किया जा सकता हैं और उसे हटाया जा सकता हैं।

✅ इसी तरह खलीफा उस क़ाज़ी को उसके पद से हटानें का अधिकार नही रखता जो उसके केस का अध्ययन कर रहा है। वैसे खलीफा ही सारे क़ाज़ीयों और कई बड़े औहदेदारों को नियुक्त करता हैं।

✔खलीफा से जवाबतलबी (Accountibility) करनें और उस पर नियंत्रण रखनें के कई तरीके समाज में लोगों को उपलब्ध होगें।

✅ इसके अलावा हुक्मरानों के मुहासबे के लिए कई राजनीतिक दल (पॉलिटिकल पार्टी) होगें, इन सबकी आईडियालोजी इस्लाम ही होगी लेकिन तरक्की के आधार पर इनकी अपनी-अपनी योजनाऐं होगी। ये योजनाऐं हराम-हलाल में नहीं बल्कि मुबाह मामलात में होगी।

✳ ये राजनीतिक पार्टीया मूलभूत समस्याओं की मांग नहीं करेंगे जैसे गरीबी निवारक वग़ैराह। ये सब चीज़ें तो खिलाफत पर वैसे ही फर्ज़ हैं। रोटी, कपडा़, मकान की सुविधा मुस्लिम और गै़र-मुस्लिम शहरियों को अनिवार्य तौर पर दी जायेगी।

✳ उसके अलावा अगर कोई तरक्की की कोई योजना रखता हैं तो पॉलिटिकल पार्टी अपनें-अपनें प्रस्ताव जनता के सामनें रखेगी और सहमती हांसिल करेगी।
✔ इसी तरह राजनीतिक दलो का काम, खलीफा की कार्य योजना में कमी पानें पर उसकी मुखालिफत करना होगा।

🔷 इस्लाम नें हर मुसलमान पर फर्दन फर्दन और इज्तिमाई तौर पर अम्र बिल मारूफ व नहीं अनिल मुन्कर (भलाई का हुक्म देना और बुराई से रोकना) करने को फर्ज़ क़रार दिया हैं।  जिसके तहत यह काम इज्तिमाई तौर पर राजनीतिक दल को और व्यक्तिगत तौर पर हर मुसलमान को करनें का अधिकार होगा।

✔ इसके अलावा महकमतुल मज़ालिम नाम कि एक समर्पित अदालत होंगी जो खलीफा की गतिविधियों पर निगाह रखेगी ताकि वह कोई गै़र-शरई क़ानून लागू ना करें और कोई गै़र-शरई अमल न करें। इस अदालत को खलीफा को उसके पद से हटाने का अधिकार होगा।

✔ इस्लाम नें खलीफा को बहुत सी शक्तियाँ दी हैं लेकिन इसके साथ-साथ इस्लाम नें ऐसे माध्यम भी मुहय्या किये हैं जिन के रहते खलीफा अपनी शक्ति का दुर उपयोग नहीं कर सकता।

सवाल नं. (18) खलीफा का हिसाब-किताब (जवाबतलबी) कैसे किया जायेगा, जबकि उसके पास बहुत सारी शक्तिया हैं ?


इस्लाम खलीफा को हर तरह की शक्ति नहीं देता बल्कि ऐसे कई माध्यम हैं जो उसकी शक्ति संतुलित रखतें हैं। (इस विषय पर मज़ीद जानकारी के लिए ’Accountability In The Khilafah' यानी खिलाफत में जवाबदेही नाम की किताब देखें।) किसी शख्स को खलीफा का पद, सभी मुसलमानों कि रज़ामन्दी और बैअत के ज़रिए ही दिया जायेगा। इस तरह, बिना मुसलमानों के चुनें और बिना बैअत के खलीफा हुकुमत नहीं कर सकता। बैअत पाने के लिए वह इस बात कि ज़मानत दे कि वोह सिर्फ शरियत ही लागू करेगा और साथ ही मज़कूरा सात शर्तो पर उतरता हों, खलीफा बनने के बाद अगर वोह इन शर्तो पर नही बनें रहता (मसलन खलीफा न्याय नहीं करता और इस्लाम के अलावा कुछ और लागू करता हों) तो उसें हटाया जा सकता हैं। हुकूमत में बैठने के बाद वह हुक्मे शरई से बंधा रहता हैं यानी शरियत के बताए हुए गलत और सही को अपनी मर्ज़ी से नहीं बदल सकता। अत: क़ानून का पाबन्द रहता है। लोग चाहें तो बैअत देते वक़्त कुछ दूसरी शर्ते भी लगा सकते हैं और यह शर्ते मुबाह में से होंगी, यह शर्ते किसी खास काम को अंजाम देनें, या किसी खास तरीक़े से करनें के मुताल्लिक़ हो सकती हैं मगर यह शर्त बुनियादी शर्तो से न टकराती हों (मसलन जनता को खलीफा शराब हलाल करने को कहें तो, ऐसी शर्त स्वीकार्य नहीं होगी) ।
इसके अलावा संवैधानिक तरीके से मजलिसे उम्मत को ताक़त मुहैया करा कर भी खलीफा कि शक्ति को नियंत्रित किया जा सकता हैं। मजलिसे उम्मत पूरी उम्मत के नुमाइंदेगान (प्रतिनिधियों) कि मजलिस होगी जिसका काम खलीफा पर निगाह रखना, उसें मश्वरा देना और उसके काम की जांच करते रहना होगा। इसके साथ, एक मज़बूत और स्वतंत्र अदालत होगी। स्वतंत्र से तात्पर्य, अदालत किसी के अधीन नहीं होगी। खलीफा पर मुकदमा चलनें के बाद खलीफा भी किसी क़ाज़ी को हटा नहीं सकता। 

शासक वर्ग की भूमिका सिर्फ लोगों के सार्वजनिक जीवन तक ही सीमित होगी। कोई भी हुक्मरॉ किसी की निजी ज़िन्दगी में दखल अन्दाजी नहीं देगा। जैसे कि किसी के निजी जीवन में जासूसी करवाना, जो कि इस वक़्त पूरी दुनिया की पूंजीवादी हुकूमतें कर रही हैं। आज इन्टरनेंट के ज़रिए हर एक आदमी की जासूसी हो रही हैं और यह डाटा बिक रहा हैं। जबकि दूसरी तरफ यह लोग निजी स्वतंत्रता की बात करते हैं। आज़ादी में सबसे पहले इंसान की निजी ज़िन्दगी होती हैं। एक इंसान की निजी ज़िन्दगी के पहलूओं को यदि सबके सामनें खोलकर रख दिया जायेगा तो फिर उसकी ज़िन्दगी में कुछ नही बचेगा। इस्लाम में किसी की जासूसी करना बहुत बडा़ गुनाह हैं। अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) नें फरमाया ''तुम किसी की निजी ज़िन्दगी में झांकनें की कोशिश मत करो। अगर तुम किसी के घर में बिना ईजाजत के देख रहे हो और वो तुम्हारी आंख फोड़ दे तो उस पर कोई गुनाह नहीं हैं।'' निजी ज़िन्दगी में झांकना सख्त मना हैं और यह हुक्म हुकूमत के लिए भी लागू होता हैं। हुकूमत को सिर्फ उन लोगो की जासूसी करने का अधिकार होगा, जिनके बारे में साफ तौर पर पता लग जाए कि वोह हुकूमत को कोई नुक्सान पहुचाँ सकते हैं। खलीफा की शक्ति को शरीअत नियंत्रण में रखती हैं। शरीअत के तहत वो कभी भी अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल नहीं कर सकता।

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