➡ सवाल नं. (79): क्या खिलाफत की विदेश नीति दुनिया के खिलाफ जिहाद नही होगा?


  • खिलाफत की विदेश नीति यह है कि वह पूरी दुनिया तक इस्लाम को पहुंचाये। अल्लाह (سبحانه وتعال) ने इस मक़सद को पूरा करने के लिए बहुत तफ्सीली अहकाम शरीअत नाज़िल फरमाए है, जिसमें खिलाफत को युध्दाभ्यास के तरीके, नई तरह की तकनीके व उपकरण सीखने व इस्तिमाल करने कि इजाज़त है।
  • इस्लाम को दुनिया तक पहुंचाना यह बुनियादी तौर पर एक राजनीतिक अमल है, हांलाकि किसी देश की आर्थिक, फौजी (सैन्य) और तकनीकी तरक्की (Technological Development) दुनिया को मुतास्सिर करती है, जिससे आवाम और दूसरे कई देश उस से प्रभावित होते हैं और उसके नज़रियात को अपनाते हैं। खिलाफत बहुत ताक़तवर रियासत के रूप में उभरेगी जिससे दुनिया उसके नज़रियात से खुद ब खुद मुतास्सिर होगी जैसा कि इतिहास बताता है कि इस्लामी रियासत दुनिया की सबसे शक्तिशाली रियासत रही है और उसने जो भी नज़रियात, फैशन और तरीक़ा अपनाया वही दुनिया में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय रहा।
  • जिस तरह आज अमरीका अपनी तर्ज़े ज़िन्दगी (Way Of Life) को फैलाने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाता है, चाहे वह आर्थिक मदद के नाम पर हो या लोकतंत्र (Democracy) के नारे देकर, लोकतंत्र के हक़ में जनमत (रायेआम्मा) के लिए वह अपना मीडिया, इंटेलीजेंस वग़ैराह इस्तिमाल करता हैं, यहाँ तक कि फौजी हस्तक्षेप (Military Intervention) तक करता है। इसी तरह खिलाफत भी अपनी कई राजनीतिक और मिलिट्री (फौजी) ज़राए से अपना असरो-रसूख दुनिया में फैलायेगी।

➡ सवाल नं. (80): क्या गै़र-मुस्लिमों के साथ इस्लाम क़बूल करने के लिए ज़बरदस्ती की जायेगी?


  • बिल्कुल नही । इस्लाम वाज़ेह (स्पष्ट) तौर पर जबरन लोगों का धर्म परिवर्तन करने को हराम क़रार देता है। पहले जब इस्लाम लागू किया गया तो हम देखते है कि मुस्लिम और गै़र-मुस्लिम दोनों के साथ उसने अच्छा बर्ताव रखा गया। जिन्होंने इस्लाम नही अपनाया तो वह दारुल इस्लाम के शहरी बने रहें और उनके भी मुसलमानों के तरह अधिकार व हूक़ूक़ रहें।



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