जब शरीयत ने उम्मत पर फ़र्ज़ किया कि वो अपने ऊपर एक ख़लीफ़ा मुक़र्रर करे तो इसके
तरीक़ा-ए-कार का भी ताय्युन किया जिस के ज़रीये से ख़लीफ़ा को मुक़र्रर किया जाएगा। ये
तरीक़ा-ए-कार क़ुरआन ,सुन्नत और इज्मा ए सहाबा (رضی اللہ
عنھم) से साबित है और ये तरीक़ा बैअत का तरीक़ा है। ख़लीफ़ा का
तक़र्रुर मुसलमानों की तरफ़ से किताब-ओ-सुन्नत पर ख़लीफ़ा की बैअत करने से होगा। जहां
तक बैअत के तरीक़ा-ए-कार का ताल्लुक़ है तो इस का सबूत ये है कि मुसलमानों ने रसूलुल्लाह
صلى
الله عليه وسلم की बैअत की और आप صلى الله عليه وسلم ने हमें इमाम की बैअत का हुक्म दिया है। मुसलमानों की तरफ़ से
रसूलुल्लाह صلى
الله عليه وسلم की बैअत नबुव्वत पर बैअत ना थी, बल्कि ये हुकूमत पर बैअत थी। क्योंकि ये ईमान की नहीं बल्कि
अमल की बैअत थी । यानी रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم की बैअत बतौर-ए-हाकिम
की गई,
ना कि बतौर-ए-नबी और रसूल के। इसलिए कि नबुव्वत व रिसालत का
इक़रार ईमान लाना है और ये बैअत करना नहीं। इस से मालूम हुआ की आप صلى الله عليه وسلم की बैअत फ़क़त
मुल्क के हाकिम की हैसियत से की गई। बैअत का ज़िक्र क़ुरआन व हदीस में वारिद है,
अल्लाह (سبحانه وتعال) ने इरशाद फ़रमाया:
ےآاَیُّھَاالنَّبِیُّ
اِذَا جَآءَکَ المُؤمِنٰتُ یُبَایِعْنَکَ عَلٰٓی اَنْ لَّا یُشرِکْنَ بِااللّٰہِ
شَیءًا وَّلَا یَسْرِقْنَ وَلَا یَزْنِینَ وَلَا یَقْتُلْنَ اَوْلادَھُنَّ وَلَا
یَاْ تِیْنَ بِبُھْتَانٍ یَّفتَرِیْنَہُ بَیْنَ اَیْدِیْھِنَّ وَاَرْجُلِھِنَّ
وَلایَعْصِیْنَکَ فِیْ مَعْرُوفٍ فَبَایِعْھُنَّ
ऐ नबी صلى الله عليه وسلم! जब आप के पास मोमिन औरतें इस बात पर बैअत करने के लिए आएं कि वो अल्लाह
के साथ किसी को शरीक नहीं ठहराएंगी, ना चोरी करेंगी,
ना ज़िना करेंगी
,ना अपनी औलाद को क़त्लकरेंगी और ना अपने हाथों और टांगों के दरमियान
(अपनी तरफ़) से बोहतान तराशेंगी, और ना नेक कामों में आप की नाफ़रमानी करेंगी ;
तो आप उन से बैअत
ले लीजीए
(अल मुमतहन्ना
12)
दूसरी जगह इरशाद
हुआ:
اِنَّ
الَّذِیْنَ یُبَایِعُونَکَ اِنَّمَا یُبَایِعُونَ اللّٰہَ ط یَدُ اللّٰہِ فَوْقَ
اَیْدِیْھِمْ
जो लोग आप صلى الله عليه وسلم की बैअत करते हैं वो (दरअसल) अल्लाह (سبحانه وتعال) की बैअत करते हैं। अल्लाह का हाथ उन के हाथों के ऊपर है
(अल फतह: 10)
बुख़ारी ने इस्माईल से उन्होंने मालिक से और उन्होंने यहया बिन सईद से रिवायत किया,वो कहते हैं कि मुझे उबादा बिन अल वलीद ने बताया कि मेरे वालीद
ने उबादा बिन सामित (رضي الله عنه) के वास्ते से बताया,
वो फ़रमाते हैं:
))بایعنا رسول اللّٰہ ﷺ علی السمعِ
والطاعۃ في المنشط والمکرہ ‘ وأن لا ننازع الأمر أھلہ ‘ وأن نقوم أو نقول بالحق حیثما
کنا، لانخاف في اللّٰہ لومۃ لائم((
हम ने रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم से पसंद और नापसंद (दोनों हालतों में) सुनने और इताअत करने पर बैअत
की। और इस बात पर (बैअत की) कि हम उलिल अम्र के साथ नज़ाअ नहीं करेंगे । और हम हक़ के
लिए उठ खड़े होंगे ,या हक़ बात कह देंगे,
ख़ाह जिस हालत में
भी हों। और अल्लाह के मुआमले में किसी भी मलामत करने वाले की मलामत से नहीं डरेंगे
और बुख़ारी ने अली बिन अब्दुल्लाह से, उन्होंने अब्दुल्लाह बिन यज़ीद और उन्होंने सईद बिन अबू अय्यूब
से,
उन्होंने अबू अक़ील ज़ुहरा बिन माबद से और उन्होंने अपने दादा
अब्दुल्लाह बिन हिशाम (رضي الله عنه) से बयान किया है कि उन्होंने नबी صلى الله عليه وسلم का ज़माना पाया। उन्हें उन की वालीदा ज़ैनब बिंत हमीद,
रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم के पास लेकर आईं
और कहा:
))یارسول اللّٰہ ! بایعہ فقال النبیﷺ:
((ھو صغیر فمسح رأسہ ودعالہ((
ऐ अल्लाह के रसूल صلى الله عليه وسلم! उस की बैअत ले लीजीए। नबी صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : ये छोटा है और आप صلى الله عليه وسلم ने इस के सिर पर हाथ फेरा और इस के लिए दुआ की
इसी तरह बुख़ारी एक रिवायत नक़ल करते हैं कि हमें अबदान ने अबू हमज़ा से बयान किया
कि उन्होंने अम्श से, उन्होंने अबू सालिह से और उन्हों ने अबू हुरैरा स से बयान किया
,
कि रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया:
))ثلاثۃ لایُکلمھم اللّٰہ یوم القیامۃ
ولا یزکیھم ولھم عذاب ألیم : رجل علی فضل ماء بالطریق یمنع منہ ابن السبیل‘ ورجل
بایع إماماً لایبایعہ إلا لدنیاہ‘ إن أعطاہ مایرید وفی لہ ‘ وإلا لم یف لہ ‘ ورجل
بایع رجلاً بسلعۃ بعد العصر فحلف باللّٰہ لقد أُعطي بھا کذا وکذا فصدقہ فأخذھا ولم
یُعط بھا((
तीन (तरह के) आदमीयों से अल्लाह (سبحانه وتعال) क़यामत के दिन कलाम करेंगे और ना उन को पाक करेंगे और उन के लिए सख़्त तरीन अज़ाब
होगा; एक वो शख़्स जो रास्ते में ज़ाइद पानी पर बैठ जाये और लोगों को
इस से मना करे। दूसरा वो शख़्स जो इमाम की बैअत सिर्फ़ अपनी दुनिया की ख़ातिर करे। अगर
वो उसे कुछ दे, जिस का वो तलबगार है,
तो उस की बैअत
को इफ़ा करे और अगर वो उसे ना दे तो वो इफा ना करे। तीसरा वो शख़्स,
जो किसी शख़्स
को अस्र के बाद सौदा दे और क़सम उठाकर कहे कि उसे ये चीज़ इतने में मिली है जबकि वो उसे
इतने में ना मिली हो। और लेने वाला उस की बात को सच्च समझ कर इस से वो सौदा ख़रीद ले
ये तीनों अहादीस इस बारे में वाज़िह हैं कि ख़लीफ़ा को मुक़र्रर करने का तरीक़ा सिर्फ़
बैअत है। उबादा (رضي الله عنه) की हदीस में जो बयान किया गया कि उन्होंने
रसूलुल्लाह صلى
الله عليه وسلم से सुनने और इताअत करने पर बैअत की, ये बतौर-ए-हाकिम रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم की बैअत थी। और अब्दुल्लाह बिन हिशाम (رضي الله عنه) की हदीस के मुताबिक़ आप صلى الله عليه وسلم ने अब्दुल्लाह के नाबालिग़ होने की वजह से उन की बैअत लेने से इनकार
कर दिया। ये इस बात पर दलालत करता है कि ये हुकूमत की बैअत थी। अबू हुरैरा (رضي الله عنه) की हदीस इमाम की बैअत के बारे में निहायत
वाज़िह है और इस में इमाम का लफ़्ज़ बतौर-ए-निक्रह इस्तिमाल हुआहै यानी कोई भी इमाम।
इस के इलावा भी मुतअद्दिद अहादीस हैं जो इमाम (ख़लीफ़ा) की बैअत पर दलालत करती हैं।
सही मुस्लिम में अब्दुल्लाह बिन अमरो बिन अल आस (رضي الله عنه) से रिवायत है कि नबी صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया:
))ومن بایع إماماً فأعطاہ صفقۃ یدہ،
وثمرۃ قلبہ فلیطعہ إن استطاع۔ فإن جاء آخر ینازعہ فاضربوا عنق الآخر((
और जो शख़्स किसी इमाम( ख़लीफ़ा) की बैअत करे तो उसे अपने हाथ
का मुआमला और दिल का फल दे दे। फिर उसे चाहिए कि वो हसब-ए-इस्तिताअत उस की इताअत भी
करे। अगर कोई दूसरा शख़्स आए और पहले ख़लीफ़ा से तनाज़ा करे तो दूसरे की गर्दन उड़ा दो
और मुस्लिम ही में अबू सईद ख़ुदरी (رضي الله عنه) की रिवायत मौजूद है,
वो कहते हैं कि रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया:
))إذا بویع لخلیفتین فاقتلوا اآاخرمنھما((
जब दो खल़िफ़ा की बैअत की जाये तो इन में से दूसरे को क़त्ल
कर दो
और मुस्लिम ने अबू हाज़िम से रिवायत किया, वो कहते हैं कि मैं पाँच साल तक अबू हुरैरा (رضي الله عنه) के पास रहा ,
मैंने उन्हें नबी صلى الله عليه وسلم की ये बात रिवायत करते सुना:
))کانت بنو إسرائیل تسوسھم الأنبیاء ‘
کلما ھلک نبي خلفہ نبي‘ وإنہ لا نبي بعدي ‘ وستکون خلفاء فتکثر ‘ قالوا: فما
تأمرنا؟ قال: فُوا ببیعۃ الأول فالأول‘ وأعطوہم حقھم ‘ فإن اللّٰہ سائلھم عما
استرعا ھم((
बनीइसराईल की सियासत अंबिया करते थे। जब कोई नबी वफ़ात पाता तो
दूसरा नबी उस की जगह ले लेता, जबकि मेरे बाद कोई नबी नहीं है,
बल्कि बड़ी कसरत
से खुलफा होंगे। सहाबा (رضی اللہ عنھم) ने पूछा: आप हमें क्या हुक्म देते हैं
? आप ने फ़रमाया: तुम एक के बाद दूसरे की बैअत को पूरा करो
किताब व सुन्नत के दलायल इस बारे में निहायत वाज़िह हैं कि ख़लीफ़ा को मुक़र्रर करने
का तरीक़ा सिर्फ़ बैअत है । तमाम सहाबा (رضی اللہ عنھم) ने इस बात को समझा और इस पर चलते रहे।
सक़ीफ़ा बनु साअदा में अबूबक्र (رضي الله عنه) की बैअत-ए-ख़ास (बैअते इनेक़ाद) की गई
और मस्जिदे नबवी में बैअत-ए-आम (बैअते इताअत) की गई। फिर उन लोगों ने अबूबक्र (رضي الله عنه) की बैअत की जिन्होंने मस्जिद में आप
से बैअत नहीं की थी मसलन अली (رضي الله عنه) । इस के बाद मुसलमानों ने उमर (رضي الله عنه), उसमान (رضي الله عنه) और अली (رضي الله عنه) की बैअत की। चुनांचे
मालूम हुआ की बैअत ही खलीफा अल मुस्लिमीन को मुक़र्रर करने का तरीक़ा है।
जहां तक बैअत की अमली तफ़सील का ताल्लुक़ है तो वो रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم की वफ़ात के बाद
फ़ौरन बनने वाले चारों खल़िफ़ा यानी अबूबक्र, उमर , उसमान और अली (رضي الله عنه) के तक़र्रुर से वाज़िह होती है। तमाम सहाबा
(رضی اللہ
عنھم) इस पर ख़ामोश रहे और उन्होंने इस तरीक़े को तस्लीम किया।
अगर ये तरीक़ा-ए-कार शरीयत के ख़िलाफ़ होता तो वो ज़रूर इस से इनकार कर देते। क्योंकि
इस का ताल्लुक़ ऐसी अहम चीज़ से है जिस पर तमाम मुसलमानों के वजूद और इस्लाम की बुनियाद
पर हुकूमत का दारो मदार है। इन खल़िफ़ा के तक़र्रुर में जो कुछ हुआ इस पर ग़ौर करने से
हमें मालूम होता है कि सक़ीफ़ा बनू साअदा में बाअज़ मुसलमानों ने बेहसे तमहीस की और साद
,
अबू उबैदा, उमर और अबूबक्र (رضي الله عنه) को नामज़द किया। और बेहस-ओ-मुबाहिसा
के बाद अबूबक्र (رضي الله عنه) की बैअत कर ली गई। फिर दूसरे रोज़ तमाम
मुसलमानों ने मस्जिद में अबूबक्र (رضي الله عنه) की बैअत की।
सक़ीफ़ा बनु साअदा में होने वाली बैअत ,बैअते इनेक़ाद थी, जिस के नतीजे में अबूबक्र (رضي الله عنه) ख़लीफ़ा बने। और मस्जिदे नबवी में दी
जाने वाली बैअत , बैअते इताअत थी । इसी तरह जब अबूबक्र (رضي الله عنه) ने ये महसूस किया कि उन की बीमारी मर्ज़-उल-मौत
है तो आप ने मुसलमानों को बुलाया ताकि मश्वरा करें कि मुसलमानों का ख़लीफ़ा कौन हो ?
इस मश्वरों में लोगों की राय उमर (رضي الله عنه) और अली (رضي الله عنه) के इर्द गिर्द
घूमती रही। अबूबक्र (رضي الله عنه) को इस सलाह मश्वरे में तीन महीने लग
गए । जब ये काम मुकम्मल हुआ और अक्सरियत की राय मालूम हो गई तो उन्होंने ऐलान किया
कि उमर (رضي الله عنه) उन के बाद ख़लीफ़ा
होंगे। अबूबक्र (رضي الله عنه)की वफ़ात के बाद लोग मस्जिद में जमा हुए
और उन्होंने उमर (رضي الله عنه) की ख़िलाफ़त की
बैअत की। पस वो इस बैअत के नतीजे में ख़लीफ़ा बने, ना कि इन मश्वरों से या अबूबक्र (رضي الله عنه) के ऐलान से। फिर जब उमर (رضي الله عنه) ज़ख़्मी हुए तो
मुसलमानों ने उन से मुतालिबा किया कि वो किसी को ख़लीफ़ा नामज़द कर दें,
लेकिन उन्होने इनकार कर दिया। बिलआख़िर मुसलमानों के इसरार पर
उन्हों ने छः मुसलमानों के नाम लिए। आप की वफ़ात के बाद इन छः अफ़राद ने अपने में से
अबदुर्रहमान बिन औफ़ (رضي الله عنه) को अपना नुमाइंदा मुक़र्रर किया। जिन्होंने राय और
मश्वरे के लिए मुसलमानों की तरफ़ रुजू किया। बिल आख़िर उसमान (رضي الله عنه) की बैअत का ऐलान किया गया और इस के बाद मुसलमानों
ने उन की बैअत की। यूं मुसलमानों की बैअत से उसमान (رضي الله عنه) ख़लीफ़ा बने,
ना कि उमर (رضي الله عنه) की नामज़दगी से
या अबदुर्रहमान बिन औफ़ (رضي الله عنه) के ऐलान से। फिर जब उसमान (رضي الله عنه) शहीद हो गए तो मदीना और कूफ़ा के मुसलमानों की अक्सरियत
ने अली (رضي الله عنه) की बैअत की। लिहाज़ा
वो मुसलमानों की बैअत से ही ख़लीफ़ा बने।
जहां तक ख़लीफ़ा के तक़र्रुर की अमली तफ़सीलात का ताल्लुक़ है जिस के बाद ख़लीफ़ा को
बैअत दी जाती है तो इस के लिए मुख़्तलिफ़ उस्लूब (विभिन्न ढंग) अपनाए जा सकते हैं जैसा
कि खुलफाऐ राशिदीन के इंतिख़ाब (चुनाव) से ज़ाहिर है। उन के इंतिख़ाब के लिए कोई एक मुतय्यन
(तय) तरीका-ए-कार इख्तियार नहीं किया गया बल्कि हर किसी को मुख़्तलिफ़ अंदाज़ से मुंतख़ब
किया (चुना) गया। ये सब कुछ सहाबा (رضی اللہ عنھم) के सामने हुआ और उन्होंने इस पर रजामंदी ज़ाहिर की जिस से इस बात पर
इजमा साबित होता है कि ख़लीफ़ा के इंतिख़ाब के लिए कोई ख़ास उस्लूब इख्तियार करना लाज़िम
नहीं,
बल्कि इसके लिए कईं तरीक़े अपनाए जा सकते हैं,
जिस की मिसालें दर्ज जे़ल (नीचे लिखीं) हैं:
:1 दार-उल-ख़िलाफा में मौजूद लोगों की अक्सरियत या वहां पर मौजूद
अहले हल वल अक़्द या वो लोग जो मुसलमानों की अक्सरियत की नुमाइंदगी करते हैं या फिर
वो बेहतरीन नुमायां लोग जो ख़लीफ़ा के मंसब (ओहदे) के अहल (लायक) हों,
ख़लीफ़ा की वफ़ात या इस्तीफ़े या माज़ूली (बर्खास्तगी) के बाद जमा
हों और किसी एक या एक से ज़्यादालोगों को ख़लीफ़ा के ओहदे के लिए नामज़द करें। फिर वो
किसी भी उस्लूब के ज़रीये इन में से एक को मुंतख़ब कर लें। जिस के बाद वो उसे किताब व
सुन्नत के मुताबिक़ समा-ओ-इताअत (सुनने और इताअत करने) की बैअत दें। बैअते इनेक़ाद मुकम्मल
हो जाने के बाद ख़लीफ़ा या इस का नुमाइंदा मुसलमानों से बैअते इताअत ले। जैसा कि रसूलुल्लाह
صلى
الله عليه وسلم की वफ़ात के बाद हुआ , जब अंसार सक़ीफ़ा बनी साअदा में जमा हुए ताकि वो अपने सरदार साद
बिन उबादा (رضي الله عنه) को बैअत दे दें।
इस असना में अबूबक्र (رضي الله عنه), उमर (رضي الله عنه) और अबू उबैदा
(رضي الله عنه) सक़ीफ़ा बनी साअदा
पहुंचे, जबकि अभी साद बिन उबादा (رضي الله عنه) की बैअत मुनक़्क़िद
(स्थापित) नहीं हुई थी। उनके और अंसार के दरमयान शदीद गुफ़्तगु हुई यहां तक के नौबत
बेहस-ओ-तकरार तक पहुंच गई । इस के बाद राय अबूबक्र (رضي الله عنه) के हक़ में हो गई। फिर साद बिन उबादा
(رضي الله عنه) के इलावा सक़ीफ़ा
बनी साअदा में मौजूद तमाम लोगों की तरफ़ से बैअत देने के नतीजे में अबूबक्र (رضي الله عنه) की ख़िलाफ़त का इनेक़ाद हुआ। सक़ीफ़ा में
मुंदरजा ज़ैल वाक़ियात रौनुमा हुए:
इब्ने हिशाम अपनी सीरत की किताब में रिवायत करते हैं कि इब्ने इसहाक़ ने कहा: जब
अंसार सक़ीफ़ा में जमा हुए; अब्दुल्लाह बिन अबूबक्र (رضي الله عنه) ने अब्दुल्लाह बिन अब्बास (رضي الله عنه) से रिवायत किया
कि उन्होंने बयान किया कि उमर (رضي الله عنه) ने कहा ”जब अल्लाह
ने अपने रसूलصلى
الله عليه وسلم को वफ़ात दे दी तो हमें ये ख़बर पहुंची कि अंसार ने हमसे इख्तिलाफकिया है और वो अपने
सरदारों के साथ सक़ीफ़ा बनी साअदा में जमा हुए। अली बिन अबी तालिब(رضي الله عنه) और ज़ुबैर बिन अवाम (رضي الله عنه) ने हमारा साथ
ना दिया। मुहाजिरीन अबूबक्र(رضي الله عنه) के पास जमा हुए तो मैंने अबुबक्र (رضي الله عنه) से कहा : “आओ हम अपनी अंसार भाईयों के पास चलते
हैं। पस हम उन की तरफ़ गए...।“ उमर (رضي الله عنه) ने मज़ीद बयान
किया: ... “यहां तक कि हम सक़ीफ़ा बनी साअदा में अंसार के पास पहुंचे तो अचानक हम ने
देखा कि उन के दरमयान एक शख़्स चादर ओढ़े मौजूद है। मैंने पूछा ये कौन है। उन्होंने
जवाब दिया साद बिन उबादा। मैंने पूछा : “उन्हें क्या हुआ है?” उन्होंने जवाब दिया ये बीमार हैं। जब हम बैठ गए तो इन में से
एक शख़्स खड़ा हुआ और उसने कलिमा शहादत और अल्लाह (سبحانه وتعال) की सना के बाद
कहा : हम अल्लाह के अंसार हैं और इस्लाम का लश्कर हैं और ए मुहाजिरीन ! तुम हमारा हिस्सा
हो। और तुम में एक गिरोह यहां आया है ... । फिर उस शख़्स ने कहा: और अचानक उन लोगों
ने ये इरादा किया कि हमें हमारी बुनियाद से हटा दें और हम से ये मुआमला ग़सब कर लें।
जब इस ने अपना बयान ख़त्म किया तो मैंने कुछ कहना चाहा। मैंने अपने ज़हन में एक तक़रीर
का मज़मून तैय्यार किया था जो में अबुबक्र के सामने बयान करना चाहता था और मैं अबूबक्र
(رضي الله عنه) के सामने अपने
ग़ुस्से की हालत को छुपा रहा था। अबुबक्र ने कहा : ऐ उमर (رضي الله عنه) सब्र करो पस मैंने
अबूबक्र को नाराज़ करना बुरा जाना। लिहाज़ा अबूबक्र (رضي الله عنه) ने तक़रीर की
और वो मेरे से ज़्यादा साहिब इल्म और मुअज़्ज़िज़ थे। अल्लाह (سبحانه وتعال) की क़सम उन्होंने
कोई ऐसी अच्छी बात ना छोड़ी जो मैंने अपने ज़हन में तैय्यार की थी,
मगर उसे बयान कर दिया या इससे मिलता जुलता या फिर इस से बेहतर
कहा। यहां तक कि अबूबक्र (رضي الله عنه) ने अपनी बात मुकम्मल
कर दी। अबूबक्र (رضي الله عنه) ने कहा: जहां तक तुम में मौजूद अच्छाई का ताल्लुक़
है जिस का तुम लोगों ने ज़िक्र किया, तो तुम इस के हक़दार हो। अरब इस मुआमले (हुकूमत) को क़ुरैश के
इस क़बीले के इलावा किसी में क़बूल नहीं करेंगे क्योंकि वो अपने नसब और इलाक़े के लिहाज़
से अरब में सब से मुमताज़ हैं। मैं ये चाहता हूँ कि तुम इन दो में से जिसे भी पसंद करो
उसे अपनी बैअत दे दो। अबूबक्र ने मेरा और अबू उबैदा बिन अल जर्राह (رضي الله عنه) का हाथ थामा जब
कि वो हम दोनों के दरमयान बैठे हुए थे। उन्होंने जो कुछ बयान किया इस में से इस बात
के सिवा मुझे कोई चीज़ ना गवार ना गुज़री। क्योंकि अल्लाह (سبحانه وتعال) की क़सम में अपने
मरने को इस बात पर तर्जीह देता था कि मैं ऐसे लोगों पर अमीर बनूं जिस में अबूबक्र भी
शामिल हों। अंसार में से एक शख़्स ने कहा: मैं इस मुआमले में से सब से बेहतर और हकीमाना
मश्वरा देता हूँ, ऐ अहल क़ुरैश एक अमीर तुम में से हो और एक हम में से। (उमर (رضي الله عنه) ने बयान किया):
आवाज़ें बुलंद हो गईं और शोर मच गया यहां तक कि मुझे ये ख़तरा लाहक़ हुआ कि कहीं इख्तिलाफना
पैदा हो जाये। पस मैंने कहा : ऐ अबुबक्र (رضي الله عنه) अपना हाथ बढ़ाईए
। अबूबक्र (رضي الله عنه) ने अपना हाथ बढ़ाया
पस मैंने अबुबक्र (رضي الله عنه) को बैअत दे दी
फिर मुहाजिरीन ने अबुबक्र (رضي الله عنه) को बैअत दी और
फिर अंसार ने बैअत दी। इस अमल में हम ने साद बिन उबादा को रौंद डाला । इन में से एक
ने कहा : तुम ने साद बिन उबादा को हलाक कर डाला। मैंने कहा : अल्लाह साद बिन उबादा
को हलाक करे ।
इब्ने कसीर ने अपनी सीरतुन्नबी में इस से मिलता जुलता वाक़िया
रिवायत किया है।
तबरी ने बयान किया : अबू उबैदा बिन जर्राह (رضي الله عنه) ने नाज़ुक मौक़े
पर मुआमले में मुदाख़िलत की। वो खड़े हुए और अंसार से कहा “ऐ अंसार तुम ने मददगार बनने
और हिमायत देने में पहल की, पस तुम रुगिरदानी करने में पहल ना करो’
जब अंसार ने अबू उबैदा (رضي الله عنه)के ये अल्फाज़ सुने
तो वो हिल गए। पस ख़ज़रज के सरदारों में से बशीर बिन साद(رضي الله عنه) खड़े हुए और कहा
“अल्लाह (سبحانه وتعال) की क़सम! अगरचे
हम ने मुशरिकीन के ख़िलाफ़ जिहाद में फ़ज़ीलत हासिल की और इस दीन में सबक़त की । हम इस से
महज़ अल्लाह (سبحانه وتعال) की रज़ा,
इस के नबी صلى الله عليه وسلم की इताअत और अपने नफ्स के लिए जुहद चाहते थे। ये दुरुस्त नहीं
कि हम इस बिना पर लोगों पर फख्र करें और हम इस दुनिया के तालिब नहीं और अल्लाह ही ने
हमें इज़्ज़त अता की है। अलबत्ता मुहम्मद صلى الله عليه وسلم क़ुरैश में से
हैं और उन का क़बीला इस बात के लिए ज़्यादा मुनासिब और इस का ज़्यादा हक़दार है । और अल्लाह
(سبحانه وتعال) की क़सम में नहीं
चाहता कि अल्लाह मुझे इस हालत में देखे कि में इस मुआमले में उन के साथ तनाज़ा करूं।
पस अल्लाह से डरो और उन से झगड़ा ना करो और उन की मुख़ालिफ़त मत करो”
बशर बिन साद (رضي الله عنه) के लफ़्ज़ इत्मीनान
बख्श थे और अंसार ये सुन कर राज़ी हो गए।
इस मौक़े पर अबूबक्र (رضي الله عنه) ने उमर (رضي الله عنه) अबू उबैदा (رضي الله عنه) का हाथ थामा जबकि
आप इन दोनों के दरमयान बैठे हुए थे। आप ने अंसार से कहा “ये उमर हैं और ये अबू उबैदा बिन जर्राह हैं,
तुम इन दोनों में से जिसे चाहो बैअत दे दो।“ और आप ने लोगों
को बाहम मुत्तहिद रहने की तलक़ीन की और इख्तिलाफ करने से मुतनब्बा किया।
आपस की बेहस को देखते हुए और इख्तिलाफके डर से उमर (رضي الله عنه) ने अपनी आवाज़
बुलंद की और चिल्लाए : “ऐ अबुबक्र! अपना हाथ बढ़ाईए” अबूबक्र (رضي الله عنه) ने अपना हाथ फैलाया और उमर (رضي الله عنه) ने ये कहते हुए
आप को बैअत दे दी: “ऐ अबुबक्र ! क्या रसूलुल्लाह
صلى
الله عليه وسلم ने आप को हुक्म नहीं दिया था कि आप नमाज़ में लोगों की इमामत करवाएँ। पस आप ही
अल्लाह के रसूल صلى الله عليه وسلم के ख़लीफ़ा हैं। हम आप को बैअत देते हैं कि ये उस शख़्स की बैअत
है कि जिस से रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم हम में से सब से ज़्यादा मुहब्बत करते थे फिर अबू उबैदा (رضي الله عنه) ने अपना हाथ बढ़ाया
और ये कहते हुए आप को बैअत दी: “आप मुहाजिरीन में से सब से अफ़ज़ल हैं और सिर्फ़ आप
ही वो दूसरे शख़्स थे जो ग़ार में (रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم के) साथी थे और
नमाज़ में रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم के ख़लीफ़ा थे और आप दीन में तमाम मुसलमानों से अफ़ज़ल हैं। और
कौन आप के मुक़ाबले पर हो सकता है और आप से बढ़ कर इस मुआमले को सँभाल सकता है”
बशर बिन साद (رضي الله عنه) लपके और अबूबक्र
(رضي
الله عنه) को बैअत दे दी। उसैद बिन हज़ीर (رضي الله عنه) जो कि औस के सरदार
थे ,ने अपने लोगों की तरफ़ देखा ,जो बशर बिन साद (رضي الله عنه) के अमल को देख
चुके थे ,
और उन से कहा: “अल्लाह (سبحانه وتعال) की क़सम अगर ख़ज़रज
को तुम्हारे ऊपर मौक़ा दिया जाये तो वो अब भी तुम पर सबक़त ले जाऐंगे और वो उस चीज़ में
अपने साथ तुम्हें कोई हिस्सा नहीं देंगे । पस तुम उठो और अबूबक्र (رضي الله عنه) को बैअत दे दो” तो औस के लोग खड़े हो
गए और और उन्होंने भी अबूबक्र (رضي الله عنه) को बैअत दे दी
। फिर इस के बाद लोग अबूबक्र (رضي الله عنه) को बैअत देने
के लिए लपक पड़े यहां तक कि सक़ीफ़ा बनी साअदा में लोगों का हुजूम हो गया।
यूं सक़ीफ़ा की बैअत मुकम्मल हो गई जबकि रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم का जिस्म-ए-अतहर
उन के बिस्तर पर बिला तदफ़ीन पड़ा था। जब बैअत मुकम्मल हो गई तो लोग सक़ीफ़ा से मुंतशिर
(अलग अलग) हो गए। अगले दिन अबूबक्र (رضي الله عنه) मस्जिद में बैठे और उमर (رضي الله عنه) खड़े हुए और लोगों
से मुख़ातिब हुए और अपनी इस बात पर माज़रत (माफी) तलब की ,जब आप ने कहा था कि रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم की वफ़ात नहीं हुई है। फिर आप ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा: “बेशक
अल्लाह ने तुम्हारे दरमयान अपनी किताब बाक़ी रखी है जिस के ज़रीये उस ने अपने रसूल को
हिदायत बख्शी और अगर तुम इसे थामे रखोगे तो अल्लाह तुम्हें इसी तरह हिदायत देगा जैसा
कि उस ने अपने रसूल को हिदायत दी। और बेशक अल्लाह ने तुम्हारे मुआमले को तुम में से
सब से अफ़ज़ल शख़्स पर मुजतमा (इकट्ठा) कर दिया
है,
वो जो रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم का साथी था और
ग़ार के दो साथीयों में से एक था, पस उठो और अपनी बैअत दो”
तब तमाम लोगों ने अबूबक्र (رضي الله عنه) को बैअत दी और यूं बैअत इख़तिताम
(अंत) को पहुंच गई। फिर अबूबक्र (رضي الله عنه) खड़े हुए और लोगों से मुख़ातिब हुए और
ये आप की ख़िलाफ़त का पहला ख़ुत्बा था। आप ने कहा: “ऐ लोगो! मुझे तुम्हारे ऊपर तुम्हारा
अमीर मुक़र्रर किया गया है जबकि में तुम सब से बेहतर नहीं हूँ। पस अगर में दुरुस्त
अमल करूँ तो इस में मेरी मदद करो और अगर में ग़लत करूं तो मेरी तसहीह (इस्लाह) कर दो।
सच्चाई अमानत है और झूट ख़ियानत है। तुम में से जो कमज़ोर है वो मेरे नज़दीक क़वी
(ताक़तवर) है यहां तक कि मैं इंशाअल्लाह उस का हक़ उसे ना दिला दूं । और तुम में से जो
क़वी है वो मेरे नज़दीक कमज़ोर है यहां तक कि इंशाअल्लाह में उस से हक़ वसूल ना कर लूं।
कोई भी क़ौम जो जिहाद को तर्क कर दे अल्लाह उसे ज़लील व रूसवा कर देगा। और जिस क़ौम में
फ़ाहिश (बुरी) उमूर (बात) आम हों जाएं अल्लाह उसे मुसीबत में मुबतला कर देगा। उस वक़्त
तक मेरी इताअत करो जब तक मैं अल्लाह (سبحانه وتعال) की इताअत करूं।
अगर में अल्लाह और उस के रसूल की नाफ़रमानी करूं तो तुम मेरी इताअत ना करना। नमाज़ के
लिए खड़े हो जाओ, अल्लाह तुम लोगों पर अपनी रहमत नाज़िल करे”
ये ख़िलाफ़त के लिए अबूबक्र (رضي الله عنه) के इंतिख़ाब और बैअत का मुख़्तसर अहवाल
है। ख़लीफ़ा के मुताल्लिक़ अंसार और मुहाजिरीन के दरमियान इख्तिलाफदोनों जानिब से ख़लीफ़ा
की नामज़दगी पर इख्तिलाफके मुमासिल (मानिंद) था। अबू उबैदा (رضي الله عنه) और बशीर बिन साद
(رضي الله عنه) की तक़रीर के
बाद मुहाजिरीन का पलड़ा भारी हो गया और फिर अबुबक्र (رضي الله عنه) खिलाफत के पसंदीदा
तरीन उम्मीदवार के तौर पर सामने आए और फिर साद बिन उबादा (رضي الله عنه) के सिवा सक़ीफ़ा
में मौजूद तमाम लोगों ने अबूबक्र (رضي الله عنه) को बैअत दी। लिहाज़ा सक़ीफ़ा में दी जाने
वाली पहली बैअत, बैअते इनेक़ाद थी जबकि मस्जिद की बैअत , बैअते इताअत थी।
अबूबक्र (رضي الله عنه) के इंतिख़ाब के इस तरीका-ए-कार से ये
बात सामने आती है कि मदीना मुनव्वरा,जो कि इस्लामी रिवायात का मर्कज़ था, की कसीर (बडी) तादाद ने आपस में तबादला-ए-ख़्याल किया और सख़्त
बेहस-ओ-तकरार की। कुछ लोगों को ख़िलाफ़त के ओहदे के लिए नामज़द किया गया,
ये फ़हरिस्त अबुबक्र (رضي الله عنه), उमर (رضي الله عنه) और अबू उबैदा
बिन अल जर्राह (رضي الله عنه) तक महदूद थी।
फिर राय अबूबक्र (رضي الله عنه) के हक़ में हो गई और उन्हें बैअत दे दी
गई।
:2 जब ख़लीफ़ा ये महसूस करे कि उस की मौत का वक़्त क़रीब है,
तो वो बज़ात-ए-ख़ुद या फिर लोगों के कहने पर, लोगों
या अहल-ए-हल-ओ-अक़्द या फिर लोगों के नुमाइंदों और सरदारों से मश्वरा करे कि वो इस के
बाद किसे ख़लीफ़ा मुक़र्रर करना चाहते हैं । फिर वो लोगों के लिए तजवीज़ करे कि उस की
वफ़ात के बाद कौन उन का ख़लीफ़ा होगा। फिर ख़लीफ़ा के मरने के बाद मुसलमान इस तजवीज़ करदा
शख़्स को ख़िलाफ़त के लिए बैअत दे दें। उन की बैअत के नतीजे में उस शख़्स की ख़िलाफ़त क़ायम
हो जाएगी। पस इस बैअत के ज़रीये उस की ख़िलाफ़त का इनेक़ाद होगा ना कि गुज़श्ता ख़लीफ़ा की
नामज़दगी की वजह से।
जैसा कि उस वक़्त हुआ जब अबूबक्र (رضي الله عنه) ने उमर (رضي الله عنه) को नामज़द किया।
जब अबुबक्र (رضي الله عنه) शदीद बीमार थे
और उन्होंने ये महसूस किया कि उन की मौत क़रीब है तो आप ने लोगों को जमा किया और उन
से कहा: “बेशक अल्लाह ने मेरी तरफ़ वो चीज़ भेज दी है जो कि तुम भी महसूस कर रहे हो
(यानी मौत) और मैं इस के सिवा और कुछ गुमान नहीं करता कि ये मर्ज़ मेरे लिए मर्ज़-उल-मौत
साबित होगा। पस अल्लाह ने तुम्हें मेरी बैअत से आज़ाद कर दिया है और तुम्हारे ऊपर मौजूद
गिरह को खोल दिया है। अल्लाह ने तुम्हारे अम्र (हुक्मरानी के मुआमले) को तुम्हारी तरफ़
लौटा दिया है। लिहाज़ा तुम अपने ऊपर ऐसे शख़्स को मुक़र्रर कर लो जिसे तुम पसंद करते
हो । क्योंकि अगर तुम मेरे जीते जी किसी को मुक़र्रर कर लोगे तो ये बेहतर होगा ताकि
तुम मेरे बाद इख्तिलाफना करो”
लोग इस बात पर इत्तेफाक़ ना कर सके कि ख़िलाफ़त में अबूबक्र (رضي الله عنه) का जांनशीन कौन होगा और वो अबूबक्र
(رضي
الله عنه) के पास वापिस लौटे और कहा: ए ख़लीफ़ा अर्रसूल (रसूल के
खलीफा) आप की राय हमारी राय है। “अबूबक्र (رضي الله عنه) ने कहा: “शायद तुम मेरे फ़ैसले से इख्तिलाफकरोगे’
उन्होंने कहा नहीं (हम ऐसा नहीं करेंगे)। आप ने कहा: ”फिर तुम अल्लाह से वाअदा करो
कि तुम मेरे फ़ैसले को तस्लीम करोगे।“ उन्होंने कहा: “हाँ हम ऐसा ही करेंगे।“ फिर आप
ने कहा: “मुझे इस बात के लिए मोहलत दो ताकि में ये देखूं कि अल्लाह उस के दीन और उसके
बंदों के लिए बेहतरीन शख़्स कौन है।“
ये इस बात का वाज़िह इशारा है कि मुसलमानों ने ख़लीफ़ा के तक़र्रुर का अपना इख्तियार
, अबूबक्र (رضي الله عنه) को तफ़वीज़ कर दिया। अबूबक्र (رضي الله عنه) ये समझते थे कि बडे सहाबा क्या सोच रहे
हैं ,क्योंकि आप ने महसूस किया कि इन में से हर एक
ये मुक़ाम हासिल करना चाहता है। लिहाज़ा आप ने मुसलमानों से इख्तिलाफना करने का अह्द
लिया।
इस इख्तियार के साथ अबूबक्र (رضي الله عنه) ने बडे सहाबा के साथ मुतअद्दिद
(कईं) मश्वरे किए। आप ने राज़दारी से अबदुर्रहमान बिन औफ़ (رضي الله عنه), उसमान बिन अफ्फान (رضي الله عنه), सईद बिन जै़द (رضي الله عنه) और उसैद बिन हुज़ैर
(رضي الله عنه) से राय ली। आप
के ज़हन में दो अश्ख़ास यानी उमर (رضي الله عنه) और अली (رضي الله عنه) के नाम घूम रहे
थे ,जिन में से आप एक का चुनाव करना चाहते थे। ताहम
बाद में आप की राय उमर (رضي الله عنه)के मुताल्लिक़ पुख़्ता
हो गई और आप ने ऐलानीया तौर पर लोगों से मश्वरा किया। आप ने अपने घर से बाहर लोगों
की तरफ़ इस हालत में झांका कि आप की ज़ौजा अस्मा-ए-बिन अमीस ने आप को थाम रखा था। आप
ने लोगों से कहा:”क्या तुम उसे क़बूल करते हो जिसे में तुम्हारे लिए मुक़र्रर करने जा
रहा हूँ, अल्लाह (سبحانه وتعال) की क़सम मैंने
इस राय पर पहुंचने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी और ना ही मैंने अपने किसी क़राबतदार को
मुक़र्रर किया है।“ लोगों ने कहा:”हाँ”। आप ने अपनी बात जारी रखी और कहा :”मैं उमर
(رضي الله عنه)को अपने बाद मुक़र्रर
करता हूँ पस तुम उस की बात सुनो और उस की इताअत करो” लोगों ने जवाब दिया “हम ने सुना
और हम ने इताअत की।“ ये सुन कर अबूबक्र (رضي الله عنه) ने अपने हाथ आसमान की तरफ़ बुलंद किए
और कहा: “ए अल्लाह में अपने इस इंतिख़ाब से उन की बेहतरी के सिवा और कुछ नहीं चाहता
और मुझे डर था कि कहीं ये (मेरे बाद) फ़ित्ने में मुबतला ना हो जाएं पस तू अच्छी तरह
से वाक़िफ़ है जो मुआमला मैंने उन के साथ किया। मैंने उन के लिए अपनी राय में कोशिश
की और उन के ऊपर ऐसे शख़्स को मुक़र्रर किया जो इन में से सब से बेहतर, सब से क़वी और उन के मुताल्लिक़ सब से ज़्यादा
फ़िक्रमंद है ।“ लोगों ने आप की दुआ सुनी और आप के फ़ैसले पर मुतमइन हो गए। अबूबक्र
(رضي
الله عنه) की वफ़ात के बाद उमर (رضي الله عنه) मस्जिद में गए
और लोगों की कसीर (बडी) तादाद ने आकर उमर (رضي الله عنه)को बैअत दी और
तलहा (رضي الله عنه) के इलावा कोई
भी पीछे ना रहा। उमर (رضي الله عنه) सुबह से लेकर
ज़ुहर तक मस्जिद में ही रहे । बैअत के लिए आने वाले लोगों की तादाद में इज़ाफ़ा हो गया
यहां तक कि ज़ुहर के वक़्त मस्जिद बिलकुल भर गई। उमर (رضي الله عنه) मिंबर पर चढ़े
और उस जगह से एक क़दम नीचे खड़े हुए जहां पर अबूबक्र (رضي الله عنه) खड़े हुआ करते थे। आप (رضي الله عنه) ने अल्लाह (سبحانه وتعال) की हम्द व
सना बयान की, रसूलुल्लाह
صلى
الله عليه وسلم पर दरूद भेजा और अबूबक्र (رضي الله عنه) की फ़ज़ीलत बयान की और फिर कहा: “ऐ लोगो
! मैं तुम्ही में से तुम्हारे जैसा ही एक शख़्स हूँ और अगर रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم के ख़लीफ़ा अबूबक्र
(رضي
الله عنه) की दरख़ास्त को रद्द करना मेरे लिए ना गवार ना होता तो
मैं तुम्हारा हाकिम ना बनता।“
फिर आप ने आसमान की तरफ़ निगाह की और कहा: ”ऐ मेरे अल्लाह! मैं सख़्त हूँ मुझे नरम
ख़ू बना दे, ए मेरे अल्लाह!
मैं कमज़ोर हूँ मुझे क़ुव्वत अता फरमा, ए मेरे अल्लाह ! मैं बख़ील
हूँ मुझे सखी बना दे “फिर आप थोडी देर रूके और कहा: “बेशक अल्लाह मेरे ज़रीये तुम्हारा
इम्तिहान ले रहा है और तुम्हारे ज़रीये मेरा इम्तिहान ले रहा है । उस ने मेरे रफ़क़ा
(दोस्तों) को उठा लिया जबकि मुझे तुम्हारे दरमयान बाक़ी रखा। अल्लाह (سبحانه وتعال) की क़सम! अगर तुम्हारा
कोई मुआमला मेरे पास पहुंचेगा तो मैं उसे किसी दूसरे के हवाले नहीं करूंगा और अगर वो
मुआमला मेरे से दूर हुआ तो में पूरी कोशिश करूंगा कि इस पर काबिल और बा एतिमाद
(भरोसे मन्द) शख़्स को मुक़र्रर करूं” फिर आप खड़े हुए और नमाज़ में लोगों की इमामत
की । ये लोगों की तरफ़ से मस्जिद में उमर (رضي الله عنه) की बैअत थी और
इस बैअत के नतीजे में उन की ख़िलाफ़त का इनेक़ाद हुआ और इस बैअत के नतीजे में ही लोगों
के लिए आप की इताअत वाजिब हुई।
लिहाज़ा जहां तक अबूबक्र (رضي الله عنه) के इंतिख़ाब का ताल्लुक़ है तो ये उन की
तरफ़ से उमर(رضي الله عنه) को ख़लीफ़ा के
तौर पर नामज़द करना था और आप (رضي الله عنه) ने सिर्फ़ उमर
(رضي الله عنه) को ही नामज़द
किया। अबूबक्र (رضي الله عنه) की नामज़दगी के नतीजे में उमर (رضي الله عنه) की ख़िलाफ़त का
इनेक़ाद नहीं हुआ और ना ही उन की इताअत वाजिब क़रार पाई , वो सिर्फ़ उस वक़्त ख़लीफ़ा बने जब लोगों ने मस्जिद
में आप को बैअत दी।
जिस अंदाज़ से उमर बिन अल खत्ताब (رضي الله عنه) खलीफतुल
मुस्लमीन बने, इन वाक़ियात
का जायज़ा लेने से हम ये देख सकते हैं कि ये अंदाज़ इस से मुख़्तलिफ़ था कि जिस के ज़रीये
अबूबक्र (رضي الله عنه) को मुसलमानों पर खलीफतुल मुस्लमीन मुक़र्रर
किया गया।
:3 ख़लीफ़ा अपनी मौत से पहले, बज़ात-ए-ख़ुद या
फिर मुसलमानों के कहने पर कुछ लोगों को तजवीज़ करे, जो कि ख़िलाफ़त
के ओहदे की क़ाबिलीयत रखते हों,ताकि वो उस की वफ़ात के बाद आपस
में मश्वरा कर के किसी एक शख़्स को तीन दिन की मुद्दत में मुसलमानों पर ख़लीफ़ा चुन
लें। और फिर वो ख़लीफ़ा की वफ़ात के बाद एक मुत्तफ़िक़ा (सहमति के) अंदाज़ के मुताबिक़ अपने में से किसी एक को ख़लीफ़ा
मुक़र्रर कर लें फिर वो इस ख़लीफ़ा के नाम का ऐलान करें और लोगों से उस के लिए बैअत
ली जाये। ये शख़्स इस बैअत के नतीजे में मुसलमानों का ख़लीफ़ा क़रार पाएगा ना कि उन चंद
लोगों के इख्तियार की वजह से, जिन्हें गुज़शता ख़लीफ़ा ने मुक़र्रर
किया था। जैसा कि उमर बिन अल खत्ताब (सहमति) ने किया, जब वो हमले की वजह से ज़ख़्मी हुए और इन ज़ख्मों की वजह से बाद में उन की मौत
घटित हुई। लोग आप (رضي الله عنه) के पास आए और
आप से दरख़ास्त की कि वो अपने बाद उन के लिए ख़लीफ़ा का इंतिख़ाब कर दें। उमर (رضي الله عنه) ने कहा:”मैं किस को अपना जांनशीन मुक़र्रर करूं?
अगर अबू उबैदा बिन जर्राह (رضي الله عنه) ज़िंदा होते तो
मैं उन्हें ख़लीफ़ा मुक़र्रर करता। अगर मेरा अल्लाह मुझ से सवाल करता तो मैं कहता कि
मैंने रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم को ये कहते हुए सुना:
))إنہ أمین ھذہ الأُمۃ((
वो (अबू उबैदा) इस उम्मत के अमीन हैं
और अगर अबू ख़ज़ीफ़ा के आज़ाद करदा ग़ुलाम
सालिम ज़िंदा होते तो मैं उन्हें ख़लीफ़ा तजवीज़ करता ,क्योंकि मैंने रसूलल्लाह صلى الله عليه وسلم को ये फ़रमाते
हुए सुना:
))إن سالماً شدید الحب اللّٰہ((
सालिम के दिल में अल्लाह (سبحانه وتعال) की मुहब्बत शदीद है।
मुसलमानों में से एक शख़्स ने कहा अपने बेटे अब्दुल्लाह को मुक़र्रर फरमा दें।
उमर बिन अल खत्ताब (رضي الله عنه) ने कहा “अल्लाह तुम्हें हलाक करे तुम
अपनी इस राय से अल्लाह (سبحانه وتعال) की ख़ुशनुदी नहीं
चाहते। तुम्हारी बर्बादी हो , मैं एक ऐसे कमज़ोर शख़्स को कैसे मुंतख़ब कर सकता हूँ जो कि अपनी बीवी को तलाक़
देने से भी आजिज़ (मजबूर) है। आल-ए-खत्ताब (खत्ताब की औलाद) के दिल में तुम्हारे मुआमलात
के मुताल्लिक़ कोई ख़ाहिश नहीं। मैं ये पसंद नहीं करता कि मैं अपने ख़ानदान में से किसी
के लिए उस (ख़िलाफ़त) की ख़ाहिश करूं। अगर ये (ख़िलाफ़त) अच्छी चीज़ है तो हम ने अपना हिस्सा
ले लिया है और अगर ये बुरी चीज़ है तो इतना ही काफ़ी है कि ऑल-ए-उमर में से एक शख़्स
का ही मुहासिबा हो और उस से नबी صلى الله عليه وسلم की उम्मत के मुताल्लिक़
सवाल किया जाये। मैंने भरपूर कोशिश की और अपने कुन्बे को महरूम रखा। अगर क़यामत के दिन
मेरा छुटकारा इस हाल में हुआ की मेरे लिए ना कोई सवाब हो और ना कोई गुनाह, तो मैं इस पर राज़ी हूँ।“
मुसलमान उमर (رضي الله عنه) के पास से रुख़स्त हो गए और उन्होंने
आप (رضي الله عنه) को इस मुआमले पर ग़ौरोफ़िक्र करने के लिए
छोड़ दिया। फिर लोग दुबारा आप के पास आए और उन से कहा कि वो मुसलमानों की मस्लिहत की
ख़ातिर किसी को ख़लीफ़ा मुक़र्रर कर दें। उमर (رضي الله عنه) ने उन से कहा : “तुम्हारे पास वो गिरोह
मौजूद है जिन से अल्लाह के रसूल صلى الله عليه وسلم अपनी रहलत
(वफात) से पहले राज़ी थे और उन के मुताल्लिक़ रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया कि वो
अहल-ए-जन्नत में से हैं: अली बिन अबी तालिब (رضي الله عنه), उसमान बिन अफ्फान (رضي الله عنه), साद बिन अबी विक़ास (رضي الله عنه), अबदुर्रहमान बिन औफ़(رضي الله عنه) , ज़ुबैर बिन अल अवाम (رضي الله عنه) और तलहा बिन उबैदुल्लाह (رضي الله عنه) । अब्दुल्लाह बिन उमर(رضي الله عنه) को उन के साथ कर दो लेकिन वो सिर्फ़ अपनी राय दे
सकते हैं और ख़िलाफ़त के मुआमले में इन का कोई हिस्सा नहीं उमर (رضي الله عنه) ने इन छः अश्ख़ास को वसीयत की कि वो एक ख़लीफ़ा का
इंतिख़ाब करें और उन के लिए तीन दिन की मोहलत मुक़र्रर की। उन के साथ तवील गुफ़्तगु
करने के बाद आप ने कहा: “जब मैं मर जाऊं तो तीन दिन सलाह मश्वरा करना और इस दौरान सुहैब
नमाज़ में लोगों की इमामत कराएँ और तुम लोगों पर चौथा दिन इस हालत में ना आए कि तुम
अमीर के बगै़र रहो।“ आप ने अबू तलहा अंसारी (رضي الله عنه) को मुक़र्रर किया कि वो सहाबा के इस
गिरोह की हिफ़ाज़त करें और इस काम में उन की हौसला अफ़्ज़ाई करें और ये भी कहा : “ऐ अबू
तलहा, अल्लाह ने तुम (अंसार) के ज़रीये इस्लाम को इज़्ज़त
बख्श दी पस तुम अंसार में से पच्चास लोगों को मुंतख़ब कर लो और इन छः लोगों को उभारो
कि वो अपने में से एक को ख़लीफ़ा चुन लें। “उमर (رضي الله عنه) ने अल मिक़राद बिन असवद से कहा कि वो
उन लोगों के इजलास के लिए किसी जगह का इंतिख़ाब करें और उस से कहा “मुझे क़ब्र में उतारने
के बाद इन (छः) लोगों को एक घर में जमा करना यहां तक कि ये अपने में से एक शख़्स को
मुंतख़ब कर लें । “फिर आप ने सुहैब को इस इजलास की निगरानी के लिए कहा और फ़रमाया:”तुम
तीन दिन के लिए नमाज़ में लोगों की इमामत करना और अली,उसमान, ज़ुबैर, साद,अबदुर्रहमान बिन औफ़ और अगर तलहा (सफ़र से) वापिस आ
जाऐं, को जमा करना और अब्दुल्लाह बिन उमर को भी इन में दाख़िल
करना मगर इन का ख़िलाफ़त के मुआमले में कोई हिस्सा ना होगा। और उन लोगों के सर पर खड़े
रहना (यानी उन की निगरानी करना) अगर पाँच किसी एक शख़्स पर मुत्तफ़िक़ हो जाएं और एक
उसे मुस्तरद (रद्द) करे तो तलवार से उस का सर क़लम कर देना। अगर इन में से चार एक शख़्स
पर राज़ी हो जाएं और बाक़ी दो उसे मुस्तरद कर दें तो मुस्तरद करने वालों को क़त्ल कर
देना। अगर इन में से तीन एक शख़्स पर इत्तिफ़ाक़ करें और बाक़ी तीन इख्तिलाफकरें तो अब्दुल्लाह
बिन उमर (رضي الله عنه) इन के दरमयान
सालसी (बिना भेदभाव के फैसला) करें। अब्दुल्लाह बिन उमर जिस फ़रीक़ (टीम) के हक़ में फ़ैसला
करें तो वो फ़रीक़ अपने में से एक को ख़लीफ़ा मुंतख़ब कर ले। अगर वो अब्दुल्लाह बिन उमर
के फ़ैसले को क़बूल ना करें तो फिर तुम (सब) उस गिरोह का साथ देना जिसमें अब्दुर्रहमान
बिन औफ़ हों और अगर बाक़ी लोग इस गिरोह के चुनाव को तस्लीम ना करें तो उन्हें क़त्ल कर
देना।“ फिर उमर (رضي الله عنه) ने कहा कि वो उन की वफ़ात तक ख़िलाफ़त के
मुताल्लिक़ बेहस-ओ-मुबाहिसे को तर्क कर दें।
उमर (رضي الله عنه) की वफ़ात और उन की तदफ़ीन के बाद तलहा
(رضي الله عنه) के सिवा उमर का नामज़द करदह सहाबा (رضی اللہ
عنھم) का गिरोह जमा हुआ, क्योंकि वो हालत-ए-सफ़र में थे। रिवायत किया जाता है कि इन का इजलास
आयशा (رضي الله عنه अन्हा) के घर हुआ और अब्दुल्लाह बिन उमर
(رضي الله عنه) उन लोगों के साथ थे। उन्होंने अबू तलहा
अंसारी (رضي الله عنه) से कहा कि वो उन की हिफ़ाज़त करें। जब वो सब बातचीत के
लिए बैठे तो अबदुर्रहमान बिन औफ़ (رضي الله عنه) ने कहा: “कौन इस मुआमले से ख़ारिज होना चाहता है और
वो इस इजलास की क़ियादत करे और ख़िलाफ़त को उस शख़्स के हवाले करे जो तुम में से सब से
बेहतर हो।“ यानी कौन ख़िलाफ़त का उम्मीदवार बनने से दस्तबरदार होना चाहता है बशर्ते
के लोग उसे सालिस मुक़र्रर कर लें और वो बाक़ी अश्ख़ास में से ऐसे शख़्स को ख़लीफ़ा मुंतख़ब
करे जिसे वो सब से मौज़ूं ख़्याल करता हो। ये कहने के बाद अबदुर्रहमान बिन औफ (رضي الله عنه) ने इंतिज़ार किया लेकिन सब लोग ख़ामोश
रहे। फिर उन्होंने अपनी बात जारी रखी और कहा कि “मैं ख़ुद ख़िलाफ़त पर अपने हक़ से दस्तबरदार
होता हूँ।‘ ये सुन कर उसमान (رضي الله عنه) ने कहा कि मैं सब से पहले इसे क़बूल करता हूँ क्योंकि
मैंने रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم को ये फ़रमाते हुए सुना:
))أمین في الأرض أمین في السماء((
जो शख़्स ज़मीन पर अमीन है वो आसमान पर भी अमीन है
ज़ुबैर (رضي
الله عنه) और साद(رضي الله عنه) ने भी कहा हम राज़ी हैं। अली (رضي الله عنه) ख़ामोश रहे तो
अब्दुर्रहमान (رضي الله عنه) ने अली(رضي الله عنه) से सवाल किया: “ए अबुलहसन आप क्या कहते
हैं।“ अली (رضي
الله عنه) ने जवाब दिया आप वाअदा करें कि आप सिर्फ़ हक़ को तर्जीह
देगे और अपनी ख़ाहिश की पैरवी नहीं करेंगे और ना ही अपने ख़ानदान के किसी शख़्स की तरफदारी
करेंगे और ना ही उम्मत के मुफ़ाद को नज़रअंदाज करेंगे।“ अबदुर्रहमान (رضي الله عنه) ने जवाब दिया के “आप सब मुझसे वाअदा
करें की आप सब उस शख्स के खिलाफ मेरा साथ देगे जो की फिर जाये और ये कि आप सब इसे तस्लीम
करेंगे जिसे मैं मुंतख़ब करूं और मैं आप से वाअदा करता हूँ कि अल्लाह (سبحانه وتعال) की क़सम में अपने
किसी रिश्तेदार की तरफदारी नहीं करूंगा और ना ही उम्मत के मुफ़ाद को नज़रअंदाज करूंगा
। अब्दुर्रहमान (رضي الله عنه) ने उन से ये कहा और उन से वाअदा लिया।
फिर अबदुर्रहमान (رضي الله عنه) ने इन में से हर एक से फ़र्दन फ़र्दन राय
लेना शुरू की। आप उन से ये सवाल करते कि आप अपने अलावा इस गिरोह में किस और शख़्स को
ख़िलाफ़त का अहल समझते हैं। अली (رضي الله عنه) ने कहा उसमान (رضي الله عنه) और उसमान (رضي الله عنه) ने कहा अली (رضي الله عنه) । साद (رضي الله عنه) ने कहा उसमान (رضي الله عنه) और ज़ुबैर (رضي الله عنه) ने भी यही जवाब दिया। फिर अब्दुर्रहमान
(رضي
الله عنه) ने मदीना के नुमायां लोगों से राय तलब की और फिर मदीना
के हर मर्द व औरत से उस की राय दरयाफ़त की। आप ने किसी को भी ये पूछे बगै़र नहीं छोड़ा
कि वो इस गिरोह में से किसे ख़लीफ़ा देखना चाहता है। एक जमात ने उसमान (رضي الله عنه) के हक़ में राय
दी और एक जमात ने अली (رضي الله عنه) के हक़ में राय
दी । अब्दुर्रहमान (رضي الله عنه) इस नतीजे पर पहुंचे कि राय उसमान (رضي الله عنه) और अली (رضي الله عنه) के दरमियान तक़सीम
है और क़ुरैश उसमान (رضي الله عنه) के हक़ में हैं।
जब अब्दुर्रहमान (رضي الله عنه) ने लोगों की राय
लेने का काम ख़त्म कर लिया और हर मर्द व औरत
से मश्वरा कर लिया तो आप ने मुसलमानों को मस्जिद में बुलाया और मिंबर पर खड़े हुए ,जबकि उन की तलवार रसूलल्लाह صلى الله عليه وسلم के इमामा के ऊपर
रखी थी, जो रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم ने अबदुर्रहमान बिन औफ को अता किया था। आप कुछ देर ख़ामोश खड़े रहे और
फिर कहा:”ए लोगो! मैंने ऐलानीया और खु़फ़ीया तौर पर तुम से तुम्हारे इमाम के मुताल्लिक़
पूछा और मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि तुम किसी को भी इन दो अश्ख़ास के बराबर ख़्याल
नहीं करते। ये दो उसमान (رضي الله عنه) और अली (رضي الله عنه) हैं।“
फिर आप अली (رضي الله عنه) की तरफ़ मुतवज्जा
हुए और उन से कहा: “ऐ अली मेरे पास आओ” अली खड़े हो गए और मिंबर के नीचे पहुंच गए। अब्दुर्रहमान
(رضي الله عنه) ने अली (رضي الله عنه) का हाथ थामा और
कहा: “क्या तुम मुझे अल्लाह (سبحانه وتعال) की किताब , रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم की सुन्नत और अबुबक्र (رضي الله عنه) और उमर (رضي الله عنه) के अमल पर बैअत
देते हो।“ अली (رضي الله عنه) ने जवाब दिया: अल्लाह (سبحانه وتعال) की क़सम ! नहीं, बल्कि में अपना इज्तिहाद करूंगा और अपने इल्म
के मुताबिक़ चलूंगा यानी में किताब व सुन्नत के मुताल्लिक़ अपने इज्तिहाद और इलम पर आप
को बैअत देता हो। जहां तक अबुबक्र और उमर (رضي الله عنه) के अमल का ताल्लुक़
है तो में उस की पाबंदी को अपने लिए लाज़िम नहीं करता और मैं अपना इज्तिहाद करूंगा।“
अब्दुर्रहमान (رضي الله عنه) ने अली (رضي الله عنه) का हाथ छोड़ दिया
और कहा: “उसमान (رضي الله عنه) मेरे पास आओ”
अब्दुर्रहमान (رضي الله عنه) ने उसमान(رضي الله عنه) का हाथ थामा, जबकि वो उस जगह पर खड़े हुए जहां इस से पहले
अली(رضي الله عنه) खड़े थे। अबदुर्रहमान
(رضي الله عنه) ने उसमान (رضي الله عنه) से कहा:’क्या तुम मुझे अल्लाह (سبحانه وتعال) की किताब , रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم की सुन्नत और अबुबक्र-ओ-उमर के अमल पर बैअत देते हो” उसमान (رضي الله عنه) ने कहा: अल्लाह
(سبحانه وتعال) की क़सम ! हाँ”
ये सुन कर अब्दुर्रहमान (رضي الله عنه) ने मस्जिद की
छत की तरफ़ देखा , जबकि उन्होंने उसमान का हाथ थाम रखा था, और कहा: “ए अल्लाह!
गवाह रहना ,जो मुआमला मेरी गर्दन में था वो में उसमान(رضي الله عنه) की गर्दन में
डालता हूँ ये सुन कर लोग उसमान (رضي الله عنه) की बैअत के लिए लपके यहां तक कि उसमान (رضي الله عنه) लोगों के जम ग़फी़र
(भीड) में घिर गए। फिर अली (رضي الله عنه) लोगों को चीरते
हुए आए और उसमान (رضي الله عنه) को बैअत दी। यूं
उसमान (رضي الله عنه) की बैअत अमल पज़ीर
हुई।
अगर हम इस अंदाज़ का जायज़ा लें जिस से उसमान (رضي الله عنه) को मुंतख़ब किया गया;
तो हम ये देख सकते हैं कि उसमान (رضي الله عنه) के इंतिख़ाब का
अंदाज़ इन दो असालीब (तरीक़ों) से मुख़्तलिफ़ था जिस के मुताबिक़ अबूबक्र (رضي الله عنه) और उमर (رضي الله عنه) को मुंतख़ब किया
गया था।
:4 ख़लीफ़ा के इंतिक़ाल के बाद मुसलमानों की अक्सरियत या इन में
से अहले हल वल अक़्द या अहले क़ुव्वत एक शख़्स की तरफ़ रुजू करें,
जो ख़िलाफ़त की अहलीयत रखता हो, और उस से ख़िलाफ़त को सँभालने का मुतालिबा करें। वो शख़्स इस बात
को जानने के बाद कि मुसलमानों की अक्सरियत उस की बैअत पर राज़ी है,
उन लोगों से ऐलानीया बैअत ले ले। इस ऐलानीया बैअत के नतीजे में
उस शख़्स की ख़िलाफ़त का इनेक़ाद हो जाएगा और मुसलमानों पर उस की इताअत करना वाजिब होगा।
लोगों की जानिब से उस शख़्स से ख़लीफ़ा बनने का मुतालिबा करना,
दरअसल उसे ख़लीफ़ा के वाहिद उम्मीदवार के तौर पर पेश करना है।
ताहम उस की ख़िलाफ़त का इनेक़ाद इस मुतालिबे के नतीजे में नहीं होगा बल्कि मुसलमानों की
बैअत की बिना पर होगा।
ऐसा अली बिन अबी तालिब (رضي الله عنه) की मर्तबा हुआ।
जब बाग़ीयों ने उसमान (رضي الله عنه) को शहीद कर दिया
तो पाँच रोज़ तक मदीना ख़लीफ़ा के बगै़र था। इन पाँच रोज़ तक ग़ाफक़ी बिन हरब मदीने का अमीर
था,
जो कि बाग़ीयों के सरदारों में से एक था। इन बाग़ी सरदारों ने
अली (رضي الله عنه) से दरख़ास्त की
कि वो ख़िलाफ़त की बाग दौड़ सँभाल लें। अली (رضي الله عنه) इन लोगों से इखतिराज़
करते थे। फिर अस्हाब-ए-रसूल अली (رضي الله عنه) के पास आए और
आप से कहा: “ ये साहिब यानी उसमान (رضي الله عنه) क़त्ल कर दिए गए
और लोगों का इमाम ज़रूर होना चाहिए, और उस वक़्त हम इस ओहदे के लिए किसी को आप से ज़्यादा हक़दार नहीं
समझते, किसी को आप पर फ़ौक़ियत हासिल नहीं और कोई आप (رضي الله عنه) से बढ़ कर रसूलुल्लाह
صلى
الله عليه وسلم से क़ुरबत नहीं रखता। “अली (رضي الله عنه) ने जवाब दिया:
“ऐसा मत करो क्योंकि में अमीर की निसबत वज़ीर बेहतर रहूँगा।“ लोगों ने कहा: “नहीं अल्लाह
(سبحانه وتعال) की क़सम हम ऐसा
नहीं करेंगे, और हम उस वक़्त तक नहीं जाऐंगे जब तक कि हम आप को बैअत ना दे दें।“ अली (رضي الله عنه) ने कहा : “फिर
ये बैअत अलल-ऐलान मस्जिद में होनी चाहिए क्योंकि में खु़फ़ीया तौर पर बैअत नहीं लेना
चाहता हूँ और चाहता हूँ कि ये लोगों की रज़ामंदी के साथ हो। “अब्दुल्लाह बिन अब्बास
(رضي الله عنه) ने बाद में बयान
किया: मैं अली के मस्जिद में आने को पसंद नहीं करता था क्योंकि मुझे ख़तरा था कि लोग
मसला खड़ा ना कर दें । लेकिन अली (رضي الله عنه) मस्जिद में जाने
पर मुज़िर थे।“ जब वो मस्जिद में दाख़िल हुए तो अंसार और मुहाजिरीन भी उन के पीछे दाख़िल
हुए और उन्होंने अली (رضي الله عنه) को बैअत दी। अगरचे बनी उमय्या और कुछ सहाबा इस बैअत
में शरीक ना हुए।
पस सहाबा (رضی اللہ عنھم) और मुसलमानों की ऐलानीया बैअत के नतीजे
में अली (رضي الله عنه) की ख़िलाफ़त का
इनेक़ाद हुआ और इस बैअत के नतीजे में मुसलमानों पर अली (رضي الله عنه) की इताअत करना
वाजिब हुआ। अगर हम अली (رضي الله عنه) की ख़िलाफ़त के
इनेक़ाद के लिए दी जाने वाली बैअत के वाक़ियात का बग़ौर जायज़ा लें तो ये बात वाज़िह हो
जाती है कि ये उस्लूब इन तीन असालीब से मुख़्तलिफ़ था जिस के ज़रीये साबिक़ा (पिछले)
तीन खल़िफ़ा को मुंतख़ब किया गया।
:5 जब रियासत-ए-ख़िलाफ़त मौजूद हो और उस की मजलिस-ए-उमत में,
मश्वरे और हुक्मरानों के मुहासबे के लिए,
उम्मत के नुमाइंदे मौजूद हों तो ये मजलिसे उम्मत के मुसलमान
नुमाइंदे,
उन लोगों में से ख़िलाफ़त के उम्मीदवारों को नामज़द करें जो इस
ओहदे की क़ाबिलीयत रखते हों और उन फ़र्ज़ शराइत पर पूरे उतरते हों जो ख़िलाफ़त के इनेक़ाद
के लिए लाज़िमी हैं।
जब मजलिस-ए-उमत के मुसलमान अराकीन (मेंबर) इस फ़हरिस्त की काँट छांट कर के उसे मुख़्तसर (छोटा) कर दें तो फिर मुसलमानों
के सामने इन उम्मीदवारों का ऐलान किया जाये, और इन उम्मीदवारों में से एक शख़्स के चुनाव के लिए तारीख़ मुक़र्रर
की जाये,
और फिर रियासत-ए-ख़िलाफ़त के दस्तूर में मुक़र्रर करदा तरीक़े
के मुताबिक़ मजलिस उम्मत में मौजूद मुसलमान अराकीन या फिर उम्मत बराह-ए-रास्त (सीधे
तौर पर) ख़लीफ़ा का चुनाव करे। वो उम्मीदवार जो उम्मत या मजलिस उम्मत के अराकीन के सब
से ज़्यादा वोट हासिल करे इस के नाम का ऐलान किया जाये जिसे फिर मजलिसे उम्मत बैअते
इनेक़ाद दे और फिर वो ख़लीफ़ा उम्मत से बैअत ले जो कि बैअत इताअत होगी।
मुसलमानों के लिए जायज़ है कि ख़लीफ़ा के तक़र्रुर के लिए वो इन पाँच असालीब में
से कोई भी उस्लूब इख्तियार करें, लेकिन ऐसा उस वक़्त होगा जब एक ख़लीफ़ा की वफ़ात हो जाये और मुसलमानों
की रियासत-ए-ख़िलाफ़त मौजूद हो और मुसलमान इस्लाम के साय तले ज़िंदगी गुज़ार रहे हों।
ताहम अगर मुसलमानों की रियासत-ए-ख़िलाफ़त और कोई ख़लीफ़ा मौजूद ना हो और उन पर कुफ्रीया
निज़ाम और क़वानीन नाफ़िज़ हों ,जैसा कि 1924 में ख़िलाफ़त की तबाही के बाद से आज तक मुसलमानों की सूरत-ए-हाल
है ,तो अगर मुसलमान या इन में से एक गिरोह या फिर मुसलमानों में
से अहल-ए-क़ुव्वत लोग, किसी एक या एक से ज़ाइद मुमालिक में सत्ता पर क़ब्ज़ा कर सकते हों
और ऐसे हुक्मरान को हटा सकते हों जो कुफ्र निज़ामों और क़वानीन के ज़रीये हुकूमत कर रहा
हो,
ताकि इस्लामी तर्ज़-ए-ज़िदंगी का नये सिरे से आग़ाज़ किया जा सके
और अल्लाह के नाज़िल करदा अहकामात के मुताबिक़ हुकूमत को बहाल किया जा सके;
तो ऐसी सूरत-ए-हाल में उन के लिए जायज़ है कि वो मुसलमानों में
से किसी एक शख़्स को तजवीज़ करें , जो इक़तिदार को सँभालने की सलाहीयत रखता हो और ख़िलाफ़त की शराएत-ए-इनेक़ाद
पर पूरा उतरता हो। और वह इस मुल्क में मौजूद तमाम अहले हल-ओ-अक़्द या उन की अक्सरियत
को जमा करें और जिस शख़्स को उन्होंने ख़िलाफ़त के लिए तजवीज़ किया है,
अहल हल-ओ-अक़्द से उस की बैअत करने का तक़ाज़ा करें,
पस वो उस शख़्स को मर्ज़ी और इख्तियार के साथ किताब-ओ-सुन्नत
पर बैअत दे दें। इस बैअत के नतीजे में उस की ख़िलाफ़त का इनेक़ाद हो जाएगा। फिर इस मुल्क
में बसने वाले मुसलमान उसे समा-ओ-इताअत की आम बैअत देंगे। इस के बाद ख़लीफ़ा पर लाज़िम
है कि वो बिला ताख़ीर इस्लाम का हमागीर और तुरंत निफाज़ शुरू करे।
इस तरह रियासत-ए-ख़िलाफ़त का दुबारा अहया (पुनर्जीवन) होगा और इस्लाम के क़वानीन और
निज़ाम अमल पज़ीर होंगे और वो मुल्क दारूल इस्लाम बन जाएगा।
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