शरई़ अहकाम की ततबीक़ के ताल्लुक़ से नरमी और रुख़्सत की अहादीस

शरई़ अहकाम की ततबीक़ के ताल्लुक़ से नरमी और रुख़्सत की अहादीस

अबू हुरैराह (رضي الله عنه) की गुज़िश्ता हदीस जो मुसनद अहमद में आई है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  लोगों से कहते थेः इसको मारो फिर कहते थेः कहो! अल्लाह तुम पर रहम करे।

हुदैबिया में आप (صلى الله عليه وسلم) ने लोगों के मश्वरे की मुख़ालिफ़त की क्योंकि ये एक शरई हुक्म था (सुलह हुदैबिया की हदीस मारूफ़-ओ-मशहूर है) इस मौके़ पर आपने लोगों की राय को मुस्तरद कर दिया वर्ना लोग परेशानी और दुशवारी में पड़ जाते, यानी अगर उनकी राय मान कर उनके साथ रहम और नरमी की जाती, तो मुसलमान एैसी मुसीबत में पड़ जाते जैसी के आप के हुक्म ना मानने वाले।

हज़रत आईशा (رضي الله عنه)ا से रिवायत मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस है उन्होंने कहाः क़ुरैश उस मख़्ज़ूमी औरत के मुआमले से जिस ने चोरी की थी बहुत परेशान हुए, चुनांचे उन्होंने कहाः इस मुआमले में कौन रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) से बात करेगा? तो लोगों ने कहा सिर्फ़ हज़रत उसामा (رضي الله عنه) ही कुछ कर सकते हैं क्योंकि वो रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के चहीते और प्यारे हैं। चुनांचे उसामा (رضي الله عنه) ने रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) से बात की। तो अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया के क्या तुम अल्लाह سبحانه وتعالیٰ की हुदूद के मुआमले में सिफ़ारिश करोगे? फिर खड़े हुए और ख़िताब फ़रमायाः

(( أیھا الناس إنما ھلک الذین قبلکم أنھم کانوا إذا سرق فیھم الشریف ترکوہ وإذا سرق فیھم الضعیف أقاموا علیہ الحد وأیم اللہ لو أن فاطمۃ بنت محمد سرقت لقطعت یدھا))

ऐ लोगो! तुम से पहली की उम्मतें इसलिए हलाक कर दी गईं के जब उनका कोई बड़ा या मोतबर शख़्स चोरी करता तो लोग उस से दरगुज़र कर जाते मगर जब कोई छोटा और कमज़ोर शख़्स चोरी करता तो उस पर हद नाफ़िज़ करते। अल्लाह की क़सम! अगर फ़ातिमा बिंते मुहम्मद ने भी चोरी की तो उसके हाथ काटे जाऐेंगे।
और इस सिलसिले में आप ने क़ुरैश के साथ नरमी और रुख़्सत इख़्तियार ना की और ना ही मख़्ज़ूमी पर रहम किया बल्कि उसामा (رضي الله عنه) की सिफ़ारिश भी रद्द कर दी

और अगर रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) हुक्मे शरई में किसी पर रहम करते भी तो वो हज़रत हसन (رضي الله عنه) होते जब उन्होंने सद्क़े की खजूरों में से एक खजूर ले ली थी। चुनांचे हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) की मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस है वो कहते हैं केः हसन बिन अ़ली (رضي الله عنه) ने सद्क़े की खजूरों में से एक खजूर अपने मुंह में डाली, तो आप ने फ़ौरन फ़रमायाः

((کخ کخ، إرم بھا، أما علمت انا لا نأکل الصدقۃ؟!))

इसे निकालो! निकालो (और इस तरह फ़रमाया ताकि) वो उसे (मुंह से निकाल कर) फेंक दें फिर आप ने उनसे फ़रमाया के क्या तुम जानते नहीं के हम सद्क़े का माल नहीं खाते। (बुख़ारी ओ मुस्लिम)

जहाँ तक दफ़ा ज़रर  (नुक़्सान को दूर) में रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) की सख़्ती और मजबूती की बात है तो ये चीज़ हज़रत मआज़ (رضي الله عنه) की हदीस से वाज़ेह हो जाती है जिस को मुस्लिम ने ग़ज़वाऐ तबूक के तहत ज़िक्र किया है वो कहते हैं के फिर आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((إنکم ستأتون غدًا إن شاء اللہ عین تبوک، وإنکم لن تأتوھا حتی یضحی النھار، فمن جاء ھا منکم فلا یمس من ماءھا شیءًا حتی آتي))

कल इंशा अल्लाह तबूक के चश्मे तक पहुंचोगे, मगर तुम हरगिज चश्मे पर मत जाना और अगर कोई जाये भी तो इसके पानी को हरगिज ना छूए जब तक के मैं ना पहुंच जाऊं। चुनांचे हम तबूक पहुंचे तो दो आदमी वहाँ पहले ही पहुंच चुके थे। वो चश्मा जूते के तस्मेह के मानिंद हो गया उसके अंदर बस कुछ ही पानी नज़र आ रहा था। तो रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने पूछा क्या तुम ने पानी पिया था? (पानी को छुआ था) उन्होंने कहाः हाँ! आप (صلى الله عليه وسلم) ने इनको काफ़ी सख़्त सुस्त कहा और जो अल्लाह की मर्ज़ी थी उनको कहा।

क़िस्सा बनी मुस्तलक़ मुनाफ़िक़ीन के साथ किए गए सुलूक के मुताल्लिक़ मुहम्मद बिन यहया बिन हिब्बान की हदीस जिसकी रिवायत इब्ने इस्हाक़ ने की हैः

(۔۔۔فسار رسول اللہابالناس حتی أمسوا،و لیلۃ حتی أصبحوا و صدر یومہ حتی اشتد الضحی،ثم نزل بالناس لیشغلھم عما کان من الحدیث۔۔۔)

इब्ने अबी हातिम की रिवायत करदा सईद बिन जुबैर की हदीस जिसकी तसहीह इब्ने कसीर ने की है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने सफ़र शुरू किया और वो दिन के आख़री पेहर तक चलते रहे, फिर रात भर सफ़र जारी रखा और अगले दिन भी यही मुआमला रहा यहाँ तक के सूरज की तपिश ने उन्हें थका दिया फिर आप (صلى الله عليه وسلم) रुके ताकि इस मौज़ू से उनका ध्यान बंट जाये।

सहाबा किराम رضی اللہ عنھم पर अज़्म और कड़े रवैय्ये की मिसाल तो मुर्तदीन के ख़िलाफ़ क़िताल में हज़रत अबूबक्र (رضي الله عنه) के सिबात और तर्ज़े अ़मल और तमाम मुसलमानों की मुख़ालिफ़त के बावजूद हज़रत उसामा (رضي الله عنه) को भेजने से साफ़ ज़ाहिर होता है। चुनांचे बाद में लोग आप की राय के क़ाइल हुए और इसको नाफ़िज़ किया साथ ही उसकी तारीफ़़ भी की।

अगर बात अहकाम की ततबीक़ जिस में दफ़ा ज़रर (नुक़्सान से दूर रखना) शामिल है, के अ़लावा की जाये, तो ये कह सकते हैं के वो लोग जिन पर रहम किया जाना है वो हैं जो किसी मुसीबत में गिरफ़्तार हों जैसे मौत या बीमारी या वो जिस का कोई अ़ज़ीज़ बिछड़ा हो इसके अ़लावा नादान और ना समझ पर रहम किया जाऐगा, इसलिए के नरमी का रवैय्या इख़्तियार किया जाऐगा और इसकी तालीम दी जाऐगी और सब्र किया जाऐगा। और मुबाह अम्र की ततबीक़ में दो रास्तों में से आसान को और सख़्ती के मुक़ाबले में नरमी को इख़्तियार किया जाना होता है जैसा के हुज़ूरे अकरम ने ताइफ़ के मुहासिरे के वक़्त अपनी फ़ौज के लोगों की बात मान कर किया था जो अभी बुख़ारी शरीफ़ की हज़रत इब्ने उमर (رضي الله عنه)   से रिवायत हदीस में गुज़रा।
अब कुफ़्फ़ार के ख़िलाफ़ मुसलमानों की सख़्ती, शिद्दत, ग़ल्बे की सूरतों का बयान बाक़ी रह गया चुनांचे यहाँ उसी का ज़िक्र होगा।

1: मैदाने जंग में: 

बुख़ारी ने वहशी से नक़ल किया है के वो कहते हैं के जब लोग एैनैन के साल निकले, एैनैन उहद के नज़दीक एक पहाड़ है और उनके दरमियान एक वादी है। मैं भी लोगों के साथ जंग के लिए निकला जब लोगों ने जंग के लिए सफ़ बंदी कर ली तो सबाअ़ सफ़ से बाहर आया और ललकाराः कौन है मेरा मद्दे मुक़ाबिल (कौन है जो मेरा मुक़ाबला करे) तो हज़रत हमज़ा बिन अ़ब्दुल मुत्तलिब (رضي الله عنه) निकलते हैं और कहते हैं कि : ऐ सबाअ़ ख़तना करने वाले उम्मे अंमार के बच्चे ! क्या तू अल्लाह और उसके रसूल से दुश्मनी रखता है फिर ऐसा ज़ोर दार वार किया के वो बीते हुए कल कि तरह भूला बिसरा हो गया। (माज़ी की तरह बे याद हो गया)।
इसी तरह हज़रत हमज़ा, हज़रत अ़ली, बरा और उमरो बिन मादीकर्ब, आमिर, ज़हीर बिन राफ़े वग़ैरा बेशुमार शेह सवारों के वाक़ेयात से इस्लामी सीरत-ओ-मग़ाजी के औराक़ मुज़य्यिन हैं। लिहाज़ा तिशनगीऐ शौक़ की सैराबी के लिए उनके असल की तरफ़ रुजू करना चाहिए। क्योंकि ये वाके़यात और किस्सों का मजमूआ मेहज़ नहीं, लिहाज़ा यहाँ सिर्फ़ मक़सूद को मद्दे नज़र रखते हुए इशारात-ओ-किनायात पर इक्तिफ़ा किया जाता है।

2: मुज़ाकरात में

बुख़ारी शरीफ़ में मरवान और अल मिसवर से रिवायत नक़ल की है केः...मुग़ीरह बिन शेबा नबी अकरम (صلى الله عليه وسلم) के सर पर तलवार लिए खड़े थे और सर पर (फ़ौजी) टोप पहने थे। जब जब अ़रवा अपने हाथ को रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) की रीशे (दाढ़ी) मुबारक की तरफ़ बढ़ाता तो तलवार के दस्ते से उसके हाथ पर मारते और कहतेः अपने हाथ को रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) की दाढ़ी से दूर रख।

इसी हदीस में है के अ़रवा कहता हैः अल्लाह की क़सम! मैं कुछ चेहरे देख रहा हूँ और ओबाश चेहरे को देख रहा हूँ, और एक रिवायत में कुछ ओबाश चेहरे देख रहा हूँ, जो या तो भाग सकते हैं या आप को छोड़ सकते हैं। इस पर हज़रत अबूबक्र (رضي الله عنه) ने इस की तरदीद करते हुए कहाः ख़ामोश ऐ लात के उज़ूऐ तनासुल! क्या हम फ़रार हो जाऐं और उनका साथ छोड़ देंगे? मुग़ीरा का तर्ज़े अ़मल और उनका क़ौल, इसी तरह हज़रत अबूबक्र (رضي الله عنه) का जुमला, ये तमाम चीज़ें रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के सामने हुईं आप ने सुकूत-ओ-ख़ामोशी इख़्तियार की और आप की ख़ामोशी इक़रार के मुतरादिफ़ है।

मुहम्मद बिन हसन अल शीबानी अस्सीर अल-कबीर में ज़िक्र करते हैं के उसैद बिन हुदै आए, और उ़ए़ैना रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के सामने टांगें फैला कर बैठा था। तो उसैद ने कहाः ऐ लोमज़ के बच्चे उ़ए़ैना! अपने पाँव समेट ले, क्या रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के सामने तुम पांव फैला के बैठे हो। बाख़ुदा! अगर रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ना होते तो तुम्हारे दोनों ख़स्सियों को नेज़े से ठोंक देता।

इस तरह की कई मुबाहिस-ओ-तकरार किताबों में दर्ज हैं जैसे साबित बिन अक़वम, अ़म्र बिन अल आस, मुग़ीरह बिन शेबा, क़तीबा, मुहम्मद बिन मुस्लिम, मामून वग़ैरा, के ये तमाम की तमाम मिसालें इज़्ज़त और एहतेराम को मुसलमानों के लिए ख़ास करने की हैं।

3: नाक़िज़े अहद के साथः

अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का फ़रमान हैः

اِنَّ شَرَّ الدَّوَآبِّ عِنْدَ اللّٰهِ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا فَهُمْ لَا يُؤْمِنُوْنَۖۚ۰۰۵۵ اَلَّذِيْنَ عٰهَدْتَّ مِنْهُمْ ثُمَّ يَنْقُضُوْنَ عَهْدَهُمْ فِيْ كُلِّ مَرَّةٍ وَّ هُمْ لَا يَتَّقُوْنَ۰۰۵۶ فَاِمَّا تَثْقَفَنَّهُمْ فِي الْحَرْبِ فَشَرِّدْ بِهِمْ مَّنْ خَلْفَهُمْ لَعَلَّهُمْ يَذَّكَّرُوْنَ

बदतरीन जानवर अल्लाह के नज़दीक वो लोग हैं जिन्होंने कुफ्र इख़्तियार किया, फिर वो ईमान नहीं लाते, जिन से तुम ने अहद किया वो फिर हर बार अपने अहद को तोड़ देते हैं, और वो डर नहीं रखते। पस अगर जंग में तुम उन पर क़ाबू पाओ, तो उनके साथ ऐसा पेश आओ के उनके पीछे वाले भी भाग खड़े हों ताके उन्हें सबक़ हासिल हो। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआनः अनफ़ाल- 55 से 57)

मुस्लिम शरीफ़ में फ़तहे मक्का में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) की हदीस रिवायत की है जब कु़रैश ने अपने अहद को तोड़ दिया। इसी में है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((یامعشر الأنصار، ھل ترون أوباش قریش؟ قالوا نعم، قال أنظروا إذا لقیتموھم غدًا أن تحصدوھم حصدًا، وأخفی بیدہ ووضع یمینہ علی شمالہ، وقال موعدکم الصفا، قال فما أشرف یومئذ لہ أحد إلا أناموہ ۔۔۔))

ऐ जमाअ़ते अंसार! क्या तुम क़ुरैश के ओबाश और गुंडो को देख रहे हो? अंसार ने कहा हाँ। रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने कहाः देख लो जब ये कल तुम को मिलेंगे तो उनको काट कर रख देना (और अपने दाएं हाथ से बाएं को मारते हुए इशारा फ़रमाया), फिर हुक्म दिया के हम अब सफ़ा पर मिलेंगे। इसके बाद जिस को क़िताल के लिए जो जगह पसंद थी वो वहाँ पहुंच गया।

हज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने उ़मर (رضي الله عنه) से हदीस रिवायत है जो मुत्तफिक़ अ़लैहि है वो कहते हैं के बनू नज़ीर और बनू क़ुरैज़ा से जंग हुई तो बनू नज़ीर को जिला वतन कर दिया गया और क़ुरैज़ा और उनके हलीफ़ को बाक़ी रखा गया। फिर क़ुरैज़ा से जंग हुई तो उनके जवानों को क़त्ल किया गया और उनकी औरतों और बच्चों को और उनके मालों को मुसलमानों के दरमियान तक़सीम कर दिया गया, सिवाए चंद अफराद के जो नबी अकरम (صلى الله عليه وسلم) से आ मिले और अमान तलब की और मुसलमान हो गए। मदीने के तमाम यहूदियों को जिला वतन कर दिया गया जैसे बनी क़ैनुक़ाअ़, ये अ़ब्दुल्लाह बिन सलाम की क़ौम के लोग थे और बनू हारिसा के यहूदी और तमाम मदीने के यहूद जिला वतन कर गऐ।

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