➡सवाल नं. (41): खिलाफत में औरतों को क्या अधिकार दिए जायेगें?
✅ क़ुरआन और हदीस ने औरत के अधिकारों को बहुत साफ तौर पर बयान किया हैं, जो कभी बदलते नही ।
(1)औरत को विरासत का मौलिक अधिकार हैं। अपने बाप की दौलत में से उसे विरसे का हक़ हैं।
(2) उसे अपने बाप के दिये उपनाम (सरनेम) को रखने का अधिकार हैं।
(3) इस्लाम औरत के वाली (बाप/पति) पर उसका रखरखाव और रहन-सहन का इंतेज़ाम उपलब्ध कराना फर्ज़ करार देता है जिस पर कानून के ज़ोर से मर्दों पर लागू किया जायेगा। यानी अगर वाली इस ज़िम्मेदारी को पूरा नही करता तो रियासत उसको हक़ दिलवायेगी.
(4) इस्लाम खवातीन को अपनी पंसद से शादी करने का भी अधिकार देता हैं।
(5) इस्लाम में खवातीन को राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने का पूरा अधिकार हैं। वह इस्लामी राजनीति में शामिल होकर सरकार के कई औहदो पर ऑफिसर के तौर पर रह सकती हैं।
शरीअत ने उसे हर स्तर की तालीम हासिल करने, नौकरी करने, व्यापार करने, व किसी व्यापार में सहयोगी (पार्टनर) बनकर पैसा लगाने का अधिकार दिया हैं। खिलाफत का कर्तव्य होगा कि वह महिलाओं के इन शरई अधिकारों की सुरक्षा करें।
➡ सवाल नं. (42): क्या खिलाफत में औरतों को काम/नौकरी/जोब करने का अधिकार होगा?
✔ खिलाफत में औरतों को हर क्षेत्र में काम करने का अधिकार होगा। इस्लाम ने औरतों को आर्थिक तौर पर आत्म निर्भर होने की ईजाज़त दी हैं। वह अपना खुद का व्यापार चला सकती हैं और दूसरो को नौकरी पर भी रख सकती हैं। औरत एक वकील, इन्जीनियर, डॉक्टर, आलिम, टीचर, राजनेता और वैज्ञानिक हो सकती हैं। इसके अलावा बहुत से ऐसे पेशे हैं, जो उनके लिए जाईज़ हैं।
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