➡ सवाल नं. (81): खिलाफत के गै़र-मुस्लिम देशों के साथ सम्बन्ध होगें या नही या किस तरह के सम्बन्ध होगें?
- हॉ। खिलाफत के गै़र-मुस्लिम रियासतों के साथ सम्बन्ध होगें।
इस्लाम ने खिलाफत के दूसरे गै़र-मुस्लिम देशों से ताल्लुक़ रखने के ताल्लुक़ से क़ायदे क़ानूनो कि वाज़ेह (स्पष्ट) तौर पर निशानदेही की है। यह ताल्लुक़ात, आर्थिक, सांस्कृतिक और दोस्ताना भी हो सकते है। मगर इन सबके पीछे असल मक़सद दुनिया तक इस्लाम पहुंचाने और इस्लामी सरज़मीनो कि हिफाज़त का होगा।
- यानी अगर किसी से आर्थिक ताल्लुक या दोस्ताना संबध रखे जायेगें, तो सिर्फ इसलिए कि उन क़ौमों तक इस्लाम पहुंचाया जा सके। उन लोगों को इस्लाम के मामलें में नरम बनाया जाये और वह ज़्यादा से ज़्यादा इस्लाम को समझ पाए। और इस्लाम को एक अक़ीदे और एक मुकम्मल जीवन व्यवस्था के तौर पर देख सकें। इसके साथ ही इस्लाम रियासत अपनी सुरक्षा और तहफ्फुज़ के लिए भी मुआहिदे और संधिया करती है।
➡ सवाल नं. (82): क्या खिलाफत दूसरे देशों के साथ संधिया करेगी?
- हॉ । इस्लाम अंतराष्ट्रीय संधियों (International Treaties) को एक खास तरह के मुआहिदे (Contract) के रूप में देखता है। चूंकि यह दो या दो से ज़्यादा देशों के बीच एक मुआहिदा होता है, जो उनके सम्बन्धों के कुछ पहलूओं को तय करता है। इसलिए ज़्यादातर हिस्सो में आम तौर पर जो अंतराष्ट्रीय मुआहिदे होते है, उसको इसी निगाह से देखा जायेगा। क़ुरआन और सुन्नत अंतराष्ट्रीय संधियों की बुनियाद डालने की ईजाज़त देती है ।
0 comments :
Post a Comment