➡ सवाल नं. (71): मुस्लिम दुनिया (देशों) पर जो कर्जे़ चढ़ चुके है, खिलाफत उनसे कैसे निपटेगी?
हालॉकि मुस्लिम दुनिया पूरी तरीके से माल व दौलत और संसाधनों में सक्षम है मगर उसके पश्चिम गुलाम लीडरो ने इस दौलत को फिज़ूल खर्च किया और साथ ही अपनी हुकुमत बनाए रखने के लिए अपने आक़ाओं से बडी़-बडी़ रक़में उधार ली ।
यह हुक्मराँ ऐसी कोई पॉलिसीज़ नही रखतें जिसके आधार पर वोह देश का विकास कर सके जबकि वोह बाद की नस्लों पर चुकाने के लिए कर्ज़े छोड़ जाते हैं और इस तरह इन कर्ज़ो के ज़रिए पश्चिम इस्तेमारी ताक़तों को उन मुस्लिम देशो के निजी मामलों में दखलअंदाज़ी करने का मौक़ा मिल जाता है और मुस्लिम दुनिया की आर्थिक नीतियों पर असर अन्दाज़ हो जाता है।
दर हक़ीक़त मुस्लिम दुनिया को इस क़िस्म के कर्ज़ो की कोई ज़रूरत नही है । मुस्लिम सरज़मीनें प्राकृतिक संसाधनों से भरी हुई है जिससे बिलियन डॉलर्स पैदा किए जा सकते है। चूंकि यह भ्रष्ट हुक्मरॉ अपनी रियासतों के लिए कोई विज़न या कोई नज़रिया नही रखते और न ही इनके पास सरकार के मामूली कामों को चलाने के लिए, राष्ट्रिय इनकम के कोई ज़रिये नही होते इसलिए यह लोन के बाद लोन लेते चले जाते है ।
जहॉ तक खिलाफत की बात है तो खिलाफत एक स्वयत्तशासी यानी आत्म निर्भर हुकूमत होगी जो अपने फैसले खुद करेगी कि उसे कितना कर्ज़ा चुकाना है (अगर कोई क़र्ज़ा हो तो)।
अंतर्राष्ट्रीय मोनेटरी फण्ड, वर्ल्ड बैंक और साथ ही विदेशी फ्री मार्केट का प्रभाव मुस्लिम देशों की अर्थव्यवस्था से हटाएगी और किसी भी विदेशी संस्था को खिलाफत की अर्थव्यवस्था में दखलअंदाजी देने की ईजाज़त नही देगी और न ही इस बात की कोई उसे अपना कर्ज़ा चुकाने के तरीक़े बताए।
अगर कर्जे़ लोटाने की पॉलिसी रही तो सिर्फ असली रक़म ही रक़म लौटायेगी, उसमें किसी क़िस्म का कोई ब्याज नही देगी और साथ ही जिन भ्रष्ट हुक्मरानों ने यह रक़म उधार ली ज़्यादातर उन्ही की दौलत से चुकाने की कोशिश की जायेगी।
अगर हम पाकिस्तान की बात करें तो पाकिस्तान के कोयले के भण्डार (जो 6 हजार बिलियन बैरल तेल के बराबर है) से पाकिस्तान का 12 गुना कर्ज़ा चुकाया जा सकता है।
इंडोनेशिया जो कि दुनिया के सबसे बडे़ कोयला, ताज़ा फल, टिन और नेचुरल गैस निर्यात करने वाले देशों में से है, सिर्फ उसकी एक्सपोर्ट की कमाई उसके सभी कर्ज़े कर्जे़ चुकाने के लिए काफी है।
तुर्की की कृषि पैदावार के निर्यात की रक़म उस पर चड़े सारे कर्ज़े की रक़म से भी ज़्यादा है, यानी यह रक़म उसके तमाम कर्जे़ चुकाने के लिए काफी है।
तुर्की की कृषि पैदावार के निर्यात की रक़म उस पर चड़े सारे कर्ज़े की रक़म से भी ज़्यादा है, यानी यह रक़म उसके तमाम कर्जे़ चुकाने के लिए काफी है।
इस क़िस्म के खनिज पदार्थों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बेचने से इतनी करंसी हासिल की जा सकती है जिससे बडे़-बडे़ कर्जे़ चुकाए जा सकते है।
हक़ीक़त में यह मुस्लिम हुक्मरानों की बेइमानी और इनकी अक़्ल और नज़रियात का दिवालियापन है, जिसने इस मुस्लिम उम्मत की नस्ल के हाथों में ज़ंजीरें बांध दी है।
हक़ीक़त में यह मुस्लिम हुक्मरानों की बेइमानी और इनकी अक़्ल और नज़रियात का दिवालियापन है, जिसने इस मुस्लिम उम्मत की नस्ल के हाथों में ज़ंजीरें बांध दी है।
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