➡ सवाल नं. (23) खिलाफत किस तरह न्याय स्थापित करेगी?
✔ इस्लाम, न्याय, ज़ोर-ज़बरदस्ती के बजाय इस्लाम को मुकम्मल तौर पर लागू करके स्थापित करता हैं। हुक्मरानों की जवाबतलबी के लिए स्वतंत्र, मज़बूत और ताक़तवर अदालत होगी जो राज्य के बड़े से बड़े पद अधिकारी को हटानें में सक्षम होगी।
✔ यह अदालत लोगों को अपनी बात खुलकर कहनें का अधिकार देगी, यानी उनके अधिकारों का हनन होने पर वह हुक्मरॉ के खिलाफ अदालत में अर्जी दे सकते हैं।
✔ खिलाफत में हुक्मरानों के मुहासबे के लिए कई राजनीतिक दल और मजलिसे उम्मत (Ummah’s Council) होगी, जो सत्ताधारी लोगों की कार्यवाहियाँ जैसे बजट खर्च, क़ानूनसाज़ी, राज्य निती (State Policy), और दूसरे मामलात पर निगरानी रखेगी।
✔ मजलिसे उम्मत (Ummah’s Council) खलीफा को आवाम की समस्याओं से संबधित मशवरा देने के लिए हमेशा रहेगी। मजलिसे उम्मत खलीफा को जनता की ज़रूरत से आगाह रखेगी हैं।
✅ हर व्यक्ति को सरकार की किसी भी संस्था के किसी भी ओहदेदार से जवाब तलबी का अधिकार होगा, जिसमें खलीफा भी शामिल हैं।
✅ इसी तरह महकमतुल मज़ालिम नाम कि अदालत में आम लोग, हुक्मरानों के खिलाफ अपनी अर्जीया और शिकायतें सीधे पेश कर सकते हैं और मुक़दमा चला सकते हैं। शिकायतकर्ता के हुक्मरान के खिलाफ सबूत देनें पर, ही उनके खिलाफ मुकदमा दायर किया जा सकता हैं। क्योंकि कुछ लोग रियासत के कामों में बांधा डालनें और फित्ना फैलानें के लिए भी मुकदमा करते हैं। इस अदालत को सज़ाऐं लागू करनें का अधिकार होगा।
✅ गै़र-मुस्लिम और मुस्लिमों को शांति मय विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार होगा। मगर आज इन सब के विपरीत मुस्लिम दुनिया कि स्थिति कुछ ओर हैं।
⛔ इस बात को समझना ज़रूरी हैं कि, इस वक़्त मुस्लिम दुनिया के वोह बदतरीन हुक्मरान जो भ्रष्टाचार और दूसरी बुराईयो में पूरी तरह से लिप्त हैं. दर असल वह इस्लाम कि वजह से ऐसे नही हैं बल्कि गै़र-इस्लामी व्यवस्था में तर्बियत पाने की वजह से वह ऐसे हैं।
⛔ मुसलमानों में नुक़्स या कमी इस्लाम की वजह से नहीं हैं बल्कि गै़र-इस्लामी नज़रियात और अवधारणाऐं और विचारों की वजह से हैं।
✳ आज अंतर्राष्ट्रिय मीडिया मुस्लिम देशों के हुक्मरानों की एक खास छवी पेश करता हैं, जैसे सद्दाम हुसैन कितना ज़ालिम हैं, ईरान के हुक्मरॉ महिलाओं की शिक्षा के विरूद्ध हैं, गद्दाफी कितना अय्याश हैं, हुस्ने मुबारक 40 साल से सत्ता पर क़बिज़ हैं वग़ैराह वग़ैराह और इनकी बदआमालियों को इस्लाम से जोड कर दिखाता हैं
❎ जबकि यह इस्लाम से निकलनें वाली लीडरशिप (नेतृत्व) नहीं हैं
❎ ना ही वह इस्लामी व्यवस्था लागू करती हैं।
❎ बल्कि पश्चिमी नज़रयात से तर्बियत पाये, ग़ैर-इस्लामी राजनिती करनें वाले, पश्चिमी एजेंट और गुलाम हैं, जो उनके कहनें पर चलते हैं ।
✅ यह इस्लाम का नुक्स नहीं हैं बल्कि यह इस गलत व्यवस्था का नुक्स हैं जो पश्चिमी देशों नें मुसलमानों की मर्जी के खिलाफ मुसलमानों पर थोप रखा हैं, यह हुक्मराँ असल में पश्चिमी विचारधारा की पैदावार हैं ना कि इस्लामी विचारधार की।
✔ यह अदालत लोगों को अपनी बात खुलकर कहनें का अधिकार देगी, यानी उनके अधिकारों का हनन होने पर वह हुक्मरॉ के खिलाफ अदालत में अर्जी दे सकते हैं।
✔ खिलाफत में हुक्मरानों के मुहासबे के लिए कई राजनीतिक दल और मजलिसे उम्मत (Ummah’s Council) होगी, जो सत्ताधारी लोगों की कार्यवाहियाँ जैसे बजट खर्च, क़ानूनसाज़ी, राज्य निती (State Policy), और दूसरे मामलात पर निगरानी रखेगी।
✔ मजलिसे उम्मत (Ummah’s Council) खलीफा को आवाम की समस्याओं से संबधित मशवरा देने के लिए हमेशा रहेगी। मजलिसे उम्मत खलीफा को जनता की ज़रूरत से आगाह रखेगी हैं।
✅ हर व्यक्ति को सरकार की किसी भी संस्था के किसी भी ओहदेदार से जवाब तलबी का अधिकार होगा, जिसमें खलीफा भी शामिल हैं।
✅ इसी तरह महकमतुल मज़ालिम नाम कि अदालत में आम लोग, हुक्मरानों के खिलाफ अपनी अर्जीया और शिकायतें सीधे पेश कर सकते हैं और मुक़दमा चला सकते हैं। शिकायतकर्ता के हुक्मरान के खिलाफ सबूत देनें पर, ही उनके खिलाफ मुकदमा दायर किया जा सकता हैं। क्योंकि कुछ लोग रियासत के कामों में बांधा डालनें और फित्ना फैलानें के लिए भी मुकदमा करते हैं। इस अदालत को सज़ाऐं लागू करनें का अधिकार होगा।
✅ गै़र-मुस्लिम और मुस्लिमों को शांति मय विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार होगा। मगर आज इन सब के विपरीत मुस्लिम दुनिया कि स्थिति कुछ ओर हैं।
⛔ इस बात को समझना ज़रूरी हैं कि, इस वक़्त मुस्लिम दुनिया के वोह बदतरीन हुक्मरान जो भ्रष्टाचार और दूसरी बुराईयो में पूरी तरह से लिप्त हैं. दर असल वह इस्लाम कि वजह से ऐसे नही हैं बल्कि गै़र-इस्लामी व्यवस्था में तर्बियत पाने की वजह से वह ऐसे हैं।
⛔ मुसलमानों में नुक़्स या कमी इस्लाम की वजह से नहीं हैं बल्कि गै़र-इस्लामी नज़रियात और अवधारणाऐं और विचारों की वजह से हैं।
✳ आज अंतर्राष्ट्रिय मीडिया मुस्लिम देशों के हुक्मरानों की एक खास छवी पेश करता हैं, जैसे सद्दाम हुसैन कितना ज़ालिम हैं, ईरान के हुक्मरॉ महिलाओं की शिक्षा के विरूद्ध हैं, गद्दाफी कितना अय्याश हैं, हुस्ने मुबारक 40 साल से सत्ता पर क़बिज़ हैं वग़ैराह वग़ैराह और इनकी बदआमालियों को इस्लाम से जोड कर दिखाता हैं
❎ जबकि यह इस्लाम से निकलनें वाली लीडरशिप (नेतृत्व) नहीं हैं
❎ ना ही वह इस्लामी व्यवस्था लागू करती हैं।
❎ बल्कि पश्चिमी नज़रयात से तर्बियत पाये, ग़ैर-इस्लामी राजनिती करनें वाले, पश्चिमी एजेंट और गुलाम हैं, जो उनके कहनें पर चलते हैं ।
✅ यह इस्लाम का नुक्स नहीं हैं बल्कि यह इस गलत व्यवस्था का नुक्स हैं जो पश्चिमी देशों नें मुसलमानों की मर्जी के खिलाफ मुसलमानों पर थोप रखा हैं, यह हुक्मराँ असल में पश्चिमी विचारधारा की पैदावार हैं ना कि इस्लामी विचारधार की।
🔱🔱 खिलाफते राशिदा सानी (II) पर 100 सवाल 🔱🔱
➡ सवाल नं. (24) क्या खिलाफत में सीक्रेट सर्विस (गुप्तचर विभाग) होगी?
🚫 अरब देशों के सीक्रेट सर्विस (गुप्तचर विभाग) अपनें ज़ालिमाना टोरचर (यातना) के लिये बहुत बदनाम हैं। अक़्सर, यह गुप्तचर विभाग शासकों के लिये सुरक्षा रेखा माने जातें हैं क्योंकि मुस्लिम देशों की हुकूमतें लोगों क़ॆ इस्लामी रुझान यानी इस्लाम के सियासी रुझान कि तरफ जाने से डरती हैं, जिससे सही इस्लामी क्रांति का खतरा पैदा होता हैं।
🚫 इसीलिए वहॉ सबसे ज़्यादा पैसा गुप्तचर विभाग पर खर्च किया जाता हैं और सख्त निगरानी के लिए एक मज़बूत ईदारा बनाया जाता हैं ताकि वह साज़िशो से आगाह रहें। जबकि पश्चिम, आज़ादी और व्यक्तित्वाद के मूल्यों को इस्तेमाल करके अपनें समाज को जोड़े रखता हैं वहीं
🚫 दूसरी तरफ मुस्लिम देशों का शासक वर्ग, गुप्तचर विभाग की सेवाओं के द्वारा अपनी कुर्सी को मज़बूत बनाये रखता हैं। कुछ लोग समझते हैं कि इसका ताल्लुक इस्लाम से हैं, जबकि इसका ताल्लुक इस्लाम से बिल्कुल भी नहीं हैं। यह मुस्लिम देशों के हुक्मरान पश्चिमी ताक़तों के गुलाम हैं, जिन्होंनें मुसलमानों पर ग़ैर-इस्लामी क़वानीन थोप रखे हैं, इन्हें इनके पश्चिमी आकाओं नें यह जब्र और अत्याचार के तरीक़े सिखाए हुए हैं ताकि मुसलमान इनकी हुकूमतों को हटा ना सके।
✅ खिलाफत का आंतरिक सुरक्षा विभाग, बिल्कुल अलग किरदार का होगा। इस्लाम, शहरियों की निजी ज़िन्दगी को बहुत पवित्र मानता हैं।
✅ इस्लाम नें अवाम (जनता) की जासूसी को हराम क़रार दिया हैं, हराम वह हुक्म है जिसे किसी भी सूरत में नही बदला जा सकता, इस तरह आवाम की जासूसी हर सूरते हाल मे नाजायज़ हैं। अत: हुकूमत जनता कि जासूसी नही कर सकती। कई अहादीस में इसकी सीमाओं को रेखांकित किया है।
💠 आंतरिक सुरक्षा विभाग को लोगो के निजी अक़ायद मे हस्तक्षेप करने की किसी क़िस्म की ताक़त या अधिकार नही होगा । जासूसी का गहरा असर खुफिया ज़रायो से सबूत इकट्ठे करना, उन पर निगरानी रखना, और शहरियों की निजी ज़िन्दगी का हनन करनें पर पडता हैं।
✳ इस्लाम, शहरीयों कि और उनके घर की गोपनियता (Prviacy) को पवित्र मानता है।
सुरक्षा विभाग का कानूनी दायरा रियासत के क़वानीन लागू करनें तक महदूद हैं, जो की एक सार्वजनिक मामला हैं.
🔱🔱 खिलाफते राशिदा सानी (II) पर 100 सवाल 🔱🔱
✴ खिलाफत में न्याय व्यवस्था ✴
💠 खिलाफत में न्याय, स्वतंत्र अदालत और मुतय्यन क़वानीन (Fixed Laws) के ज़रिए हासिल होता है, ताकि तमाम शहरी अपनी अपनी और राज्य की ज़िम्मेदारियों से वाक़िफ हो सके ।
💠 पूंजीवाद से विपरीत, इस्लाम पैसा और राजनीति दोनों को अलग करके भ्रष्टाचार की समस्या जड़ से खत्म करता है ।
💠 खिलाफत का नज़रिया समाज की रक्षा और उसकी हिफाज़त के ताल्लुक़ से पश्चिम की तुलना में मुख्तलिफ है। हालांकि हालांकि सज़ा लागू करने के लिए इस्लाम ने बहुत मुश्किल और कठिन शर्ते रखी हैं। इस तरह इस्लाम में सिर्फ दोषी को ही सज़ा मिलती हैं।
💠 इस्लाम का क़ानून साज़ी सिद्धांत (Legislative Principle) इस हदीस पर आधारित है, कोई दोषी भले ही छूट जाए मगर किसी मासूम को सज़ा न मिलें।
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