➡ सवाल नं. (73): खिलाफत बैरूनी (विदेशी) मदद की कमी को कैसे पूरा करेगी?
- कई दहाईयों से बैरूनी (विदेशी) कर्जे़ आर्थिक विकास की तेज़ तरक्की के लिए आवश्यक समझे जाते रहे। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से तक़रिबन 2.3 ट्रिलियन डॉलर रक़म पश्चिमी देशों ने मदद के नाम पर या गरीबी दूर करने के नाम पर थर्ड वर्ल्ड देशों को दी है ।
- अक्सर यह इमदाद अंतराष्ट्रीय राजनीति में मित्र देश की मदद के लिए या उस देश में राजनीति अस्तितव पाने की नियत से दिये जाते हैं, जिससे बाद में मल्टीनेशनल कंपनियों को फायदा मिलता है।
- मीडिल ईस्ट और उत्तरी अफ्रीका पांच सौ मिलियन डॉलर की सालाना कमाई सिर्फ तेल से होती है। दर हक़ीक़त मुस्लिम देशों विदेशी कर्ज़ो की कोई ज़रूरत नही है ।
➡ सवाल नं. (74): क्या खिलाफत ज़मींदारी व्यवस्था को खत्म कर देगी जो इस वक़्त ज़्यादातर मुस्लिम देशों मे पाई जाती है?
- खिलाफत सभी ज़मींदारों को ज़मीन का इस्तिमाल करने के लिए नियमित करेगी । अगर इसे तीन साल के अर्से में इस्तिमाल नही किया जाता तो खिलाफत उसे अपने क़ब्जे़ में ले लेगी और दुबारा लोगों में बांट देगी ताकि वोह इस पर खेती-बाडी़ करें। यह पॉलिसी राज्य में कृषि को बढा़वा देने और ज़मीनों से ज़्यादा से ज़्यादा उत्पादन हासिल करने के मक़सद से लागू की जाएगी । इस तरह यह चीज़ सभी के फायदें में होगी ताकि इस तरह की कोई भी ज़मीन बेफायदा पडी़ रहे इस बात की ईजाज़त नही दी जायेगी।
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