➡ सवाल नं. (31): क्या खिलाफत लोगों को टॉर्चर (यातना) देने की ईजाज़त देती है?
✳ इस्लाम पूर्ण तौर पर लोगों (चाहे वह मुस्लिम हो या गै़र-मुस्लिम हो) को टॉर्चर करने को हराम करार देता है। खिलाफत में जो कोई शख्स किसी शहरी (मुस्लिम या ग़ैर मुस्लिम) को जिस्मानी अज़ियत या यातना देते पाया गया तो वह सख्त सज़ा से दंडित किया जाएगा।
⛔ टॉर्चर के माअनी किसी जुर्म के लिए किसी फर्द को बहुत ज़्यादा जिस्मानी अज़यते और तक्लीफ पहुँचाना हैं। पूंजीवाद में यह बहुत आम है। इस मामलें में अमरीका सबसे आगे है, उसने ग्वांटा नामो बे ले जाकर कई तरह के टॉर्चर किए है।
✔ इस्लाम के मुताबिक़ जब तक आदमी मुजरिम साबित नही हो जाता तब तक उस पर सज़ा लागू नही कि जा सकती जबकि आजकल दुनिया में हम देखते है कि बहुत पहले ही सिर्फ पुलिस के बयान पर ही किसी शख्स को दुनिया मुजरिम मान लेती है, बल्कि यह सब चीज़ें तब होनी चाहिए जब अदालत इस बात को मान ले और फैसला दे दे।
❌ जबकि पूंजीवादी व्यवस्था में इसके विपरीत पाया जाता है, किसी शख्स को शक कि बुनियाद पर जेल में डाल देते है फिर जब वह कैस लड़ता है तो उसे अदालत में सिर्फ यह साबित करने में कि मैं मासूम हूँ 5 साल जेल में फैसले के इंतिज़ार मे जेल में रख दिया जाता हैं, इस तरह एक मासूम शख्स को मुजरिम से ज़्यादा सज़ा ऊठाने की नौबत आ जाती है।
✔ इस्लाम में टार्चर अपने सिद्धांतो और बुनियाद के साथ हर स्थिति में हराम है, चाहे वह नेशनल सिक्यूरिटी यानी राष्ट्रिय सुरक्षा का मामला ही क्यो ना हो। जिसकी बुनियाद पर हर रियासत बहुत ज़्यादा तवज्जो देती है।
खिलाफत में अदालत ठीक से जांच बीन करेगी, और उनके लिये जो सज़ा तय की जायेगी है उन सज़ाओं को लागू करेगी, जिसमें ज़्यादा समय नही लगता।
❌ पूंजीवाद कि तरह यह नही होगा कि किसी शख्स के साथ अपराधी जैसा मामला किया जाता है जब की अभी उस पर अभी अपराध साबित भी नही हुआ है और जांच चल रही. इस दर्मियान उसे टॉर्चर किया जाता है, यहाँ तक की उसने जो नही किया वोह भी उससे क़बूल करवाया जाता है।
🔱🔱खिलाफते राशिदा सानी (IInd) पर 100 सवाल🔱🔱
➡ सवाल नं. (32): खिलाफत अंदरूनी बगावतों से कैसे निपटेगी?
✔ इस्लामी सरज़मीं में बग़ावत करने वाले किसी भी बाग़ी को हमेशा रियासत का शहरी माना जायेगा। अथार्त दूसरी व्यवस्थाओं कि तरह यह नही माना जायेगा कि अगर कोई शहरी बाग़ी हो गया तो हमारा दुश्मन हो गया।
✅ खिलाफत में महकमतुल मज़ालिम नाम की अदालत हमेशा होगी जिसका काम ही यही होगा के वह हुक्मरानों कि गतिविधियों पर निगरानी रखेगी और हुक्मराँ द्वारा किए गए किसी क़िस्म के अधिकार हनन या क़ानून उल्लंघन पर वह किसी भी पद अधिकारी को हटा सकती है, जिसमें खलीफा भी शामिल हैं।
⭐ लोग बगावत तब करते है जब हुक्मराँ द्वारा उनकी समस्याओं का निदान नही किया जाता व उनकी परेशानियों को सुना नहीं जाता है, ऐसे मे वह उनसे नाराज़ हो जाते है और परेशान होकर सरकार के खिलाफ हथियार ऊठा लेते है।
✔ जहॉ तक बगावत की बात है तो इस्लाम में बगावत को कुफ्र नही, नाफरमानी माना जाता है, और बाग़ीयों से नाफरमानी दूर करने के लिए उन्हें डिसीपिलीन (आनुशासित) किया जायेगा, और खलीफा को बाग़ीयों के खिलाफ जंग करने कि ईजाज़त नही होगी क्योंकि यह डिसीपिलीन करने (अनुशासित करने) की श्रेणी मे नही आता इसकी मिसाल एक क्लास रूम से दी जा सकती है कि, जब कोई बच्चा नाफरमानी करता है या नियम तोड़ता है तो टीचर्स उसे डिसीपिलीन करते न कि उसे सज़ा देते हैं।
✔ जब तक बाग़ी क़ानून के खिलाफ काम करते हुए नही पाए जाते खिलाफत उन्हें सज़ा नही दे सकती। जैसे कि हज़रत उस्मान (رضي الله عنه) की सुन्नत थी कि जब बाग़ी लोग हज़रत उस्मान (رضي الله عنه) से नाराज़ थे और लड़ने पर आमादा हो रहे थे तो सहाबा (رضی اللہ عنھم) ने उनसे कहा कि इन्हें मारो और सज़ा दो, तो उन्होंने इस बात से मना कर दिया और कहा कि मैं मुसलमानों को या अपनी रियासत के लोगों को कैसे मारू।
✔ इसी आधार पर खिलाफत हमेशा बाग़ीयों को रियासत का शहरी समझ कर ही बर्ताव करेगी ना कि गै़र समझकर।
❌ जैसा कि इन दिनों देखने मे आ रहा है की सीरिया की आवाम ने हुकूमत के खिलाफत जब वगावत की तो हुकूमत ने फौज और अपने हवाई जहाज़ो से उन पर बम गिरवाए जो आज तक जारी है। इस तरह विदेशी ताक़त के खिलाफ इस्तिमाल कि जाने वाली फौज की शक्ति को अपने ही शहरियों पर इस्तमाल कर रहा है।
✔ खलीफा को ऐसी कार्यवाही करने की बिल्कुल भी ईजाज़त नही होगी कि वह टेंक, बम, भारी मशीने, हवाई हमले वगैराह का इस्तिमाल करे। यानी हर वोह चीज़ जो कि जंग में इस्तमाल की जाती है, वोह अपने शहरियों के खिलाफ इस्तमाल नही होगी और जब बागीयों को बंदी बनाया जायेगा तो उन्हें गुनाहगार माना जायेगा ना कि जंगी क़ैदी ।
✔ खलीफा को ऐसी कार्यवाही करने की बिल्कुल भी ईजाज़त नही होगी कि वह टेंक, बम, भारी मशीने, हवाई हमले वगैराह का इस्तिमाल करे। यानी हर वोह चीज़ जो कि जंग में इस्तमाल की जाती है, वोह अपने शहरियों के खिलाफ इस्तमाल नही होगी और जब बागीयों को बंदी बनाया जायेगा तो उन्हें गुनाहगार माना जायेगा ना कि जंगी क़ैदी ।
❌ आम तौर पर पूंजीवाद में बाग़ीयों को जंगी कैदी मान लेते है व उन्हें बिल्कुल पराया और अपना दुश्मन मान लेते है इसके साथ ही उन पर सख्त क़ानून लगाये जाते है।
✔खिलाफत ऐसा नही करेगी, उनको जंगी कैदी बजाय गुनाहगार मानेगी क्योंकि उन्होंने खलीफा या हुकूमत की नाफरमानी की है, अगर वोह गलत है तो वरना सबसे पहली चीज़ तो यह है कि अगर उनकी डिमांड जाईज़ होगी तो उसे सुनना पड़ेगा और उसे ठीक करना पडे़गा।
✔खिलाफत ऐसा नही करेगी, उनको जंगी कैदी बजाय गुनाहगार मानेगी क्योंकि उन्होंने खलीफा या हुकूमत की नाफरमानी की है, अगर वोह गलत है तो वरना सबसे पहली चीज़ तो यह है कि अगर उनकी डिमांड जाईज़ होगी तो उसे सुनना पड़ेगा और उसे ठीक करना पडे़गा।
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