मरकज़े इस्तंबोल का ख़िलाफ़त के ख़िलाफ़ किरदार

नोट: इस मौज़ू को तफ्सील से जानने के लिये दूसरा मज़मून : "खिलाफत के खिलाफ मरक़ज़े बैरूत का किरदार" पढें.

इस्तंबोल का मर्कज़ जिस को मग़रिबी कुफ्फ़ार ने दौलते इस्लामिया के दारूल ख़िलाफ़ा और हुकमरान तबक़े पर ज़र्ब लगाने के लिऐ बनाया था, उन्होंने कई काम कर दिखाए जिन में सब से अहम, नुमायां और भयानक कार्रवाई नौजवान तुर्कया (Young Turk) और इत्तिहाद बराए तरक्क़ी यानी (Union & Progress) जैसी तंज़ीमों का क़ियाम था। इस जमीअत का क़ियाम पैरिस में हुआ और इसमें उन तुर्क नौजवानों को शामिल किया गया था जो फ़्रांसी अफ्क़ार से मरऊब होचुके थे, और इनिकलाबे फ़्रांस का उन्हें ख़ूब पाठ पढ़ाया गया था। इसकी बुनियाद एक ख़ुफ़िया इनिकलाबी जमाअत के तौर पर रखी गई थी और इस इनिकलाबी जमाअत का रूहे रवाँ अहमद रज़ा बे था जो लोगों में क़दआवर शख्सियत शुमार किया जाता था और मग़रिबी सिक़ाफ़त को तुर्की में फ़रोग़ देता था। इस जमीअत की और भी शाखें बरलिन, स्लोनीका और इस्तंबोल में क़ायम की गईं थीं।

मर्कज़े पैरिस का तंज़ीमी ढांचा निहायत बारीक बीनी से मंसूबा बंद किया गया था और इसका प्रोग्राम भी सब से जुदागाना था, नीज़ इसके पास भरपूर वसाइल भी थे। इन का रिसाला ख़बरनामा के नाम से शाये होता था जो तुर्कों के एक गिरोह के तवस्सुत से इस्तंबोल में यूरोप की डाक में छुपा कर लाया जाता था और वो गिरोह इस रिसाला को ख़ुफ़िया तौर तक्सीम करता था। इस तंज़ीम के सियासी पर्चे भी शाये होते थे जो इसी नेहज पर तक्सीम किऐ जाते थे। इसकी बरलिन वाली शाख़ एैसे ऐतेदाल पसंदों का मजमूआ थी जिन में साबिक़ा वुज़रा, बड़े बड़े अफ्सरान और सियासी सूझ बूझ वाले अफ्राद शामिल थे। ये लोग इस्लामी रियासत के उमूर में इस्लाहात का मुतालिबा करते थे ताके मुल्क को जर्मनी की तजे निज़ाम के मुताबिक़ चलाया जाये। वो लोग रियासते उस्मानी की मुख्तलिफ़ क़ौमियतों को जर्मनी के विफ़ाक़ी मन्हज (Federal System) पर यकजा करने की वकालत करते थे।

स्लोनीका की शाख़ के अक्सर मैंबरान की तादाद तालीमे याफ्ता और बाअसर अफ्सरान पर मुश्तमिल थी जो फ़ौज में अपना रसूख़ रखते थे। वो इनिकलाब के लिऐ तैय्यारियाँ करते थे और उनके साथ बाअज़ शुयूख़ भी शामिल होने से उनकी ताक़त में मज़ीद इज़ाफ़ा हो गया। इस तरह के उनके साथ छोटी सतह के मुलाज़मीन भी शामिल हो गऐ जैसे तलअत वग़ैरा जो के बाद में वज़ीरे आज़म बना। स्लोनीका का ये मर्कज़ पैरिस के मर्कज़ के ताबे था और इसकी आरा की ख़िलाफ़वरजी नहीं करता था। पैरिस का मर्कज़ भी उन्हें नज़रियात और मग़रिबी अफ्क़ार देता और उन में जद्दोजेहद और अनथक कोशिश की रूह फूंकता रहता।

मासूनी सराए (Masonic Lodges of the Freemason) और बिलख़ुसूस इटली का स्लोनीका में बड़ा मर्कज़ इस तंज़ीम की सरर्गमियों को सराहता और नज़रियाती लिहाज़ से उन्हें तक्वियत देता था। इनकी मजालिस उसी सराए में हुआ करती थीं जहाँ जासूसों के लिऐ अनथक कोशिश के बावजूद पहुंचना मुहाल था। इन अंजुमनों के मैंबरान की एक कसीर तादाद (Union & Progre) में शामिल थी और इस तरह ये जमीअत अपनी तादाद और रसूखो नुफ़ूज़ में ख़ूब इज़ाफ़ा करने में कामयाब रही। नीज़ (Union & Progress) के मैंबरान इस्तंबोल के साथ ताल्लुक़ात इस्तिवार करने में फ्रीमेसन के तरीक़ाऐ कार से बहुत मुस्तफ़ीद होते और इस्तंबोल के मर्कज़ इक़्तिदार से भी उन्हें क़ुरबत हासिल होती गई।
इस तंज़ीम यानी (जमीअत अत्तुरकिया अल फ़ुतात) या (अल इत्तिाहाद व अल तरक्क़ी) ने ख़ुफ़िया जलसे करना शुरू कर दिए और लोगों को इनिकलाब के लिऐ तैय्यार किया। इसी तरह वो चलते रहे यहाँ तक के1908 में उन्होंने इन्क़िलाब बरपा कर दिया और हुकूमत पर क़ब्ज़ा कर लिया और उनकी कुव्वत उभर कर ज़ाहिर हो गई। यूरोप ने इन से अपनी रजामंदी भी ज़ाहिर कर दी। 1908 के मौसमे ख़िज़ाँ मैं पार्लीमैंट के इज्लास से ज़रा क़ब्ल स्लोनीका में इस जमाअत की तरफ़ से एक कॉन्फ़्रेंस मुनअक़िद हुई जिस को एक चैलेंज और कुव्वत के मुज़ाहिरे के ऐतेबार से देखा गया। उस वक़्त तंज़ीम की क़ियादत इसका बानी अहमद रज़ा बे था जो पैरिस का बाशिंदा था जिस ने जल्से के शुरका से ख़िताब किया और तंज़ीम की कामयाबी पर अपनी ख़ुशी का इज्हार किया, नीज़ ये भी कहा के यूरोपी मुमालिक इस वतन परस्त तेहरीक से बहुत ख़ुश और मुल्क के हालात से मुतमइन हैं।

इस वक़्त यानी 1908 के मौसमे ख़िज़ाँ ही में बर्तानिया ने इस्तंबोल में अपना एक नया सफ़ीर जेराल्ड लूथर मुक़र्रर किया और जब वो इस्तंबोल पहुंचा तो अल इत्तिाहाद अल तरक्क़ी (Union & Progre) के कारकुनान ने बड़ी गर्मजोशी से उस का ख़ैर मक्दम किया यहाँ तक के उन्होंने घोड़ों को उनकी बग्घियों से निकाल कर ख़ुद चलाने लगे तो ग़ुलूऐ  इकराम के तौर पर बग्घी में घोड़ों के क़ाइम मक़ाम बन गऐ और ये सब कुछ उनकी जमीअत के ईमाँ और कारकुनान की अपनी पहल पर हुआ। ये कारकुनान मग़रिबी अफ्क़ार से इस क़दर मुतअस्सिर और मरऊब थे के अपने ऊपर मुसल्लत मग़रिबी अफ्क़ार के इस्लामी मब्दा और फ़िक्र से वाज़ेह तज़ाद और इख्तिलाफ़ को समझ ही नहीं पाए। इन के इस नाआक़िबत अंदेश और बेधड़क रवैय्ये के सबब ही यूरोप उनकी ग़फ्लत और नादानी की तरफ़ मुतवज्जो हुआ और इस वक़्त  bLracksy में मुक़ीम एक यूरोपी सिफ़ारत कार ने उनके बाबत तबसरा करते हुआ कहा: ये लोग अक्सर पहला क़दम उठाने से क़ब्ल ही दूसरा क़दम उठा लेते हैं। अल-ग़र्ज़ अल इत्तिाहाद अल तरक्क़ी (Union & Progre) के कारकुनों ने निहायत जल्दबाज़ी में मुल्क का इक्तिदार एैसे लोगों के सपुर्द कर दिया जो मग़रिबी अफ्क़ार और मग़रिबी क़वानीन से बेइंतिहा मरऊब थे और बिलआख़िर उन्हें यंग टर्क तंज़ीम में बालादस्ती हासिल हो गई।
जब उन्होंने ये मेहसूस किया के फ़ौज की कमान पर बालादस्ती हासिल करना ही सियासी और मुकम्मल ताक़त का सरचश्मा होता है तो उन्होंने भरपूर कोशिश की के तमाम नई भर्तियाँ अपनी पार्टी की मंसूबा बंदी पर ही की जाऐं लिहाज़ा तमाम फ़ौजी अफ्सरान फ़ुनूने जंग में माहिर बनने के बजाये इस तंज़ीम में शामिल हो गए। उन्होंने क़ानून वजा किया के रियासते उस्मानिया की रिआया में से हर एक क़ानून का बराबरी से पाबंद, और अपने फ़राइज़ो हुकूक़ के लिहाज़ से से वो तुर्कों के मसावी होगा।
इस तंज़ीम ने पूरी रियासत पर इक्तिदार हासिल कर लिया और इसके हाल ओ मुस्तक़बिल पर उसकी बालादस्ती क़ायम हो गई और इस तरह मग्रिब का ये मंसूबा के रियासते  इस्लामी पर कारी ज़र्ब लगा कर ख़िलाफ़त को ख़त्म करदिया जाये, शर्मिंदाऐ ताबीर हुआ। मग्रिब की इस सोच को हक़ीक़त का रूप इस तरह हासिल हुआ के इस हाकिम जमाअत के मैंबरान और उनकी वकालतो हिमायत करने वाले इस्लाम को दौरे हाज़िर के लिऐ ग़ैर मौज़ूं समझते थे और उनकी दानिस्त में मग़रिबी अफ्क़ार और मग़रिबी तेहज़ीब ही मौजूदा दौर के लिऐ मुनासिबो मुवाफ़िक़ है। इनके ख्याल में बतौरे जमाअत उनकी ये ज़िम्मेदारी थी के वो तुर्की वतनियत की इस क़दर हिफ़ाज़त करें के इससे उनकी वफ़ादारी दीगर तमाम वफ़ादारियों से आला और ऊला हो, लिहाज़ा वो इसी वतन परस्ती के गुन गाया करते और तुर्कों को बाक़ीमांदा मुसलमानों से बरतरो बेहतर तसव्वुर करते थे।

इस तरह यंग टर्क और जमीअते  इत्तिाहादो तरक्क़ी (Union & Progre) की तंज़ीम का क़ियाम मग्रिब की वो भयानक कारकर्दगी थी जो उन्होंने रियासते  इस्लामी और इस्लाम पर ज़र्ब लगाने के लिऐ अंजाम दी। इसके नताइज भी बड़ी सुरअत से सामने आऐ और जैसे ही ज़मामे इक्तिदार उनके हाथ आया के इस्लामी रियासत के जिस्म पर ज़र्बा का नतीजा अयाँ होने लगा और रियासत के मुख्तलिफ़ अवाम के दरमियान ऐसी दरार डाली जो किसी तरह पाटी नहीं जा सकी। दरहक़ीक़त क़ौम परस्ती निहायत ही नुक्सानदेह फ़िक्र है जो अवाम के दरमियान बुग्ज़ और नफ्रतों को जनम देता है और जंगों का सबब बनता है। गो के नाम के तौर पर इस तंज़ीम की रुकनीयत हर एक के लिऐ खुली थी, ताहम इस तंज़ीम के ज़िम्मेदारों की वतन परस्त पालिसी के सबब उस्मानी ख़िलाफ़त में क़ौमियत की फ़िक्र ने नक़ब लगाई और इसी लिऐ आस्ताना मैं अल्बानिया के अवाम उठ खड़े हुए, इसके फ़ौरन बाद कुर्दों (Kurd) ने और शरकिसों (Circassian) ने भी ऐसा ही किया। इससे क़ब्ल रूमी और अरमिनियाई भी ख़ुफ़िया तंज़ीमें क़ायम कर चुके थे और उन्हें भी क़ानूनी जवाज़ हासिल हो गया था।

उधर अरबों ने आस्ताना मैं तनज़ीम अरब उस्मानी भाई चारा (Arab & Ottoman Brotherhood) क़ायम की और इसी नाम के तहत इस कमेटी की शाख़ खोल ली। लेकिन जमीअत ए इत्तिाहादो तरक्क़ी (Union & Progre) अरबों से ख़ासतौर पर तास्सुब रखते थे, उन्होंने जहाँ दूसरी तमाम क़ौमियतों को अपने क़ौमी गिरोह बनाने के लिऐ छूट दी थी लेकिन वो अरबी तंज़ीमों की मुख़ालिफ़त करते थे। लिहाज़ा उन्होंने इस अरब तंज़ीम को ख़त्म कर दिया और हुकूमती फ़रमान के तहत इसके दफ़ातिर को बंद कर दिया, साथ ही फ़ौज के तमाम अफ्सरान को तलब किया और उन्हें अफ्सरान के इस वफ्द में शामिल होने की इजाज़त नहीं दी जो जर्मनी जाने वाला था। नीज़ अरब अफ्सरान को जो जमीअत ए इत्तिाहादो तरक्क़ी (Union & Progress) के रुकन थे, उनकी तंज़ीम की मज्लिस मर्कज़ी में शुमूलियत पर पाबंदी लगा दी ,जब्के इस मज्लिसे मर्कज़ी की रुकनीयत तमाम शहरीयों के लिऐ थी ख्वाह वो तुर्क हो या अरब, या अल्बानिया के बाशिंदे हों या सरकाशिया के। बहरहाल जब ये जमीअत हुकूमत पर क़ाबिज़ हो गई और उसे रूसूख़ हासिल हो गया तो उन्होंने ये ज़ालिमाना रविश इख्तियार की और अरबों को हुकूमत के हस्सास मराकिज़ से बेदख़ल और महरूम कर दिया और अपनी जमीअत की मज्लिसे मर्कज़ी को तुर्कों के लिऐ मख्सूस कर लिया। इसके बाद उन्होंने हुकूमत के बाअज़ शोबों में मख्सूस इक्दाम किऐ मसलन वज़ारते औक़ाफ़ से अरब वज़ीर को बरतरफ़ करके एक तुर्की वज़ीर को शामिल कर लिया, वज़ारतेर दाख़िलो ख़ारिजा के लिऐ ऐसा ही किया और अरब इलाक़ों में जान बूझ कर ऐसे तुर्क वाली मुक़र्रर किऐ गऐ जो अरबी ज़बान नहीं जानते थे।

फिर इस सब पर तुर्रा ये के उन्होंने तुर्की ज़बान को हुकूमती ज़बान बना दिया, यहाँ तक के अरबी क़वाइद भी तुर्की ज़बान ही के तवस्सुत से पढ़ाऐ जाने लगे। अरबी ज़बान से उनकी नापसंदीगी और इनाद इस हद तक बढ़ गया के 1909 में वाशिंगटन में रियासते उस्मानिया के सफ़ीर ने अमरीका में मुक़ीम उस्मानी रियासत के शहरियों को हुक्म दिया के वो उस्मानी सिफ़ारत ख़ाने से किसी भी क़िस्म की ख़तो किताबत तुर्की के सिवा किसी और ज़बान में ना करें, बावजूदेके उसे इल्म था के अमरीका में पाँच लाख से ज्यादा उस्मानी रियासत के शहरी आबाद हैं और उनमें से कोई भी तुर्की ज़बान से वाक़िफ़ नहीं है।

अरब और तुर्कों के माबैन ये नसली तास्सुब मुसल्लह अफ्वाज में भी आम और अयाँ हो गया था। वो तुर्की अफ्सरान जो के जमीअत इत्तिाहादो तरक्क़ी (Union & Progress) से वाबस्ता थे, वो अपने बरताओ, फ़ौजी तरक्कियों और फ़ौज में ऊंचे ओहदे लेने के लिऐ इस तास्सुब से ख़ूब फ़ैज़याब होते थे, जब्की अरब अफ्सरान इस रवैय्ये पर अपनी नागवारी और नाराज़ी का इज्हार भी करते, ताहम उन्हें रियासते उस्मानिया के लिऐ वफ़ादारी के मुताल्लिक़ कोई अदना साशक भी ना था। और दरहक़ीक़त ये मुआमिला उनके लिऐ अरब और इस जमीअत का तास्सुब नहीं था बल्के अस्ल मुआमला एक इस्लामी उम्मत होने का था जो इस्तंबोल में ख़लीफ़ा के तहत थे जिस की इताअत अल्लाह سبحانه وتعالیٰ के हुक्म से वाजिब और इसकी नाफ़रमानी अल्लाह سبحانه وتعالیٰ के हुक्म से हराम होती थी। अल्लाह سبحانه وتعالیٰ के हुक्म के मुताबिक़ हर मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है जिस के साथ ना तो वो ज़ुल्म करता है ना ही उसे बे यारो मददगार छोड़ देता है। लिहाज़ा वो अरब अफ्सरान जो इस मुतअस्सिब रवैय्ये का शिकार हुए थे, उन्होंने 1909 के अवाख़िर में जमीअत ए इत्तिाहाद-ओ-तरक्क़ी के बाअसर मैंबरान के साथ एक नशिस्त की दरख्वास्त की जो क़ुबूल की गई और इस्तंबोल में एक तवील नशिस्त मुनअक़िद हुई जिस में ये मुआमिला ज़ेरे बेहस आया ताके इस मुआमिले को जड़ से ख़त्म किया जा सके। इस इज्तिमा में क़रीब था के ये मुआमिला संभल जाता और तास्सुब को तर्क करके सब इस्लामी अक़ीदे पर मुत्ताहिदो मुत्ताफ़िक़ हो जाते। लेकिन बाअज़ तुर्की अफ्सरान जिन की वतन परस्ती उनके यकजहती और इस्लामी वफ़ादारी से बढ़ कर थी, उन्हें ये गवारा नहीं था के वो अपने तुर्क वतन परस्ती के जज्बे को ख़ैर बाद कहें और इस्लामी अक़ीदे के ताबे करलें। इन अफ्सरान में क़ाबिले ज़िक्र नाम अहमद आग़ा बे, यूसुफ अक्शूरा वग़ैरा के आते हैं। चुनांचे उन्होंने इस मुआमिले में मुदाख़िलत की और तुर्कों के गुन गाते हुए अरबों के ख़िलाफ़ सख्त अलफ़ाज़ इस्तिमाल किऐ जिस पर ये नशिस्त ख़त्म हुई, अब हालात और ज्यादा संगीन हो चुके थे।


जमीअत अपनी इसी नस्ली तास्सुब पर क़ायम रही और तमाम उमूर में तुर्कों को बालादस्ती हासिल हो गई। अब उन्होंने अपने मंसूबे में तरमीम की और इस तंज़ीम को तुर्कों के लिऐ मख्सूस कर लिया। नतीजतन तमाम अरब, अलबानियाई और आरमिनयाई अफ्सरान मुसताफ़ी हो गऐ और उनके साथ उन तुर्क अफ्सरान ने भी इस्तीफ़ा दे दिया जिन के लिऐ बहरहाल इस्लामी अक़ीदा ना के तुर्क वतनियत ऊला थी। 
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