राहे हक़ पर साबित क़दमी


दावते इस्लामी का अ़लमबरदार या तो दारुल कुफ्र में होगा और इसको दारुल इस्लाम में तब्दील करने की सई़ और कोशिश में लगा होगा। जैसे के सूरते हाल आज इस 15वीं सदी हिज्री की इब्तिदा में है जबकि ख़िलाफ़ते इस्लामिया तकरीबन अस्सी (80) सालों से मुअ़त्तल चली आ रही है। ज़मीन पर सुफ़हा और निकम्मे हुक्मरान ग़ालिब हैं और इस्लाम मुसलमानों की जिंदगी से ग़ायब हो गया है। या फिर हामिले दावत दारुल इस्लाम में होगा और हुक्काम के मुहासिबे और अम्र बिलमारूफ़ और नही अ़निल मुनकर के फ़रीज़े की अंजाम दही में मसरूफ़ और मशग़ूल होगा।
लेकिन हम यहाँ पर सिर्फ़़ पहली सूरते हाल का तज्ज़िया करेंगे इसलिए के मुसलमान आम तौर पर और दाअि़यान (दावत देने वाले) ख़ास तौर पर इन हालात में जिंदगी गुज़ार रहे हैं। इस सालेह तब्दीली के ख़्वाहिशमंद दाई के लिए हालात मक्का के मुसलमानों के हालात के मानिंद हैं, मज़ीद ये के वो हिजरत के बाद नाज़िल होने वाले अहकाम और मसाइल के भी वो मुख़ातिब हैं। अलबत्ता यहाँ बेहस सिर्फ़ क़ब्ले हिजरत पर ही मरकूज़ रहेगी क्योंकि दोनों के अहवाल मैं मुशाबहत पाई जाती है।
कुफ़्फ़ारे मक्का का मुसलमानों से मुतालिबा था के मुसलमान अल्लाह के इंकारी होकर इस्लाम से लौट आएं और अ़वाम के सामने अपनी इ़बादत और रियाज़त का इज़हार ना किया करें और ना ही दूसरों को इस्लाम की दावत पहुंचाएं। यही तमाम रवैय्ये आज के गुमराह हुक्मरानों ने इख़्तियार कर रखे हैं और इस पर मज़ीद ये वो दाअि़यों को मजबूर करते हैं के या तो वो हुक्काम के जासूस बन कर या उनकी फ़िक्री दावत के हामिल बन कर काम करें, और ऐसे अफ़्कार को रिवाज दें जो इन निकम्मे हुक्मरानों के मफ़ाद और मसलिहत को अंजाम मैं मददगार साबित हों जिस से मुस्लिम मुल्कों में काफ़िराना निज़ाम को ज़िन्दगी बख़्शें और इस काम के बदले इन जासूसों, कारिंदों और मुफ़्तियों को उजरत अ़ता की जाती है। अपने इन मज़्मूम मक़ासिद को हासिल करने के लिए कुफ़्फ़ारे मक्का ने भी ये तरीक़ा इख़्तियार नहीं किया होगा।
बल्कि मज़्कूरा मक़ासिद को बरुए कार लाने के लिए कु़रैश ने कई हरबे और तरीक़े इख़्तियार किए जैसे क़त्ल, ईज़ा रसानी, अज़ीयत, कैद ओ बंद, हिजरत में रुकावट, ग़सबे माल, इस्तिहज़ा और मज़ाक़, बाईकाट, झूटे इल्ज़ामात के ज़रीये इज़्ज़त और शरफ़ को दाग़दार करना। इन तमाम उस्लूबों को आज के ज़ालिम हुक्मरानों ने भी इख़्तियार कर रखा है और इस पर मज़ीद ये के अज़ीयत और नए नए तरीके और नई ईजादात जैसे बिजली की ज़रबें (Electric Shocks) और ईज़ा रसानी के नए नए तरीक़े अपना रखे हैं, जबकि बिजली का इस्तिमाल सनअ़ती इन्क़िलाब के लिए होना चाहिए था।
इस बारे में हुज़ूरे अकरम (صلى الله عليه وسلم) और सहाबाऐ किराम ने जो साबित क़दमी और इस्तिक़ामत का मुज़ाहिरा पेश किया वो हमारे लिए नमूना है जिसकी इत्तिबा करना ज़रूरी है।
इन मक़ासिद, तरीक़ाए कार और साबित क़दमी को क़दरे तफ़सील से बयान करना निहायत ज़रूरी है, चुनांचे पहले कुफ़्फ़ार के ज़रीये इस्तिमाल किए जाने वाले अज़ीयत के मुख़्तलिफ़ तरीक़ों को बयान किया जाता है।
ज़द-ओ-कोब
मुस्तदरक हाकिम में हज़रत अनस (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल है केः
((لقد ضربوا رسول اللہا حتی غشي علیہ، فقام أبو بکر رضی اللہ عنہ، فجعل ینادي ویقول: ویلکم أتقتلون رجلاً أن یقول ربي اللہ؟ قالوا: من ھذا؟ قالوا: ھذا ابن أبي قحافۃ المجنون))
कुफ़्फ़ार ने रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) को इतना मारा के आप (صلى الله عليه وسلم) पर ग़शी तारी हो गई तो अबूबक्र (رضي الله عنه) उठ खड़े हुए और ये पुकार कर कहाः तुम्हारी बर्बादी हो! तुम एक ऐसे शख़्स को मार रहे हो जो सिर्फ़ ये कहता है के मेरा रब अल्लाह है। लोगों ने पूछाः ये कौन है? तो कहा गयाः अबू क़हाफ़ा का पागल लड़का।
इसी तरह इमाम मुस्लिम ने हज़रत अबू ज़र ग़फ़ारी (رضي الله عنه) के क़ुबूले इस्लाम के वाक़िये को नक़ल किया है के अबू ज़र ग़ि़फ़ारी फ़रमाते हैं...मैं मक्का पहुंचा तो मैंने एक कमज़ोर शख़्स को तलाश किया और पूछा के बताओ वो कौन शख़्स है जिसे तुम साबी (बेदीन) कहते हो? वोह मेरी तरफ़ इशारा करता हुआ चिल्लायाः साबी (बेदीन)। यकायक चहार जानिब से लोग मेरी तरफ़ लपके और इस क़दर मारा के मैं बेहोश हो कर गिर पड़ा। जब उठा तो गोया सुर्ख़ बुत हूँ।
कैद-ओ-बंद
बुख़ारी में हज़रत सईद इब्ने जै़द (رضي الله عنه) की रिवायत है जो उन्होंने कूफ़े की एक मस्जिद में बयान कीः
((واللہ لقد رأیتني وإن عمر لموثقي علی الإسلام، قبل أن یسلم عمر، ولو أن أحداً ارفض للذي صنعتم بعثمان لکان))
अल्लाह की क़सम मुझे बांध दिया गया और हज़रत उ़मर (رضي الله عنه)अपने क़ुबूले इस्लाम से पहले मुझे मजबूर करते थे के मैं इस्लाम से फिर जाऊं। हज़रत उस्मान (رضي الله عنه) पर तुम ने जो मज़ालिम किए हैं तो वो ऐसे थे के अगर उहद का पहाड़ अपनी जगह से हिल सकता तो वो भी हिल जाता।
इसी रिवायत को मुस्तदरक में हाकिम ने बयान किया है और इस में ये इज़ाफ़ा है के वो यानी हज़रत उ़मर (رضي الله عنه) और मेरी माँ मुझे बांध देती थीं। हाकिम ने इसको शैख़ैन की शर्त पर सही हदीस बताया है और अ़ल्लामा ज़ेहबी ने इस से इत्तिफ़ाक़ किया है।
माँ की तरफ़ से दबाव
इब्ने हिब्बान ने अपनी सही में मुसअ़ब बिन साद (رضي الله عنه) के तरीक से रिवायत की है और वो अपने वालिद (साद) से रिवायत करते हैं केः साद की माँ ने साद से कहा के क्या अल्लाह ने (वालिदैन के साथ) नेकी का हुक्म नहीं दिया है? अल्लाह की क़सम मैं  खाना नहीं खाऊंगी, पानी नहीं पियूंगी यहाँ तक के मैं मर जाऊं या फिर तू अल्लाह का इंकार  करे। चुनांचे जब उनको खाना खिलाना होता तो लकड़ी से उनके मुंह को खोला जाता। तब ये आयते करीमा नाज़िल हुई। ( وَ وَصَّيْنَا الْاِنْسَانَ بِوَالِدَيْهِ اِحْسٰنًا١ؕ )
सूरज की तपिश के ज़रीये अज़ीयत
हाकिम में मुस्तदरक में हज़रत अ़ब्दुल्लाह  (رضي الله عنه)  से रिवायत किया हैः
((إن أول من أظھر إسلامہ سبعۃ، رسول اللہا فمنعہ اللہ بعمہ أبي طالب، وأما أبوبکر فمنعہ اللہ تعالی بقومہ، وأما سائرھم فأخذھم المشرکون، فألبسوھم أدراع الحدید، وأوقفوھم في الشمس، فما من أحد إلا قد آتاھم کل ما أرادوا غیر بلال، فإنہ ھانت علیہ نفسہ فی اللّٰہ عز وجل، وھان علی قومہ، فأعطوہ الولدان، فجعلوا یطوفون بہ في شعاب مکۃ، وجعل بقول: أحد أحد))
शुरू में जिन लोगों ने इस्लाम क़ुबूल किया वो कुल सात थे। अल्लाह ने रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  के चचा अबू तालिब के ज़रीये ज़ालिमों को उनसे दूर रखा। हज़रत अबूबक्र  (رضي الله عنه) को अल्लाह ने उनकी क़ौम के ज़रीये ज़ालिमों से दूर रखा। बाक़ी मुसलमानों को उन ज़ालिमों ने पकड़ कर लोहे के कपड़े पहनाए और धूप में खड़ा कर दिया। हज़रत बिलाल (رضي الله عنه)  के अ़लावा तमाम के साथ ऐसा सुलूक किया गया। बिलाल (رضي الله عنه) को बच्चों के हवाले कर दिया गया और बच्चे उनको मक्के की गलियों में घसीटते थे और बिलाल अहद अहद की सदा लगाते थे।
इसी को इब्ने हिब्बान ने भी रिवायत किया है और सातों के नामों का भी ज़िक्र किया है।
अ़वाम को ख़िताब करने और एैलान की मुमानिअ़त
बुख़ारी ने हज़रत आईशा (رضي الله عنه)ا से एक तवील हदीस नक़ल की है वो कहती हैं.........इब्ने अल दग़्ना के साथ देने की वजह से क़ुरैश बात मान गए और इब्ने दग़्ना से कहा के अबूबक्र (رضي الله عنه) से कहो के वो अपने रब की इ़बादत घर के अंदर करें और इसी में नमाज़ अदा करें और जो चाहे पढ़ें, हमें उनके ज़रीये तकलीफ़ ना पहुंचाएं और ना ही अ़लल-एैलान ऐसा करें क्योंकि हमें ख़ौफ़ है के हमारी औरतें और बच्चे फ़ित्ने में ना पड़ जाऐं। अबू अल दग़्ना ने अबूबक्र (رضي الله عنه) से ये बात कही चुनांचे हज़रत अबूबक्र (رضي الله عنه) ने ऐसा ही किया और अपने घर के अंदर ही अल्लाह की इ़बादत करने लगे और नमाज़ को किसी के सामने नहीं पढ़ते और क़ुरआन अपने घर में ही पढ़ते, फिर हज़रत अबूबक्र (رضي الله عنه) को एक ख़्याल आया और उन्होंने अपने घर के सेहन में एक मस्जिद बना ली, और इसी में नमाज़ और क़ुरआन की तिलावत करते। मुशरिकीन की औरतें और बच्चे झांकते और बड़े मुतअ़ज्जिब होते, अबूबक्र (رضي الله عنه) कसरत से गिरिया ज़ारी करने वाले थे। जब क़ुरआन पढ़ते तो उनकी आँखें क़ाबू से बाहर हो जातीं। अशराफ़े मुशरिकीन को ये बात बड़ी नागवार गुज़री और इब्ने दग़्ना को बुलवा भेजा, चुनांचे जब इब्ने दग़्ना उनके पास आया तो उन्होंने कहाः हम ने तुम्हारी हम साईगी का लिहाज़ करते हुए अबूबक्र को छोड़ दिया इस शर्त पर के वो अपने घर के अंदर इ़बादत करे मगर वो तजावुज़ कर गया और अपने सेहन में मस्जिद बना ली है और अ़लल-एैलान नमाज़ पढ़ता और तिलावत करता है। हमें ख़दशा है के हमारी औरतें और बच्चे फ़ित्ने में पड़ जाऐेंगे। लिहाज़ा उसको मना करो अगर वो पसंद करे के अपने घर के अंदर अपने रब की इ़बादत करे तो ठीक है और अगर नहीं मानता और अ़लल-एैलान इन कामों को अंजाम देता है तो इस से अपना अहद ओ ज़िम्मा वापिस ले लो क्योंकि तुम को पनाह देना हमें नापसंद है और हम अबूबक्र  (رضي الله عنه) के इस काम को क़ुबूल नहीं करेंगे।

संगबारी
इब्ने हिब्बान और इब्ने ख़ुज़ैमा ने तारिक़ अल महारिबी से नक़ल किया है के वो कहते हैं:
मैंने रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) को ज़ुल मजाज़ के बाज़ार में देखा और आप सुर्ख़ जोड़ा ज़ेब-ए-तन किए हुए थे और ये कहते जा रहे थे ((قولوا لا إله إلا الله تفلحوا)) (ऐ लोगो! कह दो अल्लाह के सिवा कोई इ़बादत के लायक़ नहीं, कामयाब हो जाओगे) आप (صلى الله عليه وسلم) के पीछे एक शख़्स भी था जो आप को पत्थर से मार रहा था और इसकी वजह से आपकी एड़ी और टख़ने लहूलुहान हो गए थे और वो शख़्स ये कह रहा था इसकी बात ना मानो ये बहुत बड़ा झूठा है। मैंने पूछा “ये कौन है? लोगों ने जवाब दिया “बनी अब्दुल मुत्तलिब का बेटा।“ फिर मैंने पूछा “ये पीछे वाला शख़्स कौन है जो पत्थर मार रहा है? लोगों ने जवाब दिया “ये अब्दुल अज़ी अबू लहब है।
गोबर वग़ैरा गंदगी फेंकना
बुख़ारी ने अ़ब्दुल्लाह (رضي الله عنه) से रिवायत की है के अ़ब्दुल्लाह (رضي الله عنه) ने कहा “जब रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) सज्दे में थे और उनके इर्द गिर्द क़ुरैश जमा थे, उ़त्बा बिन अबी मुइत ऊंट की ओझ लाया और आप की पीठ पर डाल दी। जिसकी वजह से आप अपना सर ना उठा सके, फिर हज़रत फ़ातिमा (رضي الله عنه)ا आईं और इसको हटाया और बद दुआ करने लगीं। आप ने कहाः
((اللھم علیک الملأ من قریش أبا جھل بن ھشام، وعتبۃ بن ربیعۃ، وشیبۃ ابن ربیعۃ، وأمیۃ بن خلف، أو أبي بن خلف))
ऐ अल्लाह! क़ुरैश का ये गिरोह अबु जहल बिन हिशाम, उ़त्बा बिन रबीआ, शैबा बिन रबीआ, उमय्या बिन ख़लफ़ या उबई बिन ख़लफ़ इन का मुआमला तेरे ज़िम्मे है।
तो मैंने उनको बदर के दिन देखा के वो मक़्तूल पड़े थे और उनको कुवें में डाल दिया गया सिवाए उमय्या या उबई के। उसके जोड़ अलग अलग हो गए थे इसलिए कुवें में ना फेंका जा सका।
इब्ने साद की हज़रत आईशा (رضي الله عنه)ا से रिवायत है के आईशा (رضي الله عنه)ا कहती हैं के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((کنت بین شر جارین، بین أبي لھب وعقبۃ ابن أبي معیط إن کانا لیأتیان بالفروث، فبطر حالھا علی بابي، حتی إنھم لیأتون ببعض ما یطرحون من الأذی، فبطرحونہ علی بابي)) فیخرج بہ الرسول ا فیقول: ((یا بنی عبد مناف أي جوار ھذا؟))
मैं दो बुरे हमसायों के दरमियान था एक अबू लहब और दूसरा उ़क़बा बिन अबी मुईत।  दोनों गोबर लाते और मेरे दरवाज़े पर डाल देते यहाँ तक के और लोग भी अपनी गंदगियाँ लाते और दरवाज़े पर डाल देते। तो रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) गंदगी को बाहर करते और फ़रमाते “ऐ बनी अब्दे मुनाफ़! ये कैसी हमसायगी है? फिर उस (गंदगी) को किनारे डाल देते।
गला दबाने और चेहरे को गर्द आलूद करने की कोशिश
मुस्लिम ने अबू हुरैराह (رضي الله عنه) की रिवायत की है के हज़रत अबू हुरैराह कहते हैं के “अबुजेहल ने कहा “क्या मुहम्मद ने कभी तुम्हारे सामने अपने चेहरे को ज़मीन पर रखा? कहा गया “हाँ! तो अबुजेहल ने कहा “लात-ओ-उज़्ज़ा की क़सम! अगर मैंने ऐसा करते हुए देखा होता तो उसका गला दबा देता या उसके चेहरे पर मिट्टी डाल देता। अबू हुरैराह (رضي الله عنه) कहते हैं के वो रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  के पास गया और आप नमाज़ पढ़ रहे थे तो उसने इरादा किया के आपका गला घोंट दे। अबू हुरैराह (رضي الله عنه) कहते हैं के वोह आपके पास गया के यकायक उल्टे पाँव फिर गया जैसे ख़ुद को किसी चीज़ से बचाने की कोशिश कर रहा हो। उससे पूछा गया “क्या हुआ? तो उस ने कहा “मेरे और उसके दरमियान आग, ख़ौफ़नाक परों की एक ख़ंदक़ हाइल थी। आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायारू अगर वो मुझ से क़रीब पहुंचता तो फ़रिश्ते उसकी बोटी बोटी नोच लेते।
मुतलक़ तशद्दुद
इमाम ज़ेहबी ने तारीख में, बैहक़ी ने शाब में, इब्ने हिशाम ने सीरह में और इमाम अहमद ने फ़ज़ाइल अल सहाबा में हज़रत अ़रवाह (رضي الله عنه) से रिवायत किया है के उन्होंने फ़रमाया “वर्क़ा बिन नौफ़ल बिलाल के पास से गुज़रते इस हाल में के उनको अज़ीयत दी जा रही होती और वो अ़हद अ़हद की सदा लगा रहे होते तो वर्क़ा कहते “ऐ बिलाल! अहद अहद अल्लाह, फिर वर्क़ा उमय्या बिन ख़लफ़ और बनी जमा के लोगों से जो के इस शनीअ़ फ़ेअ़ल में शरीक होते, को मुख़ातिब करते हुए कहते “अल्लाह की क़सम खा कर कहता हूँ अगर तुमने इसको क़त्ल कर दिया तो तुम्हारी दुश्मनी मुझ से होगी। एक दिन अबूबक्र सिद्दीक़ (رضي الله عنه) भी बिलाल के पास से गुज़रे और वो लोग बिलाल पर तशद्दुद कर रहे थे। अबूबक्र  (رضي الله عنه) का घर क़बीला बनी जमा में था। तो हज़रत अबूबक्र  (رضي الله عنه) ने उमय्या से कहा “इस बेचारे मिस्कीन के ताल्लुक़ से ख़ुदा से नहीं डरते हो? आख़िर कब तक (ये अज़ीयत देते रहोगे?) तो उमय्या ने कहा “तुमने ही इसको बर्बाद किया है अब तुम ही इसको बचाओ। अबूबक्र (رضي الله عنه) ने कहा “मेरे पास एक स्याह फ़ाम ग़ुलाम है जो इससे ज़्यादा मज़बूत और क़वी है और तुम्हारे मज़हब का भी है, मैं बिलाल के बदले उसको तुम्हें देता हूँ। उमय्या ने कहा “ठीक है। मुझे क़ुबूल है। ये तुम्हारा हुआ। तो हज़रत अबूबक्र (رضي الله عنه) ने अपना ग़ुलाम उमय्या को दे दिया और हज़रत बिलाल (رضي الله عنه)  को लेकर आज़ाद कर दिया। हिजरत से पहले सात लोगों को हज़रत अबूबक्र  (رضي الله عنه) ने हज़रत बिलाल (رضي الله عنه)  के साथ आज़ाद किया। हज़रत बिलाल (رضي الله عنه) इन सातों में से सातवें थे। आमिर बिन फ़ुहैरा उहद और बदर की जंगों में शरीक थे और बीअरे मऊ़ना के मौके़ पर शहीद हुए और अ़बीस, ज़नीरा वग़ैरा।
इमाम हाकिम मुस्तदरक में जाबिर (رضي الله عنه) से रिवायत करते हैं के नबी अकरम  (صلى الله عليه وسلم) अ़म्मार (رضي الله عنه) और उनके ख़ानदान के पास से गुज़रे इस हाल में के उनको अज़ीयत दी जा रही थी, आप  ने फ़रमाया “ऐ आले अ़म्मार, ऐ आले यासिर! तुम्हारे लिए बशारत है तुम्हारा ठिकाना जन्नत है।“
मुसनद अहमद में सही असनाद के ज़रीये हज़रत उस्मान (رضي الله عنه) से रिवायत किया है के उन्होंने कहा “मैं रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) का हाथ पकड़े बतहा में चल रहा था यहाँ तक के अबू अ़म्मार (رضي الله عنه) के वालिद और माँ के पास गुज़रे जिन पर तशद्दुद किया जा रहा था तो अबू अ़म्मार ने कहा “ऐ रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)! आख़िर कब तक? आप ने फ़रमाया “सब्र करो।“ फिर कुछ देर तवक्कुफ़ के बाद कहा “ऐ अल्लाह! आले यासिर को बख़्श दे, मैं जो कुछ कर सकता था वो किया।“
भूख और प्यास
इब्ने हिब्बान हज़रत अनस (رضي الله عنه) की रिवायत नक़ल करते हैं के रसूले अकरम ने फ़रमायाः
((لقد أوذیت في اللہ وما یؤذی احد، ولقد أخفت في اللہ ومایخاف احد، ولقد أتت علي ثلاث من بین یوم ولیلۃ ومالي طعام إلا ماواراہ إبط بلال))
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ के लिए जिस क़दर मुझे अज़ीयत दी गई किसी को ना दी गई और अल्लाह के लिए जितना ख़ौफ़ज़दा मुझे किया गया किसी को नहीं किया गया। तीन दिन ओ रात मुझ पर ऐसे गुज़रे हैं के मेरे पास खाने को कुछ नहीं था सिवाए उतने के जो (हज़रत) बिलाल (رضي الله عنه) के बग़ल में छुपाया जा सकता था।
हाकिम ने मुस्तदरक में और इब्ने हिब्बान ने अपनी सही में नक़ल किया है जिसे मुस्लिम की शर्त पर अ़ल्लामा ज़ेहबी ने अपनी तलख़ीस में सही बताया है के ख़ालिद बिन उ़मैर अल अ़दवी कहते हैं के “उ़तबा बिन ग़ज़वान ने ख़ुतबा दिया, और अल्लाह की हम्द और सना के बाद कहा “मुझे याद है के मैं अल्लाह के रसूल के साथ था और उनके सात साथियों में मैं आख़री था। हमारे पास खाने के लिए कुछ ना था सिवाए दरख़्त के पत्तों के, जिन्हें खाने से हमारे जबड़े छिल गए। मेरे पास एक चादर थी जिसको चीर कर अपने और फ़ारिसे इस्लाम साद बिन अबी विकास (رضي الله عنه) के दरमियान तक़्सीम कर ली। चुनांचे आधी को मैंने इज़ार बना लिया और आधी को साद ने इज़ार बना लिया। और आज हम में ज़िंदा हैं और किसी ना किसी शहर का अमीर है। मैं अल्लाह की पनाह चाहता हूँ इस बात से के मैं अपने आप में अ़ज़ीम बनूं जबकि में अल्लाह के नज़दीक छोटा हूँ।

मुक़ातआ (बाइकॅाट)
इब्ने साद अपनी किताब अल तबक़ात में वाक़िद से रिवायत करते हैं और वाक़दी इब्ने अ़ब्बास, अबूबक्र अ़ब्दुर्रहमान बिन हारिस बिन हिशाम, उस्मान बिन अबी सुलैमान बिन ज़ुबैर बिन मुतइम से रिवायत करते हैं और उनकी हदीसों के मतन आपस में यकसाँ हैं, के मुशरिकीने मक्का ने बनू हाशिम के ख़िलाफ़ एक मुआहिदा लिखा के इनसे ना शादी ब्याह किया जाये, ना ख़रीद फ़रोख़्त किया जाऐे, और ना ही मेल जोल रखा जाये और उनसे तमाम ताल्लुक़ात मुनक़ते कर लिऐ। चुनांचे बनू हाशिम सिर्फ़ हज के मौसम में ही बाहर निकल पाते थे यहाँ तक के वो बहुत परेशान हो गए और उनके बच्चों के रोने की आवाज़ें घाटी से सुनाई देती, बाअ़ज़ क़ुरैश इस बात से बहुत ख़ुश होते और बाअ़ज़ को ना पसंद होती, चुनांचे बनू हाशिम तीन साल तक शेअ़बे अबी तालिब में रहे। इमाम ज़ेहबी ने मुक़ातऐ़ की हदीस को मूसा बिन उ़क़्बा बारिवायत ज़ुहरी नक़ल की है।

इस्तेहज़ा और इशारेबाज़ी
इब्ने हिशाम ने अपनी तसनीफ़ सीरह में नक़ल किया के इब्ने इस्हाक़ ने कहा है, फिर मुझ से यज़ीद बिन ज़ियाद ने मुझ से बयान किया है के मुहम्मद बिन काब अलक़रज़ी की रिवायत है वो फ़रमाते हैं के ”जब रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ताइफ़ गए तो सक़ीफ़ के चंद अफ़राद के पास पहुंचे जो उस वक़्त सक़ीफ़ के सरकरदा और अशराफ़ शुमार होते थे और ये तीनों भाई थे। जब अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) ने उन्हें अल्लाह की तरफ़ दावत दी और उनसे इस्लाम के लिए नुसरत तलब की और अपनी क़ौम में इस्लाम के मुख़ालिफ़ीन के ख़िलाफ़ मदद चाही तो एक ने कहा के अगर अल्लाह ने तुम को रसूल बना कर भेजा है तो मैं काअ़बे के पर्दे नोच डालूंगा। दूसरे ने कहा क्या अल्लाह को तुम्हारे अ़लावा कोई दूसरा नहीं मिला? उन्होंने अपने बच्चों और गुलामों को भड़काया के लोग आपको गालियाँ दें और आप पर चीख़ें चिल्लाऐं।
इब्ने हिब्बान ने अ़ब्दुल्लाह बिन अ़म्र (رضي الله عنه) से नक़ल किया है वो कहते हैं मैं अशराफ़ क़ुरैश की मज्लिस में आया जबकि वो लोग काअ़बे के हिज्र में जमा थे। वहाँ रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) का ज़िक्र हुआ तो वो कह रहे थे के मुहम्मद ((صلى الله عليه وسلم)) पर हम ने किस क़दर सब्र किया है जबकि वो हमारे दानिश्वरों को बेवकूफ़ ओ कमअक़्ल बनाता है हमारे आबा ओ अज्दाद को गालियाँ देता है, हमारे दीन में नुक़्स निकालता है, हमारे इत्तिहाद को टुकड़े टुकड़े कर रहा है, हमारे माअ़बूदों को बुरा भला कहता है। हम बहुत बड़े मुआमले में सब्र करते आ रहे हैं, वग़ैरा वग़ैरा, के इसी दरमियान रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) नमूदार हुए और रुक्न को छुआ और काअ़बे का तवाफ़ करते हुए उनके पास से गुज़रे, तो उन्होंने आपकी तरफ़ इशारे से बुरी बात की जिसकी तल्ख़ी मैंने आप के चहराये मुबारक पर महसूस की। आप (صلى الله عليه وسلم) आगे बढ़ गए। जब आप दुबारा गुज़रे तो उन्होंने फिर आप की तरफ़ इशारेबाज़ी की। मैंने फिर आप (صلى الله عليه وسلم) के चेहराऐ पुर नूर पर कराहियत के आसार देखे। आप फिर भी आगे बढ़ गए। जब आप तीसरी मर्तबा वहाँ से गुज़रे तो उन्होंने फिर एैसी ही कोई हरकत की तो आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((أتسمعون یا معشر القریش ما والذي نفس محمد
بیدہ لقد جئتکم باذبح۔۔۔))
ऐ सरदाराने क़ुरैश! क्या तुम सुन रहे हो? क़सम है उस ज़ात की जिसकी हाथ में मुहम्मद की जान है मैं ज़िबह के साथ तुम्हारे पास आया हूँ।
क़ियादत और मानने वालों के बीच रिश्तों पर हमले
मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत साद  (رضي الله عنه) से रिवायत है के उन्होंने कहा “नबी अकरम (صلى الله عليه وسلم) के साथ हम सात लोग थे तो मुशरिकीन ने रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) से कहा आप इन लोगों को भगा दो ताके ये हम पर दिलेरी ना कर सकें। और वो (सात लोग) में, इब्ने मसऊ़द (رضي الله عنه) क़बीला हुज़ैल के एक शख़्स, बिलाल (رضي الله عنه) और दो शख़्स और थे जिनका नाम मैं नहीं जानता, तो नबी अकरम (صلى الله عليه وسلم) के दिल में ख़्याल पैदा हुआ जो अल्लाह चाहता था, तो अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने ये आयत नाज़िल की:
وَ لَا تَطْرُدِ الَّذِيْنَ يَدْعُوْنَ رَبَّهُمْ بِالْغَدٰوةِ وَ الْعَشِيِّ يُرِيْدُوْنَ وَجْهَهٗ١ؕ
और जो लोग अपने रब को उसकी ख़ुशनुदी चाहते हुए सुबह और शाम पुकारते रहते हैं ऐसे लोगों को ना हटाना (तर्जुमा मआनिये क़ुरआन: अल अ़नआम -52)
माल, रियासत और औरत के ज़रीये
दीन का सौदा
अबू याला अपनी मुसनद में और इब्ने मुईन अपनी तारीख़ में रिवायत करते हैं जिसकी सनद क़ाबिले एतेमाद है के जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह (رضي الله عنه) फ़रमाते हैं के अबू जहल और क़ुरैश की एक जमाअ़त ने कहा “मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) का मुआमला तो हम पर छाता जा रहा है, क्यों ना किसी जादूगर, काहिन और शेअ़र से वाक़िफ़ और इसके आलिम शख़्स को लाओ जो मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) से बात करे फिर इसका कोई मुआमला हमारे सामने लाए। तो उ़तबा ने कहा मैंने जादूगरों और शाइरों की बातें सुनी हैं और इसका इ़ल्म भी मुझे है अगर वो ऐसा हुआ तो इसको जान लूंगा।
चुनांचे उ़तबा आप (صلى الله عليه وسلم) के पास आया और कहा “ऐ मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) आप बेहतर हैं या हाशिम? आप बेहतर हैं या अ़ब्दुल मुत्तलिब? आप बेहतर हैं या अ़ब्दुल्लाह? आप (صلى الله عليه وسلم) ने कोई जवाब ना दिया। उ़तबा ने फिर कहा “तुम हमारे माअ़बूदों को बुरा क्यों कहते हो? हमारे बाप दादाओं को गुमराह क्यों कहते हो? अगर तुम सल्तनत चाहते हो तो आप को अपना अमीर बना लेते हैं और इस तरह आप हमारे सरदार हो जाऐेंगे, और अगर आप शादी करना चाहते हैं तो हम आप को इख़्तियार देते हैं के क़ुरैश से दस औरतें इंतिख़ाब कर लें और उनसे शादी कर लें। और अगर आप को दौलत की ख़्वाहिश है तो हम आप के लिए इतनी दौलत जमा कर देंगे के आप और आप के बाद की नस्लें बेनियाज़ हो जाऐंगी। रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ख़ामोश रहे कुछ नहीं फ़रमाया। जब उ़तबा अपनी बात से फ़ारिग़ हो गया तो आप ने क़ुरआन की तिलावत शुरू की:
حٰمٓۚ۰۰۱ تَنْزِيْلٌ مِّنَ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِۚ۰۰۲ كِتٰبٌ فُصِّلَتْ اٰيٰتُهٗ قُرْاٰنًا عَرَبِيًّا لِّقَوْمٍ يَّعْلَمُوْنَۙ۰۰۳
ये तंज़ील है बड़े मेहरबान, निहायत रहम वाले की तरफ़ से। एक किताब जिसकी आयात खोल खोल कर बयान हुई हैं अ़रबी क़ुरआन की सूरत में उन लोगों के लिए जो जानना चाहें। {तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : फ़ुस्सिलत (हा मीम सजदा) -1 से3}
और यहाँ तक तिलावत फ़रमाईः
فَاِنْ اَعْرَضُوْا فَقُلْ اَنْذَرْتُكُمْ صٰعِقَةً مِّثْلَ صٰعِقَةِ عَادٍ وَّ ثَمُوْدَؕ۰۰۱۳
फिर अगर वो मुंह मोड़ें तो कह दो, मैं तुम्हें इस तरह के कड़के से डराता हूँ जिस तरह का कड़का आद और समूद पर नाज़िल हुआ। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने अ़ज़ीमः अल सज्दा- 13)
तो उ़तबा ने फ़ौरन आप के मुंह पर हाथ रख दिया और रिश्ते का वास्ता दे कर आप को रुक जाने के लिए कहा, इसके बाद उसने ख़ुद को अपने लोगों से दूर रखा तो अबू जेहल ने कहाः ऐ क़ुरैश के लोगो! मैं उ़तबा को देख रहा हूँ के वो मुहम्मद ((صلى الله عليه وسلم)) के दीन की तरफ़ माइल हो गया है और ये सिर्फ़ किसी हाजत की वजह से हुआ है। तुम लोग मेरे साथ उ़तबा के पास चलो। चुनांचे ये लोग उ़तबा के पास गए तो अबू जेहल ने उस से कहा “ख़ुदा की क़सम! ऐ उ़तबा हम को ख़ौफ़ है के कहीं तुम मुहम्मद  के दीन की तरफ़ माइल ना हो गए हो और इसका मुआमला तुम्हें पसंद आ गया हो। अगर तुम्हें कोई ज़रूरत हो तो हम तुम्हारे लिए इतना माल जमा कर दें जो तुम्हें मुहम्मद ((صلى الله عليه وسلم)) से बेनियाज़ कर देगा। इस पर उ़तबा गुस्सा हो गया और उसने क़सम खा कर कहा मुहम्मद ((صلى الله عليه وسلم)) से कभी बात नहीं करूंगा और मज़ीद कहा तुम लोगों को मालूम है के मैं क़ुरैश के मालदार लोगों में से हूँ। फिर उसने अपना वाक़िया सुनाया के मुहम्मद ने मुझ को जवाब दिया के ख़ुदा की क़सम ना तो वो कोई जादू है ना ही शेअ़र और ना ही कहानत। उस ने (मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) ) ने पढ़ा:
حٰمٓۚ۰۰۱ تَنْزِيْلٌ مِّنَ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِۚ۰۰۲ كِتٰبٌ فُصِّلَتْ اٰيٰتُهٗ قُرْاٰنًا عَرَبِيًّا لِّقَوْمٍ يَّعْلَمُوْنَۙ۰۰۳
ये तंज़ील है बड़े मेहरबान, निहायत रहम वाले की तरफ़ से। एक किताब जिसकी आयात खोल खोल कर बयान हुई हैं अ़रबी क़ुरआन की सूरत में उन लोगों के लिए जो जानना चाहें। {तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : फ़ुस्सिलत (हा मीम सजदा) -1 से3}
और यहाँ तक तिलावत फ़रमाईः
فَاِنْ اَعْرَضُوْا فَقُلْ اَنْذَرْتُكُمْ صٰعِقَةً مِّثْلَ صٰعِقَةِ عَادٍ وَّ ثَمُوْدَؕ۰۰۱۳
फिर अगर वो मुंह मोड़ें तो कह दो, मैं तुम्हें इस तरह के कड़के से डराता हूँ जिस तरह का कड़का आद और समूद पर नाज़िल हुआ। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने अ़ज़ीमः अल सज्दा- 13)
तो मैन ने उनको रोक दिया और रहम की गुज़ारिश करते हुए ख़ामोश रहने को कहाँ और तुमको ये भी अच्छी तरह मालूम है के मुहम्मद ने कभी झूठ नहीं बोला। लिहाज़ा मुझे ख़ौफ़ महसूस हुआ के कहीं तुम लोगों को अ़ज़ाब ना आ ले। (ये रिवायत इब्ने मुईन की है जो के इब्ने इस्हाक़ अन मुहम्मद बिन काब अलक़रज़ी की रिवायत के अ़लावा है जिस में मज्हूल रावी सीरते इब्ने हिशाम में मज़्कूर है)

सब-ओ-शतम (गाली गलौच)
बुख़ारी और मुस्लिम ने अ़ब्दुर्रहमान बिन औफ़ (رضي الله عنه) से रिवायत की है के वो कहते हैं केः जब मैं बदर के रोज़ सफ़ में खड़ा था के मैंने अपने दाएं बाएं दो अंसार के नौ उ़म्र लड़कों को देखा। मुझे ख़्वाहिश हुई के के काश में दो मज़बूत नौजवानों के दरमियान होता के इन में से एक ने मुझे मुख़ातिब करते हुए कहाः चचा आप अबू जेहल को जानते हैं? मैंने कहाः बिल्कुल तुम्हें उसकी क्या ज़रूरत है बेटे? उस ने कहाः मुझे मालूम हैं वो रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) को गाली दिया करता था। क़सम उस ज़ात की जिस के हाथ मेरी जान है अगर मैंने उसको देख लिया तो उसको क़त्ल कर दूंगा या ख़ुद क़त्ल हो जाऊंगा यानी जिसकी मौत जल्दी लिखी हुई हो वो मर जाये। मुझे इस बड़ा ताज्जुब हुआ। यकायक दूसरे ने भी मुझे अपनी तरफ़ मुतवज्जा किया और एैसी ही बात कही।
बुख़ारी ओ मुस्लिम ने इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) से रिवायत की है के आयते करीमाः
وَ لَا تَجْهَرْ بِصَلَاتِكَ وَ لَا تُخَافِتْ بِهَا وَ ابْتَغِ بَيْنَ ذٰلِكَ سَبِيْلًا
और ना अपनी नमाज़ बहुत बुलंद आवाज़ से पढ़ो, और ना उसे बहुत चुपके से पढ़ो, (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : बनी इसराईलः -110)
ये आयत इस वक़्त नाज़िल हुई जब रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) मक्का में रुपोश थे, जब आप (صلى الله عليه وسلم) अपने अस्हाब को नमाज़ पढ़ाते तो बआवाज़ बुलंद क़ुरआन को पढ़ते। मुशरिकीन क़ुरआन सुनते तो क़ुरआन को, इसको नाज़िल करने वाले को और जो इसको लेकर आया यानी जिब्रईल अलैहिस्सलाम को गाली बकते। तब अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने अपने नबी (صلى الله عليه وسلم) से फ़रमायाः
وَ لَا تَجْهَرْ بِصَلَاتِكَ وَ لَا تُخَافِتْ بِهَا وَ ابْتَغِ بَيْنَ ذٰلِكَ سَبِيْلًا
और ना अपनी नमाज़ बहुत बुलंद आवाज़ से पढ़ो, और ना उसे बहुत चुपके से पढ़ो, (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : बनी इसराईल -110)
बल्कि आवाज़ को दरमियानी रखने का हुक्म दियाः
وَ ابْتَغِ بَيْنَ ذٰلِكَ سَبِيْلًا
बल्कि इन दोनों के बीच की राह इख़्तियार करो। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : बनी इसराईल- 110)
हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मुसनद अहमद में मरवी है के नबी अकरम ने फ़रमायाः
((الم تروا کیف یصرف اللہ عنی لعن قریش و شتمھم ، یسبون مذمما ،
 وانا محمد ))
क्या तुम लोग नहीं देखते के अल्लाह ने कु़रैश के लाअन ताअन और सब ओ शतम को कैसे मोड़ दिया है? वो मुझे मुज़िम्मम (मज़्मूम) कहते हैं और मैं मुहम्मद (क़ाबिले तारीफ़) हूँ।
इसी तरह हज़रत इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) से मरवी है के उन्होंने कहाः
जब (وَ اَنْذِرْ عَشِيْرَتَكَ الْاَقْرَبِيْنَۙ) नाज़िल हुई तो आप (صلى الله عليه وسلم) जबले सफ़ा पर चड़ गए और या सबाहा (हाय सुबह) की पुकार लगाई। लोगों ने कहा ये कौन पुकार रहा है? कहा गयाः मुहम्मद चुनांचे लोग आप के पास आकर जमा हो गए। तो आप ने फ़रमायाः
((أرأیتکم لو أخبرتکم أن خیلاً تخرج بسفح ھذا الجبل أکنتم مصدقي؟ قالوا: ما جربنا علیک کذباً، قال: فإنني نذیرلکم بین یدي عذاب شدید، فقال أبو لھب: تباً لک ألھذا جمعتنا، ثم قام، فنزلت
(تَبَّتْ یَدَآ اأبِي لَھَبٍ وَّتَبَّ)))
तुम्हारा क्या ख़्याल है के मैं तुम से ये कहूं के पहाड़ के उस तरफ़ एक लश्कर तुम पर हमला आवर होने वाला है क्या तुम मेरी तस्दीक़ करोगे? लोगों ने कहाः हम ने आपकी तरफ़ से झूठ को नहीं देखा। इसके बाद आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः बस, मैं तुम्हें अपने सामने सख़्त अ़ज़ाब से बाख़बर करने वाला हूँ तो अबू लहब ने कहाः तेरी तबाही हो क्या इसलिए तुम ने हमें जमा किया था? फिर आप खड़े हुए तो ये आयत नाज़िल हुईः
تَبَّتْ يَدَاۤ اَبِيْ لَهَبٍ وَّ تَبَّؕ
अबू लहब के दोनों हाथ टूट गए और वो ख़ुद भी ढै गया। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने अ़ज़ीमः अल लहब- 01)
तिबरानी ने नक़ल किया है के मिम्बत अल अज़दी (رضي الله عنه) कहते हैं “मैंने अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) को ज़मानाऐ जाहिलियत में देखा आप कह रहे थेः (قولوا لا إله إلا الله تفلحوا) (लोगो! कहो के अल्लाह के सिवा कोई इ़बादत के लायक़ नहीं कामयाब हो जाओगे) तो कुछ लोग ऐसे थे जो आपके चेहराऐ मुबारक पर थूक रहे थे किसी ने आप पर मिट्टी फेंकी और किसी ने आप (صلى الله عليه وسلم) को गाली दी, यहाँ तक के निस्फ़ उन्नहार का वक़्त हो गया तो एक लड़की पानी का एक बड़ा बर्तन लेकर आई आप (صلى الله عليه وسلم) का चेहराऐ मुबारक और हाथ धुलाये, आप (صلى الله عليه وسلم) फ़रमा रहे थेः   يا بني لا تخشي على أبيك غيلاً ولا ذلاً बेटी! तु अपने वालिद के ताल्लुक़ से किसी धोके और ज़िल्लत का ख़ौफ़ मत कर। तो मैंने पूछा के ये लड़की कौन है? लोगों ने कहाः ज़ैनब बिंते रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) । (हैसमी कहते हैं के इस सनद में मिम्बत बिन मुद्रिक हैं जिन को मैं नहीं जानता बाक़ी रिजाल सिक़ा हैं)।
तकज़ीब
बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह (رضي الله عنه) की रिवायत है के उन्होंने रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) को फ़रमाते सुनाः
((لما کذبتني قریش قمت في الحجر فجلا، (وفي روایۃ) فجلی اللہ لي بیت المقدس، فطفقت أخبرھم عن آیاتہ، وأنا أنظر إلیہ))
जब क़ुरैश ने (मैराज के मुआमले में) मुझे झुटलाया तो मैं काबातुल्लाह के हिज्र (हतीम) गया, जहाँ अल्लाह سبحانه وتعالیٰ मुझे बैतुल मुक़द्दस की निशानियाँ दिखा रहा था और मैं उन लोगों को बताता जा रहा था।
बुख़ारी शरीफ़ में हज़रत अबू दरदा (رضي الله عنه) रिवायत करते हैं के फिर रसूले अकरम  (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((إن اللہ بعثني إلیکم فقلتم کذبت وقال أبوبکر صدقت ۔۔۔))
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने मुझे तुम में मबऊ़स फ़रमाया लेकिन तुमने मुझे झुटलाया और अबूबक्र  (رضي الله عنه) ने मेरी तस्दीक़ की।
संगबारी के उनवान के तहत तारिक़ अलमहारिबी की हदीस गुज़र चुकी है के सौक़े मजाज़ में अबू लहब आप को पत्थर मारता और ये कहता फिरता था के इस की पैरवी ना करो ये झूठा है।
दावत के ख़िलाफ़ झूठी अफ़्वाहे
मुसनद अहमद और तिबरानी में हज़रत उम्मे सलमा (رضي الله عنه) से तवील हदीस मरवी है जिसके बारे में हैसमी कहते हैं के इसकी रिवायत की सनद मोतबर है, वो कहती हैं “जब दोनों अश्ख़ास नजाशी के पास से चले गए तो अ़म्र बिन अल आस ने कहा, ख़ुदा की क़सम कल मैं उनके सिलसिले में एैसी बात लेकर बादशाह के पास आऊँगा के उनकी बर्बादी तै हो जाऐगी।“ इस पर अ़ब्दुल्लाह बिन रबीआ जो के परहेज़गार आदमी थे, ने अ़म्र बिन अल आस से कहा ऐसा मत करना क्योंकि वो हमारे रिश्तेदार हैं गरचे उन्होंने हमारी मुख़ालिफ़त की है अम्र बिन अल आस ने कहाः अल्लाह की क़सम! मैं नजाशी से ये कहूंगा के ये लोग ईसा इब्ने मरयम अलैहिस्सलाम  को अ़ब्द समझते हैं। फिर दूसरे दिन वो दरबारे नजाशी में हाज़िर हुए और कहाः ऐ बादशाह! ये लोग ईसा इब्ने मरयम के बारे में एक बड़ी बात कहते हैं। आप उनको बुलाईये और पूछिये के ईसा इब्ने मरयम के बारे में उनका क्या ख़्याल है? चुनांचे नजाशी ने मुहाजिरीन को बुलवाया ताकि मुआमला दरयाफ़्त करे। हज़रत उम्मे सलमा (رضي الله عنه)ا कहती हैं के इस तरह की सूरते हाल से हम कभी दो-चार नहीं हुए थे। लिहाज़ा तमाम लोग जमा हुए और आपस में मश्वरा करने लगे के हज़रत ईसा के बारे में सवाल किया जाऐगा तो क्या जवाब देंगे? लोगों ने कहाः अल्लाह की क़सम! हम वही बात कहेंगे जो अल्लाह ने कही है और जिस को लेकर हमारे नबी अकरम आए हैं, अब जो होना होगा, हो जाऐे।
मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) की रिवायत है के ज़माद जो क़बीलाऐ अज़्द शनूदा से थे और लोगों को बद रूहों से हिफ़ाज़त के लिए तावीज़ दिया करते थे, मक्का आऐ तो उन्होंने मक्का के सुफ़हा को कहते सुना के मुहम्मद  (नऊ़ज़ू बिल्लाह) पागल हो गया है। इसी तरह सही इब्ने हिब्बान में हज़रत इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) की एक और रिवायत है। वो कहते हैं के जब काब बिन अशरफ मक्का आया तो एहले मक्का उसके पास गए और कहाः हम एहले सिक़ाया और काअ़बे के किलीद बरदार हैं, और आप यसरब के सरदार हैं। अब हम बेहतर हैं या ये लावारिस और ला वलद शख़्स? ये समझता है के ये हम से बेहतर है। तो काब बिन अशरफ ने कहा के तुम सब से बेहतर हो। इस पर अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने ये आयत नाज़िल की:
اِنَّ شَانِئَكَ هُوَ الْاَبْتَرُ
यक़ीनन तुम्हारा दुश्मन ही मुनक़ते है। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : अल कौसर- 03)
اَلَمْ تَرَ اِلَى الَّذِيْنَ اُوْتُوْا نَصِيْبًا مِّنَ الْكِتٰبِ يُؤْمِنُوْنَ بِالْجِبْتِ وَ الطَّاغُوْتِ وَ يَقُوْلُوْنَ لِلَّذِيْنَ كَفَرُوْا هٰۤؤُلَآءِ اَهْدٰى مِنَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا سَبِيْلًا۰۰۵۱
क्या तुम ने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें किताब का एक हिस्सा मिला वो बेहक़ीक़त चीज़ों और ताग़ूत पर ईमान रखते हैं, और एहले कुफ्र के मुताल्लिक़ कहते हैं ये एहले ईमान से कहीं बढ़ कर सही रास्ते पर हैं? (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अन्निसा-51)
हिजरत से मुमानिअ़त
हाकिम ने अपनी मुस्तदरक में ज़िक्र किया है और कहा के इस की सनद सही है। बुख़ारी ने इस की तख़रीज नहीं की, ज़ेहबी ने मुवाफ़िक़त की है, के हज़रत सुहैब कहते हैं के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((أریت دار ھجرتکم سبخۃ بین ظھراني حرۃ، فإما أن تکون ھجراً،
 أوتکون یثرب))
मुझे तुम्हारी हिजरत की जगह को दिखाया गया। जो हिरा की पहाड़ियों के बीच की नर्म (पानी वाली) ज़मीन में है या सरज़मीने हिज्र है या फिर यसरब।
रावी कहते हैं के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) मदीने की तरफ़ गए और हज़रत अबूबक्र  (رضي الله عنه) भी आप के साथ थे। मैंने भी आप के साथ हिजरत का ख़्वाहिशमंद था। मगर क़ुरैश के दो लोगों ने मुझ को रोक लिया। लिहाज़ा मेरी सारी रात खड़े खड़े गुज़री और मैं बैठ भी ना पाया। इन लोगों ने कहा के अल्लाह ने तुम्हें अपने पेट के लिए मसरूफ़ रखा, लेकिन मैंने शिकायत ना की। तो वो लोग मेरे साथ खड़े हुए और मेरा पीछा करते रहे यहाँ तक के मैं अगले मील के पत्थर तक पहुंच गया, वो मुझे मक्का वापिस ले जाना चाहते थे, तो मैंने उनसे कहाः अगर मैं तुम को कुछ ऊ़क़िया सोना (एक ऊ़क़िया, क़रीब 28 ग्राम) दूं के तुम मेरा रास्ता छोड़ दोगे और मुझे जाने दोगे? फिर मैं उनके साथ मक्का गया और उनसे कहा दरवाज़े की चोखट को उखाड़ो, इसके नीचे सोना है और फ़ुलाँ औरत के पास जाओ, और ज़ेवरात ले लो। फिर मैंने मदीने का रुख़ किया और आप (صلى الله عليه وسلم) के क़ुबा से रवाना होने से क़ब्ल आप के पास पहुंच गया। जब आप (صلى الله عليه وسلم) ने मुझे को देखा तो तीन मर्तबा फ़रमायाः (ऐ अबू यहया फ़ायदेमंद सौदा करने वाले) तो मैंने कहाः या रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)! मुझ से पहले कोई आप तक नहीं पहुंचा और यक़ीनन ये ख़बर हज़रत जिब्राईल ने आप को दी है। कुफ़्फ़ारे मक्का ने आप को हिजरत से रोकने में कोई भी दक़ीक़ा उठा नहीं रखा और ये एैलान कर रहे थे के मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) और उनके साथी को क़त्ल करने या कै़द करने वाले को इनाम दिया जाऐगा।
इसी तरह बुख़ारी ने हज़रत बरा (رضي الله عنه) के तरीक़ से नक़ल किया है के अबूबक्र  (رضي الله عنه) ने कहाः हम ने सफ़र शुरू किया तो एहले मक्का हम को तलाश कर रहे थे।
बुख़ारी ने सुराक़ा बिन जशम की हदीस नक़ल की है के सुराक़ा ने कहाः हमारे पास कुफ़्फ़ारे क़ुरैश के चंद क़ासिद आए जो के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) और हज़रत अबूबक्र (رضي الله عنه) को क़त्ल करने या क़ैद करने वाले के लिए इनाम का एैलान कर रहे थे तो मैंने हुज़ूर से कहा के आप (صلى الله عليه وسلم) की क़ौम ने आप पर इनाम का एैलान किया है, तो आप ने फ़रमायाः तुम उसी जगह ठहरो और किसी को हम से मिलने ना देना (हमारे क़रीब ना आने देना)। सुराक़ा कहते हैं के इस तरह मैं दिन के शुरू होते अल्लाह के रसूल का दुश्मन था और दिन के आख़िर में आप का मुहाफ़िज़ बन गया था!
क़त्ल की कोशिशें या धमकियाँ
इमाम बुख़ारी हज़रत अ़रवा बिन ज़ुबैर (رضي الله عنه) के तरीक़ से रिवायत करते हैं के वो कहते हैं केः
(سألت عبد اللہ بن عمرو عن أشد ماصنع المشرکون برسول اللہ ا؟ قال رأیت عقبۃ بن أبي معیط جاء إلی النبیا وھو یصلي، فوضع رداء ہ في عنقہ فخنقہ بہ خنقًا شدیدًا، فجاء أبو بکر حتی دفعہ عنہ، فقال أتقتلون رجلاً أن یقول ربي اللہ، وقد جاء کم بالبینات من ربکم)
मैंने हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उमरो से दरयाफ़्त किया है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  के साथ मुशरिकीन का सब से सख़्त रवैय्या क्या था? तो अ़ब्दुल्लाह बिन उमरो ने फ़रमायाः मैंने देखा के उ़क़बा बिन अबी मुईत रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के पास आया और आप नमाज़ पढ़ रहे थे। उ़क़बा ने आपके गले में चादर डाल कर बहुत ज़ोर से आपका गला दबाया इतने में अबूबक्र  (رضي الله عنه) आ गऐ और धक्का दे दे कर उ़क़बा को दूर किया और कहाः क्या तुम ऐसे शख़्स को क़त्ल करना चाहते हो जो ये कहता है के मेरा रब अल्लाह है। और वो तुम्हारे रब की तरफ़ से वाज़ेह निशानियाँ लेकर तुम्हारे पास आया है।
इमाम बुख़ारी ने हज़रत उ़मर बिन ख़त्ताब (رضي الله عنه) के इस्लाम लाने के वाक़िये के तहत हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर (رضي الله عنه) की रिवायत नक़ल की है वो कहते हैं केः जब हज़रत उ़मर (رضي الله عنه) घर में ख़ौफ़ज़दा बैठे थे के उनके पास अबू अ़मरो आस बिन वायल अल सेहमी आऐ जो यमनी जोड़ा (जामा) पहने थे और रेशमी आसतीन की क़मीस थी। इन का ताल्लुक़ क़बीलाऐ बनी सेहम से था जो ज़मानाऐ जाहिलियत में हमारे हलीफ़ थे। उन्होंने कहाः क्या बात है? तो हज़रत उ़मर ने कहाः तुम्हारी क़ौम ये दावा करती है के अगर मैंने इस्लाम क़ुबूल किया तो वो मुझे क़त्ल कर देंगे। इस पर आस बिन वायल ने कहाः तुम्हें कोई ख़तरा नहीं। इस पर हज़रत उ़मर (رضي الله عنه) मुतमईन हुए, लेकिन मुशरिकीन आप के जबरदस्ती क़त्ल करने की कोशिशों से बाज़ नहीं आऐ।
अ़ल्लामा इब्ने हजर ने फ़तह अलबारी में ज़िक्र किया हैः अस्हाब बुख़ारी, इब्ने इस्हाक़ और मूसा बिन उ़क़बा वग़ैरा ने कहाः जब क़ुरैश ने देखा के सहाबा एैसी जगह चले गए जहाँ वो अम्न-ओ-अमान से रह रहे हैं और उ़मर (رضي الله عنه) ने इस्लाम क़ुबूल कर लिया है और इस्लाम भी बहुत सारे क़बीलों में फैलता जा रहा है (ये सब देख कर) वो इस बात पर मुत्तफिक़ हुए के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  को क़त्ल कर दिया जाये। ये बात अबू तालिब के पास पहुंची लिहाज़ा उन्होंने बनू हाशिम और बनू मुत्तलिब को जमा किया और रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) को उनके जवानों की हिफ़ाज़त में किया और उनके ख़तरे से मेहफ़ूज़ किया जो आप (صلى الله عليه وسلم) के क़त्ल का इरादा रखते थे।
मुसनद अहमद में हज़रत इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है जिसकी सनद में तमाम अश्ख़ास सक़ा हैं सिवाए उ़स्मान अलजुज़री के जिन्हें इब्ने हिब्बान ने तो सक़ा कहा है लेकिन दूसरे मुहद्दिसीन ने ज़ईफ़ बताया है, के हज़रत इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) अल्लाह के इस क़ौल के बारे में कहते हैं:
وَ اِذْ يَمْكُرُ بِكَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا لِيُثْبِتُوْكَ اَوْ يَقْتُلُوْكَ اَوْ يُخْرِجُوْكَ١ؕ وَ يَمْكُرُوْنَ وَ يَمْكُرُ اللّٰهُ١ؕ وَ اللّٰهُ خَيْرُ الْمٰكِرِيْنَ
और याद करो जब कुफ़्फ़ार तुम्हारे साथ चालें चल रहे थे के तुम्हें कैद रखें, या तुम्हें क़त्ल कर दें, या तुम्हें निकाल बाहर करें। वो अपनी चालें चल रहे थे, और अल्लाह अपनी चाल चल रहा था, अल्लाह सबसे बेहतर चाल चलता है। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : अल अनफ़ाल - 30)
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ के इस फ़रमान के इस ताल्लुक़ से इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) से मरवी है के मक्के में एक रात क़ुरैश ने ये मुशावरत की, तो एक ने कहा जब सुबह हो तो इसको बांध दिया जाय (नबी करीम को) तो किसी ने कहाः नहीं उसको क़त्ल कर दो, तो किसी ने मश्वरा दिया के नहीं, उसको जिला वतन कर दिया जाये।
इब्ने हिशाम ने अपनी किताब सीरते इब्ने हिशाम में तख़रीज की है इब्ने इस्हाक़ कहते हैं: क़ुरैश रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के मदीने की तरफ़ हिजरत कर के अपने सहाबा से मिलने के ख़तरे से आगाह थे चुनांचे क़ुरैश के सरदार दारुल नदवा में इकट्ठा हुऐ ताकि वो इस मुआमले में मश्वरा करें। एक शख़्स ने कहाः उनको लोहे की ज़ंजीर में जकड़ दो, फिर किसी ने कहा हम इसको अपने सामने से जिला वतन कर दें, फिर अबू जेहल ने कहाः वल्लाह! मेरे पास एक राय है, मैं नहीं समझता के तुम में से किसी ने ये सोचा होगा लोगों ने कहाः अबू हकम! वो क्या राय है? तो अबु जेहल ने कहाः मेरी राय ये है के हम हर क़बीले से एक मज़बूत, साहिब नसब और बुलंद मर्तबा नौजवान लें। फिर हर एक को एक तेज़ धार तलवार सौंपी जाये। फिर हर कोई उस (मुहम्मद) के पास जाये और एक एक ज़र्ब मारे। इस तरह मुहम्मद को क़त्ल कर दें। इस तरह हम मुहम्मद  से निजात पा जाऐेंगे। (नाअज़ुबिल्लाह)
सहाबा رضی اللہ عنھم में कुछ लोग और भी थे जो क़त्ल किए गए, जैसे हज़रत सुमय्या उम्मे अ़म्मार (رضي الله عنه)ا ये इस्लाम की पहली शहीदा हैं।
कुछ ऐसे भी वाक़ियात हैं जहाँ रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) और आप के प्यारे सहाबा किराम رضی اللہ عنھم ने मुशरिकीन को ललकारा और साबित क़दमी के ऐसे नमूने पेश किए जिन के वो एहल थे।
बुख़ारी ने अल-तारीख़ अल-कबीर में मूसा बिन उ़क़बा से रिवायत की है वो कहते हैं के हज़रत अ़क़ील बिन अबी तालिब (رضي الله عنه) ने उनको बताया। उन्होंने कहाः क़ुरैश अबू तालिब के पास आए और कहाः तुम्हारा भतीजा हमारे ही दरमियान हम को बहुत तकलीफ़ दे रहा है। इस पर अबू तालिब ने कहाः अ़क़ील, मुहम्मद  को मेरे पास लाओ। चुनांचे हज़रत अ़क़ील (رضي الله عنه) हुज़ूर के पास गए और उनको कबस (छोटे से घर) से बुला कर लाऐ। इनको लेकर सख़्त गर्मी में दोपहर के वक़्त निकले चुनांचे वो साया तलाश करते ताकि रमदा की सख़्त धूप-ओ-गर्मी से बचते हुए साये में चलें। जब वो अबू तालिब के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा तुम्हारे इन चचाज़ाद भाईयों (एहले क़ुरैश) का ये गुमान है के तुम उनको उनकी मस्जिदों और इ़बादत ख़ानों में जाकर उनको अज़ीयत देते हो। लिहाज़ा अब तुम उनको तकलीफ़ देने से बाज़ आओ। नबी अकरम ने अपनी आँख को आसमान की तरफ़ उठाया और फ़रमायाः
(( ترون ھذہ الشمس قال ما انا باقدر علی نن اردناذلک منکم علی ان تشعلوا منھا شعلۃ))
क्या तुम इस सूरज को देख रहे हो? मैं उसे उस वक़्त तक नहीं रोक सकता जब तक के तुम इसके शोले से ना झुलस जाओ।
इस पर अबू तालिब ने कहाः वल्लाह! मेरे भतीजे ने कभी झूठ नहीं बोला, लिहाज़ा तुम लोग वापिस लौट जाओ।
बुख़ारी में हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन मसऊ़द (رضي الله عنه) की रिवायत है वो कहते हैं के हज़रत साद बिन मआज़ (رضي الله عنه) उ़मरे के इरादे से चले और अबू सफ़वान उमय्या बिन ख़लफ़ के यहाँ ठहरे। उमय्या भी जब शाम जाता और मदीने से गुज़रता तो हज़रत साद  (رضي الله عنه) के यहाँ क़ियाम करता। उमय्या ने हज़रत साद  (رضي الله عنه) से कहाः थोड़ा इंतिज़ार करो जो निस्फ़ अन्नहार (दोपहर) का वक़्त हो जाये और लोग आराम कर रहे हों तब जाना और तवाफ़ करना। चुनांचे जब हज़रत साद  (رضي الله عنه) तवाफ़ कर रहे थे तो वहाँ अबू जेहल पहुंच गया और इस ने कहाः ये कौन है जो काअ़बे का तवाफ़ कर रहा है? हज़रत साद  (رضي الله عنه) ने कहाः मैं साद हूँ। अबू जेहल ने कहाः तुम बड़े इत्मिनान से काअ़बे का तवाफ़ कर रहे हो जबकि तुम ने मुहम्मद  और इसके साथियों को पनाह दे रखी है। हज़रत साद  (رضي الله عنه) ने कहाः “हाँ” उनके दरमियान नोक झोंक शुरू हो गई। तो उमय्या ने हज़रत साद  (رضي الله عنه) से कहाः अबुल हकम यानी अबू जेहल से तेज़ आवाज़ में बात ना करो वो यहाँ के सरदार हैं। फिर हज़रत साद  (رضي الله عنه) ने कहाः अगर तुम ने मुझे तवाफ़ करने से रोका तो मैं तुम्हारे शाम के तिजारती रास्ते को बंद कर दूंगा। रावी कहते हैं के उमय्या ने बार बार साद को मुतनब्बे किया के तुम आवाज़ बुलंद मत करो, तेज़ आवाज़ में बात मत करो। इस पर साद (رضي الله عنه) को ग़ुस्सा आ गया और कहाः तुम मुझे अपने अ़हद ओ पैमान से दूर रखो मैंने मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) को कहते सुना के वो तुम को क़त्ल करेंगे। उमय्या ने कहाः क्या मुझे? साद (رضي الله عنه) ने कहा हाँ! तुझ को। उमय्या ने कहाः अल्लाह की क़सम! मुहम्मद ने अगर कहा है तो मुहम्मद ने कभी झूठ नहीं बोला। (अलहदीस)
बुख़ारी और मुस्लिम में हज़रत इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) की हदीस है के उन्होंने कहाः जब हज़रत अबूज़र (رضي الله عنه) को नबी अकरम (صلى الله عليه وسلم) की बेअ़सत की ख़बर हुई तो आप मक्का गए और नबी अकरम (صلى الله عليه وسلم) के पास पुहंचे और रसूले अकरम की बातें सुनी और वहीं इस्लाम क़ुबूल कर लिया। रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने उन से फ़रमायाः
))ارجع الی قومک فاخبر ھم حتی یاتیک امری((
अपनी क़ौम की तरफ़ लौट जाओ और उनको इस्लाम से बाख़बर करते रहो, यहाँ तक के तुम्हें मेरा हुक्म मिले।
हज़रत अबूज़र (رضي الله عنه) ने कहाः क़सम उस ज़ाते पाक की जिस के हाथ में मेरी जान है! मैं उनके दरमियान ये बात चीख़ कर कहूंगा। चुनांचे अबूज़र (رضي الله عنه) निकले और काअ़बे में आकर बुलंद आवाज़ से चीख़ेः (मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अ़लावा और कोई माबूद नहीं और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं) लोग उठ खड़े हुए और आप को मारने लगे यहाँ तक के आप गिर पड़े। फिर हज़रत अ़ब्बास (رضي الله عنه) आऐ और लोगों पर पिल पड़े और कहाः तुम लोग तबाह हो! क्या तुम नहीं जानते ये क़बीला ग़फ़ार का है जो के तुम्हारे शाम के तिजारती रास्ते में वाके़ है। इस तरह हज़रत अबूज़र (رضي الله عنه) को लोगों से बचाया। दूसरे दिन फिर हज़रत अबूज़र (رضي الله عنه) आए और पिछले दिन वाला अ़मल दुहराया तो लोग फिर आप पर टूट पड़े। इस दिन भी हज़रत अ़ब्बास (رضي الله عنه) ने लोगों को मार मार कर भगाया।
फ़ज़ाइल अल सहाबा में इमाम अहमद बिन हंबल رحمت اللہ علیہ अ़रवाह से रिवायत करते हैं के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) के बाद मक्का के अंदर क़ुरआन को बाआवाज़े बुलंद पढ़ने वाले पहले शख़्स हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन मसऊ़द (رضي الله عنه) थे। रावी कहते हैं के एक दिन रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  के अस्हाब एक जगह जमा थे। वो आपस में कहने लगेः वल्लाह! क़ुरैश ने अभी तक बुलंद आवाज़ से क़ुरआन किसी से नहीं सुना। कौन है जो ये काम करे? हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन मसऊ़द (رضي الله عنه) ने कहा मैं सुनाऊंगा। लोगों ने कहाः तुम्हारे सिलसिले में हमें ख़ौफ़ है। हम ऐसे शख़्स के मुतलाशी हैं जिस का ख़ानदान उसे उन लोगों से मेहफ़ूज़ रखे जो उसे ज़द ओ कोब करें। हज़रत इब्ने मसऊ़द (رضي الله عنه) ने कहाः मुझे इज़ाज़त दीजिए। यक़ीनन अल्लाह मुझे उन लोगों से मेहफ़ूज़ रखेगा। चुनांचे हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन मसऊ़द (رضي الله عنه) सुबह ही चले और इशराक़ के वक़्त काअ़बे पहुंचे जब क़ुरैश अपनी मज्लिसों में बैठे हुए थे। चुनांचे हज़रत अ़ब्दुल्लाह (رضي الله عنه) एक जगह खड़े हुए इसके बाद पढ़ना शुरू किया। बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम और अपनी आवाज़ बुलंद करते हुए पढ़ते जाते (عَلَّمَ الْقُرْاٰنَؕ۰۰۲ اَلرَّحْمٰنُۙ۰۰۱) लोगों ने ग़ौर से सुना और कहने लगे ये इब्ने उम्मे अ़ब्द क्या पढ़ रहा है? फिर कहने लगे ये ज़रूर मुहम्मद  की लाई हुई चीज़ (लाए हुए कलाम) को पढ़ रहा है। इस पर लोग उठ खड़े हुए और आप (رضي الله عنه) के चेहरे पर मारने लगे और आप क़ुरआन पढ़ते जाते, फिर हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन मसऊ़द (رضي الله عنه) अपने साथियों के पास वापस गए, साथियों ने आपके रुख़ मुबारक पर ज़ख़्म के आसार देखे तो कहाः इसी का हमें ख़ौफ़ था। हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन मसऊ़द (رضي الله عنه) ने कहाः अब अल्लाह के दुश्मन मेरे नज़दीक और ज़लील हो गऐ। अगर तुम लोग चाहो तो मैं कल फिर उनके पास जाऊं और ऐसा ही दुबारा करूं। लोगों ने कहाः नहीं, बस इतना काफ़ी है तुम ने उनको वो कलाम सुना दिया जिस को वो नापसंद करते हैं।
बुख़ारी ने उम्मुल मोमिनीन हज़रत आईशा (رضي الله عنه)ا से रिवायत की है वो कहती हैं के मैंने जब से होश सँभाला अपने वालिदैन को इस्लाम पर ही पाया, ये चीज़ अशराफ़ क़ुरैश को नापसंद थी लिहाज़ा उन्होंने इब्ने अलदग़्ना को बुलवाया। जब इब्ने अलदग़्ना उनके पास गए तो अशराफ़ क़ुरैश ने कहाः हम ने तुम्हारी हमसायगी के ख़्याल से (अबूबक्र (رضي الله عنه) को) मोहलत दे रखी थी और हम अबूबक्र की अलल एैलान इबादात को बर्दाश्त नहीं करेंगे। हज़रत आईशा (رضي الله عنه)ا कहती हैं के इब्ने अलदग़्ना अबूबक्र (رضي الله عنه) के पास गए और कहाः तुम्हें पता है के हमारे दरमियान किस बात पर अ़हद था। लिहाज़ा अब या तो उसी अ़हद पर बने रहो या मेरे ऊपर तुम्हारा कोई ज़िम्मा नहीं। मैं नहीं चाहता के तुम अ़रब को (क़ुरआन) सुनाते फिरो। तो अबूबक्र  (رضي الله عنه) ने कहाः जाओ मैंने तुम्हारी हमसायगी का अहद वापिस किया और मैं अल्लाह की हमसायगी को पसंद करता हूँ और इसी से राज़ी हूँ।
हाकिम ने मुस्तदरक में रिवायत नक़ल की है और कहा है के ये सही है मुस्लिम की शर्त पर है, इमाम ज़ेहबी ने इस की मुवाफ़िक़त की है और इब्ने हिब्बान ने अपनी सही में इस की रिवायत की हैः अ़ब्दुल्लाह इब्ने उमर (رضي الله عنه) से मरवी है के वो कहते हैं: हज़रत उ़मर (رضي الله عنه) ने मक्के की मस्जिद में मुशरिकीन से लड़ाई की और उनसे लड़ते रहे, यहाँ तक दोपहर हो गई और सूरज सर पर आ गया और आप थक कर बैठ गए तो एक ख़ूबसूरत आदमी जिस ने सुर्ख़ चादर और क़मीस पहन रखी थी, आया और लोगों को हटाया। फिर कहा तुम लोग इस आदमी से क्या चाहते हो? लोगों ने कहाः वल्लाह कुछ नहीं, मगर ये बेदीन हो गया है। उस आदमी ने कहाः अच्छा, उसने अपने लिए एक दीन को इख़्तियार किया, लिहाज़ा इस आदमी को और इसके दीन को भी छोड़ दो। क्या तुम ये समझते हो के बनू अ़दई उ़मर (رضي الله عنه) के क़त्ल से राज़ी हो जाऐेंगे, नहीं क़तई नहीं। बनू अ़दई कभी राज़ी नहीं होंगे। हज़रत उ़मर (رضي الله عنه) ने उस दिन कहाः ऐ अल्लाह के दुश्मनो! अगर हम तीन सौ तक हो गए तो तुम को यहाँ से निकाल बाहर करेंगे। हज़रत अ़ब्दुल्लाह (رضي الله عنه) ने बाद में आप से पूछा के वो आदमी कौन था जिस ने लोगों को आप से दूर किया था? तो उ़मर (رضي الله عنه) ने कहाः आस बिन वायल अबू अमरो इब्नुल आस थे।
ये हाकिम के अल्फाज़ हैं और ये हदीस अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर (رضي الله عنه) की गुज़िश्ता हदीस से मुतआरिज़ नहीं है जिसको बुख़ारी ने रिवायत किया है और जिसमें है के हज़रत उ़मर (رضي الله عنه) क़त्ल के ख़ौफ़ से घर में बैठे थे क्योंकि मुम्किन है के ये दोनों हदीसें दो मुख़्तलिफ़ औक़ात (ज़माने) की हों।
बैहक़ी ने अद्दलाईल और ज़ेहबी ने अत्तारीख़ में मूसा बिन उ़क़्बा से रिवायत किया है केः हज़रत उ़स्मान बिन मज़ऊ़न (رضي الله عنه) और उनके साथी जब लौटे तो मक्के में बग़ैर किसी की जानिब से अहद ओ अमान के दाख़िल होना मुम्किन ना था लिहाज़ा वलीद बिन मुग़ीरा ने उ़स्मान बिन मज़ऊ़न को अमान दी। मगर जब उस्मान ने अपने साथियों को इब्तिला ओ आज़माइश में गिरफ़्तार देखा और देखा के एक गिरोह को कोड़े (चाबुक) और आग से ताज़ीब दी जा रही थी, जबकि उ़स्मान बिन मज़ऊ़न (رضي الله عنه) से कोई तआरुज़ नहीं किया गया। उन्होंने ये पसंद किया के उनको भी अज़ीयत दी जाये। चुनांचे वो वलीद के पास गए और कहाः ऐ चचा! आप ने मुझे अमान और पनाह दी है मैं चाहता हूँ के आप मुझे अपने ख़ानदान में ले जाऐं और मुझ से बराअत का इज़हार कर दें। वलीद ने कहाः ऐ भतीजे! कोई भी तुम्हें नुक़्सान पहुंचा सकता है और गाली दे सकता है। तो उस्मान (رضي الله عنه) ने कहाः नहीं अल्लाह की क़सम कोई मुझ से छेड़छाड़ नहीं करेगा और ना ही अज़ीयत देगा। जब उस्मान (رضي الله عنه) ने अहद की वापसी की ज़िद की तो वलीद उनको लेकर मस्जिद में आऐ क़ुरैश अपनी मेहफ़िल में पहले से मौजूद थे। और वलीद बिन रबीआ उनको अशआर सुना रहा था, वलीद ने उस्मान का हाथ थामा और कहाः इस ने मुझे इस बात पर मजबूर किया के मैं इसको दी गई अपनी अमान-ओ-पनाह से ख़ुद को बरी करूं, और मैं तुम को गवाह बनाता हूँ के मैं इस से बरी हूँ इल्ला ये अमान चाहे। तो उस्मान (رضي الله عنه) ने कहाः इसने सच कहा है। ख़ुदा की क़सम मैं उसकी अमान को नापसंद करता हूँ लिहाज़ा वो मुझ से बरी हुआ मैंने इसको बरी किया) फिर आप बैठ गए और लोगों ने आप को धर दबोचा।
सहाबा رضی اللہ عنھم ने इस साबित क़दमी और हौसला मंदी का सबूत तो दिया मगर एक मर्तबा उन्होंने इस तकलीफ़ और अज़ीयत का शिकवा रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) से किया और ये दरख़्वास्त की के वो उनके लिए दुआ करें और मदद तलब करें। इस पर रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) का जवाब था जिस को बुख़ारी ने ख़ब्बाब बिन अरत (رضي الله عنه) से नक़ल किया है वो कहते हैं: हम ने रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  से शिकवा किया वो काअ़बे के साये में चादर की तकिया बनाए बैठे थे। हम ने कहाः आप हमारे लिए मदद तलब क्यों नहीं करते? हमारे लिए दुआ क्यों नहीं करते? तो आप ने फ़रमायाः
((ألا تستنصر لنا ألا تدعو لنا؟ قال: کان الرجل فیمن قبلکم یحفر لہ في الأرض فیجعل فیہ، فیجاء با المنشار فیوضع علی رأسہ فیشق باثنتین وما یصدہ ذالک عن دینہ، ویمشط بأمشاط الحدید مادون لحمہ، من عظم أو عصب وما یصدہ ذالک عن دینہ، واللہ لیتمن ھذا الأمر، حتی یسیر الراکب من صنعاء إلی حضر موت لا یخاف إلا اللہ أو الذئب علی غنمہ، ولکنکم تستعجلون))
गुज़िश्ता उम्मतों के लोगों के लिए गढ़े खोदे जाते और उनमें डाला जाता फिर आरे उनके सर पर रख कर उनके दो टुकड़े कर दिए जाते मगर ये चीज़ भी उनको उनके दीन से ना फेर सकी। लोहे की कंघी से उनकी हड्ड़ियों और पट्ठों से गोश्त उतार लिया जाता मगर ये चीज़ भी उनको दीन से ना हटा सकी। अल्लाह की क़सम! ये मुआमला मुकम्मल हो जाऐे हत्ता के एक मुसाफ़िर सनआ से हज़रे मौत तक सफ़र करेगा मगर ख़ुदा के और अ़लावा और किसी का ख़ौफ़ ना होगा या फिर अपनी बकरियों पर भेड़िऐ का ख़ौफ़ होगा। मगर तुम लोग जल्दबाज़ी कर रहे हो।


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