खिलाफ़ते राशिदा सानी (IInd) पर 100 सवाल (6-8)

➡  सवाल नं. (6) क्या मुसलमान उदारवादी लोकतंत्र को नहीं अपना सकते?

 

 

 

 

 

✳ पश्चिमी दुनिया इतिहास में जिन प्रक्रियाओं से गुज़री हैं वोह उसे सिर्फ अपना नही बल्कि दुनिया का इतिहास मानती है और आज के दौर को आधुनिक युग कहती हैं। इसके अलावा अपने अफ्कार (विचारों) के सिवाए बाक़ी तमाम विचारों को प्राचीन (असभ्य) मानती हैं, जो उनके पश्चिमी उदारवाद (पूंजीवाद) से मेल नही खाते ।

✳ पश्चिम की नज़र में, आधुनिकतावाद (Modernism) के एक खास माअने है जिसका मतलब है खुद को पूर्ण रूप से आज़ाद रखना या धर्म से आज़ादी। आधुनिकतावाद की सबसे बुनियादी चीज़, धर्म और धार्मिक क़वानीन से आज़ादी है और इंसान उदारवादी हो जाये, इंसान खुद ही अपने दिमाग और अपनी ख्वाहिशात के मुताबिक़ जो चाहे करे ।

✳ यह नज़रिया सेक्यूलरिज़्म की पैदावार है जिसमें उन्होंने मुकम्मल तौर  धर्म को आम ज़िन्दगी से अलग किया था । इसी की बुनियाद पर कई और नज़रियात पैदा हुए जैसे मानव अधिकार, समानता और स्वतंत्रता (आज़ादी/Freedom) । इस पूरी प्रक्रिया को उन्हेंने आधुनिकत कहा ।

✳ सेक्यूलरवादीयों की नज़र में सिर्फ सेक्यूलर उदारवादी मूल्यों को अपनाने वाला ही आधुनिक है और जो कोई इन नज़रियात को नहीं मानता वोह पिछडा़ हुआ इंसान है, जो पुराने तरीक़ो पर चलता है और साथ ही उसमें और मध्य कालीन चर्च (Medieval Church) में कोई फर्क़ नही है।

✳ दर हक़ीक़त पूंजीवाद विश्व व्यापी तौर पर पश्चिमी नज़रिए के साथ खास एक आइडियोलोजी है, वोह यूरोप के इतिहास में घटित हुए वाक़िए को मुसलामनों के लिए इस्तिमाल करते हैं, इन नज़रियात से इस्लाम और मुसलमान क़ौम को परखते है और इसके अनुसार इनमे खामियां निकालते है।

✅ इस्लाम को पश्चिम के इतिहासिक सियासी पसमंज़र में रखना एक गलती है। उदारवादी लोकतंत्र पश्चिम की इतिहास में घटित हुई प्रक्रियाओं के बाद वजूद में आया है । हमें इस्लाम को लोकतांत्रिक नज़रिऐ से नहीं देखना चाहिए और न ही हम इस व्यवस्था को अपना सकते है।

➡ सवाल नं. (7) क्या इस्लाम, धर्म और राजनीति को लोकतंत्र की तरह अलग करता है? 

✅ बिल्कुल नहीं। सैक्यूलरिज़्म (धर्म निरपेक्षता) एक पश्चिमी नज़रिया है, जो धर्म और राजनीति को अलग करता है। इस्लामी शरीअत जो क़ुरआन और सुन्नत से मिलकर बनी है, किसी भी तरीक़े से धर्म को राजनीति से अलग नहीं करता बल्कि दोनों का मैल ही दीन कहलाता है।

➡ सवाल नं. (8) क्या खिलाफत में चुनाव होंगे? 

 











✅ खलीफा जनता की मर्जी़ से चुना जायेगा। इसके कई तरीक़े अपनाए जा सकते है जिसमें चुनाव भी एक तरीका है। खलीफा को चुनने के दो तरीक़े हो सकते है। एक में जनता सीधे तौर पर वोट दे सकती है और दूसरे में जनता पहले अपने नुमाइन्दों को चुनेगी फिर नुमाइंदें खलीफा को।

✅ इस्लाम में चुनाव खलीफा को चुनने की एक शैली है। इसके अलावा भी बहुत से तरीके है जो खुल्फाऐ राशीदीन के अमल से साबित है। 
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