खिलाफते राशिदा सानी (II) पर 100 सवाल (85-86)

➡ सवाल नं. (85): खिलाफत मुस्लिम सरज़मीनों पर अमरीका की दखलअंदाजी का जवाब किस तरह से देगी? 

  • इसके लिए खिलाफत उन सभी अमेरीकी उपकरणो और माध्यमो (Tools & Mediums) को खित्ते से साफ करेगी जो इंसानो कि शक्ल मे ऐजेंट है या उसकी मल्टीनेशनल कंपनियो कि शक्ल में, जो दरअस्ल अमेरीकी वर्चस्व को बाक़ी रखने में उसके सहायक और मददगार हैं।
  • जब से अमेरीका ने मुस्लिम सरज़मीनों मे हस्तक्षेप किया है, तब ही से उसने वहाँ अपना वर्चस्व क़ायम करने के लिए अपने एजेंट हुक्मरॉ को इस्तिमाल किया। उन्हें आर्थिक मदद के नाम पर या मिलिट्री सेल्स (Military Sales) के नाम पर (जिसमें वो किसी देश को हथियार बेचता है) अपना ग़ुलाम बनाया और वहां अपना प्रभाव बढ़ाया । इनमें से हर चीज़ को हटाया जायेगा, और इसके साथ ही हर जगह से उसके अस्रो रसूख को खत्म किया जायेगा।
  • यह काम खिलाफत पहली बार नही करेगी, बल्कि यह काम राशिया और चायना पहले ही कर चुके है। अमरीका के असरो रसूख को चायना और राशिया ने अपने इलाक़ो से इसी तरह खत्म किया है।
  • अरब दुनिया में, पूरी दुनिया का 70 प्रतिशत तेल और 50 प्रतिशत गैस पाई जाती है। आज यही चीज़ वह अपने एजेंट हुक्मरानों की ज़रिए हासिल कर रहा है मगर इन एजेंट हुक्मरानो के बाद, उम्म्त कि यह मिल्कियत खिलाफत के मातहत होगी।
  • चूंकि यह सभी चीज़े खिलाफत के अधीन होगी तो इस सूरत में खिलाफत जैसे ही इसका उत्पादन बंद या कम कर देगी तो इससे अमरिकी अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा धक्का लगेगा क्योंकि अमेरिका इन प्राकृतिक संसाधनो का इस वक़्त दुनिया का सबसे बड़ा उपभोकता है । इस तरह इन इलाक़ो के संसाधनो को रणनैतिक तौर पर इस्तिमाल करने से अमरीका का दबदबा कमज़ोर पड़ जायेगा।
  • जहॉ तक अमरीका की ताक़त की बात है तो यह महज़ एक सूराब (धोका) है जिसे खूबसूरत बनाकर दिखाया जाता है। क्योंकि अमरिका एक दशक गुज़र जाने के बाद भी अफगानिस्तान के फटे हाल लोगो को हराने में नाकाम है, और न ही खुद को एक बहुत बड़े रिसेशन (मन्दी/बहुत ज़्यादा मंहगाई और बेराजगारी फैल जाना) से निकाल पाने में क़ामयाब रहा है।
  • यहाँ तक कि वह भ्रष्ट अरब हुक्मरानों कि तरफ पलटा जिन्होंने उसकी अर्थव्यवस्था को इस वैश्विक वित्तीय संकट से बचाने के लिए 221 बिलियन डॉलर का चैक दिया। आज भी हुकम के इक्के मुस्लिम सरज़मीनों के पास है और जो अमरीका के गुलाम है, वोह मुस्लिम हुक्मरॉ है, जिनको हटाने के बाद अमरीका का अस्त्रो रसूख मुस्लिम सरज़मीनों से बिल्कुल गायब हो जायेगा।

खिलाफते राशिदा सानी (II) पर 100 सवाल

➡ सवाल नं. (86): अगर अमरीका ने खिलाफत पर हमला बोल दिया तो खिलाफत कैसे बचेगी?


  • बीते आखिरी दशक ने, यह न सिर्फ दुनिया को बल्कि उन अमेरिकीयों को भी दिखा दिया की सदैव फौजी कार्यवाहीयों पर निर्भर रहना, जैसा कि निओ कंज़रवेटिव ने किया, अमेरिकी फौज की फौजी क्षमता को कमज़ोर किया । इराक़ और अफ्गानिस्तान कि जंगो ने अमरीका कि कमज़ोरी को ज़ाहिर कर दिया है.
     
  • और यह भी बता दिया कि वह इन जंगो को लगातार लड़ते रहने के लिए वह मुस्लिम हुक्मरानो कि मदद का मोहताज है जिसके ज़रिए वोह हवाई अड्डे और सप्लाई लाइन हासिल करता हैं। यहाँ तक कि अफ्गानिस्तान में अमरिका उस तालिबान को हराने मे नाकाम रहा है जिसकी फौजी क्षमता अमरिका कि फौजी क्षमता से कई गुना कम है।
     
  • यह मुस्लिम हुक्मराँ खुशी खुशी अपने फौजी और हवाई अड्डे और वोह सभी ज़रुरी सामान अमरीका को मुहैया कराते है जो उसकी फौज को अफ्गानिस्तान और इराक़ कि जंग में युध्द रेखा पर चाहिए होते हैं।
     
  • खिलाफत, अपने ऊपर होने वाले किसी भी तरह के हमले की हर संभावना को कम करेगी । इसके लिए खिलाफत सभी मुस्लिम देशों को अपने अंदर ज़म करेगी (जोडे़गी), इस तरह अमरीका का मुकाबला एक छोटी सी रियासत के बजाए एक बहुत बडी़ रियासत से होगा।
     
  • यह रणनैतिक तौर पर फायदे मन्द है क्योंकि जब किसी बड़े देश पर कोई विदेशी ताक़त हमला करती हैं, तो विदेशी ताक़त के लिए उस इलाक़े पर अपना क़ब्ज़ा बरक़रार रखना बहुत मुश्किल होता हैं,
     
  • इसी तरह उस विशाल देश के लिए दुबारा उस इलाक़े को वापस पाना आसान होता हैं, जैसा कि यही बात अफगानिस्तान और इराक़ के मामले में सामने आई कि जितनी दूर सप्लाई लाइन होती थी अमरिकी फौज कि स्थिति उस क्षेत्र मे उतनी ही खराब होती थी क्योंकि अमरीका की फौजो तक सप्लाई लाईने पहुंचने में काफी समय लग रहा था जिसके कारण वोह उनसे जीत नही पाती थी।
     
  •  हमारे ज़हन में यह बात भी रहनी चाहिए कि अमरीका उन सभी फौजी बैसो और अड्डो को इस्तिमाल करता है जो उसे मुस्लिम हुक्मरानों ने मुहैया कराए हुए हैं। खिलाफत के आने से अमरीका को यह स्पलाई लाइन, फौजी अड्डे और सभी ज़रूरत के सामान नही मिलेगें, जिससे उसकी शक्ति मुतास्सिर होगी और वोह लड़ने योग्य नही रह सकेगा।
     
  •  खिलाफत बडे़ पैमाने पर हानि पहुंचाने वाले और सामूहिक विनाश करने वाले (Weapons Of Mass Destruction) हथियार पैदा करेगी। इस तरह अमेरिका को खिलाफत पर हमला करने से पहले हज़ार बार सोचना पड़ेगा क्योंकि उस हमले के रद्दे अमल में, उसे भी एक भारी हमले का सामना करना पड़ेगा। 
     
  • लीबिया पर दबाव डाला गया था कि वोह अपने न्युक्लियर हथियारो को छोड़ दे, जिसके बदले में उसे दुबारा अंतर्राष्ट्रिय समुदाय में शामिल कर लिया जायगा । हालांकि अफ्रीका का सबसे बड़ा तेल भन्डार रखने वाले इस देश पर पश्चिम कि पहले ही से नज़र थी, पश्चिम के इस मक़सद को मज़ीद तक़वियत पहुंचाते हुए, गद्दाफी ने इस सौदे को क़बूल किया और अपने इस हथियार (WMD) को पश्चिम के हवाले कर दिया। अगर लीबिया के पास यह न्युक्लियर हथियार (WMD) होते तो, पश्चिम इस इलाक़े में हमला करने से पहले दो बार सोचता।
     
  • खिलाफत के ज़ेरे-साए मुस्लिम देशो के मुत्तहिद होने से लोगो को संसाधनो और ज़मीनो (भूगोल) से फायदा मिलेगा। एक मुत्तहिद मुस्लिम दुनिया अमरिका, यूरोपीय संघ और विकास की प्रगति पर चल रहें इंडिया, चायना, और रूस जैसे देशों से बेहतर और उनसे मुक़बला करने मे सक्षम होगी ।

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