➡ सवाल नं. (87): क्या खिलाफत के इज़रायल के साथ सम्बन्ध होगें?
- इज़रायल ब्रिटेन द्वारा स्थापित कि गई वोह रियासत है जिसे ब्रिटेन ने मुस्लिम दुनिया को बांटॆ रखने और मुस्लिम दुनिया को कभी न खत्म होने वाली जद्दोजहद में झोकनें कि नीति के तहत उनके दर्मियान मुसल्लत किया हुआ है। यानी इज़रायल के ज़रिए ब्रिटेन, मुस्लिम रियासतों के गलो में नुकेल डालकर अपने मातहत रखने और खुद मुसलमानो को आपसे में गृहयुद्ध लड़वाते रहने के पीछे आलाकार है।
- जितना पश्चिम इज़रायल की हथियारों से मदद करता गया और उसे ताक़तवर बनाता गया, उतना ही वोह अपनी ‘अनिर्धारित’ बॉडर्स बढा़ता चला गया, उसने आज तक अपनी बॉडर्स निर्धारित नही की है। और ना ही आज तक इज़रायल और पश्चिमी दुनिया उम्मते मुस्लिमा को इस बात के लिए राज़ी कर पाई है कि वोह इज़रायल के जायज़ होने को कबूल कर लें।
- इस्लामी लिहाज़ से इज़रायल एक दारुल हरब है, (वोह रियासत है जिससे खिलाफत जंग की हालत में रहेगी) इज़रायल का क़ब्ज़ा लगातार जारी है इसलिए खिलाफत उससे हक़ीक़ी जंग की हालत में होगी और इस क़ब्जे़ से मुस्लिम सरज़मीन को दुबारा आज़ाद (पुन:स्वतंत्र) करेगी।
- मुस्लिम हुक्मरानों के आपसी गठजोड़ ने ही इज़रायल को अब तक बाक़ी रखा है जिसके लिए वो एक दूसरे की हर तरीक़े से मदद करते है और उसे सप्लाई लाईन मुहैया कराते हैं, और इस तरह खिलाफत के आने से जब यह सप्लाई लाईन टूट जाएगी तो खिलाफत बिना किसी मुश्किल के इस क़ब्ज़े को खत्म करेगी।
➡ सवाल नं. (88): क्या खिलाफत दूसरे मुस्लिम देशों को तस्लीम करेगी और क्या उन्हें मान्यता देगी?
- खिलाफत सभी मुस्लिम देशों को अपना हिस्सा मानती है और खिलाफत उन्हें एक करने के लिए काम करेगी। यही चीज़ मुसलमानों में इत्तिहाद पैदा करेगी, उन्हें सुरक्षा देगी और आलमी पैमाने पर उनकी हिफाजत करेगी यह इसलिए ताकि मुस्लिम क़ौम खुद को एक खिलाफत की घरेलू पॉलिसी के हिस्से के तौर पर देखे न कि अलग अलग हिस्से के तौर पर।
- उम्मते मुस्लिमा को आलमी पैमाने पर खबर की जायेगी कि उनका कोई लीडर है जिसे खलीफा कहते है, इसके साथ ही खिलाफत उस हालत को पाने के लिए तेज़ी से काम करेगी, जिसमें उम्मत का हर फर्द (व्यक्ति) खलीफा कि ज़िम्मेदारी के अन्दर आ जाए यानी एक भी फर्द उसकी ज़िम्मेदारी के दायरे से बाहर न हो। इस तरह खिलाफत मुसलमानों पर किसी क़िस्म के हमले कि सूरत में हस्तक्षेप करेगी और इस ताल्लुक़ से जोगराफाई (भूगोलीय) सरहदो को कोई अहमियत नही दी जायेगी यानी जहॉ भी मुसलमान बसेगें, उनके मफाद की खिलाफत रक्षा करने की कोशिश करेगी चाहे वोह उसका हिस्सा ना भी हो तब भी।
- मुस्लिम दुनिया के मोजूदा हुक्मरानों को बताया जायेगा कि वह अपने हुक्मरानी के पद को त्याग दे क्योंकि इस्लाम तमाम मुसलमानों पर सिर्फ एक हुक्मरॉ की ईजाज़त देता है, उन्हें इस बात की खबर दी जायेगी कि खिलाफत बहुत जल्दी उनके मुल्को को अपने में ज़म (जोड़) कर लेगी चाहे वोह अपना औहदा छोड़ या ना छोडे़, और यह सब लोगों को बताकर, सार्वजनिक अन्दाज़ में किया जायेगा। जिसका मक़सद दुनिया के सभी मुसलमानों को मुखातिब करना (जिसमें सभी रंग, नस्ल, और भाषा के बोलने वाले शामिल है) और उनसे इताअत हासिल करना होगा ।
- खिलाफत वजूद में आते ही मुस्लिम दुनिया में राज्य की हुक्मरानी से सम्बन्धित, हुकूमत चलाने वाली सिविल संस्थाओं को अपने अधीन लेगी, जिसमें खास तौर पर चार हुक्मरानी के पद आतें है। जैसे राज्य का प्रधान यानी खलीफा, उसके दो प्रतिनिधि व सहायक (Delegated Assistants), मुख्य क़ाज़ी और गवरनर्स (राज्यपाल) यानी उन सभी मुख्य औहदो को जिनसे हुकूमत (सरकार) चलाई जाती है, खिलाफत अपने अधीन लेकर अपने हिसाब से वहॉ लोगों को नियुक्त करेगी और वहॉ सिर्फ उन्हीं लोगों को नियुक्त करेगी जो इस्लामी निज़ामें हुक्मरानी को अच्छी तरह समझते हो, इस पर ऐतमाद (ईमान) रखते हो और इसी के मुताबिक जिनकी तर्बियत हुई हो।
- इसके अलावा बाक़ी 95 प्रतिशत पदो को हटाया नही जायेगा बल्कि वो वैसे ही रहेगें सिर्फ उन्हें इस्लाम लागू करने की पॉलिसी दी जायेगी। और यह पॉलिसी भी इस्लाम से अखज़ शुदा (प्राप्त) होगी।
- इंशा अल्लाह, खिलाफत अपनी आर्थिक पॉलिसीज़ (नीतियों) की ज़रिए बहुत जल्द विकसित होगी और बहुत जल्द अपने इत्तेहाद और आर्थिक तरक्की के ज़रिए उम्मत को मुतास्सिर करेगी और इस्लाम दुश्मनों की तरफ से दी जाने वाली ऐसी दावतों से रोका जायेगा जो उम्मत को खिलाफत का हिस्सा बनने से रोकेगी।
- खिलाफत तरक्की और विकास करके ऐसी छवी बनायेगी ताकि खिलाफत के विरोद्ध किये जाने वाले प्रोपगण्डे को रोका जा सके और यह खिलाफत दुनियाभर के देशों के लिए एक मज़बूत खिलाफत और ताक़तवर चुम्बक की तरह होगी जो कि खिलाफत के नज़रियात की तरफ और उसकी व्यवस्था की तरफ मुतास्सिर होगें और उसके दायरे में आते चले जायेगें, चाहे मुस्लिम हो या गै़र-मुस्लिम हो।
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