➡ सवाल नं. (21) क्या खिलाफत में राजनीतिक दल (पार्टियाँ) होगें?
✔ बेशक़ खिलाफत में कई सारी पॉलिटिकल पार्टीया (राजनीतिक दल) होगी।
✅ खिलाफत के राजनीतिक दल, लोकतंत्र के राजनीतिक दलों से कई लिहाज़ से अलग होगें
❌ लोकतंत्र में सियासत को व्यापार एंव एक पेशे के तौर पर देखा जाता हैं, जहाँ इन दलों के सियासतदान सत्ता के लिये दौलत खर्च करते हैं एंव चुनाव जीतने पर उससे कई ज़्यादा वसूल करते हैं।
✅ खिलाफते राशिदा मे राजनीतिक दल, लोकतांत्रिक राजनीतिक दलों कि तरह सत्ता पाने पर भ्रष्टाचार में लीन नही हो होगे और क्योंकी सियासत मद्दी (भौतिक) सौदेबाज़ी के लिये नही होगी। इस्लाम में राजनीति लोगो के मामलात कि देख रेख और शरियत लागू करने का नाम हैं न कि खाने कमाने का माध्यम बनाने का।
✅ इस्लामी राजनीति में लोगों की जान, आस्था, सुरक्षा, अमन, ईज्ज़त और उनकी संपत्ति की हिफाजत मुहैया कराना हुक्मरानों का प्रथम कर्तव्य हैं।
✅ खिलाफत में उस पार्टी के लिए कोई जगह नही होगी जो इस लक्ष्य के अलावा कुछ ओर हासिल करने के लिए काम कर रही होगी।
✅ इस्लाम में सियासत पेशा नहीं, एक ईबादत हैं जो बिना किसी तनख्वाह के की जाती हैं। खिलाफत में, खलीफा, वाली, और बाक़ि सभी हुक्मराँ बिना किसी तनख्वाह के काम करतें हैं। वो जनता के खिदमत गुज़ार और शरीअत लागू करनें वाले हैं.
🔵 जहाँ तक उनके निजी खर्च की बात हैं वह उन्हें उनकी हैंसियत के मुताबिक दिए जायेगें ताकि वह उनका पूरे ध्यान अपना काम में रहे। अगर खलीफा से फराइज़ को लागू करनें में कोई कमी रह गई तो यह पार्टीयॉ उसकी भर्त्सना कर सकती हैं।
✅ खिलाफत के राजनीतिक दल, लोकतंत्र के राजनीतिक दलों से कई लिहाज़ से अलग होगें
❌ लोकतंत्र में सियासत को व्यापार एंव एक पेशे के तौर पर देखा जाता हैं, जहाँ इन दलों के सियासतदान सत्ता के लिये दौलत खर्च करते हैं एंव चुनाव जीतने पर उससे कई ज़्यादा वसूल करते हैं।
✅ खिलाफते राशिदा मे राजनीतिक दल, लोकतांत्रिक राजनीतिक दलों कि तरह सत्ता पाने पर भ्रष्टाचार में लीन नही हो होगे और क्योंकी सियासत मद्दी (भौतिक) सौदेबाज़ी के लिये नही होगी। इस्लाम में राजनीति लोगो के मामलात कि देख रेख और शरियत लागू करने का नाम हैं न कि खाने कमाने का माध्यम बनाने का।
✅ इस्लामी राजनीति में लोगों की जान, आस्था, सुरक्षा, अमन, ईज्ज़त और उनकी संपत्ति की हिफाजत मुहैया कराना हुक्मरानों का प्रथम कर्तव्य हैं।
✅ खिलाफत में उस पार्टी के लिए कोई जगह नही होगी जो इस लक्ष्य के अलावा कुछ ओर हासिल करने के लिए काम कर रही होगी।
✅ इस्लाम में सियासत पेशा नहीं, एक ईबादत हैं जो बिना किसी तनख्वाह के की जाती हैं। खिलाफत में, खलीफा, वाली, और बाक़ि सभी हुक्मराँ बिना किसी तनख्वाह के काम करतें हैं। वो जनता के खिदमत गुज़ार और शरीअत लागू करनें वाले हैं.
🔵 जहाँ तक उनके निजी खर्च की बात हैं वह उन्हें उनकी हैंसियत के मुताबिक दिए जायेगें ताकि वह उनका पूरे ध्यान अपना काम में रहे। अगर खलीफा से फराइज़ को लागू करनें में कोई कमी रह गई तो यह पार्टीयॉ उसकी भर्त्सना कर सकती हैं।
➡ सवाल नं. (22) खिलाफत में भ्रष्टाचार से निपटने का क्या समाधान हैं ?
✔ भ्रष्टाचार कि समस्या दो चीज़ो से उत्पन्न होती हैं, राजनीतिक व्यवस्था और शासक वर्ग कि ताक़त।
✅ खिलाफत एक ऐसी जवाबदेह (Accountable) राजनीतिक व्यवस्था स्थापित करके ईमानदारी सुनिश्चित करती हैं जहाँ हुक्मरानों को किसी तरह का राजनितिक प्रतिरोध (Political Immunity) हासिल नही होता।
✅ खिलाफत ईमानदारी हद दे दर्जे तक सुनिश्चित करेंगी और अपराधी पाए जाने पर तुरंत सज़ा देगी जैसा कि नबी (صلى الله عليه وسلم) ने सज़ाओं में अमीर या ग़रीब, छोटा या बड़ा, काला या गोरा, अरबी या अजमी किसी क़िस्म का फर्क़ नही किया।
✅ खिलाफत समाज के हर तबक़े से भ्रष्टाचार मिटाएगी और ईमानदारी को बड़ावा देगी। इस्लाम कि राजनीतिक व्यवस्था अमानतदारी कि भावना खलीफा से लेकर हर पद अधिकारी के दिल मे बिठाती हैं।
✅ इस्लामी समाज में ज़्यादा सुरक्षा पाने या अच्छी रक़म कमाने के लिए कोई खलीफा नहीं बनता हैं। बल्कि वो सिर्फ अल्लाह के नज़दीक इबादात में आला दर्जे पाने के लिए ऐसा चाहता हैं।
✅ खिलाफत एक ऐसी जवाबदेह (Accountable) राजनीतिक व्यवस्था स्थापित करके ईमानदारी सुनिश्चित करती हैं जहाँ हुक्मरानों को किसी तरह का राजनितिक प्रतिरोध (Political Immunity) हासिल नही होता।
✅ खिलाफत ईमानदारी हद दे दर्जे तक सुनिश्चित करेंगी और अपराधी पाए जाने पर तुरंत सज़ा देगी जैसा कि नबी (صلى الله عليه وسلم) ने सज़ाओं में अमीर या ग़रीब, छोटा या बड़ा, काला या गोरा, अरबी या अजमी किसी क़िस्म का फर्क़ नही किया।
✅ खिलाफत समाज के हर तबक़े से भ्रष्टाचार मिटाएगी और ईमानदारी को बड़ावा देगी। इस्लाम कि राजनीतिक व्यवस्था अमानतदारी कि भावना खलीफा से लेकर हर पद अधिकारी के दिल मे बिठाती हैं।
✅ इस्लामी समाज में ज़्यादा सुरक्षा पाने या अच्छी रक़म कमाने के लिए कोई खलीफा नहीं बनता हैं। बल्कि वो सिर्फ अल्लाह के नज़दीक इबादात में आला दर्जे पाने के लिए ऐसा चाहता हैं।
जैसा कि आप (صلى الله عليه وسلم) ने इस हदीस में इसे ज़िम्मदारी और वज़न कि चीज़ बताया हैं
يَا أَبَا ذَرٍّ إِنَّكَ ضَعِيفٌ وَإِنَّهَا أَمَانَةٌ وَإِنَّهَا يَوْمَ الْقِيَامَةِ خِزْىٌ وَنَدَامَةٌ إِلاَّ مَنْ أَخَذَهَا بِحَقِّهَا وَأَدَّى الَّذِى عَلَيْهِ فِيهَا »
💐 ऐ अबू ज़र, तुम कमज़ोर हो, और यह एक अमानत है, और क़यामत के दिन यह ज़िल्लत और अफसोस का सबब बनेगी (सिवाय उन लोगों के लिये) जो इसे ठीक तरह से उठायेंगे और अपना फर्ज़ ठीक तरह से अदा करेगें। (मुस्लिम)
✔ इस्लाम पैसा और राजनीति को अलग करके भ्रष्टाचार रोकता हैं,
✔ लोकतंत्र कि तरह इस्लाम में शासक कोई नौकर नही है जिसे पैसा देकर क़ानून लागू करने लिए किराए पर लिया गया हों इसीलिए खलीफा और दूसरे हुक्मराँ तंख्वाह लेकर काम नही करते, उन्हें सिर्फ उनकी ज़रूरत के मुताबिक़ खर्चा मुहैया करा दिया जाता हैं ताकि वह अपने फर्ज़ को पूरे ध्यान से अदा कर सकें।
🌻 इससे मुताल्लिक़ एक वाक़ेआ हैं कि जब हज़रत अबू बक्र सिद्दिक (رضي الله عنه) पहले खलीफा बनें तो वो खलीफा बननें के अगले दिन बाजार में कारोबार करते दिखाई दिए। तो हज़रत उमर (رضي الله عنه) नें कहा की आप बाजार में काम करेगें तो फिर आप हुक्मरानी कैसे कर पायेगें, आप अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा पायेगें।
हज़रत अबूबक्र (رضي الله عنه) ने इरशाद फरमाया की आप अपने परिवार के फराईज़ कैसे पूरे करेंगे । हज़रत उमर (رضي الله عنه) नें पूछा कि उनकी ज़रूरत कितनी हैं। हज़रत अबू बक्र सिद्दिक (رضي الله عنه) नें कहा कि दो बकरियॉ उनके लिये कम से कम रोज़ चाहिए। हज़रत उमर (رضي الله عنه) नें उनके घर रोज़ दो बकरियॉ पहुचाँना तय कर दिया.
🌻 इससे मुताल्लिक़ एक वाक़ेआ हैं कि जब हज़रत अबू बक्र सिद्दिक (رضي الله عنه) पहले खलीफा बनें तो वो खलीफा बननें के अगले दिन बाजार में कारोबार करते दिखाई दिए। तो हज़रत उमर (رضي الله عنه) नें कहा की आप बाजार में काम करेगें तो फिर आप हुक्मरानी कैसे कर पायेगें, आप अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा पायेगें।
हज़रत अबूबक्र (رضي الله عنه) ने इरशाद फरमाया की आप अपने परिवार के फराईज़ कैसे पूरे करेंगे । हज़रत उमर (رضي الله عنه) नें पूछा कि उनकी ज़रूरत कितनी हैं। हज़रत अबू बक्र सिद्दिक (رضي الله عنه) नें कहा कि दो बकरियॉ उनके लिये कम से कम रोज़ चाहिए। हज़रत उमर (رضي الله عنه) नें उनके घर रोज़ दो बकरियॉ पहुचाँना तय कर दिया.
अगले दिन आप क्या देखते हैं कि हज़रत अबू बक्र सिद्दिक (رضي الله عنه) फिर बाजार में कारोबार करते पाये जाते हैं। तो हज़रत उमर (رضي الله عنه) उनसे फिर पूछते हैं कि आपको तो आपके दफ्तर में ही रहना चाहिए था, उन्होंनें कहॉ कि मेंरा जो अन्दाज़ा गलत था । असल में मुझे दो नहीं रोज तीन बकरियॉ चाहिए। मुझे आपनें दो बकरियों के लायक तो दे ही दिया था तो एक बकरी के लायक मुझे काम करनें की ज़रूरत पेश आई। उन्होंनें कहॉ ठीक हैं अगर आपको तीन बकरी चाहिए तो आपको प्रतिदिन तीन बकरियॉ पहुचा दी जायेगी।
💐 इस्लामी शब्दावली में इसे हदिया कहा जाता हैं। खिलाफत में हदिया का मामला होता हैं, तनख्वाह का नहीं।
✅ इस तरह, इस्लामी हुक्मरानी में भ्रष्टाचार के बहुत कम अवसर होते हैं। मजलिसे उम्मत (जिसमें उम्मत के प्रतिनिधि होगें) आपसी मश्वरा करके खलीफा की तनख्वाह तय करेगी।
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