➡ सवाल नं. (25): क्या खिलाफत का एक संविधान यानी आईन होगा?
✅ आईन का होना ज़रूरी (फर्ज़) नही है, जिसमें हुक्मरॉ कि हुक्मरानी से संबधित मुतय्यन पॉलिसी को रेखांकित किया गया हो। चूंकि मुसलमान कई दहाइयों (दशकों) से खिलाफत के ज़ेरे साए ज़िन्दगी नही गुज़ार रहे है, इसके साथ ही पश्चिमी सभ्यता मुस्लिम सरज़मीनो पर फैल चुकी है इसलिए अब ज़रूरी है कि हुक्मरॉ के पास हुकूमत करने के लिए बुनियादी सिद्धांत हो जिन्हें वह मार्ग दर्शक (जनरल गाईड लाईन) के तौर पर इस्तिमाल करें।
✅ यह चीज़ रियासत और समाज दोनों को मज़बूत करेगी क्योंकि सारी चीज़ें संविधान के रूप में स्पष्ट होगी, जिससे लोगों को अच्छी तरह पता रहेगा कि रियासत की क्या बुनियादें है, कैसे चलेगी। यानी शहरियों पर रियासत के क्या अधिकार है और रियासत पर शहरियों के क्या अधिकार है ।
✅ संविधान का यही मक़सद होता है। इसलिए इस बात को तर्जी़ह दी गई है कि खिलाफत का संविधान रखा जाए। संविधान (आईन) के सभी अनुच्छेद (आर्टीकल) इस्लामी शरीअत से ही लिए जायेगें।
🔱🔱 खिलाफते राशिदा सानी (II) पर 100 सवाल 🔱🔱
➡ सवाल नं. (26): खिलाफत में अदालत का ढांचा कैसा होता है ?
⭐ खिलाफत में तीन तरह के क़ाज़ी (Judges) होते है:
(1) पहला क़ाज़ी, क़ाज़ी हिस्बा कहलाता है जिसका काम लोगों के दरमियान होने वाले आर्थिक और सामाजिक मामलात से सम्बन्धित झगडो़ं का फैसला करना होता।
(2) दूसरा क़ाज़ी, क़ाज़ी मुहतसिब कहलाता है, मुहतसिब मआने हिसाब-किताब लेने वाला। जोकि शहरीयों के क़ानून तोड़ने और लोगो के अधिकार हनन जैसे मामलात का ज़िम्मेदार होता है एंव इन मामलो पर फैसला देता है।
(3) तीसरा क़ाज़ी, क़ाज़ी मज़ालिम होगा, जो रियासत और शहरियों के बीच के झगड़ो का फैसला करता है जिसमे यदि रियासत कुछ ऐसी पॉलिसी लागू करना चाहती है जिससे शहरी राज़ी ना हो या शहरियों को रियासत और हुक्मरानों से कोई शिकायत हो तो वह क़ाज़ी मज़ालिम के पास जायेगें। यह क़ाज़ी मज़ालिम खलीफा के खिलाफ भी केस कर सकता है और उसे हटा भी सकता है।
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