सवाल नं. (55): क्या खिलाफत आज के दौर की जदीद आर्थिक समस्याओं से उनसे निपट सकती है?
आज की आलमी अर्थव्यवस्था के सामने ग़रीबी, धन कमाने की साधन, स्थायी विकास, आर्थिक वृद्धि और धन का बराबर बटवारा यह सभी बढी चुनौतीयाँ है। यह सभी मामलात दौलत के बंटवारे से जुड़े है। दर हक़ीक़त इंसान खुद को ज़िन्दा रखने के लिए, हमेशा वस्तुओं की मिल्कियत (ownership) हासिल करने की कोशिश करता है। इस्लाम वाज़ेह तौर पर यह फर्क़ बयान करता है कि कौन सी वस्तुओं की व्यक्ति की मिलकियत (private property) मे दिया जाना चाहिए और कौन सी वस्तुओ को सार्वजनिक मिल्कियत (public property) मे रखा जाना चाहिये. इस्लाम यह भी साफ तौर से बताता है की धन बनाने के कौन से साधन का इस्तेमाल किया जाना चाहिये और कौन से साधनो का इस्तेमाल नही किया जाना चाहिये.
वोह वस्तुऐ जिनके बारे मे नस मे सरीह हुक्म मौजूद नही पाया जाता उनके बारे मे शरई क़यास के ज़रिये निश्चित किया जाता है.इन वस्तुओं की मिल्कियत बढ़ भी सकती है और घट भी सकती है, इसलिए नए तरह के लेन-देन और कॉन्ट्रेक्ट होना ज़रूरी नही है जैसे के आज के दौर नए-नए लेन-देन और खरीद और फरोख्त के कई ऊसूल राईज है. सरमायादारी निज़ाम से मुतास्सिर कुछ लोग समझते है की आधुनिक खरीद और फरोख्त के नियम के बग़ैर दुनिया की अर्थव्यवस्था खत्म हो जायेगी, शेयर मार्केट के बिना दुनिया चल ही नही सकती वगैराह।
जबकि यह बहुत बडी़ गलती क्योंकि यह सभी उसूल पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से निकले है और इन उसूलों की हक़ीक़त में कोई ज़रूरत नही होती है। वोह चीज़ों जो सार्वजनिक संपत्ति (Public Property) से ताल्लुक़ रखती है, उसे एक फर्द (व्यक्ति) की मिल्कियत मे दे देने से सारी समस्याऐ पैदा होती है जैसे पानी, खनन, जंगल वग़ैराह के स्त्रोत को चन्द अफराद (व्यक्तियों) के मिल्कियत मे दे देना जिसे निजीकरण कहते है। इससे ज्ञात हुआ कि इस्लाम किसी एक समय के लिए नही बल्कि हर दौर के लिए है क्योंकि वोह अपने अंदर हर तरह के ज़दीद मसाईल का हल रखता है। इसीलिए इस्लाम हर दौर में लागू किया जा सकता है।
सवाल नं. (56): खिलाफत का मॉडर्न टेक्नोलोजी और साइंसटिफ (वैज्ञानिक) विकास के मामलें में क्या रवैय्या होगा ?
इस्लाम, टेक्नोलोजी (तकनीक), उद्योग (इण्डस्ट्री) और भौतिक उपकरणो (Material Tools) को एक आम चीज़ मानता है जो ज़िन्दगी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बनी है और साथ ही यह चीज़ें लोगों के अक़ीदे, जगह और वक़्त के हिसाब से तब्दील नही सकती है। इस्तिमाल में आने वाली किसी भी मशीन का ताल्लुक अक़ीदे से नही है, क्योंकि वोह सिर्फ काम करने का साधन है। इस्लाम आम तौर पर साधनों का इंकार नही करता। इस्लाम के मुताबिक़ सभी भौतिक उपकरणो, तकनीक (Technology), आविष्कारो (Inventions) को अपनाया जा सकता है क्योंकि यह किसी अजनबी विचार (Foreign Thought) के नतीजे में पैदा नही हुए है बल्कि इंसान कि माद्दी तरक्की के सबब वजूद में आए है ताकि वोह अपने कामों को बेहतर तरीक़े से कर सकें, अत: इस्लाम इन्हें इस्तिमाल करने की ईजाज़त देता है। इसलिए इस्लाम ना सिर्फ यह साइंस और टेक्नोलोजी को अपनाता है बल्कि इसे बढा़वा देता है।
इस्लाम सभी माद्दी मामलात (पदार्थिक चीज़ो /Material Matters) जैसे साइंस, टेक्नोलोजी और इण्डस्ट्री को, सिर्फ वास्तविकता का अध्ययन और इस चीज़ का अध्ययन मानता है कि किस तरह माद्दे (चीजों) को पढ़ कर और समझ कर अपने हालात को बेहतर बनाया जा सकता है और इंसानी ज़िन्दगी का मियार ऊपर ऊठाया जा सकता है। इस्लाम किसी भी क़िस्म अंधविश्वास को बढ़ावा नही देता।
आज के आधुनिक दौर में टेक्नोलोजी, इंसानी समाज कि क्षमता बढ़ाती है और जीवन शैली को संवारती है। और इसके साथ ही समाज की बुनियादी ज़रूरतों को बेहतर तरीक़े से पूरी करके कई नए क़िस्म की तरक्की वजूद में लाती है। खिलाफत ज़्यादा से ज़्यादा टेक्नोलोजी अपनायेगी और बढा़वा देगी ताकि उससे शहरीयों की ज़िन्दगी बेहतर बन सके।
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