दुनिया भर के मुसलमानों पर फ़र्ज़ है कि उन की एक रियासत हो और उन का ख़लीफ़ा भी
एक ही हो और मुसलमानों के लिए जायज़ नहीं कि वो एक से ज़ाइद रियासतों में बटे हुए हों
और उन के एक से ज़्यादा खल़िफ़ा हों।
इसी तरह मुसलमानों पर ये भी फ़र्ज़ है कि रियासत-ए-ख़िलाफ़त में इन का निज़ाम-ए-हुकूमत
वहदत पर मबनी हो और ये इत्तिहाद (रियासतों की फ़ैडरेशन) का निज़ाम ना हो। ये इस बिना
पर है जो मुस्लिम ने अब्दुल्लाह बिन अमरो बिन अल आस (رضي الله عنه) से रिवायत किया कि उन्हों ने रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم को ये फ़रमाते
हुए सुना:
))ومن بایع إماماً فأعطاہ صفقۃ یدہ،
وثمرۃ قلبہ فلیطعہ إن استطاع۔ فإن جاء آخر ینازعہ فاضربوا عنق الآخر((
और जो शख़्स किसी इमाम (ख़लीफ़ा) की बैअत करे तो वो उसे अपने
हाथ का मुआमला और दिल का फल दे दे (यानी सब कुछ इस के हवाला करदे),फिर उसे चाहिए कि वो हसब-ए-इस्तिताअत उस की इताअत भी करे । अगर
कोई दूसरा शख़्स आए और पहले ख़लीफ़ा से तनाज़ा करे तो दूसरे की गर्दन उड़ा दो
मुस्लिम ने अरफजा से ये भी रिवायत किया कि मैंने रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم को ये कहते हुए
सुना:
))من أتاکم وأمرکم جمیعٌ علی رجل وا حد
یرید أن یشق عصاکم، أو یفرق جماعتکم فاقتلوہ((
तुम किसी एक शख़्स पर मुत्तफ़िक़ हो और कोई शख़्स तुम्हारी सफ़ों
में रखना डालना चाहे या तुम्हारी जमात में तफ़र्रुक़ा डाले तो उसे क़त्ल कर दो
और मुस्लिम ने अबू सईद ख़ुदरी (رضي الله عنه) से रिवायत किया
कि रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया:
))إذا بویع لخلیفتین فاقتلوا اآاخرمنھما((
जब दो खल़िफ़ा लिए बैअत की जाये तो इन में से दूसरे को क़त्ल कर
दो
और मुस्लिम ने रिवायत किया कि अबू हज़म ने कहा मैं पाँच साल तक अबूहुरैरा(رضي الله عنه) की सोहबत में रहा और मैंने उन्हें रसूलुल्लाह
صلى
الله عليه وسلم का ये क़ौल बयान करते हुए सुना:
))کانت بنو إسرائیل تسوسھم الأنبیاء ‘ کلما
ھلک نبي خلفہ نبي‘ وإنہ لا نبي بعدي ‘ وستکون خلفاء فتکثر ‘ قالوا: فما تأمرنا؟ قال:
فُوا ببیعۃ الأول فالأول‘ وأعطوہم حقھم ‘ فإن اللّٰہ سائلھم عما استرعا ھ((
रियाया के बारे में पूछेगा,जो उस ने उन्हें दी
पहली हदीस ये बताती है कि अगर किसी को ख़िलाफ़त दी जाये तो उस की इताअत की जाये और
अगर कोई और शख़्स उस की ख़िलाफ़त पर तनाज़ा करे तो इस के साथ क़िताल किया जाये और अगर वो
अपनी बात से रुजू ना करे तो उसे क़त्ल कर दिया जाये।
तीसरी हदीस ये बयान करती है कि अगर ख़लीफ़ा के इंतिक़ाल ,
माज़ूली या इस्तीफ़े की वजह से मुसलमानों का कोई ख़लीफ़ा मौजूद
ना हो और दो खल़िफ़ा की बैअत की जाये तो जिस की बैअत बाद में हो उसे क़त्ल कर दिया जाये
और अगर उन की तादाद दो से ज़्यादा हो तो ऐसा करना बदरजा ऊला ज़रूरी है। ये हदीस वाज़िह
तौर पर बताती है कि रियासत के हिस्से बिखेरे करना हराम है यानी उसे कई रियासतों में
तक़सीम करने की मुमानअत है बल्कि उसे वाहिद रियासत ही रहना चाहिए।
चौथी हदीस ये बयान करती है कि रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم के विसाल के बाद
कसरत से खल़िफ़ा होंगे, जब सहाबा (رضی اللہ عنھم) ने सवाल किया कि आप हमें क्या करने का
हुक्म देते हैं तो आप صلى الله عليه وسلم ने जवाब दिया कि एक के बाद दूसरे की बैअत
को पूरा करो। यानी वो जिस ख़लीफ़ा को पहले बैअत दे दें वो शरई ख़लीफ़ा होगा और उस की
इताअत वाजिब होगी, और अब किसी दूसरे शख़्स की बैअत बातिल और ग़ैर शरई होगी और उस
की इताअत नहीं की जाएगी। क्योंकि एक ख़लीफ़ा की मौजूदगी में किसी दूसरे ख़लीफ़ा की बैअत
जायज़ नहीं। ये हदीस इस बात की तरफ़ भी इशारा करती है कि एक ख़लीफ़ा की इताअत वाजिब है
लिहाज़ा एक से ज़ाइद ख़लीफ़ा होना और मुसलमानों की एक से ज़्यादा रियासतों का होना जायज़
नहीं।
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