➡ सवाल नं. (57) क्या आज की तरक्की (विकास) पूंजीवादी की देन है और क्या इस पर उसीकी मोनोपॉली (इजारादारी) है?✅ ज़्यादातर विचारक, वैज्ञानिक और फलसफी यह दावा करते है कि इस्लाम इस वक़्त दुनिया में कोई जगह नही रखता है और यह बात वोह इस बुनियाद पर कहते है कि किसी भी मुस्लिम देश ने साइंटिफिक शोध रिचर्स या तकनीक़ी अविष्कार के ताल्लुक़ से एक भी उपलब्धि हासिल नही है। क्योंकि इस्लाम मुसलमानों को कुछ नही दे सकता और मुसलमान इस्लाम की बुनियाद पर तरक्की नही कर सकता।
✅ इसलिए पश्चिम यह भी दावा करता है कि साइंस और टेक्नोलोजी उसी वक़्त पैदा हुई जब पश्चिमी लोगों ने चर्च के प्रभुत्व से छुटकारा पाया और धर्म को अपनी ज़िन्दगी से अलग कर दिया। उनका मानना है कि चर्च ने साइंस की तरक्की को रोका क्योंकि धर्म अंधविश्वास और पिछडे़पन को बढा़वा देता है, जिसे पश्चिम, सामाजिक ज़िन्दगी हटा कर ही उद्योगिक क्रांति और साइंसी अविष्कार में तरक्की ला पाया । आज जिस साइंस को हम जानते है उसके लिए उदारवादी (Liberals) यह ख्याल करते है कि यह उनकी ईजादकर्दा है और वही एक मात्र है जिन्होंने इसकी बुनियाद डाली और उसकी शाखाएं तैयार की।
इस तरह के दावे करके पश्चिम इतिहास में होने वाली हुई कई तरह की तरक्कीयों और विकास को अपनी तरफ मंसूब करता है, जो दर हक़ीक़त उसकी पैदा कर्दा नही है और इस तरह वोह दुनिया के इतिहास को अपना इतिहास मानता है। जिसका मतलब है कि उसने किसी सभ्यता और संस्कृति से कुछ नही लिया।
✔ साइंस, दर हक़ीक़त दुनिया में पाई जाने वाली चीज़ो का अध्ययन, रिर्सच (शोध) और एक्सपेरिमेंट का नाम है । ओटोमोबाईल (अपने आप चलने वाली मशीनें) का अविष्कार कंबशन इंजन के बग़ैर अधूरा था, जिसमें पहले तेल जलता है, उसके बाद इंजन, पिस्टन में हरकत पैदा करके ठोस हिस्सो को गति (Motion) देता है और इस तरह ओटोमोबाईल काम करने लगता है। इस सिद्धांत के ज़रिए ब्रिटीश साम्राज्य नें स्टीम (भाप) और कोयले को इस्तिमाल में लाकर पिस्टन चलाया, जिससे मशीन में रोटरी मोशन (Rotary Motion/ मशीन को चलाने के लिए आवश्यक) होने लगा।
✔ दर हक़ीक़त यह काम अल जज़ारी नाम के एक मुस्लमान मेकेनिकल इंजीनियर के क्रेन्क शाफ्ट नाम के अविष्कार पर आधारित है, जो उन्होंने बारहवी सदी में ईजाद की थी, जिसमें उन्होंने रोटरी मोशन (Rotary Motion) के लिए रॉड्स और सिलेंडर्स (Rods and Cylinder) का इस्तिमाल किया था। इस तरह वोह सबसे पहले शख्स थे जिन्होनें इस मशीन के अविष्कार मे योगदान दिया।
✔ मज़कूरा मिसाल और कई मिसालें यह ज़ाहिर करती है कि दुनिया की एक भी तहज़ीब (सभ्यता) को यह दावा करने का हक़ हासिल नही है कि विज्ञान से उसका जन्मजात (मौरूसी) संबध है, हक़ीक़त में बेहस इस बात पर होना चाहिए कि वोह कौनसी ऐसी तहज़ीब और सभ्यता है जिसने साइंस में सबसे ज़्यादा योगदान दिया है और वोह कौनसी चीज़ थी जिसने उसे योगदान के लिए ऊभारा।
✔ इतिहास में मुस्लिम फिलासफर, साइंसदानो और इंजीनियरो ने साइंस के मैदान में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है और साथ ही कई साइंस के सिद्धांत दिए है, बाद में जिसे पश्चिम ने बुनियाद बनाकर आगे बढा़या और इनमें बहुत से नए ईजादात किये। साइंस एक यूनिवर्सल (आलमगीर) विषय है, जो सभी इंसानों के लिए है। साइंस किसी एक संस्कृति से जुडी़ नही रहती इसलिए किसी भी सभ्यता को यह दावा करने का हक़ नही है कि किसी क़िस्म की वैज्ञानिक तरक्की सिर्फ उसी सभ्यता से जुडी़ हुई है या उसकी इजाद कर्दा है बल्कि ज़्यादातर सभ्यताओं ने अपने इतिहास में साइंस के मैदान में अपना योगदान दर्ज किया है, जिसे बाद की सभ्यता ने इस्तिमाल किया।
✔ इस्लाम के मश्रीके वुस्ता (Middle East) में दाखिल होने से पहले वहाँ की जनता ने साइंस के मैदान में किसी क़िस्म कोई का योगदान नही दिया था, मगर जब इन्हीं लोगो ने इस्लाम क़बूल किया तो इन्होनें ऐसे योगदान दिए जिसे इस्तिमाल करके बाद की नस्लों ने कई ऐसे ईजादात किए जो आज भी हमारे पास है। असल में इस्लाम, साइंस के मामलें में रूकावट नही है बल्कि यह तो एक साधन है कि मुसलमान साइंस के मैदान में ज़्यादा से ज़्यादा योगदान दे।
🌙🌙खिलाफ़ते राशिदा सानी (IInd) पर 100 सवाल🌙🌙
➡सवाल नं. (58): क्या मुस्लिम दुनिया को पूंजीवादी अर्थव्यवस्था नही अपनानी चाहिए?
✖हक़ीक़त में पश्चिम की तरफ से यह सिर्फ एक प्रोपागण्डा है। आलमी (वैश्विक) अर्थव्यवस्था के 60 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने पर पूंजीवाद इस दौर का सबसे हावी निज़ाम हो सकता था। हालांकि इसे प्रमाणित करने से पहले हमें इसकी और दूसरी उपलब्धियों को भी देखना होगा क्योंकि यह बात आम है की आज के दौर में पूंजीवाद की वजह से दुनिया ने सबसे ज़्यादा पैदावार की और ज़मीन से सबसे ज़्यादा दौलत निकली गई और आज जितनी दौलत और माल दुनिया में पैदा हुआ वोह पहले कभी पैदा नही हुआ था।
✳हालांकि यह बात सच है कि उदारवादी लोकतंत्र के साथ विश्व की अर्थव्यवस्था ने रिकार्ड तोड़ दौलत पैदा की है मगर इस सबके बाद भी
👉दुनिया की आधी आबादी के पास पर्याप्त खाने के लिए खाना नही होता क्योंकि वोह दो डॉलर प्रति दिन पर गुज़ारा करते है,
👉दुनिया के 95 प्रतिशत लोग 10 डॉलर प्रतिदिन पर गुज़ारा करते है और दुनिया में गरीबी का इतना बड़ा आंकडा़ सिर्फ पूंजीवादी निज़ाम के ज़ेरे तहत ही बडा़ है।
👉यह निज़ाम इतनी दौलत पैदा करने में क़ामयाब रहा है जितनी इतिहास में कभी पैदा नही हुई मगर फिर भी हम देखते है कि दुनिया कि बहुत बडी़ अक्सरियत चंद डॉलर पर अपनी ज़िन्दगी गुज़ारती है जिसमें अमरीका वोह देश है जहाँ दुनिया के सबसे ज़्यादा बिलियनर्स पाए जाते है। इन सबसे मालूम होता है कि किस तरह दुनिया की अर्थव्यवस्था असंतुलित है।
💀सन 2006 में यूनाइटेड नेशन की संस्था, World Instuitute for Development Economics Research के वैश्विक अर्थव्यवस्था के अधय्यन में कई चौंका देने वाली बातें सामने आई। पूरी दुनिया के देशों में रिर्सच करने के बाद इस संस्था ने बताया कि
👉दुनिया के 1 प्रतिशत लोग दुनिया की 40 प्रतिशत दौलत रखते है और इसी तरह
👉10 प्रतिशत लोगो के पास पूरी दुनिया की 85 प्रतिशत दौलत है।
📓 रिचर्ट रोबिन्स, जिसे अपनी क़िताब 'Global Problems and the Culture of Capitalism' के लिए अवार्ड प्राप्त हुआ, ने इस बात की तस्दीक़ अपने इस बयान में की जिसमें उसने कहा कि
📌 “पूंजीवाद का ज़हूर एक ऐसे कल्चर (संस्कृति) की नुमाइंदगी करता है जो कई मायनों में क़ामयाब है, जिसने कई तरह के लोगों को आराम और लग्जरी के मामलें में एक साथ जोडा़ है। लेकिन यह इस मामलें में क़ामयाब नही है कि सबको बराबर माल बांट दे और यही और इसकी यही नाक़ामयाबी इसकी सबसे बडी़ समस्या है ।“📌
✔पूंजीवादी व्यवस्था माल व दौलत को मुंसिफाना तौर पर बांटने के मामले में फेल हो चुकी है। इसकी अर्थव्यवस्था का विकास बूम एण्ड बस्ट जैसी है । (बूम मआने अचानक बहुत बढ़ौतरी हो जाना और बस्ट मआने फूट जाना)
✔फाइनेंशियल मार्किट अपने अल्प अवधि विचार (Short-Term Thinking) की वजह से अस्थिरता पैदा करती है।
🚫 पूंजीवादी अर्थव्यवस्था दुनिया में लालच, भ्रष्टाचार और शोषण की सबसे बडी़ वजह है और इसकी महज़ कागज़ पर आधारित करंसी (मुद्रा) ने चीज़ो की क़ीमतों में अस्थिरता पैदा की है। यह वोह मॉडल है जिसके लिए कहा जाता कि मुस्लिम देश इसे अपनाए।
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