➡ सवाल नं. (67): खिलाफत किस तरह रोज़गार पैदा करेगी?

✔चूंकि मुस्लिम सरज़मीनों की सरहदें नकली और बनावटी है जो साम्राज्यवादीयों ने वहाँ लौटते समय बनाई थीं, इसलिए खिलाफत मुस्लिम देशों की आर्थिक समस्या को पूरे इलाक़े की आर्थिक समस्या तौर पर देखेगी न कि सीरिया की समस्या के तौर पर, या पाकिस्तान की समस्या तौर पर या मिस्र की समस्या के तौर पर। मुस्लिम देशों की अर्थव्यवस्था को आपस में जोड़ कर डुप्लिकेशन से बचेगी (एक ही पॉलिसी को अलग-अलग इलाक़ों मे दोहराने से), इस तरह हर इलाक़ो को उसकी क्षमता के अनुसार इस्तिमाल करेगी और उसी हिसाब से वहाँ विकास करेगी। जैसे उत्तरी अफ्रीका के मुस्लिम देशो की आर्थिक व्यवस्था, कृषि के कारण बहुत ज़्यादा समृद्ध है जबकि हिजाज़ के इलाक़े तेल के मामलें में बहुत ज़्यादा समृद्ध है।
✔खिलाफत फौरी तौर पर अपने-अपने क्षेत्र में पाई जाने वाली चीज़ें का उद्योगीकरण करते हुए खुद को आत्म निर्भर करेगी। जहॉ तेल निकलता है वहॉ पर तेल से संबधित इण्डस्ट्री डाली जाएगी और जहॉ पर बडी़ तदाद में खेती-बाडी़ होती है वहॉ कृषि से संबंधी इण्डस्ट्री डालेगी। इन सबके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और भारी इंडस्ट्री (heavy industry) तैयार करेगी, इस क़िस्म की नीति से खिलाफत इस इलाक़े में बेरोज़गारी की समस्या को हल करते हुए लाखों नौकरीयो के अवसर पैदा करेगी और लोगो को ग़रीबी से निकाल कर खित्ते की दौलत का सही इस्तिमाल करके अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करेगी।
👉इसके साथ-साथ खिलाफत डिफेंस इण्डस्ट्री (रक्षा उध्योग) के विस्तार से न सिर्फ नौकरीयों के अवसर पैदा करेगी बल्कि इससे अपनी सरहदों को और ज़्यादा सुरक्षित करेगी। ऐसा इसलिये भी है की महाशक्ति बनने के लिये हथियारों की इण्डस्ट्री कामयाब होना ज़रूरी है और यह राज्य की इनकम का भी बहुत बडा स्त्रोत बनता है। डिफेंस इण्डस्ट्री ऐसी इण्डस्ट्री है जो कही भी डाली जा सकती है। उस सूरत में वोह अलग-अलग इलाकों में सफ्लाई लाईन बनायेगी, इस तरीक़े से ज़्यादा से ज़्यादा इलाको को उसके अंदर शामिल करने की कोशिश की जायेगी ताकि इण्डस्ट्रीयल काम्पलेक्स की तरह असेंबली लाईन बन जाए। इससे बहुत सारे लोगों को जॉब मिलेगें, ठेके मिलेगें, हर इलाके में पैसे का सर्क्यूलेशन होगा और इस तरीके से मजमूई तौर पर खिलाफत की तरक्की और ताक़त की इमेज़ दुनिया के सामने ऊभरकर आयेगी।
खिलाफते राशीदा सानी (II nd) पर 100 सवाल
➡ सवाल नं. (68): खिलाफत मंहगाई से किस तरह से निपटेगी?
इस वक़्त मुस्लिम देशों के हुक्मरॉ सीधे तौर पर, अपनी अर्थव्यवस्था के गलत प्रबंधन की वजह से, मंहगाई बढा़ने के ज़िम्मेदार है। ग़रीबी का सामना करते वक़्त या घरेलू और विदेशी खर्चे का भुगतान करते वक़्त उन्हें सिर्फ पैसा (मुद्रा) छापना आता हैं। यही हाल उन देशों का भी है, जिनमें हर साल बिलयन्स डॉलर अपने बजट में जोड़ने के बाद भी, उनमें न तो गरीबी दूर होती है और न ही मंहगाई दूर होती है। दर हक़ीक़त मुस्लिम दुनिया की बनावटी मंहगाई की असल वजह यही हैं। मुद्रा बार-बार छापने से आर्थिक वृद्धि रुक जाती है और साथ ही मोजूदा करंसी की क़ीमत घट जाती है जिससे मंहगाई बढ़ जाती है। चूंकि करंसी कागज़ की बनी होती है जिसकी वजह से हुकुमत मनचाही तादाद में करंसी छापने में सक्षम होती हैं।
खिलाफत बे-क़ीमत कागज़ पर आधारित करंसी को हटा कर, सोने और चांदी पर आधारित करंसी छापेगी, जिससे करंसी की क़ीमत बनी रहेगी और अर्थव्यवस्था में सिर्फ उतनी ही करंसी गर्दिश करेगी जितनी राज्य के खज़ाने में वास्तविक रक़म हैं। इससे अधिक करंसी छापने की ज़रुरत नही पड़ेगी और इस तरह चीज़ो की क़ीमत स्थिर रहेगी।
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