कुरआने
करीम,
अल्लाह (سبحانه وتعالى) का अज़ीमुश्शान कलाम जो शबे क़दर में नाजिल
हुआ,
अमरीकी फ़ौजीयों ने उसकी बेहुर्मती और बेइज़्ज़ती की जो कि इस्लाम
के ख़िलाफ़ उनकी जंग का एक हिस्सा है जिसे वो दहश्तगर्दी के ख़िलाफ़ जंग का नाम देते हैं।
मलऊन अमरीकी फ़ौजीयों ने क़ुरआने पाक को ज़मीन पर रख कर पैरों से रौंदा, इस पर ठोकरें मारी, इस पर पेशाब किया और उसे पाख़ाने में बहाया (मआज़ अल्लाह)। ये इन कामों में से
एक है जो वो इस्लाम को बदनाम करने, क़ुरआन मजीद को रुसवा करने, हमारे ईमान को
कमज़ोर करने और हमारी इक़दार (Values) से खिलवाड़ करने के लिए कर रहे हैं।
हालाँकि
इस तरह के वाक़ियात सुनकर मुसलमानों को सख़्त तकलीफ़ होती है लेकिन इसमें ताज्जुब की
कोई बात नहीं है। गवान्ता नामू की खाड़ी के ये इन्किशाफ़ात हमारे लिए नए हो सकते हैं
लेकिन इस तरह की बेशुमार मिसालें हैं जब क़ुरआने करीम और उसके पैग़ाम को बेहुर्मत करने
की कोशिशें की गईं। हम अमरीकन फ़ौजीयों की वो तस्वीरें देख चुके हैं जिनमें उनको उन्ही
के ज़रीये तबाहशुदा मस्जिदों में दाख़िल होते हुए दिखाया गया है, जहां वो क़ुरआन मजीद के मुक़द्दस नुस्ख़ों को मस्जिद के फ़र्श पर
फेंक रहे हैं। हम आलमे इस्लाम की कठपुतली हुकूमतों जैसे सऊदी अरब, कुवैत और पाकिस्तान को देख रहे हैं कि वो किस तरह वाशिंगटन
में अपने आक़ाओं के इशारों पर क़ुरआन शरीफ़ की मुतअद्दिद आयात को मदरसों में पढ़ाने पर
पाबंदी लगा रहे हैं। हम ये भी देख रहे हैं कि अमरीका की पुश्तपनाही (Saport) में मिस्र, पाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान की हुकूमतें इन मुसलमानों को क़ैद, टॉर्चर और क़त्ल कर रही हैं जो बगै़र किसी तशद्दुद (हिंसा)
के पुरअम्न तरीक़े से अल्लाह (سبحانه وتعالى) के अहकाम को मुआशरे में नाफ़िज़ करने के
लिए कोशिश कर रहे हैं।
अज़ीज़ मुस्लिम
भाईयों और बहनों! क़ुरआन मजीद अल्लाह (سبحانه
وتعالى) का कलाम है जो रसूलल्लाह (صلى الله
عليه وسلم) पर नाज़िल हुआ। किसी भी तरह के संदेह से बढ़कर ये एक साबितशुदा मोजिज़ा
है। अल्लाह तआला ने सारी दुनिया को चैलेंज दिया है :
وَاِنْ
كُنْتُمْ فِىْ رَيْبٍ مِّمَّا نَزَّلْنَا عَلٰي عَبْدِنَا فَاْتُوْا بِسُوْرَةٍ
مِّنْ مِّثْلِهٖ ۠ وَادْعُوْا شُهَدَاۗءَكُمْ مِّنْ دُوْنِ
اللّٰهِ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ 23
''अगर तुम इस किताब में शक करते हो जो हमने अपने बंदे पर उतारी है तो तुम ऐसी एक
सूरत बना लाओ और अल्लाह के सिवा अपने तमाम हामीयों को बुला लो, अगर तुम सच्चे हो।'' (तर्जुमा मआनिऐ क़ुरआन सूरह बक़रा आयत 23)
इरशादे
बारी तआला है :
الٓرۚ ڪِتَـٰبٌ أَنزَلۡنَـٰهُ إِلَيۡكَ لِتُخۡرِجَ
ٱلنَّاسَ مِنَ ٱلظُّلُمَـٰتِ إِلَى ٱلنُّورِ بِإِذۡنِ رَبِّهِمۡ إِلَىٰ صِرَٲطِ ٱلۡعَزِيزِ
ٱلۡحَمِيدِ
''अलिफ़ लाम रा, ये किताब है उसको हमने तुम पर उतारा है, ताकि तुम लोगों को तारीकी (अंधेरे) से रोशनी की तरफ़ उनके रब
के हुक्म से निकालो यानी ज़ाते ग़ालिब और सतूदा सिफ़ात के रास्ते की तरफ़।'' (तर्जुमा मआनिऐ क़ुरआन सूरह सूरह इब्राहीम आयत 1)
क़ुरआन शरीयत
की बुनियाद है और शरीयत इस्लामी हुकूमत यानी ख़िलाफ़त का सच्चा क़ानून है। सिर्फ़ ख़िलाफ़त
ही हमारी उम्मत को मुत्तहिद (एक) करने का वाहिद ज़रीया है, उम्मत के ज़राए व वसाइल (संसाधन के स्त्रोत), दौलत, क़ाबिलीयत व सलाहियत, उसकी सियासी और आर्थिक शक्ति और फ़ौजी महारत का सही इस्तिमाल
सिर्फ़ ख़लीफ़ा ही कर सकता है। ये वो रियासत है जो अपने तमाम शहरीयों चाहे वो मुस्लिम
हो या ग़ैर-मुस्लिम की देखभाल करती है और सबके साथ इंसाफ़ किया जाता है। ख़िलाफ़त के क़याम
के लिए काम करने की ज़िम्मेदारी अल्लाह तआला ने हमारी गरदनों पर डाली है क्योंकि रसूलल्लाह
(صلى
الله عليه وسلم) का फ़रमान है :
''और जो भी इस हालत में मरा कि उसकी गर्दन पर ख़लीफ़ा की बैअत का तौक़ ना था तो
वो जाहिलियत की मौत मरा।'' (हदीस सहीह मुस्लिम)
हमारे मौजूदा
हुक्मराँ और ये नाफ़िज़शुदा निज़ाम इस मुसीबत से निजात नहीं दिला सकते जिसका आज हमारी
उम्मत को सामना है। इस्लामी अहकामात के मुताबिक़ मुसलमानों के मसाइल को हल करने के बजाय
ये हुक्मराँ इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मनों का साथ देते हैं। क्या हम में से कोई
भी तसव्वुर कर सकता है कि अगर हमारी पूरी ताक़त एक ख़लीफ़ा के तहत होती तो अल्लाह के
इन दुश्मनों में क्या इतनी जुर्रत हो सकती थी कि वो क़ुरआने करीम और मुसलमानों के साथ
इस किस्म का बरताव करें?
रसूलल्लाह
(صلى
الله عليه وسلم) का इरशाद, सही मुस्लिम में मनक़ौल है :
''इमाम यानी ख़लीफ़ा एक ढाल है जिसके पीछे तुम लड़ते हो और जिस के ज़रीये तुमको तहफ़्फ़ुज़
हासिल होता है।''
हर वक़्त
जब कोई ऐसा बेहूदा वाक़िया पेश आता है, हम ग़ुस्से से भर जाते हैं। ऐसे वाक़ियात का इल्म होने के बाद हममें से कितने
लोग ख़िलाफ़त के क़याम की कोशिश और दुआ करते हैं या इन मुतअद्दिद मसाइल के बुनियादी हल
के लिए अपनी दोड़भाग में इज़ाफ़ा करते हैं? अब इस पुकार का कौन जवाब देगा और आलमे इस्लाम में ख़िलाफ़ते राशिदा के क़याम के लिए
रसूलल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के तरीक़े पर काम करने के लिए हमारा
कौन साथ देगा?
يٰٓاَيُّھَا
الَّذِيْنَ اٰمَنُوا اسْتَجِيْبُوْا لِلّٰهِ وَلِلرَّسُوْلِ اِذَا دَعَاكُمْ لِمَا
يُحْيِيْكُمْ ۚ وَاعْلَمُوْٓا اَنَّ اللّٰهَ يَحُوْلُ بَيْنَ الْمَرْءِ وَقَلْبِهٖ
وَاَنَّهٗٓ اِلَيْهِ تُحْشَرُوْنَ 24
''ऐ ईमान वालो! तुम अल्लाह और उसके रसूल की पुकार पर उठो, जब वो तुम्हें ज़िंदगी बख़श चीज़ की तरफ़ बुलाए, और जान रखो कि अल्लाह तुम्हारे और तुम्हारे क़लब के दरमियान
है और ये कि तुम्हें इसी के आगे हश्र में जाना है।'' (तर्जुमा मआनिए क़ुरआन सूरह अन्फ़ाल आयत 24)
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