मुअज़्ज़िज़ भाईओ :
अल-क़ूदस की आज़ादी बातों
से नहीं बल्कि मुस्लिम अफ़्वाज की सीहोनी रियासत से जंग के ज़रीये ही मुम्किन है
आज दो दिन की लाहासिल (अप्रर्याप्त)
और बे मक़सद बहसों के बाद 28 मार्च 2010 ई. को अरब हुक्मरानों ने अपनी बाईसवीं
सिमट कान्फ़्रैंस का इख्तताम (End) सुरते लीबिया में किया। जिससे पहले 25 और 26 मार्च को उनके वज़राइ ख़ारिजा (विदेश
मंत्रयों) ने भी उसकी तैय्यारी के लिए मुलाक़ातें की थीं और इस कान्फ़्रैंस के लिए एजंडा
तैय्यार किया था। इस सिमट कान्फ़्रैंस में जो क़रारदादें पास हुईं वो माज़ी की तरह पुरानी
और नई इसतारों से भरी पड़ी थीं जैसाकि अमन process,
अरब। इसराईली तसादुम (Arab
Israeli conflict), अरब का पहल करने का इक़दाम (the Arab initiative), हरमे
इब्राहीम और मस्जिदे बिलाल को खोलने से इसराईल का इनकार इसके साथ-साथ नई आबादकारियों
से बाज़ आने से यहूदीयों का इनकार और इसके मुज़ाकरात (वार्ता) पर वास्ता या बिलवासता
(direct or indirect) असरात.... इराक़ और इमारात में सूरते हाल, सूडान, सोमालिया और कमोरस के जज़ाइर (द्वीपों)
में अमन और तरक़्क़ी की हिमायत, और ख़ित्ते को ऐटमी हथियारों से पाक करना वग़ैरा वग़ैरा .... और इसके बाद मज़ीद एक
और सिमट कान्फ़्रैंस के लिए एक इज़ाफ़ी क़रारदाद भी मंज़ूर की गई जिसमें ये हुक्मरान सिर्फ़
मेलजोल और एक दूसरे को शाबाशियां देंगे। ये सब बेवुक़त और बे मक़सद क़रारदादें हैं जो
असल मसला को हल नहीं करतीं बल्कि उसे और उलझा देती हैं और ये सिर्फ़ फुज़ूलीयात हैं
जिनका कोई मतलब नहीं। यहां तक कि सिमट के इख्तताम पर आलामीया भी जल्दी-जल्दी पढ़ दिया
गया जैसे शायद ये हुक्मरान इससे शर्मिंदा थे।
बहरहाल वज़ीरे ख़ारिजा की
शुरूआती मुलाक़ातों से सिमट कान्फ़्रैंस के आलामीया तक दो नुकात तवज्जो तलब हैं।
पहला ये कि बर्तानवी एजैंट
पूरी मेहनत के साथ अरब लीग की क़रारदादों को मुतास्सिर और कंट्रोल करनी की कोशिशों में
मसरूफ़ थे। यमन ने अरब लीग की जगह अरब यूनीयन बनाने की तजवीज़ पेश की और जिस तरह लेबनानी
सदर और इसके वफ़द ने फ़ौरन इसका ख़ैर मुक़द्दम किया इससे वाज़ेह था कि इनका इस पर पहले से
गठजोड़ था। और फिर क़ज़ाफ़ी ने कहा कि इस पर इत्तिफ़ाक़े राय है, दूसरी तरफ़ क़ज़ाफ़ी ने सिमट का सदर
होने की हैसियत से अरब लीग के सैक्रेटरी जनरल के एहतिसाब और ख़ास सिमट कान्फ़्रैंसें
तलब करने के इख़्तयारात का भी मुतालिबा किया। इस सबसे वाज़ेह होता है कि बर्तानिया अपने
एजैंटों के ज़रीये अरब लीग का मुतबादिल (विकल्प) ढ़ूढ़ने की कोशिश कर रहा है यानी अरब
लीग की जगह वो कुछ और क़ायम कर सके, और वो इसलिए कि अरब लीग जिसे 22 मार्च
1945 ई. को बर्तानिया ने क़ायम किया था पिछले कुछ सालों
में अमरीका की दस्ते रास्त बन चुकी है जो कि अरब लीग की क़रारदादों से वाज़ेह है....
अरब लीग का मर्कज़ क़ाहिरा में है और मसरुका सदर अमरीकी एजैंट है, वो सुपरवाइज़र की हैसियत से अरब
लीग और सैक्रेटरी जनरल दोनों की रखवाली करता है। अगरचे बर्तानिया और इसके एजैंट कोशिशें
कर रहे हैं लेकिन इसके बावजूद उनकी कामयाबी के लक्षण कम हैं, बल्कि ज़्यादा इमकान (लक्षण) तो
इस बात का है कि ये कोशिशें सिर्फ़ पानी की गहराई का अंदाज़ा लगाने के लिए हैं कि देखें
क्या नतीजा निकलता है ताकि इसके मुताबिक़ आइन्दा इक़दामात उठाए जा सकें।
दूसरा मौज़ू अल-क़ूदस का
है, क़रारदादों
ने कम अज़ कम इस मौज़ू पर बात ज़रूर की है जिसकी बिना पर पूरी कान्फ़्रैंस इस शीरीं ज़बानी
(मीठे बोल) से लुत्फ अंदोज़ हुई..... कान्फ़्रैंस में फ़ातिहाना (विजयी) अंदाज़ में दावा
किया गया कि उन्होंने अल-क़ूदस को आज़ाद करवाने की योजना को रूप दे दिया है जिसकी बुनियाद
तीन सतूनों (स्तम्भों) पर होगी, सियासी, क़ानूनी
और मालीयाती..... तो उन्होंने अक़्वामे मुत्तहदा (संयुक्त राष्ट्र संघ) से मुतालिबा
(Dimand) किया कि वो अपनी ज़िम्मेदारीयां निभाए और अरब, इसराईली झगडा़
ख़त्म करवाने के लिए मुनासिब क़दम उठाए। फिर उन्होंने फ़ैसला किया कि वो बैत-उल-मुक़द्दस
में इसराईल की तरफ़ से किए जाने वाले मज़ालिम के ख़िलाफ़ आलमी अदालत (International
Court) में जाऐंगे। उन्होंने ये फ़ैसला भी किया कि वो अल-क़ूदस को 50 करोड़ डॉलर की रक़म भी देंगे ताकि वो इसराईल
के नए आबादकारी के मंसूबों का मुक़ाबला कर सकें। और उन्होंने अरब लीग की सरबराही में
अल-क़ूदस के लिए एक बाइख्तियार कमिशनर को तैनात करने का फ़ैसला भी किया। और सबसे अहम
इन सब हुक्मरानों ने अल-क़ूदस के साथ अपनी मुहब्बत जताने और अल-अक़सा की क़दरदानी के
लिए एक दूसरे पर सबक़त (पहल) ले जाने की सरतोड़ कोशिशें कीं। कान्फ़्रैंस से पहले होने
वाली वुज़रा की मुलाक़ात में, मिस्र के वज़ीरे ख़ारजा ने अपने हम असुरों से सबक़त ले जाने की कोशिश की और कहा
कि मिस्र ने कान्फ़्रैंस का नाम अल-क़ूदस कान्फ़्रैंस रखने की तजवीज़ दी थी तो अरब लीग
के लिए शाम के मुस्तक़िल नुमाइंदे ने एहतिजाज किया कि नहीं बल्कि ये इसके मुल्क ने
दूसरे अरब मुमालिक के वुज़राए ख़ारजा से ऐसा करने का मुतालिबा किया था कि वो इस कान्फ़्रैंस
का नाम अल-क़ूदस कान्फ़्रैंस रख दें.... पस अरबों का स्कोर बराबर रहा, चाहे वो मियाना रौ है या नहीं।
बिलाशुबा अमरीकीयों ने उर्दगान के लिए इस ख़ित्ते में बेबाकी और जोशीली तक़ारीर करने
का किरदार चुन रखा है, जिसकी बदौलत इसने अल-क़ूदस और इसके तक़द्दुस (पवित्रता) के बारे में वो बातें की
हैं जो अरब भी नहीं कर सके। और अगर अशकीनाज़ी,
जो यहूदी फ़ौज का सरबराह है, अभी कल ही उर्दगान की पेशकश पर तरक़्क़ी में एक मिल्ट्री कान्फ़्रैंस
में शामिल ना हुआ होता तो लोगों ने उसकी धुआँदार तक़रीर को यहूदी रियासत के ख़िलाफ़ ऐलानिया
जंग समझ लेना था।
ऐ लोगो! इन हुक्मरानों
के दिमाग़ हैं लेकिन ये सोचते नहीं, उनके कान हैं लेकिन ये सुनते नहीं, उनकी आँखें हैं लेकिन ये देखते नहीं; ये अंधे हैं, आँखों
से नहीं बल्कि ये दिलों से अंधे हैं जो उनके सीनों में हैं! क्या अल-क़ूदस को एक ऐसा
कमिश्नर आज़ाद करवा सकता है जिसके पास ख़ुद कोई इख्तियार नहीं? क्या अक़्वामे मुत्तहदा को उसे
आज़ाद करवाने का कहने से ये आज़ाद हो सकता है जिसने ख़ुद उस यहूदी रियासत को फिलस्तीन
मैन क़ायम किया? और क्या
उसे आलमी अदालत के ज़रीये आज़ाद करवाया जा सकता है जो ना तो भलाई को हुक्म देती है और
ना ही मुनकिर को रोकती है? क्या
अल-क़ूदस की शान में ये गर्मा गर्म तक़ारीर उसे आज़ाद करवा सकती हैं जबकि इनका मुक़र्रर
अपने मुल्क में यहूदी सिफ़ारत ख़ाने का इफ़्तिताह कर रहा हो और अल-क़ूदस के क़ातिलों
की मेज़बानी कर रहा हो?
ऐ लोगों! तुम्हारे दरमियान
वो लोग मौजूद हैं जो कहते हैं कि अगर ये हुक्मरान मक़बूज़ा (अधिग्रहित) फिलस्तीन से
नाता तोड़ भी लें तो भी वो अल-अक़सा और अल-क़ूदस को नहीं छोड़ेंगे, अपने तक़्वे की वजह से ना भी हो
तो कम अज़ कम शर्म की वजह से ही...... लेकिन ये अल-क़ूदस है जो ना सिर्फ़ हर तरफ़ से डसा
जा रहा है बल्कि इसके दिल पर भी वार हो रहा है,
इसके गुंबद पर, उसकी मस्जिद पर, यहूदी
इसमें हर तरफ़ से दाख़िल हो चुके हैं, उन्होंने इसके नीचे से ज़मीन खोद डाली है और इसके तक़द्दुस को पामाल कर दिया है।
उन्होंने इसके आगे और पीछे आबादियां बना ली हैं। इससे बढ़कर ये कि उन्होंने कान्फ़्रैंस
के इफ़्तिताह की रात ग़ाज़ा के ऊपर जारहाना हमला किया और ऐलान किया कि उनकी नई आबादकारी
की पॉलिसी किसी तब्दीली के बगै़र जारी रहेगी,
और ये हुक्मरान अपनी मुलाक़ातों, मारकबादों, खानों और क़हक़हों के दौरान चुप
साधे ये सब देखते और सुनते रहे।
ऐ मुसलमानों! बेशक अल-क़ूदस
को सिर्फ़ एक ऐसा हुक्मरान ही आज़ाद करवा सकता है जो अपने ख़ालिक़ अल्लाह (سبحانه وتعالى) के साथ मुख़लिस हो और अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) के साथ सच्चा हो, जो मुस्लिम फौज़ों की कमान सँभालेगा
और तमाम योग्य लोगों को इसमें जमा करेगा....... उसे एक मज़बूत और मुत्तक़ी हुक्मरान
ही आज़ाद करवा सकता है जिसमें उमर बिन खत्ताब (رضي الله عنه) जैसी खूबियां हूँ जिसने अल-क़ूदस को हिज्रत के पंद्रहवीं साल में आज़ाद
करवाया था, वो एक
ऐसा हुक्मरान होगा जो उमर बिन खत्ताब (رضي الله عنه) के क़ौल को पूरा करे जिसने कहा था कि अल-क़ूदस में कोई यहूदी आबाद
नहीं हो सकेगा। ऐसे हुक्मरान में सलाहउद्दीन की खूबियां होगी जिसने अल-क़ूदस को 583 हि. में सलीबियों की गन्दगी से पाक किया था
और वो क़ाज़ी मुहीउद्दीन जैसा होगा जिसने अल-क़ूदस की आज़ादी के बाद पहले जुमा के ख़ुत्बे
में इस आयत की तिलावत की थी :
فَقُطِعَ
دَابِرُ الْقَوْمِ الَّذِيْنَ ظَلَمُوْا
ۭوَالْحَـمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ 45
''फिर
उन ज़ालिमों की जड़ काट दी गई और अल्लाह ही के लिए सब तारीफ़ है जो तमाम जहानों का पालने
वाला है।'' (तर्जुमा मआनिए क़ुरआन सूरह अलअनाम 6:45)
ऐसा हुक्मरान सुल्तान
अब्दुल हमीद दोयम की ख़ुसूसीयात का हामिल होगा जिसने अल-क़ूदस की हिफ़ाज़त की और हर्टज़ल
और इसके हवारियों को 1901 में फिलस्तीन
की ज़मीन देने से इनकार कर दिया, हालाँकि वो इसके लिए हुकूमत के खज़ाने को एक बडी़ रक़म भी देने को तैय्यार थे।
इसने कहा था, ''फिलस्तीन
मेरी मिल्कियत नहीं, बल्कि
ये उसकी मिल्कियत उन लोगों के पास है जिन्होंने इसके लिए अपना ख़ून दिया है। यहूदी अपने
अरबों रुपये अपने पास रखें, मुझे अपने जिस्म से एक ख़ंजर को आर पार करना ज़्यादा आसान है बजाय इसके कि मैं फिलस्तीन
को अपनी रियासत से अलग होता देखूं। ऐसा कभी नहीं होगा।''
इन यहूदियों के शिकंजे
से अल-क़ूदस मुस्लिम अफ़्वाज ही आज़ाद करवाऐंगी जब वो उन पर वहां से हमला करेंगी जहां
से ये कभी सोच भी नहीं सकते और उन पर एक ऐसा हमला करेंगी कि ये शैतान की सब सरगोशियां
भूल जाऐंगे और मुस्लिम अफ़्वाज के लश्कर दोनों में से एक रहमत की तरफ़ दौड़ेंगे: फ़तह
या शहादत, जैसा
कि अल्लाह (سبحانه وتعالى) ने फ़रमाया कि :
فَاِمَّا
تَثْقَفَنَّهُمْ فِي الْحَرْبِ فَشَرِّدْ بِهِمْ مَّنْ خَلْفَهُمْ لَعَلَّهُمْ
يَذَّكَّرُوْنَ 75
''और
अगर तुम उन पर जंग में ग़लबा पा लो तो उन्हें ऐसी सख़्त सज़ा दो कि उनके पिछले देखकर
भाग जाएं, ताकि उन्हें इबरत हो।'' (तर्जुमा मआनिए क़ुरआन, सूरह
अलअनफ़ाल 8:57)
وَاقْتُلُوْھُمْ
حَيْثُ ثَقِفْتُمُوْھُمْ وَاَخْرِجُوْھُمْ مِّنْ حَيْثُ اَخْرَجُوْكُمْ
وَالْفِتْنَةُ اَشَدُّ مِنَ الْقَتْلِ ۚ وَلَا تُقٰتِلُوْھُمْ عِنْدَ الْمَسْجِدِ
الْحَرَامِ حَتّٰى يُقٰتِلُوْكُمْ فِيْهِ ۚ فَاِنْ قٰتَلُوْكُمْ فَاقْتُلُوْھُمْ
ۭكَذٰلِكَ جَزَاۗءُ الْكٰفِرِيْنَ ١٩١
''और
उन्हें निकाल दो जहां से उन्होंने तुम्हें निकाला है....'' (तर्जुमा मआनिए क़ुरआन, सूरह अलबक़रा 2:191)
ऐ मुसलमानों! ये ऐसे होगा।
ऐ मुस्लिम अफ़्वाज के जवानो!
इससे एतराज़ करने वालों के पास कोई चारा नहीं, और इस
उज़्र (मज़बूरी) की कोई गुंजाइश नहीं, तो ऐसा ना कहो कि ये हुक्मरान तुम्हें रोक रहे हैं, बल्कि ताक़त तो तुम्हारे हाथों
में है, दरअसल
ये तुम हो जो उन्हें तहफ़्फ़ुज़ देते हो उनकी गर्दनों के फंदे तो तुम्हारे हाथों में
हैं। अगर तुम उनकी इताअत करोगे तो तुम गुनाहगार और हद से गुज़रने वाले हो जाओगे और
रसूलल्लाह (صلى الله
عليه وسلم) के हौजे
कौसर पर नहीं जा पाओगे। और अगर तुमने उनके जुर्म में उनकी मुआवनत ना की और उनके झूठ
का एतबार ना किया तो रसूलल्लाह (صلى الله عليه وسلم) तुममें होंगे और तुम हौजे कौसर तक पहुंच जाओगे, और अच्छाई का सिला तो सिर्फ़ अच्छाई
है। तिरमिज़ी में काब इब्ने अजरा से रिवायत है कि रसूलल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया :
اعذک
باللہ یا کعب بن عجرہ من امراء یکونون من بعدی فمن غشی ابوابھم فصدقھم فی کذ بھم و
أعاءھم علی ظلمھم فلیس منی ولست منہ ولا یرد علی الحوض ومن غشی ابوابھم فلم یصدقھم
فی کذبھم ولم یعنھم علی ظلمھم فھو منی و انا منہ و سیرد علی الحوض
''मैं
तुम्हारे लिए बेवक़ूफ़ की हुक्मरानी की अल्लाह से पनाह मांगता हूँ। पूछा कि वो कौन
होंगे तो रसूलल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया, मेरे
बाद ऐसे हुक्मरान आयेंगे जिनके झूठ पर यक़ीन किया जाएगा और उनके फ़रमांबर्दार उनके
जब्र (ज़ुल्म) में उनकी मदद करेंगे। वो मुझसे नहीं और मैं इनमें से नहीं और वो कभी
हौजे कौसर पर मेरे पास ना आ सकेंगे। लेकिन जिन्होंने उनकी फ़रमांबर्दारी ना की, और उनके झूठ पर यक़ीन ना
किया और ना ही उनके जब्र में उनकी मदद की वो मुझ से हैं और मैं उन से हूँ और वो हौजे
कौसर पर मुझसे मुलाक़ात करेंगे।''
ऐ मुस्लिम अफ़्वाज के जवानो!
ख़िलाफ़त के क़याम में हिज़्ब अलतहरीर तुम्हारी मदद कर रही है तो तुम भी उसकी मदद करो और
यहूदियों से जिहाद के लिए वो तुम्हें पुकार रही है तो उसकी पुकार पर उठ खड़े हो, यहूद से लड़ना तो मुक़र्रर है, अल्लाह (سبحانه وتعالى) क़ुरआन में फ़रमाते हैं :
فاذا جاء
وعد الاخرۃ لیسو عوا وجوحکم ولید خلو ا المسجد کما دخلوہ اول مرۃ ولیثبروا ما علو
تثبیرا عسی ربکم ان یر حمکم و ان عدتم عد تا وجعلنا جھنم للکافرین حصیرا
मुस्लिम में इब्ने अमर
(رضي الله عنه) से रिवायत है कि रसूलल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया :
لتُقا
تِلُنَّ الٗیَھُودَ فَلَتَقٗتُلُنَّھُمٗ حَتَّی یَقُولَ الٗحَجَرُ یَا مُسٗلِمُ
ھَذا یَھُودِیَّ فتَعَالَ فَاقٗتُلٗہُ
''और
तुम ज़रूर यहूद से जिहाद करोगे हत्ता कि पत्थर कहेगा : ऐ मुसलमान, यहां एक यहूदी है आओ और
उसे क़त्ल कर दो।''
क्या तुममें कोई अक़्लमंद
आदमी है जो अपने जवानों के साथ उठे और अपने रास्ते में रुकावट बनने वाले सब हुक्मरानों
को रूंधता हुआ इस्लाम के हुक्म को नाफ़िज़ करे,
यानी रसूलल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के तरीक़े पर ख़िलाफ़त, और यूं अल-अक़सा को आज़ाद करवाए और फिर उसे यहूदियों के नापाक
हाथों से आज़ाद करवाने के बाद अपने पहले ख़ुत्बे में वो कहे जो क़ाज़ी मुहीउद्दीन ने कहा
था :
فَقُطِعَ
دَابِرُ الْقَوْمِ الَّذِيْنَ ظَلَمُوْا
ۭوَالْحَـمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ 45
''फिर
उन ज़ालिमों की जड़ काट दी गई और अल्लाह ही के लिए सब तारीफ़ है जो तमाम जहानों का पालने
वाला है।'' (तर्जुमा मआनिए क़ुरआन सूरह अलअनआम 6:45)
अल्लाह (سبحانه وتعالى) इसका ज़िक्र अपने साथ वालों से करेंगे, और जन्नतों में इसके साथ अल्लाह
के मलाइका होंगे और दुनिया में इसके साथ मोमिनीन होंगे, इससे इस दुनिया में भी मुहब्बत
की जाएगी और आख़िरत में भी, और बेशक यही असल कामयाबी है।
يٰٓاَيُّھَا
الَّذِيْنَ اٰمَنُوا اسْتَجِيْبُوْا لِلّٰهِ وَلِلرَّسُوْلِ اِذَا دَعَاكُمْ لِمَا
يُحْيِيْكُمْ ۚ وَاعْلَمُوْٓا اَنَّ اللّٰهَ يَحُوْلُ بَيْنَ الْمَرْءِ وَقَلْبِهٖ
وَاَنَّهٗٓ اِلَيْهِ تُحْشَرُوْنَ 24
''ऐ ईमान
वालो! अल्लाह और उसके रसूल (صلى الله عليه وسلم) की आवाज़ पर लब्बैक कहो जिस वक़्त वो तुम्हें इस काम की तरफ़
बुलाऐं जिसमें तुम्हारे लिए ज़िंदगी है और जान लो कि अल्लाह आदमी और इसके दल के दरमियान
आड़ बिन जाता है और बेशक उसी की तरफ़ तुम सब जमा किए जाओगे।'' (तर्जुमा मआनिए क़ुरआन, समरह अलअनफ़ाल 8:24)
12 रबी एलिसानी, 1431 हि.
28 मार्च, 2010 ई.
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