शौक़े जन्नत और नेकी में सबक़त
وَ سَارِعُوْۤا اِلٰى مَغْفِرَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْ وَ جَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمٰوٰتُ وَ الْاَرْضُ١ۙ اُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِيْنَۙ
और अपने रब की मग़फ़िरत और उस जन्नत की तरफ़ बढ़ो जिसकी वुसअत आसमानों और ज़मीन जैसी है, और वो उन लोगों के लिए तैय्यार है जो डर रखते हैं। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम सूरा आले इमरान-133)
दूसरी जगह इरशाद हैः
وَ نَادٰۤى اَصْحٰبُ النَّارِ اَصْحٰبَ الْجَنَّةِ اَنْ اَفِيْضُوْا عَلَيْنَا مِنَ الْمَآءِ اَوْ مِمَّا رَزَقَكُمُ اللّٰهُ١ؕ قَالُوْۤا اِنَّ اللّٰهَ حَرَّمَهُمَا عَلَى الْكٰفِرِيْنَۙ
एहले नार एहले जन्नत को पुकारेंगे के थोड़ा सा पानी हम पर बहा दो, या उन चीज़ों में से कुछ जो अल्लाह ने तुम्हें दी हैं! वो कहेंगेः अल्लाह ने तो ये दोनों चीज़ें काफ़िरों पर हराम कर दी हैं। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : आराफ़- 50)
और जिस ने जन्नत या जहन्नुम या मौत के बाद दोबारा ज़िन्दा किया जाना या हिसाबे आख़िरत का इंकार किया तो दलाइले क़तईय्या हैं जो इस पर दलालत करते हैं के वो काफ़िर है। जिन लोगों के लिए जन्नत तैय्यार की गई हैं उनकी कुछ अक़्साम हैं।
अन्बिया, सिद्दीक़ीन, शुहदा ओ सालिहीन:
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का इरशाद हैः
وَ مَنْ يُّطِعِ اللّٰهَ وَ الرَّسُوْلَ فَاُولٰٓىِٕكَ مَعَ الَّذِيْنَ اَنْعَمَ اللّٰهُ عَلَيْهِمْ مِّنَ النَّبِيّٖنَ وَ الصِّدِّيْقِيْنَ۠ وَ الشُّهَدَآءِ وَ الصّٰلِحِيْنَ١ۚ وَ حَسُنَ اُولٰٓىِٕكَ رَفِيْقًاؕ
जो कोई अल्लाह और रसूल की इताअ़त करता है तो ऐसे ही लोग उन लोगों के साथ हैं जिन पर अल्लाह ने नवाज़िश फ़रमाई है। वो अन्बिया, सिद्दीक़ीन, शुहदा और सालिहीन हैं और वो क्या ही अच्छे रफीक हैं। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीम: अन्निसा -69)
नेकोकारःइरशाद रब्बानी हैः
اِنَّ الْاَبْرَارَ لَفِيْ نَعِيْمٍۙ
बेशक वफ़ा शेआर लोग एैश ओ निशात में होंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआनः मुतफ़्फिीन- 22)
اِنَّ الْاَبْرَارَ يَشْرَبُوْنَ مِنْ كَاْسٍ كَانَ مِزَاجُهَا كَافُوْرًاۚ۰۰۵ عَيْنًا يَّشْرَبُ بِهَا عِبَادُ اللّٰهِ يُفَجِّرُوْنَهَا۠ تَفْجِيْرًا۰۰۶ يُوْفُوْنَ بِالنَّذْرِ وَ يَخَافُوْنَ يَوْمًا كَانَ شَرُّهٗ مُسْتَطِيْرًا۰۰۷ وَ يُطْعِمُوْنَ الطَّعَامَ عَلٰى حُبِّهٖ مِسْكِيْنًا وَّ يَتِيْمًا وَّ اَسِيْرًا۰۰۸ اِنَّمَا نُطْعِمُكُمْ لِوَجْهِ اللّٰهِ لَا نُرِيْدُ مِنْكُمْ جَزَآءً وَّ لَا شُكُوْرًا۰۰۹ اِنَّا نَخَافُ مِنْ رَّبِّنَا يَوْمًا عَبُوْسًا قَمْطَرِيْرًا۰۰۱۰ فَوَقٰىهُمُ اللّٰهُ شَرَّ ذٰلِكَ الْيَوْمِ وَ لَقّٰىهُمْ نَضْرَةً وَّ سُرُوْرًاۚ۰۰۱۱ وَ جَزٰىهُمْ بِمَا صَبَرُوْا جَنَّةً وَّ
حَرِيْرًا
यक़ीनन वफ़ादार लोग एक जाम पियेंगे जिस में आमेज़िश काफ़ूर की होगी, क्या कहना उस चश्मे का जिस पर बैठ कर अल्लाह के बंदे पियेंगे, इस तौर पर के उसे बहा बहा के ले जाऐं। वो नज़र पूरी करते हैं, और इस दिन से डरते हैं, जिसकी आफ़त हमागीर है, और वो मुहताज और यतीम और क़ैदी को खाना उसकी चाहत रखते हुए खिलाते हैं: हम तो तुम्हें मेहज़ अल्लाह की ख़ुशनूदी के लिए खिलाते हैं, ना के तुम से कोई बदला चाहते हैं, और ना शुक्रिया, हमें तो अपने रब की तरफ़ से एक ऐसे दिन का ख़ौफ़ लाहक़ है जो त्यौरी पर बल डाले हुए तुर्श होगा। बस अल्लाह ने उन्हें उस दिन के शर से बचा लिया, और उन्हें ताज़गी और ज़ेबाई और सरूर अ़ता फ़रमाया, और जो सब्र उन्होंने किया उसके सिले में उन्हें जन्नत और रेशम अ़ता किया। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः दहर - 05 से 12)
बर्गुज़ीदा साबिक़ीन (सबक़त करने वाले चुनिंदा हज़रात):
وَ السّٰبِقُوْنَ السّٰبِقُوْنَۚۙ۰۰۱۰ اُولٰٓىِٕكَ الْمُقَرَّبُوْنَ۠ۚ۰۰۱۱ فِيْ جَنّٰتِ النَّعِيْمِ
और आगे बढ़ जाने वाले तो आगे बढ़ जाने वाले ही हैं। वही मुक़र्रब हैं, नेअ़मत भरी जन्नतों में होंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल वाक़िआ -10 से12)
अस्हाबे यमीन:
وَ اَصْحٰبُ الْيَمِيْنِ١ۙ۬ مَاۤ اَصْحٰبُ الْيَمِيْنِؕ۰۰۲۷ فِيْ سِدْرٍ مَّخْضُوْدٍۙ۰۰۲۸ وَّ طَلْحٍ مَّنْضُوْدٍۙ۰۰۲۹ وَّ ظِلٍّ مَّمْدُوْدٍۙ۰۰۳۰ وَّ مَآءٍ مَّسْكُوْبٍۙ۰۰۳۱ وَّ فَاكِهَةٍ كَثِيْرَةٍۙ۰۰۳۲ لَّا مَقْطُوْعَةٍ وَّ لَا مَمْنُوْعَةٍۙ۰۰۳۳ وَّ فُرُشٍ مَّرْفُوْعَةٍؕ۰۰۳۴ اِنَّاۤ اَنْشَاْنٰهُنَّ اِنْشَآءًۙ۰۰۳۵ فَجَعَلْنٰهُنَّ اَبْكَارًاۙ۰۰۳۶ عُرُبًا اَتْرَابًاۙ۰۰۳۷ لِّاَصْحٰبِ الْيَمِيْنِ
रहे ख़ुशनसीब लोग तो ख़ुश नसीबों का क्या केहना! वो वहाँ होंगे जहाँ बेख़ार के बेर होंगे और तेह ब तेह चढ़े केले, दूर तक फैली हुई छाँव, बहता हुआ पानी, बहुत से लज़ीज़ फल जिनका ना सिलसिला टूटने वाला होगा, और ना उन पर कोई रोक टोक होगी, बुलंद मरतबे के फ़र्श होंगे (और वहाँ उनकी बीवियाँ होंगी) यक़ीनन जिन्हें हम ने एक ख़ास अटान पर उठाया, और हम ने उन्हें कुंवारियाँ बनाया, इश्क़ ओ मुहब्बत वाली दिलरुबा, उम्र में मिलती जुलती, ख़ुशनसीब लोगों के लिए। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः वाक़िया- 27 से 38)
मुहसिनीन (एहसान करने वाले):
لِلَّذِيْنَ اَحْسَنُوا الْحُسْنٰى وَ زِيَادَةٌ١ؕ وَ لَا يَرْهَقُ وُجُوْهَهُمْ قَتَرٌ وَّ لَا ذِلَّةٌ١ؕ اُولٰٓىِٕكَ اَصْحٰبُ الْجَنَّةِ١ۚ هُمْ فِيْهَا خٰلِدُوْنَ
अच्छे से अच्छा कर देने वालों के लिए अच्छा बदला है और इसके सिवा कुछ और भी और उनके चेहरों पर ना तो कलोन्स छाएगी और ना ज़िल्लत। वही जन्नत वाले हैं, वो इस में मुस्तक़िल तौर पर रहेंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआनः यूनुस- 26)
सब्र करने वाले:
جَنّٰتُ عَدْنٍ يَّدْخُلُوْنَهَا۠ وَ مَنْ صَلَحَ مِنْ اٰبَآىِٕهِمْ وَ اَزْوَاجِهِمْ وَ ذُرِّيّٰتِهِمْ وَ الْمَلٰٓىِٕكَةُ يَدْخُلُوْنَ عَلَيْهِمْ مِّنْ كُلِّ بَابٍۚ۰۰۲۳ سَلٰمٌ عَلَيْكُمْ بِمَا صَبَرْتُمْ فَنِعْمَ
عُقْبَى الدَّارِؕ
यानी अ़दन के बाग़ात हैं जिन में वो दाख़िल होंगे और उनके बाप दादा, और उनकी बीवियों और उनकी औलाद में से जो नेक होंगे वो भी, और फ़रिश्ते हर दरवाज़े से उनके पास पहुंचेंगेः तुम पर सलाम है, इसके बदले में जो तुम ने सब्र से काम लिया। पस क्या ही अच्छा है अंजाम दारे आख़िरत का! (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : रअद -23, 24)
अपने रब का ख़ौफ़ रखने वाले:
وَ لِمَنْ خَافَ مَقَامَ رَبِّهٖ جَنَّتٰنِۚ
मगर जो अपने रब के हुज़ूर खड़े होने का ख़ौफ़ रखता होगा, उसके लिए दो बाग़ हैं। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: रहमान-46)
मुत्तक़ी ओ परहेज़गार:
إِنَّ ٱلۡمُتَّقِينَ فِى جَنَّـٰتٍ۬ وَعُيُونٍ
यक़ीनन डर रखने वाले बागों और चश्मों में होंगे। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआन:हिज्र-45)
اِنَّ الْمُتَّقِيْنَ فِيْ مَقَامٍ اَمِيْنٍۙ۰۰۵۱ فِيْ جَنّٰتٍ وَّ عُيُوْنٍۚ
बेशक डर रखने वाले बे ख़ौफ़ी की जगह होंगे, बागों और चश्मों में, (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीम: अद् दुख़्ख़ान -51,52)
تِلْكَ الْجَنَّةُ الَّتِيْ نُوْرِثُ مِنْ عِبَادِنَا مَنْ كَانَ تَقِيًّا
ये है वो जन्नत जिस का वारिस हम अपने बंदों में से उनको बनाएंगे जो डर रखने वाले हों। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: मरयम- 63)
مَثَلُ الْجَنَّةِ الَّتِيْ وُعِدَ الْمُتَّقُوْنَ١ؕ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ١ؕ اُكُلُهَا دَآىِٕمٌ وَّ ظِلُّهَا١ؕ تِلْكَ عُقْبَى الَّذِيْنَ اتَّقَوْا١ۖۗ وَّ عُقْبَى الْكٰفِرِيْنَ النَّارُ
डर रखने वालों के लिए जिस जन्नत का वादा है उसकी शान ये है के उसके नीचे नहरें बेह रही हैं, इसके फल दाइमी हैं, और इसी तरह इसका साया भी। ये अंजाम है उनका जो डर रखते हैं, जबकि एहले कुफ्र का अंजाम आग है। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआन: रअद-35)
वो लोग जो ईमान लाए और नेक आमाल अंजाम दियेः
اِنَّ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَ عَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ كَانَتْ لَهُمْ جَنّٰتُ الْفِرْدَوْسِ نُزُلًاۙ۰۰۱۰۷ خٰلِدِيْنَ فِيْهَا لَا يَبْغُوْنَ عَنْهَا حِوَلًا
यक़ीनन जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक आमाल इख़्तियार किए उनकी मेज़बानी के लिए फ़िरदौस के बाग़ होंगे। जिन में वो हमेशा रहेंगे, वहाँ से हटना ना चाहेंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल कहफ़ -107,108)
اَلَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَ عَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ طُوْبٰى لَهُمْ وَ حُسْنُ مَاٰبٍ
फिर जिन लोगों ने दावते हक़ को माना और नेक अ़मल किए वो ख़ुशनसीब हैं और उनके लिए अच्छा अंजाम है। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: रअ़द- 29)
اِنَّ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَ عَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ يَهْدِيْهِمْ رَبُّهُمْ بِاِيْمَانِهِمْ١ۚ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهِمُ الْاَنْهٰرُ فِيْ جَنّٰتِ النَّعِيْمِ
रहे वो लोग जो ईमान लाए, और उन्होंने नेक आमाल इख़्तियार किए, उनका रब उनके ईमान की बदौलत उनकी रेहनुमाई फ़रमाएगा, उनके नीचे नेअ़मत भरी जन्नतों में नेहरें बेहती होंगी (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीमः यूनुस- 09)
اَلَّذِيْنَ اٰمَنُوْا بِاٰيٰتِنَا وَ كَانُوْا مُسْلِمِيْنَۚ۰۰۶۹ اُدْخُلُوا الْجَنَّةَ اَنْتُمْ
وَ اَزْوَاجُكُمْ تُحْبَرُوْنَ
वो जो हमारी आयात पर ईमान लाए और फरमाँ बरदार हो कर रहे, जन्नत में दाख़िल हो जाओ, तुम भी और तुम्हारे जोड़े भी, ख़ुश ख़ुश। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : ज़ुख़र्रुफ - 69,70)
اِنَّ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَ عَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ وَ اَخْبَتُوْۤا اِلٰى رَبِّهِمْ١ۙ اُولٰٓىِٕكَ اَصْحٰبُ الْجَنَّةِ١ۚ هُمْ فِيْهَا خٰلِدُوْنَ
रहे वो लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे मौज़ू काम किए और वो अपने रब की तरफ़ झुक पड़े, वही एहले जन्नत हैं, उस में वो मुस्तक़िल रहेंगे। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआन : हूद - 23)
तौबा करने वाले:
اِلَّا مَنْ تَابَ وَ اٰمَنَ وَ عَمِلَ صَالِحًا فَاُولٰٓىِٕكَ يَدْخُلُوْنَ الْجَنَّةَ وَ لَا يُظْلَمُوْنَ شَيْـًٔا
मगर जो तौबा करे, और ईमान लाए, और नेक अ़मल करे तो ऐसे लोग जन्नत में दाख़िल होंगे, उन पर कुछ भी ज़ुल्म ना होगा। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआनः मरयम-60)
जन्नत की नेअ़मतें कैसी हैं। इसके दलाइल मुंदरजा ज़ैल हैं:
लिबास:
وَ لِبَاسُهُمْ فِيْهَا حَرِيْرٌ
और लिबास उनका वहाँ रेशम का होगा। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआन: हज- 23)
يَّلْبَسُوْنَ مِنْ سُنْدُسٍ وَّ اِسْتَبْرَقٍ مُّتَقٰبِلِيْنَۚ
बारीक ओ रेशम के लिबास पहने हुए, एक दूसरे के आमने सामने मौजूद होंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल दुख़्ख़ान: आयतः53)
وَ جَزٰىهُمْ بِمَا صَبَرُوْا جَنَّةً وَّ حَرِيْرًاۙ
और जो सब्र उन्होंने किया, उसके सिले में उन्हें जन्नत और रेशम अ़ता किया। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल दहर-12)
عٰلِيَهُمْ ثِيَابُ سُنْدُسٍ خُضْرٌ وَّ اِسْتَبْرَقٌ١ٞ وَّ حُلُّوْۤا اَسَاوِرَ مِنْ فِضَّةٍ١ۚ وَ سَقٰىهُمْ رَبُّهُمْ شَرَابًا طَهُوْرًا
इन के ऊपर सब्ज़ बारीक रेशम और दबीज़ रेशम के कपड़े होंगे और उन्हें चांदी के दस्तीने पहनाऐ जाऐेंगे, (तर्जुमा मआनिये क़ुरआन: दहर -12)
मशरूब-ओ-तआम:
وَ فَاكِهَةٍ مِّمَّا يَتَخَيَّرُوْنَۙ۰۰۲۰ وَ لَحْمِ طَيْرٍ مِّمَّا يَشْتَهُوْنَؕ
और लज़ीज़ फल जो वो पसंद करें, और परिंदे का गोश्त जो वो चाहें। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल वाक़िआ -20, 21)
فِيْ سِدْرٍ مَّخْضُوْدٍۙ۰۰۲۸ وَّ طَلْحٍ مَّنْضُوْدٍۙ۰۰۲۹ وَّ ظِلٍّ مَّمْدُوْدٍۙ۰۰۳۰ وَّ مَآءٍ مَّسْكُوْبٍۙ۰۰۳۱ وَّ فَاكِهَةٍ كَثِيْرَةٍۙ۰۰۳۲ لَّا مَقْطُوْعَةٍ وَّ لَا مَمْنُوْعَةٍۙ
जहाँ बेख़ार के बेर होंगे और तेह ब तेह चढ़े केले, दूर तक फैली हुई छाँव, बहता हुआ पानी, बहुत से लज़ीज़ फल जिनका ना सिलसिला टूटने वाला होगा, और ना उन पर कोई रोक टोक होगी, (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः अल वाक़िआ- 28 से 33)
يُسْقَوْنَ مِنْ رَّحِيْقٍ مَّخْتُوْمٍۙ۰۰۲۵ خِتٰمُهٗ مِسْكٌ١ؕ وَ فِيْ ذٰلِكَ فَلْيَتَنَافَسِ الْمُتَنَافِسُوْنَؕ۰۰۲۶ وَ مِزَاجُهٗ مِنْ تَسْنِيْمٍۙ۰۰۲۷ عَيْنًا يَّشْرَبُ بِهَا الْمُقَرَّبُوْنَ ۠
सर बमोहर ख़ालिस शराब उन्हें पिलाई जाऐगी उसकी मोहर मुश्क की होगी, बढ़ चढ़ कर शौक़ करने वालों को इसका शौक़ करना चाहिए। इस में तसनीम की आमेज़िश होगी, हाल ये है के वो एक चश्मा है जिस पर बैठ कर मुक़र्रब लोग पियेंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआनः मुतफ़्फ़फ़ीन :25 से 28)
اِنَّ الْاَبْرَارَ يَشْرَبُوْنَ مِنْ كَاْسٍ كَانَ مِزَاجُهَا كَافُوْرًاۚ۰۰۵ عَيْنًا يَّشْرَبُ بِهَا عِبَادُ اللّٰهِ يُفَجِّرُوْنَهَا۠ تَفْجِيْرًا
यक़ीनन वफ़ादार लोग एक जाम पियेंगे जिस में आमेज़िश काफ़ूर की होगी, क्या कहना इस चश्मे का जिस पर बैठ कर अल्लाह के बंदे पियेंगे, इस तौर पर के उसे बहा बहा के ले जाऐं। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: दहर- 5,6)
وَ دَانِيَةً عَلَيْهِمْ ظِلٰلُهَا وَ ذُلِّلَتْ قُطُوْفُهَا تَذْلِيْلًا
और बाग़े जन्नत के साये उन पर झुक रहे होंगे, और इसके ख़ोशे नज़दीक होंगे बिल्कुल बस में। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: दहर- 14)
وَ يُسْقَوْنَ فِيْهَا كَاْسًا كَانَ مِزَاجُهَا زَنْجَبِيْلًاۚ۰۰۱۷ عَيْنًا فِيْهَا تُسَمّٰى سَلْسَبِيْلًا
और वहाँ वो एक जाम पियेंगे जिस में आमेज़िश ज़न्जबील (सौंठ) की होगी, क्या कहना उस चश्मे का जो इस में होगा जिस का नाम दिया जाता है सलसबील। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल दहर-17,18)
وَ سَقٰىهُمْ رَبُّهُمْ شَرَابًا طَهُوْرًا
और उन्हें उनका रब शराबे तहूर पिलाएगा। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : दहरः 21)
لَكُمْ فِيْهَا فَاكِهَةٌ كَثِيْرَةٌ مِّنْهَا تَاْكُلُوْنَ
तुम्हारे लिए वहाँ बहुत से लज़ीज़ फल हैं, जिन को तुम खाओगे। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीम: ज़ुख़र्रुफ -73)
يَدْعُوْنَ فِيْهَا بِكُلِّ فَاكِهَةٍ اٰمِنِيْنَۙ
वो वहाँ बे ख़ौफ़ी के साथ एक लज़ीज़ फल तलब करते होंगे। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः अल दुख़्ख़ान-55)
وَّ فَوَاكِهَ مِمَّا يَشْتَهُوْنَؕ۲
और उन फलों के दरमियान वो जो चाहें। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआन: मुर्सलात- 42)
وَ اَمْدَدْنٰهُمْ بِفَاكِهَةٍ وَّ لَحْمٍ مِّمَّا يَشْتَهُوْنَ
और हम उन्हें मेवे और गोश्त जो उन्हें मरग़ूब होंगे दिए चले जाऐेंगे। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः तूर -22)
فِيْهِمَا عَيْنٰنِ تَجْرِيٰنِۚ۰۰۵۰ فَبِاَيِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ
۰۰۵۱ فِيْهِمَا مِنْ كُلِّ فَاكِهَةٍ زَوْجٰنِۚ
इन दोनों (बागों) में दो चश्मे रवाँ होंगे। आख़िर तुम और तुम अपने रब की किन किन नेअ़मतों को झुटलाओगे? इन दोनों बागों में हर लज़ीज़ फल की दो दो किस्में। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अर्रहमान - 50 से 52)
وَ جَنَا الْجَنَّتَيْنِ دَانٍ
और दोनों बागों के फल झुके हुए नज़दीक ही होंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : अर्रहमान -54)
शादीः
كَذٰلِكَ١۫ وَ زَوَّجْنٰهُمْ بِحُوْرٍ عِيْنٍؕ
ये होगी उनकी शान। और हम गौरी गौरी आहू चश्म औरतें उनसे ब्याह देंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : अल दुख़्ख़ान -54)
وَ حُوْرٌ عِيْنٌۙ۰۰۲۲ كَاَمْثَالِ اللُّؤْلُؤِ الْمَكْنُوْنِ ۚ
और कुशादा चश्म हूरें गोया छुपाऐ हुए मोती हों। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः अल वाक़िआ - 22, 23)
اِنَّاۤ اَنْشَاْنٰهُنَّ اِنْشَآءًۙ۰۰۳۵ فَجَعَلْنٰهُنَّ اَبْكَارًاۙ۰۰۳۶ عُرُبًا اَتْرَابًاۙ
(और वहाँ उनकी बीवियाँ होंगी) यक़ीनन जिन्हें हम ने एक ख़ास उठान पर उठाया, और हम ने उन्हें कुंवारियाँ बनाया, इश्क़ ओ मुहब्बत वाली दिलरुबा, उम्र में मिलती जुलती। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल वाक़िआ - 35 से 37)
وَ زَوَّجْنٰهُمْ بِحُوْرٍ عِيْنٍ
और हम उन्हें बड़ी आँखों वाली हूरों से ब्याह देंगे। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः तूर- 20)
فِيْهِنَّ قٰصِرٰتُ الطَّرْفِ١ۙ لَمْ يَطْمِثْهُنَّ اِنْسٌ قَبْلَهُمْ وَ لَا جَآنٌّۚ۰۰۵۶ فَبِاَيِّ اٰلَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِۚ۰۰۵۷ كَاَنَّهُنَّ الْيَاقُوْتُ وَ الْمَرْجَانُ
इन (नेअ़मतों) में निगाह बचाए रखने वालियां होंगी, जिन्हें उनसे पहले किसी इंसान ने हाथ लगाया होगा ना किसी जिन्न ने। आख़िर तुम और तुम अपने रब की किन किन नेअ़मतों को झुटलाओगे? गोया वो याक़ूत और मर्जान हैं। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआनः अर्रहमान - 56 से 58)
ख़ुद्दाम:
يَطُوْفُ عَلَيْهِمْ وِلْدَانٌ مُّخَلَّدُوْنَ
इनके आस पास लड़के जो हमेशा (लड़के ही) रहेंगे आमद-ओ-रफ़्त करेंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: वाक़िआ -17)
وَ يَطُوْفُ عَلَيْهِمْ وِلْدَانٌ مُّخَلَّدُوْنَ١ۚ اِذَا رَاَيْتَهُمْ حَسِبْتَهُمْ لُؤْلُؤًا مَّنْثُوْرً
इनकी ख़िदमत में हमेशा लड़के दौड़ते फिर रहे होंगे, जब तुम उन्हें देखोगे, तो उन्हें समझोगे के बिखरे हुए मोती हैं। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: दहर-19)
असास (असासा-ओ-आराइश):
وَ نَزَعْنَا مَا فِيْ صُدُوْرِهِمْ مِّنْ غِلٍّ اِخْوَانًا عَلٰى سُرُرٍ مُّتَقٰبِلِيْنَ
वो भाई भाई हो कर आमने सामने तख़्तों पर होंगे। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआन करीमः हिज्र-47)
يُطَافُ عَلَيْهِمْ بِصِحَافٍ مِّنْ ذَهَبٍ وَّ اَكْوَابٍ١ۚ
उनके आगे सोने की तश्तरियां और प्याले गर्दिश करेंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआनः ज़ुख़र्रुफ -71)
عَلَى الْاَرَآىِٕكِ يَنْظُرُوْنَۙ
ऊंची मसनदों पर नज़ारे कर रहे होंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम: मुतफ़्फ़िफ़ीन- 23)
بِاَكْوَابٍ وَّ اَبَارِيْقَ١ۙ۬ وَ كَاْسٍ مِّنْ مَّعِيْنٍۙ
प्याले और आफ़ताबे, और शराबे ख़ालिस का जाम लिए फिर रहे होंगे।(तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल वाक़िया -18)
مُّتَّكِـِٕيْنَ فِيْهَا عَلَى الْاَرَآىِٕكِ١ۚ لَا يَرَوْنَ فِيْهَا شَمْسًا وَّ لَا زَمْهَرِيْرًا
वो ऊंची मसनदों पर तकीए लगाऐ बैठे होंगे, ना उन्हें धूप की गर्मी सताएगी ना जाड़े की ठंड। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल दहर- 13)
وَ يُطَافُ عَلَيْهِمْ بِاٰنِيَةٍ مِّنْ فِضَّةٍ وَّ اَكْوَابٍ كَانَتْ قَؔوَارِيْرَا
और उन पर चांदी के बर्तनों के दौर चलेंगे, और आब ख़ोरे बिल्कुल शीशे हो रहे होंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल दहर-15)
عَلٰى سُرُرٍ مَّوْضُوْنَةٍۙ۰۰۱۵ مُّتَّكِـِٕيْنَ عَلَيْهَا مُتَقٰبِلِيْنَ
मुरस्सअ़ तख़्तों पर उन पर तकिया लगाए आमने सामने बैठे होंगे। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीम: अल वाक़िआ- 15,16)
وَّ فُرُشٍ مَّرْفُوْعَةٍؕ
बुलंद मरतबे के फ़र्श होंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल वाक़िआ- 34)
فِيْهَا سُرُرٌ مَّرْفُوْعَةٌۙ۰۰۱۳ وَّ اَكْوَابٌ مَّوْضُوْعَةٌۙ۰۰۱۴ وَّ نَمَارِقُ مَصْفُوْفَةٌ
इस में ऊंचे ऊंचे तख़्त होंगे आब ख़ोरे क़रीने से रखे होंगे। गाव तकीए तर्तीब से लगे होंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अलग़ाशिया-13 से15)
مُتَّكِـِٕيْنَ عَلٰى فُرُشٍۭ بَطَآىِٕنُهَا مِنْ اِسْتَبْرَقٍ١ؕ وَ جَنَا الْجَنَّتَيْنِ دَانٍۚ
वो ऐसे फर्शों पर टेक लगाए बैठे होंगे जिन के अस्तर दबीज़ रेशम के होंगे, (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अर्रहमान -54)
मोतदिल आबो हवा:
مُّتَّكِـِٔينَ فِيہَا عَلَى ٱلۡأَرَآٮِٕكِۖ لَا يَرَوۡنَ فِيہَا شَمۡسً۬ا وَلَا زَمۡهَرِيرً۬ا ( ١٣ ) وَدَانِيَةً عَلَيۡہِمۡ ظِلَـٰلُهَا
ना उसमें वो सख़्त धूप देखेंगे और ना सख़्त ठंड और बाग़े जन्नत के साये उन पर झुक रहे होंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल दहर- 13, 14)
ख़्वाहिशात की तमाम अशियाः
وَفِيهَا مَا تَشۡتَهِيهِ ٱلۡأَنفُسُ وَتَلَذُّ ٱلۡأَعۡيُنُۖ وَأَنتُمۡ فِيهَا خَـٰلِدُونَ
और इस में वो सभी कुछ होगा जिस को जी चाहे, और आँखें जिस से लज़्ज़त हासिल करें। और तुम इस में हमेशा रहोगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम: ज़ुख़र्रुफ -71)
وَ لَهُمْ مَّا يَشْتَهُوْنَ
और अपने लिए वो जो वो ख़ुद चाहें (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम: अल नहल -57)
وَ لَكُمْ فِيْهَا مَا تَشْتَهِيْۤ اَنْفُسُكُمْ وَ لَكُمْ فِيْهَا مَا تَدَّعُوْنَؕ
और वहाँ तुम्हारे लिए वो सब कुछ होगा जिसकी ख़्वाहिश तुम्हारे जी को होगी, (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: फ़ुस्सिलात -31)
اِنَّ الَّذِيْنَ سَبَقَتْ لَهُمْ مِّنَّا الْحُسْنٰۤى١ۙ اُولٰٓىِٕكَ عَنْهَا مُبْعَدُوْنَۙ(101) لَا يَسْمَعُوْنَ حَسِيْسَهَا١ۚ وَ هُمْ فِيْ مَا اشْتَهَتْ اَنْفُسُهُمْ خٰلِدُوْنَۚ
रहे वो लोग जिन के लिए पहले ही से हमारी जानिब से अच्छे इनाम का वाअदा हो चुका है, वो इस से दूर रहेंगे, उसकी आहट भी वो नहीं सुनेंगे, और वो अपने जी की चाही हुई चीज़ों के दरमियान हमेशा रहेंगे (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः अन्बिया-101 102)
और अल्लाह سبحانه وتعالیٰ जिन चीज़ों से जन्नती को बचाएगा और उनसे दूर रखेगा वो ये हैं:
1: कीना
وَ نَزَعْنَا مَا فِيْ صُدُوْرِهِمْ مِّنْ غِلٍّ اِخْوَانًا عَلٰى سُرُرٍ مُّتَقٰبِلِيْنَ
इन के दिलों में जो थोड़ी बहुत खोट कपट होगी उसे हम निकाल देंगे, वो आपस में भाई भाई बन कर आमने सामने तख़्तों पर बैठेंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : हिज्र-47)
2: थकान
لَا يَمَسُّهُمْ فِيْهَا نَصَبٌ وَّ مَا هُمْ مِّنْهَا بِمُخْرَجِيْنَ
उन्हें वहाँ किसी मशक्कत से पाला ना पड़ेगा, (तर्जुमा मआनीये क़ुरआन: हिज्र-48)
3: ख़ौफ़-ओ-ग़म, हुज़्न ओ मलालः
يٰعِبَادِ لَا خَوْفٌ عَلَيْكُمُ الْيَوْمَ وَ لَاۤ اَنْتُمْ تَحْزَنُوْنَۚ
ऐ मेरे बन्दों, आज ना तो तुम्हें कोई ख़ौफ़ है और ना तुम ग़मगीं होगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआनः ज़ुख़र्रुफ - 68)
जन्नत की नेअ़मतें अबदी और लाज़वाल हैं और एहले जन्नत इस से कभी नहीं निकाले जाऐेंगे। दलाइल इस की तौसीक़ करते हैं।
وَ اَنْتُمْ فِيْهَا خٰلِدُوْنَۚ
और तुम इस में हमेशा रहोगे । (तर्जुमा मआनिये क़ुरआनः ज़ुख़र्रुफ -71)
لَا يَمَسُّهُمْ فِيْهَا نَصَبٌ وَّ مَا هُمْ مِّنْهَا بِمُخْرَجِيْنَ
और ना वो वहाँ से कभी निकाले ही जाऐंगे। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआन: हिज्र- 48)
لَا يَذُوْقُوْنَ فِيْهَا الْمَوْتَ اِلَّا الْمَوْتَةَ الْاُوْلٰى ١ۚ وَ وَقٰىهُمْ عَذَابَ الْجَحِيْمِۙ
वहाँ वो मौत का मज़ा कभी ना चखेंगे, बस पहली पहली मौत जो हुई सौ हुई, और उस ने उन्हें भड़कती हुई आग के अ़ज़ाब से बचा लिया। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः दुख़्ख़ान -56)
وَ هُمْ فِيْ مَا اشْتَهَتْ اَنْفُسُهُمْ خٰلِدُوْنَۚ
और वो अपने जी की चाही हुई चीज़ों के दरमियान हमेशा रहेंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआनः अल अन्बिया -102)
ये जन्नत है लिहाज़ा इस की जानिब सबक़त करो और इसको हासिल करने की कोशिश में तेज़ी करो।
وَ سَارِعُوْۤا اِلٰى مَغْفِرَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْ وَ جَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمٰوٰتُ وَ الْاَرْضُ١ۙ اُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِيْنَۙ
और अपने रब की मग़फ़िरत और इस जन्नत की तरफ़ बढ़ो जिसकी वुस्अ़त आसमानों और ज़मीन जैसी है, वो उन लोगों के लिए तैय्यार है जो डर रखते हैं, (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः आले इमरान-133)
और नेकी के ज़रीये उसकी जानिब तेज़ी से बढ़ो।
وَ لِكُلٍّ وِّجْهَةٌ هُوَ مُوَلِّيْهَا فَاسْتَبِقُوا الْخَيْرٰتِ١ؐؕ اَيْنَ مَا تَكُوْنُوْا يَاْتِ بِكُمُ اللّٰهُ جَمِيْعًا١ؕ اِنَّ اللّٰهَ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْرٌ
तो तुम भलाइयों मैं सबक़त करो जहाँ कहीं भी तुम होगे, ख़ुदा तुम सब को जमा करेगा बेशक अल्लाह को हर चीज़ पर पूरी क़ुदरत हासिल है। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः अल बक़रह -148)
इस ही के ज़रीये अल्लाह दुनिया में तुम्हारी मदद फ़रमाएगा और इल्लियीन के आला मुक़ाम पर उन लोगों के साथ जगह देगा जिन पर आख़िरत में इनाम ओ इकराम का मुआमला किया जाऐगा।
وَ مَنْ يُّطِعِ اللّٰهَ وَ الرَّسُوْلَ فَاُولٰٓىِٕكَ مَعَ الَّذِيْنَ اَنْعَمَ اللّٰهُ عَلَيْهِمْ مِّنَ النَّبِيّٖنَ وَ الصِّدِّيْقِيْنَ۠ وَ الشُّهَدَآءِ وَ الصّٰلِحِيْنَ١ۚ وَ حَسُنَ اُولٰٓىِٕكَ رَفِيْقًا
जो कोई अल्लाह और रसूल की इताअ़त करता है तो ऐसे ही लोग उन लोगों के साथ हैं जिन पर अल्लाह ने नवाज़िश फ़रमाई है। वो अन्बिया, सिद्दीक़ीन, शुहदा और सालेहीन हैं और वो क्या ही अच्छे रफ़ीक़ हैं। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीम- अल अन्निसा -69)
नेकी के वो आमाल जिन की तरफ़ सबक़त करने और तेज़ी से बढ़ने और मुबादिरत का हुक्म अल्लाह ने दिया है इस की चंद अक़साम हैं।
फर्ज़े ऐन:
जैसे सलाते मफरूज़ा (फ़र्ज़ नमाज़ें), ज़कात, रमज़ान के रोज़े, इस्लाम के लिए सुबूत ओ दलाइल से काम लेना, इतना नफ़्क़ा जो इंसानी जिंदगी की बक़ा के लिए ज़रूरी हो।
दिफ़ाई जिहादः
(जिहादे दिफ़ा), जिहाद का जब ख़लीफ़ा हुक्म दे, बैअ़ते इताअ़त, वाजिबी नफ़्क़ा और इसके लिए तग-ओ-दो करना, रिश्तेदारियों को जोड़ना (सिला रेहमी), जमाअ़त को लाज़िम पकड़ना वग़ैरा।
फ़र्ज़े किफ़ायाः
उम्मत को अम्र बिलमारुफ़ और नही अ़निल मुंकर के लिए तैय्यार करना, इक़्दामी जिहाद, बैअ़ते इनइकाद, तलबे इ़ल्म, सरहदी मोरचे पर जहाँ से ख़तरा हो उसकी निगरानी करना वग़ैरा।
ये फ़राइज़ दीनी बशुमूल फ़र्ज़ एै़न और फ़र्ज़ किफ़ाया सब से अफ़ज़ल तरीक़ा है। बंदा इन फ़राइज़ की अदायगी के बग़ैर रब की रज़ा का उम्मीदवार नहीं बन सकता। चुनांचे तिबरानी ने अल-कबीर में अबू उमामा की रिवायत नक़ल की है- वो कहते हैं के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया के अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का इरशाद हैः
((من أھان لي ولیا فقد بارزني في العداوۃ، ابن آدم لن تدرک ما عندي إلا بأداء ما افترضتہ علیک ۔۔۔))
जिस ने मेरे वली (दोस्त) की इहानत की तो उस ने दुश्मनी में मुझ से मुबारिज़त की। इब्ने आदम उन चीज़ों को हासिल नहीं कर सकता जो मेरे पास हैं, सिवाए उन आमाल की अदाइगी के ज़रीये जो मैंने तुम पर फ़र्ज़ कर दी हैं।
मंदूबातः
जब बंदा अल्लाह سبحانه وتعالیٰ के आइद करदा फ़राइज़ को अदा कर लेता है तो फिर मंदूबात-ओ-मुस्तहब्बात का इल्तिज़ाम करता है और नवाफ़िल के ज़रीये तक़र्रुबे इलाही का ख़्वाहाँ होता है। अल्लाह ऐसे लोगों को अपने मुक़र्रब बंदों में शामिल करता है और मेहबूब रखता है। चुनांचे अबू अमामा ((رضي الله عنه)) कहते हैं के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया के अल्लाह का इरशाद हैः
((۔۔۔ ولا یزال عبدي یتقرب إلي بالنوافل حتی أحبہ، فأکون قلبہ الذي یعقلہ بہ، ولسانہ الذي ینطق بہ، وبصرہ الذي یبصر بہ، فإذا دعاني أجبتہ وإذا سألني أعطیتہ، وإذا استنصرني نصرتہ، وأحب عبادۃ عبدي إلی النصیحۃ))
मेरा बंदा नवाफ़िल के ज़रीये मेरा तक़र्रुब हासिल करने की कोशिश करता रहता है यहाँ तक के वो मेरा मेहबूब बन जाता है। पस में उसका दिल बन जाता हूँ जिस से वो सोचता है, उसकी ज़बान हो जाता हूँ जिस से वो बोलता है, उसकी आँख बन जाता हूँ जिस से वो देखता है, और जब मुझ को पुकारता है तो इसका जवाब देता हूँ (क़ुबूल करता हूँ) और जब मांगता है तो अ़ता करता हूँ, और जब मदद तलब करता है तो उसको नुसरत अ़ता करता हूँ और मेरे बंदे की सब से मेहबूब इ़बादत नसीहत (ख़ैर ख़्वाही) है।
बुख़ारी शरीफ़ में हज़रत अनस (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है के हुज़ूरे अकरम ने अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का क़ौल इरशाद फ़रमायाः
((إذا تقر ب العبد إلي شبرا تقربت إلیہ ذراعا، وإذا تقرب إلي ذراعا تقربت منہ باعا، وإذا أتاني یمشی أتیتہ ھرولۃ))
जब मेरा बंदा मुझ से एक बालिशत भर क़रीब आता है तो मैं एक हाथ भर उसके क़रीब हो जाता हूँ, जब वो हाथ भर मेरे क़रीब आता है तो में दो गज़ क़रीब हो जाता हूँ और अगर वो मेरे पास चल कर आता है तो मैं दौड़ कर आता हूँ।
हर नमाज़ के लिए वुज़ू और हर वुज़ू के साथ मिस्वाकः मुसनद अहमद में सही सनद से हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से रिवायत की है वो कहते हैं के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((لولا أن أشق علی أمتي لأمرتھم عند کل صلاۃ بوضوء، ومع کل
وضوء بسواک))
अगर मेरी उम्मत पर दुशवार ना होता तो मैं इनको हर नमाज़ के लिये वुज़ू का हुक्म देता और हर वुज़ू के साथ मिस्वाक का हुक्म देता।
एक मुत्तफिक़ अ़लैह रिवायत में हैः
((لولا أن أشق علی أمتي لأمرتھم بالسواک عند کل صلاۃ))
अगर मेरी उम्मत पर दुशवारी ना होती तो मैं हर नमाज़ के वक़्त मिस्वाक का हुक्म देता।
वुज़ू के बाद दो रकअ़त नमाज़ः
हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) की मुत्तफिक़ अ़लैह रिवायत है के नबी ((صلى الله عليه وسلم)) ने हज़रत बिलाल (رضي الله عنه) से फ़रमायाः
((یا بلال حدثني بأرجی عمل عملتہ في الإسلام فإني سمعت دف نعلیک بین یدی في الجنۃ؟ قال: ما عملت عملا أرجی عندي من أني لم أتطھر طھورا، في ساعۃ من لیل أو نھار، إلا ما صلیت بذالک الطھور ما کتب لي أن أصلي))
ऐ बिलाल, मुझे अपने उस अ़मल के बारे में बताओ जो तुमने इस्लाम में किया है, क्योंकि मैं जन्नत मैं तुम्हारे पैरों की आवाज़ अपने आगे आगे सुन रहा था। बिलाल ने कहाः मैंने कोई ऐसा अ़मल नहीं किया जिससे मुझे इनाम की उम्मीद हो सिवाए इसके के मैं दिन या रात के किसी भी वक़्त वुज़ू करता तो नमाज़ पढ़ लेता हूँ जितना मुक़द्दर में होती है।
अज़ान, सफ़े अव्वल, नमाज़ में जल्दीः
हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) की मुत्तफिक़ अ़लैह रिवायत है, के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((لو یعلم الناس ما في النداء والصف الأول، ثم لم یجدوا إلا أن یستھموا علیہ لا ستھموا، ولو یعلم الناس ما في التھھجیر لا ستبقوا إلیہ، ولو یعلمون ما في العتمۃ والصبح لأ تو ھما ولو حبوا))
अगर लोगों को मालूम हो जाये के अज़ान और सफ़े अव्वल में क्या सवाब है और फिर उनको मौक़ा ना मिले सिवाए कुरआ अंदाज़ी के, तो वो कुरआ अंदाज़ी करेंगे। और अगर ये लोग जान जाऐं के दोपहर की नमाज़ को अव्वल वक़्त पढ़ने में क्या अज्र है तो ये लोग तेज़ी से आयेंगे और इशा और फ़ज्र की नमाज़ों का सवाब जान लें तो घिसटते हुए भी चले आयेंगे।
इसी तरह हज़रत बरा बिन अल आज़िब (رضي الله عنه) की हदीस है जिसकी रिवायत अहमद और नसाई ने की है और मंज़री ने हसन जय्यद कहा है के नबी अकरम ने फ़रमायाः
((إن اللہ وملائکتہ یصلون علی الصف المقدم، والمؤذن یغفر لہ مدی صوتہ، وصدقہ من سمعہ من رطب ویابس،ولہ أجر من صلی معہ))
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ और उसके फ़रिश्ते पहली सफ़ पर दुआएं करते हैं और मुअज़्ज़िन की आवाज़ जहाँ तक जाती है वहाँ तक उसकी मग़फ़िरत कर दी जाती है, और ज़िंदा या मुर्दा चीज़ों में से जो कोई इसे सुनता है, इसकी सच्चाई की गवाही देता है, नीज़ उसे उन लोगों (की तरफ़ से भी) सवाब मिलता है जो इसके साथ नमाज़ पढ़ते हैं।
अज़ान का जवाबः
हज़रत अबी सईद अल ख़ुदरी (رضي الله عنه) से मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस मनक़ूल है के रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
(( إذا سمعتم المؤذن فقولوا مثل ما یقول))
जब तुम मुअज़्ज़िन को (अज़ान देते) सुनो तो तुम भी इसके कलिमात को दुहराओ।
इसी तरह मुस्लिम की एक रिवायत है के हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन अ़म्र बिन अल आस (رضي الله عنه) फ़रमाते हैं के उन्होंने रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) को कहते सुनाः
((إذا سمعتم المؤذن فقولوا مثل ما یقول، ثم صلوا عليّ، فإنہ من صلی عليّ صلاۃ صلی اللّٰہ بھا عشرا، ثم سلوا اللّٰہ لي الوسیلۃ، فإنھا منزلۃ في الجنۃ لا تنبغی إلا لعبد من عباد اللّٰہ، وأرجو أن أکون أنا ھو، فمن سال لي الوسیلۃ حلت لہ الشفاعۃ))
जब तुम मुअज़्ज़िन की आवाज़ को सुनो तो वही कहो जो मुअज़्ज़िन कहता है (यानी अज़ान का जवाब दो) तुम मेरे ऊपर दरूद ओ सलात भेजो। पस जो मुझ पर एक मर्तबा दरूद ओ सलात पढ़ेगा अल्लाह उस पर दस (10) बार सलात ओ सलाम भेजेगा, फिर मेरे लिए अल्लाह से वसीला तलब करो क्योंकि ये जन्नत का एक मुक़ाम है जो सिर्फ़ अल्लाह के बंदों में से एक बंदे के लिए है और मैं उम्मीद करता हो के वो बंदा में ही हूँ। लिहाज़ा जो मेरे लिए वसीला तलब करेगा मैं उसके लिए शफ़ाअ़त करूंगा।
इमाम बुख़ारी ने भी वसीले के ताल्लुक़ से हज़रत जाबिर (رضي الله عنه) की रिवायत नक़ल की है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((من قال حین یسمع النداء اللھم رب ھذہ الدعوۃ التامۃ، والصلاۃ القائمۃ، آت محمد الوسیلۃ والفضیلۃ، وابعثہ مقاما محمودا الذي وعدتہ، حلت لہ شفاعتي یوم القیامۃ))
जिस ने अज़ान सुनी और येह कहाः
))اللَّهُمَّ رَبَّ هَذِهِ الدَّعْوَةِ التَّامَّةِ وَالصَّلَاةِ الْقَائِمَةِ آتِ مُحَمَّدًا الْوَسِيلَةَ وَالْفَضِيلَةَ وَابْعَثْهُ مَقَامًا مَحْمُودًا الذی وعدته۔((
बरोज़ क़यामत उसके लिए मेरी शफ़ाअ़त होगी।
अज़ान और इक़ामत के दरमियान दुआः
अबू दाऊद, तिरमिज़ी, इब्ने माजा और इब्ने हिब्बान ने हज़रत अनस (رضي الله عنه) की रिवायत नक़ल की है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((الدعاء بین الأذان ولإقامۃ لایرد))
अज़ान और इक़ामत के दरमियान की दुआ रद्द नहीं होती।
तामरे मसाजिदःहज़रत उस्मान इब्ने अ़फ़्फ़ान (رضي الله عنه) ने जब मस्जिदे नबवी तामीर कर दी तो लोगों में चीमेगोईयाँ हुईं जिस पर हज़रत उस्मान (رضي الله عنه) ने कहा के तुम लोग नाइंसाफी करते हो, मैंने तो हुज़ूरे अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) से सुना हैः
((من بنی مسجدًا یبتغي بہ وجہ اللّٰہ بنی اللّٰہ لہ بیتا في الجنۃ))
जो शख़्स अल्लाह की ख़ुशनूदी के लिए मस्जिद तामीर करता है अल्लाह उसके लिए जन्नत में घर तामीर करता है।
नमाज़ के लिए मस्जिद की तरफ़ निकलनाः हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस रिवायत है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((صلاۃ الرجل في الجماعۃ تضعف صلاتہ في بیتہ وفي سوقہ خمسا وعشرین درجۃ، وذالک أنہ إذا توضا فأحسن الوضوء، ثم خرج إلی الصلاۃ لا یخرجہ إلا الصلاۃ، لم یخط خطوۃ إلا رفعت لہ بھا درجۃ وحط عنہ بھا خطیءۃ، فإذا صلی، لم تزل الملائکۃ تصلي علیہ ما دام في مصلاہ: اللھم صل علیہ، أللھم ارحمہ، ولا یزال فی صلاۃ ما انتظر الصلاۃ))
घर या बाज़ार में नमाज़ पढ़ने के मुक़ाबले जमाअ़त के साथ नमाज़ पढ़ने का सवाब पच्चीस (25) गुना ज़्यादा होता है। जब आदमी अच्छी तरह वुज़ू करता है फिर सिर्फ़ और सिर्फ़ नमाज़ के लिए ही निकलता है। लिहाज़ा जब वो मस्जिद की जानिब क़दम उठाता है तो उसके एक क़दम के बदले उसका एक दर्जा बुलंद कर दिया जाता है और एक गुनाह माफ़ कर दिया जाता है, फ़रिश्ते उसके लिए दुआ करते रहते हैं जब तक वो अपने मुसल्ले पर रहता है, के ऐ अल्लाह! इस पर रहम कर। और बंदा जब तक नमाज़ के इंतिज़ार में रहता है वो नमाज़ ही में शुमार होता है।
एक दूसरी हदीस में हज़रत अबू मूसा (رضي الله عنه) रिवायत करते हैं के रसूलुल्लाह ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((ان اعظم الناس اجرا فی الصلاۃ ابعدھم الیھا ممشی فابعدھم ، والذی ینتظر الصلاۃ حتی یصلیھا مع الامام اعظم اجرا من الذی یصلیھا ثم ینام))
नमाज़ के ताल्लुक़ से सब से ज़्यादा सवाब उन लोगों को मिलता है जो मस्जिद से ज़्यादा दूर होते हैं और वो शख़्स जो नमाज़ का इंतिज़ार करता है और फिर इमाम के साथ नमाज़ पढ़ता है उससे ज़्यादा सवाब का मुस्तहिक़ है जो नमाज़ तन्हा (मुन्फ़रिद) पढ़ ले और सौ जाये।
घरों में नफ़्ल नमाज़ें:
चुनांचे नबी ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((اجعلوا من صلاتکم في بیوتکم ولا تتخذوھا قبوراً))متفقٌ علیہ
अपनी नमाज़ों को घरों में भी पढ़ा करो और उन (घरों) को क़ब्रिस्तान ना बनाओ।
((۔۔۔فصلوا أیھا الناس في بیوتکم فإن أفضل الصلاۃ صلاۃ المرء في بیتہ إلا المکتوبۃ))۔متفقٌ علیہ
ऐ लोगो! अपने घरों में नमाज़ें पढ़ा करो बेशक आदमी की बेहतरीन नमाज़ वो है जो अपने घर में पढ़ी जाये सिवाए फ़र्ज़ नमाज़ों के।
क़ियामे लैलः
रातों को नमाज़ के लिए जागना भी नवाफ़िल इबादात में शुमार होता है। अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ऐसे लोगों की तारीफ़़ करता है जिन के पहलू ख़्वाब गाहों से दूर रहते हैं।
تَتَجَافٰى جُنُوْبُهُمْ عَنِ الْمَضَاجِعِ
इन के पहलू बिस्तरों से अलग रहते हैं। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआन: अल सज्दा -16)
दूसरी जगह इरशाद फ़रमायाः
كَانُوْا قَلِيْلًا مِّنَ الَّيْلِ مَا يَهْجَعُوْنَ
रातों को थोड़ा ही सोते थे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: ज़ारियात- 17)
इसी तरह अबू हुरैराह (رضي الله عنه) की रिवायत है के रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((یعقد الشیطان علی قافیۃ رأس أحدکم إذا ھو نام ثلاث عقد یضرب علی کل عقدۃ: علیک لیل طویل فارقد، فإذا استیقظ فذکر اللّٰہ تعالی انحلت عقدۃ، فإذا توضا انحلت عقدۃ، فإن صلی انحلت عقدۃ کلھا، فاصبح نشیطا طیب النفس وإلا أصبح خبیث النفس کسلان))
जब तुम में से कोई सोता है तो शैतान उसके सर के पिछले हिस्से में तीन गांठें (गिरहें) लगा देता है और हर गिरह पर कहता हैः रात बहुत लंबी है सोते रहो। लिहाज़ा जब इंसान जागता है और अल्लाह को याद करता है तो एक गिरह खुल जाती है और जब वुज़ू करता है तो दूसरी गिरह खुल जाती है और जब नमाज़ पढ़ता है तो तीसरी गिरह भी खुल जाती है। अब इंसान उठता है तो नशीत और तर-ओ-ताज़ा होता है वर्ना वो पज़मुर्दा और सुस्त रहता है।
हज़रत इब्ने मसऊ़द (رضي الله عنه) की रिवायत है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) से ऐसे आदमी का ज़िक्र हुआ जो रात को सोता है और देर सुबह उसकी आँख खुलती है तो आप ने फ़रमायाः
((ذاک رجل بال الشیطان فی اذنیہ او قال فی اذنہ))متفقٌ علیہ
ये वो शख़्स है जिसके दोनों कानों में (या फ़रमाया कान में) शैतान ने पेशाब कर दिया है।
रात के वक़्त वित्र को आख़री नमाज़ के तौर पर पढ़ना मसनून है। इस की ताईद हज़रत इब्ने उमर (رضي الله عنه) की इस मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस से होती है के रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) फ़रमाते हैं:
((اجعلوا آخر صلاتکم باللیل وترا))
अपनी रात की नमाज़ में सब से आख़िर में वित्र की नमाज़ पढ़ा करो।
ग़ुस्ले जुमाः जुमे के दिन ग़ुस्ल करना भी मसनून है चुनांचे हज़रत इब्ने उमर (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((إذا جاء أحدکم الجمعۃ فلیغتسل))
तुम में से कोई जुमे के लिए आए तो ग़ुस्ल करले।
इसी मानी की एक हदीस हज़रत सलमान फारसी (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((من اغتسل یوم الجمعۃ وتطھر بما استطاع من طھر ثم ادَّھن أومسَّ من طیب، ثم راح فلم یفرق بن اثنین فصلی ما کتب لہ ثم إذا خرج الإمام أنصت غفرلہ ما بینہ وبین الجمعۃ الأخری))
जिस ने जुमे के दिन ग़ुस्ल किया बक़दरे ताक़त पाकी (तहारत) हासिल की फिर तेल लगाया या ख़ुशबू लगाई, फिर (मस्जिद की जानिब) चला दो लोगों के दरमियान से ना गुज़रा, और जितनी नमाज़ मकतूब थी पढ़ी और जब इमाम आए तो ख़ामोशी इख़्तियार की, ऐसे शख़्स के लिए जुमे से जुमे तक के तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।
नफ़्ली सद्क़ातः
नफ़्ली सद्क़ात भी मंदूब आमाल में से हैं। चुनांचे हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) की एक मुत्तफिक़ अ़लैह रिवायत में है के रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((من تصدق بعدل تمرۃ من کسب طیب ۔ولا یقبل اللہ إلا الطیب فإن اللہ یتقبلھا بیمینہ ثم یربیھا لصاحبھا، کما یربی أحدکم فلوہ حتی تکون مثل الجبل))
जिस ने एक खजूर के बराबर भी अपनी पाक कमाई से सद्क़ा किया, और अल्लाह सिर्फ़ हलाल कमाई ही क़ुबूल करता है, तो अल्लाह उनको अपने दाएं हाथ में लेता है और उसकी एैसी ही परवरिश करता है जिस तरह तुम अपने बछड़े की करते हो यहाँ की वो (सद्क़ा) पहाड़ के मानिंद हो जाता है। हज़रत अ़दी बिन हातिम (رضي الله عنه) से मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस नक़ल है के रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((ما منکم من احد الا سیکلمہ اللہ لیس بینہ وبینہ ترجمان ، فینظر ایمن منہ فلا یری الا ما قدم وینظر أشام منہ فلا یری الا ما قدم وینظر بین یدیہ فلا یری الا النار تلقاء فجھہ واتقوا النار ولو بشق تمرۃ))
तुम में हर एक से अल्लाह कलाम करेगा और तुम्हारे और उसके दरमियान कोई तर्जुमान (मुतर्जिम) ना होगा। आदमी अपने दाएं जानिब देखेगा तो अपने आमाल के सिवा कुछ ना दिखाई देगा। फिर अपने बाएं देखेगा तो अपने आमाल के सिवा कुछ ना दिखाई देगा। फिर अपने सामने देखेगा तो चेहरे के सामने जहन्नुम नज़र आएगी। पस बचो उस आग से ख़्वाह खजूर के एक टुकड़े के ज़रीये ही क्यों ना हो।
((یا کعب بن عجرۃ، الصلاۃ قربان والصیام جنۃ، والصدقۃ تطفیء الخطیءۃ کما یطفیء الماء النار ۔۔۔))
ऐ काब बिन अ़जरा! नमाज़ ज़रीयाए तक़र्रुब, और रोज़े ढाल हैं। सद्क़ा ख़ताओं को ऐसे ख़त्म कर देता है जैसे पानी आग को बुझा देता है।
और बेहतरीन सद्क़ा वो है जो पोशीदा तौर पर दिया जाये लिहाज़ा हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मुत्तफिक़ अ़लैह रिवायत है के अल्लाह سبحانه وتعالیٰ सात लोगों को यौमे क़यामत अपने साये में जगह देगा। इन में से एक वो शख़्स होगा जो सद्क़ा करेगा और इसको छुपाऐगा हत्ता के बाएं हाथ को पता ना चले के दाएं ने क्या ख़र्च किया।
इसी तरह बेहतर सद्क़ा वो है जो ज़रूरत मंद क़राबतदारों और रिश्तेदारों को दिया जाय, चुनांचे हज़रत ज़ैनब अस्सक़फ़ी رضی اللہ تعالیٰ عنہا की हदीस में है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने ऐसे सद्क़ात के बाबत फ़रमायाः
((لھما اجران اجرالقرابۃ واجرالصدقۃ))
इसके लिए दो अज्र हैं एक क़राबतदारी का, दूसरा सद्के़ का।
क़र्ज़:
हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन मसऊ़द इ की रिवायत, बैहक़ी, इब्ने माजा और इब्ने हिब्बान में नक़ल है के नबी अकरम ने फ़रमायाः
((ما من مسلم یقرض مسلما قرضا مرتین إلا کان کصدقتہا مرۃ))
अगर कोई मुस्लिम किसी मुस्लिम को दो मर्तबा क़र्ज़ देता है तो गोया उसने एक मर्तबा सद्क़ा किया।
ख़ुशहाल को मोहलत, तंगदस्त को रुख़्सत (से चशमपोशी):
हज़रत हुज़ैफ़ा (رضي الله عنه) से मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस रिवायत है, कहते हैं के मैंने रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) को फ़रमाते सुनाः
((إن رجلا ممن کان قبلکم أتاہ المَلِک لیقبض روحہ، فقال ھل علمت من خیر؟ قال ما أعلم، قیل لہ انظر، قال ما أعلم شیئاً غیر أني کنت أبایع الناس في الدنیا، فأنظر الموسر، وأتجاوز عن المعسر فادخلہ اللہ الجنۃ))
तुम लोगों से पहले की उम्मत में एक शख़्स था जब फ़रिश्ता उसकी रूह निकालने आया तो पूछा क्या तुम ने कोई नेक काम किया है? उस आदमी ने जवाब दियाः मुझे नहीं मालूम। उस से कहा गयाः याद करो। उस ने कहाः मुझे नहीं मालूम के मैंने कोई नेक काम किया हो, अलबत्ता दुनिया में लोगों के साथ ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त करता था, तो ख़ुशहाल को मोहलत देता था और जो तंगदस्त होते थे उनसे दरगुज़र करता था। अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने उस शख़्स को जन्नत में दाख़िल कर दिया।
खाना खिलानाः
लोगों को खाना खिलाना भी नफ़्ली इबादात में शामिल है। हज़रत इब्ने उमर (رضي الله عنه) से मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस रिवायत है के एक शख़्स ने हुज़ूर अक़दस से दरयाफ़्त किया के कौन सा इस्लाम अफ़्ज़ल है? आप ((صلى الله عليه وسلم)) ने फरमाया
((تطعم الطعام وتقرأ السلام علی من عرفت ومن لم تعرف))
खाना खिलाना, और सलाम करना हर उस शख़्स को जिस को तुम जानते हो या ना जानते हो।
हर प्यासे को पानी पिलानाः
इस सिलसिले में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस रिवायत है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((بینما رجل یمشی بطریق اشتد علیہ الحر، فوجد بئراً فنزل فیھا فشرب ثم خرج، فإذا کلب یلھث یأکل الثری من العطش، فقال الرجل: لقد بلغ ھذا الکلب من العطش مثل الذي کا ن مني، فنزل البئر فملأ خفہ ماء، ثم أمسکہ بفیہ حتی رقي، فسقی الکلب، فشکر اللہ لہ ، فغفر لہ قالوا یا رسول اللہ: إن لنا في البہا ئم أجراً؟ فقال: في کل کبد رطبۃ أجر))
एक आदमी जा रहा था के उसको तेज़ गर्मी और प्यास लगी। उसने एक कुँआं देखा और उसमें उतर गया, पानी पिया और बाहर निकल आया और देखा के एक कुत्ता हांप रहा है और प्यास की शिद्दत से कीचड़ चाट रहा है। उस शख़्स ने कहाः इस कुत्ते को उतनी ही शदीद प्यास है जितनी के कुछ देर पहले मुझे थी। फिर वो कुँऐ में उतरा और अपने जूते में पानी भरा और मुंह में दबा कर बाहर आया और कुत्ते को पिलाया। इस पर अल्लाह سبحانه وتعالیٰ उससे बहुत ख़ुश हुए और उसको बख़्श दिया, लोगों ने हुज़ूर से दरयाफ़्त किया के क्या हमारे लिए जानवरों में भी अज्र है? आप ने फ़रमायाः हर तर जिगर (ज़िंदा) में अज्र है।
नफ़्ली रोज़ेः
हज़रत अबू अमामा (رضي الله عنه) से सही इब्ने ख़ुज़ैमा, नसाई और हाकिम ने रिवायत नक़ल की है जिसे अ़ल्लामा अल ज़ेहबी ने सही बताया हैः
((قلت یا رسول اللہ مرني بعمل قال علیک بالصوم فإنہ لا عدل لہ، قلت: یا رسول اللہ مرني بعمل، قال علیک بالصوم فإنہ لا عدل لہ، قلت: یا رسول اللہ مرني بعمل، قال علیک بالصوم فإنہ لا مثل لہ))
मैंने रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) से कहा के मुझे किसी अ़मल का हुक्म दीजिए। आप ने फ़रमायाः रोज़े रखो। कोई चीज़ इसके मुसावी (बराबर) नहीं। मैंने फिर कहा ऐ अल्लाह के रसूल ((صلى الله عليه وسلم)) मुझे किसी काम का हुक्म दीजिए? आप ने फ़रमायाः तुम रोज़े रखो क्योंकि कोई चीज़ इसके मुसावी नहीं। मैंने कहा ऐ रसूलुल्लाह ((صلى الله عليه وسلم)) मुझे किसी काम का हुक्म दीजिए? तो आप ने फ़रमाया तुम रोज़े रखो क्योंकि कोई चीज़ इसके बराबर नहीं है।
ये अज्र लोगों के लिए आम हालत में है, लेकिन अल्लाह سبحانه وتعالیٰ के रास्ते में जिहाद करने वालों के लिए वादाऐ ख़ास है। उनके ताल्लुक़ से हज़रत अबू सईद (رضي الله عنه) की मुत्तफिक़ अ़लैह रिवायत है के रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((ما من عبد یصوم یوماً فی سبیل اللّٰہ تعالیٰ ، الّاباعد اللّٰہ بذلک الیوم وجھہ عن النار سبعین خریفاً))
जो शख़्स राहे ख़ुदा में एक दिन रोज़ा रखता है तो अल्लाह उसे जहन्नुम की सत्तर (70) सालों की मुसाफ़त के बराबर दूर कर देता है।
इस के अ़लावा माहे शव्वाल में छः रोज़े, यौमे अ़रफ़ात का रोज़ा, माहे मुहर्रम के रोज़े ख़ासकर आशूरा का रोज़ा, हर माह में तीन रोज़े और हर पीर और जुमेरात के रोज़े रखना सुन्नत है।
क़ियामे रमज़ान, ख़ुसूसन शबे क़दर और अ़शराऐ अख़ीरा में:
रमज़ान की रातों को क़ियाम करना ख़ुसूसन शबे क़दर और आख़री अ़शरे में क़ियाम करना मंदूब और नवाफ़िल इबादात में से है। चुनांचे हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मुत्तफिक़ अ़लैह रिवायत है के आप ((صلى الله عليه وسلم)) लोगों को क़ियामे रमज़ान की रग़बत दिलाते और फ़रमाते:
)(من قام رمضان إیماناً واحتساباً غفرلہ ما تقدم من ذنبہ))
जिसने माहे रमज़ान में ईमान ओ एहतेसाब के साथ क़ियाम किया उसके गुज़िश्ता गुनाह माफ़ कर दिए गए।
हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) ही से एक दूसरी हदीस मरवी है के आप ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((من قام لیلۃ القدر إیمانا واحتساباً غفرلہ ما تقدم من ذنبہ))
जिसने शबे क़दर को क़ियाम किया ईमान-ओ-एहतिसाब (अज्र-ओ-मग़फ़िरत की उम्मीद) के साथ। इसके गुज़िश्ता गुनाह माफ़ कर दिए गए। मुत्तफिक़ अ़लैह
और ये क़ियाम नमाज़ के ज़रीये होगा। लिहाज़ा उम्मुल मोमिनीन हज़रत आईशा फ़रमाती हैं केः
जब माहे रमज़ान का आख़री अशरा शुरू होता तो अल्लाह के रसूल रातों को जागते और अपने घरवालों को बेदार करते और (इ़बादत के लिए) कमर कस लेते।
सेहरीः
हज़रत अनस (رضي الله عنه) से मुत्तफिक़ अ़लैह रिवायत है के आप ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((تسحروا فإن في السحور برکۃ))
सेहरी किया करो क्योंकि सेहरी में बरकत है।
इफ़्तार में जल्दीः
इफ़्तार में जल्दी करना भी मुस्तहब्बात में है। शैख़ैन ने हज़रत सहल बिन साद की रिवायत नक़ल की है के रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((لا یزال الناس بخیر ما عجلوا الفطر))
लोग उस वक़्त तक ख़ैर-ओ-आफ़ियत में रहेंगे जब तक वो इफ़्तार करने में जल्दी करेंगे।
मसनून बात ये है के इफ़्तार खजूर से किया जाये अगर खजूर दस्तयाब ना हो तो पानी से इफ़्तार किया जाये। लिहाज़ा तिरमिज़ी, इब्ने ख़ज़ैमा और इब्ने हिब्बान में हज़रत सलमान (رضي الله عنه) ब्ने आमिर अल ज़ेहबी (رضي الله عنه) से रिवायत हदीस नक़ल है के नबी अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((إذا أفطر أحدکم فلیفطر علی تمر فإنہ برکۃ، فإن لم یجد تمراً
فالماء فإنہ طھور))
जब तुम इफ़्तार करो तो खजूर से करो बेशक इस में बरकत है। अगर खजूर मयस्सर ना हो तो पानी से करो क्योंकि ये तहूर (पाक है और पाक करने वाला) है।
रोज़ा दारों को इफ़्तार करानाः
तिरमिज़ी, इब्ने ख़ुज़ैमा और इब्ने हिब्बान में हज़रत ज़ैद इब्ने ख़लिद अलजुहन्नी से रिवायत हदीस नक़ल है के नबी अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((من فطر صائماً کان لہ مثل أجرہ، غیر أنہ لا ینقص من أجرالصائم شيء))
जिस ने रोज़ेदार को इफ़्तार कराया तो उसके लिए भी रोज़ेदार के बराबर का सवाब है, मगर रोज़ेदार के सवाब में कुछ भी कमी ना होगी।
उमराः
हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) की मुत्तफिक़ अ़लैह रिवायत है के रसूले अकरम ने फ़रमायाः
((العمرۃ إلی العمرۃ کفارۃ لما بینھما، والحج المبرور لیس لہ جزاء إلا الجنۃ))
एक उ़मरा दूसरे उ़मरा तक के दरमियान का कुफ़्फ़ारा है और हजे मबरूर का बदला सिफ़ जन्नत है।
रमज़ान मुबारक के उ़मरे का सवाब हज के बराबर है चुनांचे इस मानी की हज़रत इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) से मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस मरवी है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((عمرۃ في رمضان تعدل حجۃ))
रमज़ान का उ़मरा हज के बराबर है।
ज़िलहिज्जा के दस दिनों के नेक आमालः
सही बुख़ारी में हज़रत इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) की रिवायत है के रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((مامن أیام، العمل الصالح فیھا أحب إلی اللہ عز وجل من ھذہ الأیام ۔یعني أیام االعشرقالوا: یارسول اللہ ولاالجھاد في سبیل اللہ، قال: ولا الجھاد في سبیل اللہ إلا رجل خرج بنفسہ ومالہ ثم لم یرجع من ذالک بشيء))
इन दिनों- अय्याम अ़श्र में किए गए आमाल अल्लाह के नज़दीक दूसरे अय्याम में किए गए आमाल से ज़्यादा मेहबूब हैं। सहाबा ने फ़रमायाः ऐ रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)! जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह भी नहीं। आप ने फ़रमाया नहीं, अलबत्ता वो शख़्स जो अपने जान-ओ-माल के साथ निकले और कोई भी चीज़ लेकर वापिस ना हो।
दुआए शहादतः
मुस्लिम में सहल बिन हुनैफ़ इ की हदीस है के रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((من سأل اللہ الشھادۃ بصدق بلغہ اللّٰہ منازل الشھداء
وإن مات علی فراشہ))
जिस ने ख़ुलूसे दिल से अल्लाह से शहादत तलब की, अल्लाह उसको शुहदा के मुक़ाम पर फ़ाइज़ करेगा, भले उसकी मौत अपने बिस्तर पर ही हो।
सूरह कहफ़ या अवाइल या अवाख़िर की तिलावतः
मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबू दरदा (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूले अकरम ने फ़रमायाः
((من حفظ عشر آیات من أول سورۃ الکھف عصم من الدجال)). وفي روایۃ ((من آخر سورۃ الکھف))
जिस ने सूरह कहफ़ की शुरू की दस आयात याद कीं वो फ़ित्नाऐ दज्जाल से मेहफ़ूज़ रहा। दूसरी रिवायत में है “सूरा कहफ़ के आख़िर से।“
मुसलमान हमारे दौर के दज्जालों से मेहफ़ूज़ रहें, इसलिए जुमे की शब और जुमे के रोज़ मुकम्मल सूरह कहफ़ की तिलावत करें, इमाम शाफ़ई رحمت اللہ علیہ ने अपनी किताब अल उम्म में इसको पसन्दीदा क़रार दिया है और कहा है के ये इसलिए है के इस सूरत में या इसके बारे जो कुछ वारिद हुआ है, वो इसी तरफ़ इशारा है।
ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त, क़र्ज़ अदा करने और अदायगी के मुतालिबे में नरमीः
सही बुख़ारी में हज़रत जाबिर (رضي الله عنه) से रिवायत मनकूल है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((رحم اللہ رجلا سمحا إذا باع، وإذا اشتری، وإذا اقتضی))
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ उस शख़्स पर रहम करे जो नरमी करे फ़रोख़्त के वक़्त, ख़रीद के वक़्त और तक़ाज़े के वक़्त।
इसी मानी की एक मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मरवी है वो कहते हैं:
))ان رجلا اتی النبیا یرقاضاہ فاغلظ لہ ، فھمّ بہأصحابہ فقال رسول اللہا :دعوہ، فان لصاحب الحق مقالً، ثم قال أعطوہ سناً مثل سنہ ،قالوا: یا رسول اللّٰہ، لا نجد إلا امثل من سنہ قال أعطوہ فان خیرکم أحسنکم قضاء((
इसी तरह बुख़ारी और मुस्लिम में हज़रत जाबिर से मरवी है के रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) ने जाबिर (رضي الله عنه) से एक ऊंट खरीदा, तो इस की क़ीमत झुकती हुई दी।
रसूले अकरम पर दरूदो सलामः
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का क़ुरआन मजीद में इरशाद हैः
اِنَّ اللّٰهَ وَ مَلٰٓىِٕكَتَهٗ يُصَلُّوْنَ عَلَى النَّبِيِّ١ؕ يٰۤاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا صَلُّوْا عَلَيْهِ وَ سَلِّمُوْا تَسْلِيْمًا
बेशक अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी ((صلى الله عليه وسلم)) पर सलाम भेजते हैं, ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, तुम भी इन पर रहमत भेजो और अच्छी तरह सलाम भेजो। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : अहज़ाब-56)
हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उमरो (رضي الله عنه) से रिवायत है के उन्होंने रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) को फ़रमाते सुनाः
((من صلی علیّ صلاۃ صلی اللّٰہ علیہ بھا عشرا))
जो मुझ पर एक मर्तबा सलाम भेजता है अल्लाह उस पर दस मर्तबा सलाम भेजता है।
ख़ास फ़रमाँबर्दारों की लग़ज़िशों की पर्दापोशीः
एक मुसलमान जो मासियत का काम करे या तो उसको छुपाऐगा और मख़्फ़ी रखने की कोशिश करेगा या फिर बेहयाई और बेशरमी के साथ इसको अफ़शां करेगा। पहले शख़्स की पर्दापोशी करनी चाहिए और उसके फे़अ़ल से सर्फे़ नज़र करना चाहिए क्योंकि हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) की मुत्तफिक़ अ़लैह रिवायत है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((۔۔۔ ومن ستر مسلما سترہ اللہ یوم القیامۃ))
जिस ने किसी मुसलमान की पर्दापोशी की, बरोज़ क़यामत अल्लाह उसकी पर्दापोशी करेगा।
इसी तरह से मुस्लिम ने हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) की एक रिवायत नक़ल की है रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((۔۔۔ من ستر مسلما سترہ اللہ في الدنیا والآخرۃ ۔۔۔))
जिस ने किसी मुस्लिम की पर्दापोशी की तो अल्लाह दुनिया ओ आख़िरत में उसकी पर्दापोशी करेगा।
इसी तरह हज़रत उ़तबा बिन आमिर की हदीस जिसकी रिवायत इब्ने हिब्बान और हाकिम ने अपनी सही में की है और अ़ल्लामा ज़ेहबी ने इस की मुवाफ़िक़त की है वो कहते हैं के मैंने रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) को कहते सुनाः
((من ستر عورۃ فکأنما استحیا موء ودۃ في قبرھا))
जो (किसी के) एक एै़ब की सतर पोशी करे तो जैसे उसने एक एैसी लड़की को उसकी क़ब्र में ज़िंदा किया जो ज़िंदा दफ़्न की गई थी।
और ख़ताओं और मासियत को खुले तौर पर करने और बयान करने वाला हो तो ऐसे लोगों की सतरपोशी नहीं होगी क्योंकि ये तो ख़ुद ही अपने आप को बदनाम और ज़लील करता है और जिस चीज़ को अल्लाह ने राज़ रखा उसको अ़याँ करता है। इसका ये फ़ेअ़ल हराम है, इसलिए के हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस नक़ल है वो कहते हैं के मैंने रसूले अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) को फ़रमाते सुनाः
((کل أمتي یعافي إلا المجاھرین، وإن من المجاھرۃ أن یعمل الرجل بالیل عملاً ثم یصبح وقد سترہ اللہ، فیقول: یا فلان عملت البارحۃ کذا وکذا، وقد بات یسترہ ربہ، ویصبح یکشف ستر اللّٰہ عنہ))
मेरी तमाम उम्मत को माफ़ कर दिया जाऐगा मगर वो लोग जो ख़ुद अपने उ़यूब को आश्कारा करते हैं। इनको आश्कारा करने का मतलब ये है के आदमी रात को कोई बदअ़मली करता है, और सुबह उठ कर उसकी तशहीर करता फिरता है और कहता है ऐ फ़ुलाँ, मैंने गुज़िश्ता रात फ़ुलाँ फ़ुलाँ ग़लत काम किया, हालाँके अल्लाह ने इस पर पर्दा डाला था लेकिन वो अल्लाह के पर्दे को चाक कर रहा है।
इनके बावजूद एक मुसलमान के लिए मुनासिब ये है के वो मुजाहिर की मासियत के बारे में बात करने से बचे। इसकी पर्दापोशी की वजह से नहीं बल्कि इस मक़सद से के मोमिनों के दरमियान ये फ़ेहश इशाअ़त ना पाऐ और अपनी ज़बान बदगोई से मेहफ़ूज़ रहे। अलबत्ता एैसी बदगोई से एहतियात इस सूरत में सही नहीं होगी जब लोगों को ऐसे शख़्स के फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर से ख़बरदार करना मक़सूद हो। मज़ीद ये के एैसी एहतियात इस सूरत में ही होगी जब किसी शख़्स का फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर सिर्फ़ उसकी ज़ात तक मेहदूद हो और फैल ना रहा हो। बसूरते दीगर अगर ये ए़ैब-ओ-फ़िस्क़ एैसी नौ़ईयत का हो के इससे रियासत मुतास्सिर होती हो या मुआशरे और उम्मत पर इसके असरात मुरत्तिब होते हों तो ये ज़रूरी हो जाता है के इसको आम किया जाये और मुनासिब इदारों तक इस बात को पहुंचाया जाये। चुनांचे ज़ैद बिन अर्क़म (رضي الله عنه) की मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस हैः
(کنت في غزاۃ فسمعت عبداللہ ابن ابي یقول:لا تنفقوا علی من عند رسول اللّٰہ حتی ینفضوا من حولہ،ولئن رجعنا إلی المدینۃ لیخرجن الأعز منھا الأذل،فذکرت ذلک لعمّی أو لعمر فذکرہ للنبیّ ا فدعانی فحدثتہ۔۔۔ الحدیث)
मुस्लिम की रिवायत में है के मैं नबी अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) के पास आया और इस बात से उनको बाख़बर किया।
रईसुल मुनाफ़िक़ीन अ़ब्दुल्लाह बिन उबई और उसके क़रीबी मुनाफ़क़ीन के इस फ़ेअ़ल के बारे में जब उससे आपने बाज़पुर्स की तो उसने इसे छुपाया और ऐसा कहने से इंकार किया, जैसा के हदीस के मुकम्मल मतन से वाज़ेह होता है। इस दलील से उसके इस फ़ेअ़ल की ख़बर पहुंचाया जाना सही नहीं होता और हज़रत ज़ैद इब्ने अर्क़म का इस ख़बर को पहुंचाना जासूसी के ज़ुमरे में आता है। लेकिन जिस सूरत में कोई ममनूअ काम जायज़ हो जाता है तो वो फ़र्ज़ की शक्ल में होता है। इसलिए एैसी हालत में उन पर उसकी ख़बर पहुंचाना फ़र्ज़ था क्योंकि इस से जमाअत को नुक़्सान का अंदेशा था।
दरगुज़र, ग़ुस्से पर क़ाबू रखना और तकलीफ़ बर्दाश्त करनाः
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का इरशाद हैः
وَ الْكٰظِمِيْنَ الْغَيْظَ وَ الْعَافِيْنَ عَنِ النَّاسِ١ؕ وَ اللّٰهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِيْنَۚ
और गुस्से को ज़ब्त करते, और लोगों से दरगुज़र का मुआमला करते हैं, और अल्लाह भी अच्छे काम करने वालों को पसंद करता है। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने: आले इमरान-134)
وَ لَمَنْ صَبَرَ وَ غَفَرَ اِنَّ ذٰلِكَ لَمِنْ عَزْمِ الْاُمُوْرِ
अलबत्ता जो शख़्स सब्र से काम ले और दरगुज़र करे तो ये बड़ी उ़लुलअ़ज़्मी के कामों में से है। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अलशूरा- 43)
فَاصْفَحِ الصَّفْحَ الْجَمِيْلَ
पस तुम ख़ूबतर दरगुज़र से काम लो। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीम: हिज्र- 85)
خُذِ الْعَفْوَ وَ اْمُرْ بِالْعُرْفِ وَ اَعْرِضْ عَنِ الْجٰهِلِيْنَ
और जाहिलों से एराज़ करो। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल एअ़राफ-199)
وَ لْيَعْفُوْا وَ لْيَصْفَحُوْا١ؕ اَلَا تُحِبُّوْنَ اَنْ يَّغْفِرَ اللّٰهُ لَكُمْ١ؕ وَ اللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ
उन्हें चाहिए के माफ़ कर दें और उनसे दरगुज़र करें। क्या तुम ये नहीं चाहते के अल्लाह तुम्हें बख़्श दे (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम:अल नूर -22)
इमाम मुस्लिम हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से रिवायत करते हैं के रसूलुल्लाह ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((مانقصت صدقۃ من مال، وما زاد اللّٰہ عبداً بعفو إلا عزا، وما تواضع أحد للہ إلا رفعہ اللہ))
सद्क़ा माल में से कुछ भी कम नहीं करता और अल्लाह अपने बंदे की इस दरगुज़र के ऐवज़ उसे इज़्ज़त अ़ता करता है और जो शख़्स अल्लाह के लिए तवाज़ो इख़्तियार करता है अल्लाह उसे बुलंदी अ़ता करता है।
जिस ने अल्लाह के लिए ख़ाकसारी-ओ-तवाज़ो इख़्तियार की। उसके दरजात अल्लाह बुलंद फ़रमाता है। इमाम अहमद ने जय्यद सनद से अ़ब्दुल्लाह बिन उमरो बिन अल आस (رضي الله عنه) से रिवायत की है के नबी अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((ارحموا ترحموا واغفروا یغفر لکم))
रहम करो तुम पर रहम किया जाऐगा। माफ़ करो तुम को माफ़ किया जाऐगा।
इमाम अहमद ने सही के रिजाल की सनद से हज़रत उ़बादा बिन सामित की रिवायत नक़ल की है वो कहते हैं आदमी के जिस्म में ज़ख़्म होता है और वह इसका सद्क़ा निकालता है तो अल्लाह سبحانه وتعالیٰ उस सद्क़े के मिस्ल उसके गुनाह माफ़ कर देता है।
बुख़ारी और मुस्लिम में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) की रिवायत है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((لیس الشدید بالصرعۃ، إنما الشدید الذي
یملک نفسہ عند الغضب))
पहलवान वो नहीं जो पछाड़ दे बल्कि पहलवान वो है जो ग़ुस्से के वक़्त अपने नफ़्स को क़ाबू में रखे।
इमाम मुस्लिम ने हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की हैः
((أن رجلاً قال یا رسول اللّٰہ ا:إن لي قرابۃ أصلھم و یقطعوني،وأحسن الیھم و یسیؤن إليّ،وأحلم عنھم و یجھلون إليّ،فقال:لئن کنت کما قلت فکأنما تسفھم الملّ،ولا یزال معک من اللّٰہ تعالیٰ ظھیر علیھم ما دمت علی ذلک))
एक आदमी ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल ((صلى الله عليه وسلم)) मेरे क़राबतदार हैं, मैं उनसे रिश्तेदारी निबाहता हूँ मगर वो तोड़ देते हैं, मैं उनसे हुस्ने सुलूक से पेश आता हूँ मगर वो मेरे साथ बुराई से पेश आते हैं, मैं उनसे बुर्दबारी से पेश आता हूँ और वो मुझ से जाहिलियत का बरताओ करते हैं। रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः अगर तुम ऐसे ही हो जैसा बयान कर रहे हो गोया तुम उनके मुंह पर गर्म राख डाल रहे हो, और जब तक तुम इसी तरह रहोगे, अल्लाह سبحانه وتعالیٰ की तरफ़ से तुम्हारे लिए एक मददगार रहेगा।
बरजिलानी ने सही सनद से सुफ़ियान बिन उए़ैना से रिवायत की है वो कहते हैं के हज़रत उ़मर (رضي الله عنه) ने इब्ने अ़य्याश से कहा, जिसने उन्हें सख़्त तकलीफ़ और परेशानी पहुंचाई थीः ऐ इब्ने अ़य्याश, हमें गालियाँ देने में इतनी शिद्दत ना करो के सुलह की गुंजाइश ही ना रहे, क्योंकि जो हमें गालियाँ दे कर अल्लाह سبحانه وتعالیٰ की नाफ़रमानी करे हम उसे इनाम नहीं देते, बल्कि इसके साथ सुलूक करने में भी हम अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ही की इताअ़त करते हैं।
लोगों के दरमियान सुलह और मुफ़ाहिमत करानाः
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का इरशाद हैः
لَا خَيْرَ فِيْ كَثِيْرٍ مِّنْ نَّجْوٰىهُمْ اِلَّا مَنْ اَمَرَ بِصَدَقَةٍ اَوْ مَعْرُوْفٍ
اَوْ اِصْلَاحٍۭ بَيْنَ النَّاسِ١ؕ
इनकी अक्सर सरगोशियों में कोई भलाई नहीं होती, हाँ जो शख़्स सद्क़ा और ख़ैरात, या भलाई लोगों के दरमियान इस्लाह के लिए कुछ कहे तो इस की बात और है। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: सूरा अन्निसा-114)
وَ الصُّلْحُ خَيْرٌ١ؕ
सुलह बहरहाल बेहतर है, (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : अन्निसा -128)
فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَ اَصْلِحُوْا ذَاتَ بَيْنِكُمْ
पस अल्लाह का डर रखो और अपने माबैन ताल्लुक़ात दुरुस्त करो। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीम: अनफ़ाल-01)
اِنَّمَا الْمُؤْمِنُوْنَ اِخْوَةٌ فَاَصْلِحُوْا بَيْنَ اَخَوَيْكُمْ وَ اتَّقُوا اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ
मोमिन तो एक दूसरे के भाई हैं, लिहाज़ा अपने भाईयों के दरमियान ताल्लुक़ात को दुरुस्त करो और अल्लाह से डरो, उम्मीद है के तुम पर रहम किया जाऐगा। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः अल हुजरात-10)
बुख़ारी और मुस्लिम ने हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है वो कहते हैं के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((کل سلامی من الناس علیہ صدقۃ، کل یوم تطلع فیہ الشمس تعدل بین الاثنین صدقۃ، وتعین الرجل في دابتہ تحملہ علیھا أو ترفع لہ علیھا متاعہ صدقۃ، والکلمۃ الطیبۃ صدقۃ، وکل خطوۃ تمشیھا إلی الصلاۃ صدقۃ، وتمیط الأذی عن الطریق صدقۃ))
इंसान के हर जोड़ पर सद्क़ा है हर दिन जिस में सूरज तुलूअ़ होता है हर इंसान के जोड़ पर सद्क़ा है। इंसान दो लोगों के दरमियान इंसाफ़ करता है तो ये भी सद्क़ा है, आदमी को उसके जानवर पर बिठाने में मदद करना भी सद्क़ा है। अच्छी बात भी सद्क़ा है। नमाज़ की तरफ़ एक क़दम सद्क़ा है। रास्ते से तकलीफ़ दूर कर देना भी सद्क़ा है।
तअ़द्दुल बैनुल असनैन (تعدل بین الاثنین) का मतलब ये है के दोनों के दरमियान इंसाफ़ के साथ सुलह कराना। उम्मे कुलसुम बिंते उ़क़्बा बिन अबी मुईत से रिवायत है वो कहती हैं कि मैंने रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) को फ़रमाते सुनाः
((لیس الکذاب الذي یصلح بین الناس فینمي خیراً أو یقول خیراً))
वो शख़्स झूठा नहीं है जो लोगों के दरमियान सुलह कराने में झूठ बोल जाये, जबकि उसकी मंशा और उसका क़ौल भला हो। (मुत्तफिक़ अ़लैह)
सहल बिन साद से रिवायत है के रसूलुल्लाह ((صلى الله عليه وسلم)) को मालूम हुआ के बनू अ़म्र बिन औफ के दरमियान कुछ निज़ाअ़ (झगडा) है या बरिवायत बुख़ारी कुछ है तो आप निकले और उनके दरमियान सुलह कराई। (मुत्तफिक़ अ़लैह)
मुसनद अहमद, तिरमिज़ी और इब्ने हिब्बान में हज़रत अबू दरदा (رضي الله عنه) से रिवायत है के रसूलुल्लाह ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((ألا أخبرکم بأفضل من درجۃ الصیام والصلاۃ والصدقۃ؟ قالوا: بلی، قال: إصلاح ذات البین، فإن فساد ذات البین ہي الحالقۃ))
क्या मैं तुम को रोज़े, नमाज़ और सद्के़ से ज़्यादा दर्जे वाली बात ना बताऊं? सहाबा ने कहाः क्यों नहीं या रसूलुल्लाह ((صلى الله عليه وسلم))! ज़रूर बताईए तब आप ने फ़रमायाः लोगों के दरमियान सुलह कराना, क्योंकि लोगों के दरमियान फ़ित्ना ओ फ़साद फैलाना मौत या बर्बादी के बराबर है।
ज़ियारते क़ब्रः
मुस्लिम शरीफ़ में है हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से रिवायत है के नबी अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) ने अपनी वालिदा की क़ब्र की ज़ियारत की और रोने लगे, उनके इर्द गिर्द के लोग भी रोने लगे। फिर आप ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((استأذنت ربي في أن استغفر لھا فلم یؤذن لي، واستأذنتہ في أن أزور قبرھا فأذن لي، فزورھا فإنھا تذکرالموت))
मैंने अपने रब से इज़ाज़त तलब की के मैं उनके (अपनी वालिदा के) लिए दुआए मग़फ़िरत करूं मगर मुझे इज़ाज़त ना मिली, फिर मैं इज़ाज़त चाही के मैं उनकी क़ब्र की जयारत करूं, तो मुझे इज़ाज़त दे दी गई। क़ब्र की ज़ियारत करो ये मौत को याद दिलाती है। (मुस्लिम)
आमाल में इस्तिक़ामतः
यहाँ आमाल में इस्तिक़ामत से मुराद मंदूब आमाल से है क्योंकि फ़राइज़ तो लाज़िम हैं ही और ये फ़राइज़ यहाँ मकसूद नहीं हैं। जहाँ तक फ़राइज़ हैं तो ये लाज़िम हैं और उनको तर्क ही नहीं जा सकता। लिहाज़ा जो शख़्स उन सुन्नतों में से किसी को इख़्तियार करता है, इस पर कायम रहे, ख़्वाह वो थोड़ी ही हों। हज़रत आईशा से मरवी है के नबी अकरम ((صلى الله عليه وسلم)) उनके पास तशरीफ़ लाए तो एक औरत हज़रत आईशा के पास बैठी हुई थी। आप ((صلى الله عليه وسلم)) ने पूछाः ये कौन है? हज़रत आईशा ने कहाः फ़ुलाँ औरत है, और नमाज़ के बारे में बता रही थी। आप ने फ़रमायाः
((مہ، علیکم بما تطیقون، فو اللہ لا یمل اللہ حتی تملوا۔ وکان أحب الدین إلیہ ما دوام علیہ صاحبہ))
छोड़ दो, रुक जाओ जितनी ताक़त हो इतना ही करो। अल्लाह की क़सम अल्लाह (سبحانه وتعالیٰ) नहीं थकता मगर तुम थक जाते हो। सब से मेहबूब अ़मल अल्लाह के नज़दीक वो है जिस पर आदमी इस्तिक़ामत से क़ायम रहे। (मुत्तफिक़ अ़लैह)
इसी तरह हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उमरो (رضي الله عنه) से मरवी है वो कहते हैं के मुझ से रसूलुल्लाह ((صلى الله عليه وسلم)) ने फ़रमायाः
((یا عبد اللہ لا تکن مثل فلان، کان یقوم اللیل، فترک قیام اللیل)
ऐ अ़ब्दुल्लाह! फ़ुलाँ शख़्स की तरह मत हो जाना, वो रात को क़ियाम करता था मगर फिर उस ने क़ियाम को तर्क कर दिया।
0 comments :
Post a Comment