रियासते ख़िलाफ़त (खिलाफते उस्मानिया)
इस अम्र से बख़ूबी वाक़िफ़ थी के आल सऊद हुक्मराँ बर्तानिया के एजैंट मुहरे और उनके वफ़ादार हैं नीज़ दीगर मुमालिक जैसे जर्मनी फ़्रांस और रूस भी इस हक़ीक़त को समझते थे। ये भी सब को मालूम था के आल सऊद अंग्रेज़ों के ईमाँ पर रवाँ हैं। उधर अंग्रेज़ ख़ुद भी आल सऊद की बतौर रियासत के लिऐ अपनी हिमायत को पोशीदा नहीं रखते थे। इसके साथ साथ असलेहा की वो बड़ी खेप और ज़बरदस्त साज़ो सामान जो के उनको हिंदूस्तान के रास्ते पहुंच रहा था और जंगी तैय्यारी के लिऐ माली रक़म जो उन्हें दी जा रही थी,
ये सब का सब अंग्रेज़ का ही दिया हुआ असलेहा और माल था। चुनांचे दीगर यूरोपी मुमालिक बिलख़ुसूस फ़्रांस, वहाबी तेहरीक के मुख़ालिफ़ थे क्योंके वो इस तेहरीक के पसे पर्दा अंग्रेज़ का हाथ देख रहे थे।
रियासते ख़िलाफ़त
ने वहाबियों की तेहरीक की बेख़ कुनी की कोशिश की थी ताहम ये कोशिश बार आवर ना हो सकी
थी और मदीना मुनव्वरा और दमिशक़ में इस्लामी रियासत के वाली भी इस तेहरीक को रोक पाने
में नाकाम रहे थे। फिर इस्लामी रियासत ने मिस्र में अपने वाली मुहम्मद अली को वहाबियों
से निमटने का हुक्म दिया लेकिन चूँके वो फ़्रांस का आला कार था लिहाज़ा वो मुतज़बज़ब हुआ।
दरअस्ल फ़्रांस ने ही उसे मिस्र पर क़ब्ज़ा करने में मदद की थी और क़ब्ज़ा करने के बाद इसने
रियासत ए ख़िलाफ़त पर दबाओ डाल कर ख़ुद को वहाँ का वाली तस्लीम करवा लिया था। अब फ़्रांस
के तहर्रुक और वरग़लाने पर इस ने उस्मानी सुलतान के हुक्म पर 1811 में अपने बेटे तूसून को वहाबियों के साथ जंग करने के लिऐ भेजा।
वहाबियों और मिस्री अफ्वाज के दरमियान बहुत से मार्के बरपा भी हुए और 1812 में मिस्री फ़ौजें मदीना मुनव्वरा को फ़तह करने में कामयाब हो
गईं। फिर अगस्त 1816
में वाली ए मिस्र मुहम्मद अली ने अपने बेटे इबराहीम को क़ाहिरा
से भेजा जिस ने वहाबियों का बिलकुल सफ़ाया कर दिया हत्ता के वो अपने दारुल हकूमत अल
दिरईया में क़िला बंद हो गए। इबराहीम ने अप्रैल 1818 की पूरी गर्मियों में उन का मुहासिरा जारी रखा, और 9 सितंबर 1818 को वहाबियों
ने घुटने टेक दिए। इबराहीम के लश्कर ने अल दिरईया को मुकम्मल तौर पर पीस कर रख दिया
हत्ता के मशहूर है के इस ने अल दिरईया की ज़मीन हमवार कर दी ताके उनका कोई निशान बाक़ी
ना रहे। इसी के साथ ही अंग्रेज़ों की कोशिशें भी ख़त्म हो गईं।
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