रियासते ख़िलाफ़त
(उस्मानी खिलाफत) के दारुल ख़िलाफ़ा में क़ौम परस्ती के नारे और ख़ुदमुख्तारी के रुजहानात
फैलाने के अरब राष्ट्रवादी तरीक़े निहायत कारगर साबित हुए, और यूरोपी मुमालिक बिलख़ुसूस बर्तानिया और फ़्रांस रियासते इस्लामी
को ये हौलनाक और भयानक ज़र्ब लगाने में ज़बरदस्त कामयाब हुऐ। ताहम यूरोपी मुमालिक ने
और बिलख़ुसूस बर्तानिया ने इन वसाइल की ख़बासत और भयानक नताइज की शिद्दत के बावजूद सिर्फ़
उन्हीं वसाइल पर इक्तिफ़ा ना कर लिया था, बल्की सोलहवीं सदी के अवाख़िर से इस्लाम के ख़िलाफ़ उन्होंने एक और तरीक़ा भी इख्तियार
करना शुरू कर दिया था,
इस लिऐ के वो दुश्मनी जो उनके दिलों में जोश मार रही थी और वो
बुग्ज़ जो उनके सीनों को खाए जा रहा था वो इस्लाम, इस्लामी अफ्क़ार और इस्लामी हुकूमती निज़ाम के ख़िलाफ़ था। लिहाज़ा उन्होंने इस्लामी
अक़ाइद और इस्लामी शरीअत पर ज़र्ब लगाने के लिऐ इस तरह के साथ एक और भी तरीक़ा अपना लिया
था: इस्तंबोल और बेरूत इसके दो नुमायां मर्कज़ थे जिन को उन्हों बुनियाद बनाया था और
उन्होंने क़ाहिरा को भी मर्कज़ बनाने की कोशिश की।
बेरूत के मर्कज़
के लिऐ ऐसा मंसूबा वज़ा किया गया के वो नौजवानों के अफ्क़ार को मुतास्सिर करके उनकी ऐसी
तर्बीयत करे के वो इस्लाम के ही मुख़ालिफ़ बन जाएं और इसकी तासीर भी दाइमी हो। इस में
वो उलूम और साईंस की आड़ लेकर मसीही तब्लीग़ और सक़ाफ़ती हमले के ज़रीए आगे बढ़े और इसके
लिऐ उन्होंने बेशुमार रक़म मुख्तस् कीं। उन्होंने मिशनरी तंज़ीमें क़ायम कीं जिन में से
बड़ी बड़ी अंग्रेज़ी, फ़्रांसी और अमरीकी तंज़ीमें थीं। अपने इस सिक़ाफ़ती हमले में उन्होंने
मसीही तब्लीग़ और मुबल्लिग़ों के तर्ज़ पर की ताके रियासत के ईसाईयों की तवज्जो अपनी तरफ़
मब्ज़ूल कर सकें,
और मुसलमानों के दीन के बाबत इन में शकूको शुबहात पैदा कर के
उनके अक़ाइद पर ज़र्ब लगा सकें।
0 comments :
Post a Comment