➡ सवाल नं. (77): खिलाफत किस तरह आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनेगी?
- किसी भी देश को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर होने के लिए कच्चा माल और संसाधन (खनिज पदार्थ) चाहिए होते है। भारी उद्योग इस कच्चे माल को इस्तिमाल करने योग्य माल बनाते है। कच्चा माल को निकालने की ज़रूरत और खनिज पदार्थो की कच्चे तेल, कोयले, और लोहे के शुध्द करने की ज़रूरत के नतीजे मे भारी इण्डस्ट्री और रिफाइनरीज़ विकसित करनी पड़ती है।
- इसी तरह कच्चे माल को स्टील, सीमेंट में बदलने के लिए रिफाइनरीज़ और प्लांट्स की ज़रूरत पड़ती है जो बाद में चल कर अंतिम उत्पादन में तब्दील हो जाता है । इसी चरण में टेक्नोलोजी विकसित होती है ज़्यादातर यह सारी चीज़ें मिलिट्री उद्योग से विकसित हुई है।
- इन सभी प्रक्रिया की तकमील के लिए टेक्नोलोजीकल नौलेज (तकनीकी ज्ञान) की ज़रूरत पड़ेगी। इसके लिए पश्चिमी दुनिया ने रिसर्च और विकास के मैदान में बिलियंस निवेश किये है।
- एक चौथी ज़रूरी चीज़ जो शायद सब चीज़ो से भी ज़्यादा अहमियत रखती है वो है प्रेरणा (motivation) है। आत्म निर्भर होने के लिए इस प्रक्रिया आवाम के योगदान और कई महान क़ुर्बानीयों की ज़रूरत पड़ेगी। साम्राज्यवाद और बरतरी (श्रेष्ठता/Superiority) की भावना ही वोह चीज़ थी जिसने बर्तानवी साम्राज्य का उद्द्योगिकरण किया, जबकि गृह युद्ध और स्वतंत्रता ने अमरीका को उद्द्योगिकरण की राह पर गामज़न किया इसी तरह साम्यवाद के लक्ष्य ने सोवियत यूनियन को दुनिया की महाशक्ति बनाया।
- चूँकि उम्मते मुस्लिमा के पास बहुत बडी़ तादाद में लोग मौजूद है जो मुख्लिस तौर पर इसकी खिदमत करने को तय्यार है, उसके अलावा उम्मत के पास संसाधन है, उम्मत के पास विल पावर (इच्छा शक्ति) है। किसी भी क़ौम को तरक्की करने के लिए मोटिवेशन चाहिए। अलहम्दुलिल्लाह इस उम्मत के पास वोह सब कुछ है जो कि खिलाफत को बहुत कम समय के अंदर एक महाशक्ति के रूप में दुनिया में लेकर आयेगा।
खिलाफत की राजनैतिक व्यवस्था
➡ सवाल नं. (78): खिलाफत की विदेश नीति (Foreign Policy) क्या होगी?
- किसी देश के वजूद के लिए विदेशनीति बहुत ज़्यादा अहमियत रखती है। विदेशनीति में हर मुल्क यह तय करता है कि उसके दूसरे देशों के साथ कैसे सम्बन्ध रहेगें और वह सम्बन्ध किन बुनियादों और उसूलों पर होगें। हर रियासत का एक नज़रिया होता है जिस कि बुनियाद पर वह दूसरे देशों से सम्बन्ध रखती है।
आज जितने भी मुस्लिम देश है, उनकी अपनी कोई विदेश नीति नही है। मुस्लिम सरज़मीनों कि विदेश नीति पश्चिमी साम्राज्यवादी देशो द्वारा नियंत्रित कि जाती हैं, और ऐसा वह अपनी कठपुतलीयों कि सरकारो को बचाए रखने के लिए करते है जो सत्ता पर क़ाबिज़ हैं। उनके पास खुद का कोई ऐसा नज़रिया नही है जो उनकी दूसरे देशों के साथ ताल्लुकात, उसका मक़सद, और दीगर राजनैतिक मामलात मे रहनुमाई करता हो। अगर है तो वोह ग़ुलामी का नज़रिया है, जो उन्हें पश्चिमी साम्राज्यवादी देशों ने अपनी सत्ता और कुर्सी बचाए रखने के लिए सिखा रखा है और जिसके मुताबिक़ वह अपनी विदेशनीति रखते है।
- यह स्थिति उस राजनीतिक व्यवस्था कि पैदावार है, जो भ्रष्ट राजनैताओं को जन्म देती है, उन्हें सुरक्षा और बढ़ावा देती हैं। यह भ्रष्ट राजनैता जो कि जनता से सत्ता हासिल नही करते बल्कि यह खारजी (विदेशी) साम्राज्यवादी ताक़तों की मदद और सरक्षंण की वजह से हुकुमत मे बने रहते हैं। विदेशी ताक़ते इन भ्रष्ट राजनैताओं को, वित्तीय सहायता (Financial Aid) के ज़रिए लुभाती हैं, इस तरह जब यह राजनैता इस विदेशी मदद (Foreign Help) को क़बूल कर लेते हैं तो इन्हें यही साम्राज्यवादी ताक़तें कर्ज़ के ब्याज के द्वारा इसी देश को अपना ग़ुलाम बना लेती हैं।
- खिलाफत एक ऐसी राजनैतिक व्यवस्था क़ायम करके इस ग़ुलामी की ज़ंजीर को तोडे़गी, जहॉ हुक्मरॉ अपनी ताक़त जनता से हासिल करते है ना कि विदेशी ताक़तों से। खिलाफत, ज़हर के प्याले को रद्द करेगी जो दर अस्ल ब्याज पर आधारित एक कर्ज़ और ग़ुलामी का ज़रिया है। यह एक ऐसी स्वतंत्र विदेशनीति (Independent Foreign Policy) स्थापित करने मे सक्षम होगी, जिसका मक़सद इंसानियत को साम्राज्यवाद कि ग़ुलामी और जहालत के अन्धेरे से निकाल कर इस्लाम कि रोशनी में लाना होगा।
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