आज एक ओर जहा पषिचम जगत उधौगिक क्रांति ( प्दकनेजतपंस त्मअवसनजपवद ) के बाद से असाधारण तरक्की हासिल करने में कामयाब रहा है वहीं दूसरी ओर मुस्लिम दुनिया काफी पीछे रह गयी है। आज मुस्लिम दुनिया तस्वीर है एक अद्र्धविकसित बुनियादी ढांचे, गरीबी, बेरोजगारी और न के बराबर तकनकीकी विकास की। इसी के साथ आज विष्व के कुछ सबसे विषाल बेहद जरूरी खनिजों के भंडार मुस्लिम दुनिया के पास है। मुस्लिम दुनिया अकेली विष्व के 74 प्रतिषत तेल के भंडार के मालिक है, जो विष्व की सबसे जरूरी चीज हैं। मुस्लिम दुनिया की अर्थव्यवस्थाए ( मबवदवउपमे ) की खासियत निर्यात (मगचवतज) की बजाए आयात ( पउचवतज ) है और वह भी सबसे मूलभूत वस्तुओं (ठेंपब बवउउवकपजपमे) की। पाकिस्तान मुख्य खाधान्न (थ्ववकेजंचसमे) का आयात करता है हांलाकि वह खुद हर साल 40 बिलियन कृषि उत्पाद (ंहतपबनसजनतंस चतवकनबजे) का उत्पादन करता है। मध्य पूर्व जहा तेल की कोर्इ कमी नहीं, हर साल परिष्कृत उत्पादों (तमपिदमक चतवकनबजे) का आयात करता है क्योंकि इतना पैसा होने के बावजूद वहा तेल रिफार्इनरियों की कमी है। कर्इ मुस्लिम देषों की अर्थव्यवस्थाए केवल एक-दो वस्तुओं की गिर्द घूमती हैं, जिसकी वजह से अर्थव्यवस्थाओं में विविधता (कपअमतेपपिबंजपवद) की कमी है जो एक बहुत बड़ा कारण है बेरोजगारी और निपुण मजदूरों (ैापससमक संइवनत) का। मुस्लिम दुनिया अपने निर्यात का बढ़ाने के लिए योजनाए बनार्इ लेकिन उसके नतीजे तबाहकुन रहे। क्योंकि निर्यात में भी उनका केन्द्र केवल एक-दो चीजों पर ही रहा, जिसकी वजह से ज्यादातर जनसंख्या बेरोजगार और गरीब ही रही।
मुस्लिम तारीख और उधौगिक विकास :-इससे अलग इस्लामिक आर्थिक इतिहास उधौगिक विकास से भरपूर रहा है। मध्यपूर्व में रेगिस्तान की प्रधानता और पानी की कमी व पानी के स्त्रोत (तमेवनतबमे) की भी कमी वजह बनी। कृषि (ंहतपबनसजनतम) में कर्इ मील के पत्थर स्थापित होने की। मानव इतिहास सबसे पहले ज्यारभाटों और पवन की ताकतों का इस्तेमाल मुसलमानों ने ही किया। इस वजह बड़े कारखाने (तिराज) वजूद में आये। चूंकि पानी ऐसी विषम परिसिथ्यों (वकक बवदकपजपवदे) में पानी सबसे जरूरी चीज था और वजह बना कि मध्य पूर्व में दूर-दूर फैली नदियों और कुछ एक सोतों (ेजतमंउे) का बहतरीन उपयोग किया जाए। मुस्लिम इंजिनियरों ने जलचक्की के उपयोग में निपुणता हासिल की और समानान्तर पहिये ( ीवतप्रवदजंस. बव ीममसमक ) और लम्बत पहियों (टमतजपबंसूीममसमक) वाली जल-चकिकयों ( ंजमत उपससे ) बनार्इ। इस वजह से कइ्र किस्मों उधोगिक चकिकयों (पदकनेजतपंस उपससे) असितत्व में आर्इ, जिसमें शामिल थी अनाज पीसने की चक्की, जहाज की चकिकया, कागज की मीलें, लकड़ी चीरने की चक्की, धातु काटने-पीटने की चक्की (ैजंउच उपससे), इस्पाल मिले, शक्कर की मीलें, पवन चकिकया और ज्वारभाटे से चलने वाली चकिकया। 11वीं शताब्दी तक, इस्लामिक दुनिया के हर प्रदेष में इस तरह की चक्कीया उपयोग में थी, अन्दलुस (ैचंपद) से उत्तरी अफ्रीका तक और मध्य पूर्व से मध्य एषिया तक। मुस्लिम इंजीनियरों पानी के टरबार्इन पर भी निपुणता हासिल किया और 12वीं सदी में बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की। अल-जजारी अपने शोध के जरिए क्रेंकषाफ्ट (ब्तंदोींजि) का आविष्कार करने में कामयाब रहें और छड़ो और बेलन (ब्लसपदकमत) के जरिए घूरण गति (तवजंतल उवजपवद) का उपयोग किया। वह पहले शख्स थे जिन्होंन इनको एक मषीन का रूप दिया। बि्रटिष साम्राज्य ने इसी समझ का इस्तेमाल कर भाप और कोयले से पिस्टन (च्पेजवदे) चलाये और आखिरकार घूर्णीय गति से इंजन चलाये। यही चीज आगे चलकर वाहनों (ंनजवउवइपसमे) के विकास की वजह बनी क्योंकि ज्वलनषील इंजन (बवउइनेजपवद मदहपदम) में र्इधन (निमस) जलकर चपेजवदे को चलाता है और वो वाहन के ठोस हिस्सों को।
जैसे-जैसे और जमीनें इस्लामिक सभ्यता में शामिल होती गयी, शहरीकरण के कारण कर्इ विकास हुए। अरब के रेगिस्तान में बहुत कम पानी के सोते थे, जिसकी वजह से ज्यादातर इलाका रहने-बसने के लायक ही नहीं था। इस कमी पर मुस्लिम इंजनियरों ने काबू पाया ज्पहतपे और म्नचीतंजमे (दजला फरात) नदियों से नहरें बनाकर। बगदाद के चारों और मौजूद दलदली इलाकों को सुखाया गया ताकि शहर मलेरिया जैसी बीमारियों से आजाद हो। इंजनियरों ने जल चक्कीयों को औा आधुनिक बनाया और जमीन के काफी नीचे विस्तृत (मसंइवतंजम) पानी के जलमार्ग बनाये जो कनात (फंदंजे) कहलाते हे, बनवाये। इनमें कर्इ स्त्रोतों से पानी आता था और यह कनाते उसे शहर तक ले जाती थी। इस तरह की कर्इ कनाते आज भी अरब में मौजूद हैं। इस वजह से एक उन्नत घरेलु जलतंत्र व्यवस्था का विकास हुआ, जिसमें जनता के लिए गुलसखाने, पानी की फव्वारें, पार्इपों के जरिए पानी सप्लार्इ, सब तरफ मौजुद शौचालय और गंदे पानी की निकासी के लिए गटर और नालियों की बहतरीन व्यवस्था। ऐसी उन्नति से वह उधौगिक काम भी संभव हो सके जो पहले इंसानी हाथ किया करते थे और अब यांत्रिक होकर मषीनों के जरिए होने लगा। इससे पता चलता है कि इस्लाम सांइस का दुष्मन नहीं है जैसा कुछ लोग पेष करते हैं। तारीखी सच्चार्इ तो यह है कि इस्लाम ही वह उत्पे्ररक (बंजंसलेज) था, जिसने मुसलमानों की साइंस में रूचि पैदा की।
इस्लाम और उधौगिक विकास के लिए पे्ररणा :- अल्लाह (سبحانه وتعالى ) ने इस्लामिक राज्य का नस्बुलेन बहुत साफ तौर पर वाजेह किया है। दाखिली तौर पर अल्लाह (سبحانه وتعالى ) शरीअत के अहकामों व कानूनों को नाफिस करना लाजीम (फर्ज) करार दिया है जबकि खारिजी तौर पर इस्लाम की दावत और उसका प्रचार-प्रसार राज्य के लिए जरूरी (फर्ज) है। इस्लाम ने अमीर पर यह फर्ज करार दिया है कि वह उम्मत के मसाइल की देखरेख करें क्योंकि इस बारें में उससे पूछा जएगा। अल्लाह के रसूल (सल्ल0) ने फरमाया : ''तुममें से हर एक गड़रिया है और उससे उसके अहवाल ( सिवबा ) के बारें में पूछा जाएगा। (बुखारी)
कुरआन की कर्इ आयतों के जरिए अल्लाह (سبحانه وتعالى ) उम्मत पर इस्लाम की दावत को पूरी दुनिया तक पहुंचाना फर्ज करार देता है, ताकि इंसानियत को अंधेरों से निकाल उजाले की तरफ लाया जा सके जबकि दूसरी आयतों में अल्लाह (سبحانه وتعالى ) मुस्लिम उम्मत को तमगा-ए-इमतियाज देकर बेहतरीन उम्मत से नवाजता है क्योंकि वो यह काम (दावत का) करती है।
''अलीफ0 लाम0 रा0। यह एक 'किताब है जिसे हमने तुम्हारी ओर उतारा है ताकि तुम (ऐ मुहम्मद) लोगों को उनके रब की आज्ञा से अधेरों से निकाल कर उजाले की ओर ले आओ, अर्थात प्रभुत्वषाली और प्रषंसा के अधिकारी के रास्ते की तरफ। (इब्राहिम 14:1)
इस्लाम की दावत पूरी दुनिया में इस्लाम की एक ताकतवर छवि बनाकर ही हासिल की जा सकती है, ताकि वे जिनके दिलों में उम्मत के लिए बुरे मनसूबे हैं, ये जान ले कि उम्मत की ऐसी ताकतवर और हर मनसूबें से निपटने वाली ताकत मौजूद है कि हमले में दुष्मन की कामयाबी के आसार है ही नहीं अल्लाह (سبحانه وتعالى ) कुरआन में फरमाता है।
''जहा तक हो सके तुम लोग (फौज) उनके खिलाफ जितनी तुममें कुवत हों और तैयार बंधे हुए घोड़े तैयार रखों, ताकि इस के जरिए अल्लाह के दुष्मनों और अपने दुष्मनों और इनके सिवा दूसरों को भयभीत कर दो जिन्हें तुम जानते नहीं। अल्लाह उन्हें जानता है और अल्लाह के रास्ते में जो चीज भी तुम खर्च करोगे, उसका पूरा-पूरा बदला तुम्हें दिया जाएगा, और तुम्हारें साथ कोर्इ नार्इसाफी नहीं होगी। (अल-अनफाल : 60)
इस सब से यह जरूरी हो जाता है कि इस्लामिक राज्य के पास उन्नत फौज् हो और एक ऐसा ताकतवर निर्माण करने वाला खेमा हो जा न केवल दुष्मनों के दिलों में खौफ भर दे बलिक आर्थिक गतिविधियों भी उत्पन्न करें।
उधौगिकरण और आर्थिक वृद्धि ( प्दकनेजतपंसप्रंजपवद ंदक मबवदवउपब हतवूजी ) :-इतिहासकार उधौगिक क्रांति (ज्ीम पदकनेजतपंस तमअवसनजपवद) को वैषिवक इतिहार (हसवइंस ीपेजवतल) का एक अहम मोड़ मानते है। इस क्रांति की वजह से यूरोपिय समाज के हर पहलू में तेजी से बदलाव आये। उधौग खुद समाज व आर्थिक जीवन का जरूरी स्तून बन गयी 1700 र्इ.सी. के मध्य तक उधौग केवल मानव श्रम तक सीमित थे। तब बि्रटिष साम्राज्य ने भाप से पिस्टन चलाये और घूर्णीय गति (तवजंतल उवजपवद) पैदा कर मषीनें चलार्इ, जिसने उधौगिक क्रांति को चिंगारी दी। अब मानव की जगह ले ली यांत्रिक (उमबींदपबंस) फैकिट्रयों ने और उत्पादन 20 प्रतिषत तक बढ़ गया। इससे भारी मात्रा में बड़े पैमाने पर तेजी से वस्तुए बनने लगी। र्इधन की बढ़ती जरूरत ने लौहे और कोयले का इस्तेमाल बढ़ा दिया। इसी तरह कच्चे माल की फैक्ट्रीयो तक लाने के लिए रेल का विकास हुआ। रेल का विकास वजह बना ज्वलनषील इंजन (बवउइनेजपवद मदहपदम) के विकास की। इस तरह यूरोपिय परिदृष्य कृषि (ंहतपबनसजनतम) से बदल कर उत्पादन की ओर हो गया। कुलीन वर्ग (ंतपेजवबतंबल) का असर घटने लगा और उनकी जगह व्यापारी और उधोगपति आ गये। यधपि यूरोप के उदय और शुरूआती विकास का कारा उधौगिक क्रांति ( पदकनेजतपंस तमअवसनजपवद ) था, आज खपत पर आधारित आर्थिक वृद्धि के नमूने आर्थिक परिदृष्य पर हावी हैं और अपर्याप्त सिद्ध हो रहे हैं। पषिचम दुनिया की खपत पर आधारित अर्थव्यस्थाएं कर्जउधार (कमइज) और जीबे की जरूरत व क्षमता से परे खर्च पर आधारित है। इस वजह से ऐसे हालात बन गये हैं कि आर्थिक मंदी अब आम बात बन गयी है। 1870 की पहली मंदी से आज तम, पषिचम अर्थव्यवस्थाए नियमित रूप से आर्थिक मंदी, बाजार के अचानक उतार, वैषिवक मंदी आदि का सामना कर रही है। पषिचम अब उधोग पर आधारित विकास से हट चुका हैं और बड़े सर्विस सेक्टर पर निर्भर हो गया है - जिस पर खुद फार्इनेंस सेक्टर हावी है। ग्लोबल के्रडिट संकट ने सभी को सिद्ध कर दिया है कि पूंंजीवादी आर्थिक वृद्धि एक धोखा है और कायम नहीं रह सकती है।
मुस्लिम दुनिया के लिए एक ओधौगिक दृषिटकोण ( प्दकनेजतपंस अपेपवद ) :-ओधौगिक विकास की 3 आम विषेषताए और कुछ खास भौगोलिक विषेषताए होती है :-
1. ओधौगिकरा के लिए कच्चा माल और खनिजों की जरूरत होती है। यह मुख्यत: भारी उधोग होते है जो खनिज को उपयोगी वस्तुओं में बदलते हैं। सही खनिजों के निषकर्षण (मगजतंबजपवद) शुद्धिकरण ही रिफायनरीज और भारी उधोग की स्थापना व विकास की वजह बनता है।
2. ये रिफाइनरीज, भारी उधोग की कच्चे माल को स्टील, सीमेंट तथा अन्य वस्तुओं जैसे तैयार उत्पादों में बदलते हैं।
3. इस प्रकि्रया का हासिल करने के लिए तकनीकी ज्ञान की जरूरत होती है। इसी तकनीक के लिए पषिचमी जगत अरबों रूपये शोध और विकास में निवेष करता है ताकि वे हमेक्षा दूसरों से आगे बने रहें।
एक चौथा मसला भी है और संभवत: सबसे जरूरी भी क्योंकि यह सभी चीजें इसी तरहे से संभव हो पाती हैं, और वह है उददेष्य व प्रेरणा। औधौगिकरा जैसी प्रकि्रया के लिए ढेर सारे लोगों का गहन योगदान पैसा व त्याग जरूरी होता है। बि्रटेन में औधौगिकरण के पीछे प्रेरणा थी साम्राज्यवाद (बवसवदपंसपेउ) और लोगों में प्रधानता (ेनचमतपवतपजल) की भावना, अमेरीका में वजह थी आजादी और गृह युद्ध और सोवियत संघ के सुपर पावर बनने के पीछे प्रेरणा थी समाजवाद के लक्ष्यों को हासिल करना। मुस्लिम जगत ने भी 1950 में समाजवाद के लिए कोषिष की, लेकिन कुछ एक बड़ी योजनाओं को छोड़, इस्लामिक वहीं रही जहा वह पहले थी। दक्षिण पूर्व एषिया में इंडोनेषिया, उपमहाद्विप और अफ्रीका में कर्इ देषों ने निर्यात पर आधारित नीतियों को अमली जामा पहनाने की कोषिषें की लेकिन नतीजा वल्र्ड बैंक का भारी कर्ज, घाटा, परेषानी और गरीबी के रूप में आया। आज मुस्लिम अर्थव्यवस्थाए मुख्यत: सेवा व वस्तु पर आधारित है बिना किसी स्थापित उधोग के। हम देखते हैं कि इसके विपरित पषिचम पूंजीवादी दुनिया में मुख्यत: सेवा पर आधारित अर्थव्यवस्थाए हैं, जो उन्होंने हासिल की एक बेहतरीन औधौगिक बेस (इेंम) की स्थापना के बाद।
आज ओधौगिकरण के लिए मुस्लिम जगत में खनिज संसाधनों की कोर्इ नहीं। हकीकत में मुस्लिम दुनिया पर अल्लाह की रहमत है कि उनके पास दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण खनिजों के बड़े भण्डार है। आज मुस्लिम जगत के पास पूरी दुनिया के 74 प्रतिषत तेल के भण्डार हैं। पूरी दुनिया के कुल से भी ज्यादा और पूरे विष्व के 54 प्रतिषत प्राकृतिक गैस के भण्डार है व दुनिया की 30 प्रतिषत गैस का निषकर्षण करते हैं। साथ ही दुनिया के सबसे बड़े तेल और गैस के क्षेत्र हैं। इस तरह मुस्लिम सरजमीं में किसी तरह कच्चे माल की कमी नहीं। आज सही और सटीक दिषा व लक्ष्यों के साथ काम नहीं करने के फलस्वरूप मुस्लिम अर्थव्यवस्थाए बेहद कम विकास कर पायी हैं। आज ओधौगिकरण पर केवल पषिचम का ही एकाधिकार (उवदवचवसल) नहीं है, पिछले 100 सालों में कर्इ राष्टों ने तेजी से अपने आप को ओधौगिक विकास के पथ पर लाये हैं और इसकी वजह उनके पास इसका ब्ल्यू प्रिंट उपलब्ध था। बि्रटेन को इसमें 100 साल लगे, जर्मनी और यू.एस. को 60 साल। जापान के इसे 50 साल में ही हासिल कर लिया, चीन तो केवल 30 साल में ही इस मुकाम पर पहुंच गया और भारत अभी भी इस राह पर है। इस्लामिक दुनिया अपनी जमीनों में पाये जाने वाले संसाधनों को बेहतर इस्तेमला कर विकसित दुनिया के इस तकनीकी उन्नति को आसानी से हासिल कर सकती है। तकनकी ज्ञान की कमी की भरपार्इ सालों इंतजार करने की बजाए बाहर से उसे खरीद कर की जा सकती है। आर्थिक विकास का इस्लामिक नमूना एक सिथर अर्थव्यवस्थाए को जन्म देता है और यह वस्तुओं के उत्पादन और सेवाओं के जरिए वास्तविक अर्थव्यवस्था पर निर्मित है, यह आर्थिक वृद्धि का भी जनक है। अर्थव्यवस्था में से संदिग्ध वित्तीय पूंजीया वाले बाजारों की भूमिका को हटा, केवल बचती है वास्तविक अर्थव्यवस्था जहा व्यापार, निवेष, तनख्वाहें और पैसा बनाया और गर्दिष कराया जा सकता है। यह पैदा करती बेहद जरूरी सिथरता जो नियंत्रण मुक्त अर्थव्यवस्थाओं में नहीं होती है क्योंकि हर तरह के जुए या सटटेबाजी को असरदार तरह से हटाया गया होता है।
ओधौगिक विकास का महत्व :-पूंजीवाद पर आधारित ओधौगिक विकास तुलनात्मक फायदे के लिए शोषण का रास्ता है। निर्यात पर आधारित वृद्धि और खपत वाली ये अर्थव्यवस्थाए ज्यादा समय तक कायम नहीं रह सकती हैं और उनका पतन मंदी या किसी ओर रूप में हो जाता है। उधोग का विकास कर्इ वजहों से बेहद जरूरी है। ये किसी भी मुल्क को विष्व में सम्मानजनक स्थान पर खड़ा करती है और किसी भी ऐसे दुष्मन से बचाती है जो उसका आर्थिक शोषण करना चाहता हो। इसी के लिए सभी विष्व की ताकतों ने जंगी उधोग विकसित किये हैं। ये जंगी उधोग न केवल रक्षा क्षमताए बढ़ाते है बलिक उंचा तकनिकी माडल भी तैयार करते है, जिसमें विविधता होती है। आम चीजे जैसे इन्टरनेट, नानसिटक बर्तन, प्लाजमा टी.वी., रेडियो, कम्प्यूटर, हवार्इजहाज आदि सभी जंगी उधोगों के विकास का नतीजा है। अत: इन्डस्ट्रीयल बैस की वजह से एक राष्ट्र आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनता है। ये न केवल इसके लिए जरूरी वस्तुओं का उत्पादन करता है बलिक रोजगार और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देता है। इससे कोर्इ भी देष सिर्फ विष्व में शकितषाली बनता है बलिक उसको अन्दर से भी मजबूत अर्थव्यवस्था का रूप देता है, खुषहाल बनता है।
एक चौथा मसला भी है और संभवत: सबसे जरूरी भी क्योंकि यह सभी चीजें इसी तरहे से संभव हो पाती हैं, और वह है उददेष्य व प्रेरणा। औधौगिकरा जैसी प्रकि्रया के लिए ढेर सारे लोगों का गहन योगदान पैसा व त्याग जरूरी होता है। बि्रटेन में औधौगिकरण के पीछे प्रेरणा थी साम्राज्यवाद (बवसवदपंसपेउ) और लोगों में प्रधानता (ेनचमतपवतपजल) की भावना, अमेरीका में वजह थी आजादी और गृह युद्ध और सोवियत संघ के सुपर पावर बनने के पीछे प्रेरणा थी समाजवाद के लक्ष्यों को हासिल करना। मुस्लिम जगत ने भी 1950 में समाजवाद के लिए कोषिष की, लेकिन कुछ एक बड़ी योजनाओं को छोड़, इस्लामिक वहीं रही जहा वह पहले थी। दक्षिण पूर्व एषिया में इंडोनेषिया, उपमहाद्विप और अफ्रीका में कर्इ देषों ने निर्यात पर आधारित नीतियों को अमली जामा पहनाने की कोषिषें की लेकिन नतीजा वल्र्ड बैंक का भारी कर्ज, घाटा, परेषानी और गरीबी के रूप में आया। आज मुस्लिम अर्थव्यवस्थाए मुख्यत: सेवा व वस्तु पर आधारित है बिना किसी स्थापित उधोग के। हम देखते हैं कि इसके विपरित पषिचम पूंजीवादी दुनिया में मुख्यत: सेवा पर आधारित अर्थव्यवस्थाए हैं, जो उन्होंने हासिल की एक बेहतरीन औधौगिक बेस (इेंम) की स्थापना के बाद।
आज ओधौगिकरण के लिए मुस्लिम जगत में खनिज संसाधनों की कोर्इ नहीं। हकीकत में मुस्लिम दुनिया पर अल्लाह की रहमत है कि उनके पास दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण खनिजों के बड़े भण्डार है। आज मुस्लिम जगत के पास पूरी दुनिया के 74 प्रतिषत तेल के भण्डार हैं। पूरी दुनिया के कुल से भी ज्यादा और पूरे विष्व के 54 प्रतिषत प्राकृतिक गैस के भण्डार है व दुनिया की 30 प्रतिषत गैस का निषकर्षण करते हैं। साथ ही दुनिया के सबसे बड़े तेल और गैस के क्षेत्र हैं। इस तरह मुस्लिम सरजमीं में किसी तरह कच्चे माल की कमी नहीं। आज सही और सटीक दिषा व लक्ष्यों के साथ काम नहीं करने के फलस्वरूप मुस्लिम अर्थव्यवस्थाए बेहद कम विकास कर पायी हैं। आज ओधौगिकरण पर केवल पषिचम का ही एकाधिकार (उवदवचवसल) नहीं है, पिछले 100 सालों में कर्इ राष्टों ने तेजी से अपने आप को ओधौगिक विकास के पथ पर लाये हैं और इसकी वजह उनके पास इसका ब्ल्यू प्रिंट उपलब्ध था। बि्रटेन को इसमें 100 साल लगे, जर्मनी और यू.एस. को 60 साल। जापान के इसे 50 साल में ही हासिल कर लिया, चीन तो केवल 30 साल में ही इस मुकाम पर पहुंच गया और भारत अभी भी इस राह पर है। इस्लामिक दुनिया अपनी जमीनों में पाये जाने वाले संसाधनों को बेहतर इस्तेमला कर विकसित दुनिया के इस तकनीकी उन्नति को आसानी से हासिल कर सकती है। तकनकी ज्ञान की कमी की भरपार्इ सालों इंतजार करने की बजाए बाहर से उसे खरीद कर की जा सकती है। आर्थिक विकास का इस्लामिक नमूना एक सिथर अर्थव्यवस्थाए को जन्म देता है और यह वस्तुओं के उत्पादन और सेवाओं के जरिए वास्तविक अर्थव्यवस्था पर निर्मित है, यह आर्थिक वृद्धि का भी जनक है। अर्थव्यवस्था में से संदिग्ध वित्तीय पूंजीया वाले बाजारों की भूमिका को हटा, केवल बचती है वास्तविक अर्थव्यवस्था जहा व्यापार, निवेष, तनख्वाहें और पैसा बनाया और गर्दिष कराया जा सकता है। यह पैदा करती बेहद जरूरी सिथरता जो नियंत्रण मुक्त अर्थव्यवस्थाओं में नहीं होती है क्योंकि हर तरह के जुए या सटटेबाजी को असरदार तरह से हटाया गया होता है।
ओधौगिक विकास का महत्व :-पूंजीवाद पर आधारित ओधौगिक विकास तुलनात्मक फायदे के लिए शोषण का रास्ता है। निर्यात पर आधारित वृद्धि और खपत वाली ये अर्थव्यवस्थाए ज्यादा समय तक कायम नहीं रह सकती हैं और उनका पतन मंदी या किसी ओर रूप में हो जाता है। उधोग का विकास कर्इ वजहों से बेहद जरूरी है। ये किसी भी मुल्क को विष्व में सम्मानजनक स्थान पर खड़ा करती है और किसी भी ऐसे दुष्मन से बचाती है जो उसका आर्थिक शोषण करना चाहता हो। इसी के लिए सभी विष्व की ताकतों ने जंगी उधोग विकसित किये हैं। ये जंगी उधोग न केवल रक्षा क्षमताए बढ़ाते है बलिक उंचा तकनिकी माडल भी तैयार करते है, जिसमें विविधता होती है। आम चीजे जैसे इन्टरनेट, नानसिटक बर्तन, प्लाजमा टी.वी., रेडियो, कम्प्यूटर, हवार्इजहाज आदि सभी जंगी उधोगों के विकास का नतीजा है। अत: इन्डस्ट्रीयल बैस की वजह से एक राष्ट्र आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनता है। ये न केवल इसके लिए जरूरी वस्तुओं का उत्पादन करता है बलिक रोजगार और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देता है। इससे कोर्इ भी देष सिर्फ विष्व में शकितषाली बनता है बलिक उसको अन्दर से भी मजबूत अर्थव्यवस्था का रूप देता है, खुषहाल बनता है।
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