[बयान | राय शुमारी | रिपोर्ट ]
यह दस्तावेज़ खिलाफत के विषय से समबन्धित बयान और राय शुमारी का मजमुआ है
राजनैतिक कमेंट्स:
यह दस्तावेज़ खिलाफत के विषय से समबन्धित बयान और राय शुमारी का मजमुआ है
राजनैतिक कमेंट्स:
राजनैतिक कमेंट्स:
टोनी ब्लेयर Tony Blair (भूतपर्व ब्रिटिश प्रधान मंत्री) ने एक राष्ट्रीय सभा से भाषण देते हुये कहा: “तुम्हारा सामना एक शैतानी आयडियोलोजी से है. वोह चाहते है की इस्राईल का खात्मा हो जाये, लोगों और हुकूमतों के जज़बात का ख्याल किये बिना वोह चाहते है की मुस्लिम देशो से पश्चिम के लोग लौट जायें. और वोह तालिबानी रियासत क़ायम करना चाहते है. और वोह सारे मुस्लिम ममालिक में एक ख़िलाफत के ज़रिये पूरी अरब दुनिया में शरीअत को लागू करना चाहते है”.
चाल्स क्लार्क Charles Clarke (ब्रिटिश होम सेक्रेटरी), ने 5 अक्तूबर, 2005, को दहशतगर्दी के खिलाफ जंग के विषय पर हेरिटेज फाउंडेशन, अमरीकी थिंक टेंक के एक संस्थान में भाषण देते हुये कहा: इन लोगों को जो चीज़ हरकत में लाती है वोह है इन का अक़ीदा (idea) है. दूसरे आज़ादी के आन्दोलन की तरह जो द्वितीय विश्व युद्ध में शुरू हुऐ थे, यह लोग सियासी विचारधारा जैसे उपनिवेशवाद से आज़ादी मांगने वाले लोगों की तरह नहीं है, ना ही यह तमाम शहरियों के लिये बिना किसी नसली और अक़ीदे (आस्था) की बुनियाद पर बराबरी चाहते है या यह की अभिव्यक्ति की आज़ादी (freedom of expression) चाहते हो. ऐसी महत्वकांशा रखने वालों की माँगें तो किसी क़ाबिल थी बल्कि उन से बात करके उसका हल निकाला गया. हालांकि खिलाफत की स्थापना पर कोई वार्तालाप और बात नहीं की जा सकती. शरीअत के लागू करने के सम्बन्ध मे कोई गुफ्तगू नहीं कि जा सकती, दो जिंसो (लिंग भेद) के दर्मियान बराबरी के मामले में कोई समझौता नहीं किया जा सकता. यह मूल्य हमारी सभ्यता में बुनियादी अहमियत रखते है जिन पर कोई गुफ्तो-शनीज़ नहीं की जा सकती.
लार्ड करज़न Lord Curzon, 1924 में ब्रिटिश विदेश सेक्रेटरी, ने ख़िलाफते उस्मानिया के खात्मे के बाद इन शब्दो में अपनी राय का इज़हार किया था: “आज सब से अहम नुक्ते की बात यह है की तुर्की (उस्मानी खिलाफत) खत्म हो चुका है, जो अब दोबारा ज़िन्दा नहीं होगा क्योंकि हमने उस की रूहानी ताक़त यानी खिलाफत और इस्लाम को खत्म कर दिया है”
लार्ड करज़न Lord Curzon: एक और मौके पर खिलाफते उस्मानिया के खात्मे के बाद, हाउस ऑफ कामंस से खिताब देते हुये खिलाफत की अहमियत को वाज़ेह कर दिया: "आज सूरते हाल यह है की तुर्की खत्म हो चुका है और दोबारा नहीं उठेगा क्योंकि हम ने उसकी नैतिक क़ुव्वत, यानी ख़िलाफत और इस्लाम को बरबाद कर दिया है”.
“हमें हर उस चीज को खत्म कर देना है जो मुसलमान के बेटों के दर्मियान इत्तेहाद पैदा करें जैसे की हम पहले ही खिलाफत को खत्म करने में कामयाब हो चुकें है. हमें इस बात को यक़ीनी बनानी चाहिये की मुसलमानों में फिर कभी कोई इत्तेहाद पैदा न हो, चाहे यह इत्तेहाद फिकरी (वैचारिक) या तहज़ीबी (सांस्कृतिक) ही क्यों न हो.
सर केम्पबेल बेन्नरमेन, बरतानिया के प्रधानमंत्री (1905-08)
“........ऐसे कुछ लोग है जिन के क़ाबू मे बहुत बडी रियासतें है; जिन मे ज़ाहिर और छुपे हुये वसाईल (संसाधन) हैं. दुनिया की खास रास्ते उन (के इलाक़ो) से हो कर गुज़रते है. उनकी सरज़मीने तहज़ीब और मज़हब का गहवारा रही है. इन लोगों का एक ही अक़ीदा, एक भाषा, और एक जैसी ही उम्मीदें है. किसी भी तरह की क़ुदरती रूकावटे इन लोगों को एक दूसरे से अलग नहीं कर सकती......... अगर कभी इत्तेफाक़ से यह क़ौम एक रियासत मे मुत्तहिद हो गई, तो यह दुनिया की तक़दीर अपने हाथों मे ले लेगी और यूरोप को पूरी दुनिया से काट देगी. इन बातो पर संजीदगी के साथ ग़ौर करते हुए, (यह लाज़मी हो जाता है) की एक विदेशी वजूद इस क़ौम के बीच मे बिठा दिया ताकि यह कभी अपने परों को न समेट सके और यह अपने ताक़त कभी न खत्म होने वाली जंगों मे ज़ाया करती करती रहे. यह मग़रिब के लिये भी उन चीज़ो को पाने का वसीला होगा जिसका वोह लालच रखता आया है.” 1902
लार्ड ज़ेटलेंड [मार्च 24, 1940, मुस्तमराती हिन्दुस्तान मे बरतानिया के सेक्रेटरी British Secretary of State for the colonial India]
“इस्लाम की पुकार ऐसी है जो देशो की सरहदो की रूकावट से परे है. हालांकि इसने अपनी ताक़त मुस्तफा कमाल पाशा के ज़रिये खिलाफत के खात्मे से खो दी है, लेकिन इसमे आज भी अच्छी खासी कशिश मौजूद है. मिसाल के तौर पर जिन्नाह की तरफ से इस बात पर इसरार की हम इस बात का वादा करें की भारतीय फौज कभी भी किसी मुस्लिम देश के खिलाफ न इस्तेमाल होने दी जाये और उसका (जिन्नाह का) लगातार फिलिस्तीनी अरबो के लिये बेचेनी का इज़हार.”
अमरीकी सदर बुश
“तशद्दुद पसन्द यह समझते है की किसी एक मुल्क पर क़ाबू पा कर वोह सारी मुस्लिम दुनिया को अपने पीछे कर लेंगे, और इस तरह वोह इस क़ाबिल हो जायेंगे की इन इलाक़ो की एतदाल पसन्द (moderate) रियासतों का तख्ता पलटने मे कामयाब हो जायेंगे, और एक ऐसी बुनियाद-परस्त (radical) रियासत क़ायम करेंगे जो स्पेन से लेकर इन्डोनेशिया तक फैली होगी”.
“इस्लामी बुनियाद-परस्तों की क़ातिलाना मब्दा (आइडियोलोजी) हमारी इस नई सदी के लिये बहुत बडा चेलेंज है. हांलाकि यह जंग कई तरह से पिछली सदी के कम्यूनिस्टो के खिलाफ संघर्ष से मिलती जुलती है”.
डिक चेनी (अमरीका के नायब सदर, सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) मे तक़रीर करते हुए, फरवरी 2007)
“ .........और ये है वोह, दहशतगर्द, जो रियासत (क़ायम करने) की आरज़ू रखते है. बडे मश्रिक़े वुस्ता (Middle East) मे इनका मक़सद किसी एक मुल्क को अपने क़ब्ज़े मे लेना है, ताकि उन्हे कोई मरकज़ हासिल हो जाये जहाँ से उन हुकूमतों पर हमले कर सकें जो इनकी मांगे पूरी करने से इंकार करती हो. उन सबसे बडा मक़सद, जिसका वोह खुले मे दावा करते है, खिलाफत को क़ायम करना है जो स्पेन, शिमाली अफ्रिक़ा से गुज़रती हुई मश्रिके वस्ता और जुनूबी ऐशिया, और इससे आगे इंडोनेशिया के इलाक़े तक पहुंचती हो. और वोह यही पर नहीं रुकेगी.
.......दहशतगर्दी के खिलाफ जंग सिर्फ हथियारो के मुक़ाबले से ज़्यादा है और यह इरादे की जंग से भी ज़्यादा है. यह अफकार की जंग है .................”
“डोनाल्ड रम्सफील्ड
(अमरीका के वज़ीरे दिफा, दिसम्बर 5, 2005) जोन होपकिंस के पौल निट्ज़ स्कूल ऑफ ऐडवांस स्टडीज़ की एक तक़रीर को मुखातिब करते हुए कहते है: “इराक़ नई इस्लामी खिलाफत के लिये बुनियाद बन सकता है जो मश्रिके वस्ता (Middle East) तक फैलती होगी और जो यूरोप, अफरीका और ऐशिया की जाईज़ हुकूमतों के लिये एक खतरा होगी. इन का यह मंसूबा है. उन्होने ऐसा कहा है. हमसे बहुत बड़ी ग़लती होगी अगर हम सुनने और सीखने में ग़लती करेंगे.”
ऐडरिक ऐडमेन
”......... तो मै समझता हूँ की हमें इस मामले मे बहुत साफ रहना चाहिये. इराक़ का मुस्तक़बिल या तो दहशतगर्दों का हौंसला बढा देगा और खिलाफत को दोबारा क़ायम करने मे उनकी क़ाबलियत बडा देगा या फिर उन्हे बहुत बडा धक्का देगा. इसलिये हमारे लिये इराक़ मे नाकाम होना जैसा कोई विकल्प नहीं है.”
जनरल जॉन अबीज़ेद
अमरीकी क़ानूनसाज़ो को खिताब करते हुए उसने कहा: “अल-क़ायदा दहशतगर्द मश्रिके वुस्ता मे अमरीका के प्रभाव को खत्म करने की कोशिश करते है और सऊदी अरेबिया मे एक आलमी मुस्लिम क़यादत को क़ायम करने की कोशिश करना चाहते है................ अगर अल-क़ायदा के दहशतगर्द सऊदी अरब पर क़ाबू पाने मे कामयाब हो गये तो वोह उस खित्ते मे अपना असर बढाने की कोशिश करेंगे और खिलाफत क़ायम कर लेंगे.”
अबीज़ेद न कहा: “फिर शरीअत की ‘बहुत तंग’ तश्रीह के नाफिस करने की तरफ बढेंगे, इस्लामी क़ानून की ऐसी तश्रीह जिस पर न लोग इमान रखते है न ही आज के दौर मे उस पर कहीं अमल किया जाता है..................... उसका अगला मक़सद गैर-अरब इस्लामी देशो मे फैलाना होगा. इसमे मध्य अफ्रीक़ा, उत्तरी और पूर्वी ऐशिया होगा”.
एक दूसरे मौक़े पर जॉन अबीज़ेद ने कहा, “हम एक बहुत क़ाबिले नफरत दुश्मन से लड रहे है.................. जो की 7 वी सदी की जन्नत के नज़रिये को फैलाने के लिए 21 वी सदी की आधुनिक टेक्नोलोजी इस्तेमाल करते है और कोशिश करते है पैगम्बर मुहम्मद के ज़माने की उस इस्लामी हुकूमत को बनाने की जिसे वोह असली और खालिस समझते है.”
जनरल रिचार्ड मेयर्स
पेंटागन की एक न्यूज़ कांफ्रेंस को खिताब करते हुए ज़ोर दिया की “अगर उस इलाक़े के ज़रकाबियों को उनके अपने नज़रिये के मुताबिक़ कामयाब होने दे दिया जाये, तो वोह जिस खिलाफत का तसव्वुर करते है, उसकी शुरूआत होगी. और उस इलाके के लिये यह एक बहुत बडा खतरा होगा.”
हेनरी कीसिन्जर
एक इंटरव्यू मे जब उन से पूछा गया, “आपकी राय मे इस दौर का सबसे बडा खतरा क्या है?” उन्होने जवाब दिया, “सबसे पहले तो अमरीका मे होने वाली दहशतगर्दी, लेकिन हक़ीक़त मे वोह (खतरा) बुनियाद परस्त (radical) इस्लाम का सेक्यूलर दुनिया के खिलाफ विद्रोह है, और लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ एक तरह की खिलाफत का क़याम करके. और यह “ऐतदाल पसन्द” (moderate) इस्लाम के भी उतना ही खिलाफ है जितना की ग़ैर-इस्लामी समाज के.”
पेटरिक जे. बचनन:
इसने वाईट हाउस मे अमरीका के तीन सदर के मातहत काम किया है. “अगर इस्लामी हुकूमत एक फिक्र है जो की मुस्लिम आबादी मे जड पकडता जा रहा है, तो किसी दुनिया की बहतरीन फौज इसे रोकेगी? क्या हमे एक नई पॉलिसी की ज़रूरत नही है.”
व्लादिमिर पुतिन, रूस के राष्ट्रपति
रूस के सदर ने यूरोपी यूनियन के ब्रूसेल्स मे एक इजलास के कहा की मग़रिबी तहज़ीब को मुस्लिम दहशतगर्दो की तरफ से घातक खतरा है और उनका “आलमी खिलाफत” बनाने का मंसूबा है. “.......................... रूस की संघिय हुकूमत की रियासत पर खिलाफत बनाना तो उनके मंसूबे का सिर्फ एक हिस्सा है. दरहक़ीक़त अगर आप हालात पर निगाह रखे हुए हो, तो आप अच्छी तरह से समझ जाओगे की बुनियाद परस्त इससे भी बडा मंसूबा रखते: वोह आलमी खिलाफत के क़याम की बात कर रहे है ...................”
वाशिंगटन पोस्ट
वाशिंगटन पोस्ट मे एक मज़मून छपा जिसका टाईटल था “ ”. इस मज़मून ने इस बात पर बहस की के इस तरह की दावत (खिलाफत की) बुनियाद परस्त नहीं है न ही यह इस्लामी गोरिल्ला आन्दोलनो के उद्देश्यो के मिलती है.
दहशतगर्दी – दहशतगर्दी के खिलाफ जंग से फिक्री जंग तक (by David Lazarus)
: ...............जिहादियों के छुपे हुऐ यक़ीन (नीयत) के पीछे इन (मुस्लिम) रियासतों मे सख्त इस्लामी क़ानून का दोबारा क़याम और निफाज़ दिखाई देता है जिससे तमाम मुसलमानों के लिये एक इंसाफ पसन्द (न्यायपूर्वक), शुद्ध, और सम्पूर्ण समाज का रहस्यमयी अन्दाज़ मे जन्म होगा. खास तौर से मश्रिके वुस्ता मे इस नज़रिये की तरफ झुकाव देखा जा सकता है. और कोई भी अरब समाज के ज़्यादातर शोबो मे जदीदियत (modernism) के आम तौर से नाकामयाब होने का मुशाहिदा करके (इसके कारण को) आसानी से समझ सकता है. हालांकि की किसी भी तरह के इस्लामी इंक़लाब को आमरियत की तानाशाही (authoritarian dictatorship) के ज़रिये रोका जा रहा है, जैसा की मिस्र और सऊदी अरब मे हो रहा है.
पीटर कोस्टेलो (भूतपूर्व ऑस्ट्रेलियाई वज़ीरे खज़ाना), 2006, ऑस्ट्रेलियन क्रिस्चन लॉबी:
“ऐसे कई देश हैं जो की धर्मप्रधान (theocratic) देश है, जैसे की इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ इरान, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफग़ानिस्तान, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ मोरिटेनिया वग़ैराह. कुछ ऐसे भी देख हैं जो शरीअत का क़ानून लागू करते है – जैसे किंगडम ऑफ सऊदी अरेबिया, लेकिन बुनियाद परस्त इस्लामिस्टो को यह काफी नही. उनक नज़रिया ऐसी खिलाफत का है जो पूरे मश्रिक़े वुस्ता मे फैली होगी और उन सभी हुकूमतों को गिरा देगी जिन्हे वोह भ्रष्ट राज्य मानते है उसकी जगह इस्लाम का ज़्यादा ‘खालिस’ (शुद्ध या pure) वरज़न लाना चाहते है. हमारे अपने इलाक़े मे जमाहे इस्लामिया की महत्वकांक्षा एक खालिस इस्लाम पसन्द राज्य (pure Islamic state) बनाने की है जो नीचे तक फैला हुआ हो और फिलीपींस, मलेशिया और इंडोनेशिया को अपने दायरे मे लेता हो.”
ऐलेक्ज़ेंडर डाउनर, 2006, सेंटर फॉर मुस्लिम स्टेट्स एन्ड सोसाईटी (UWA)
”दहशतगर्द जो चाह रहे है हमे इस बात पर अपना मौक़फ बिल्कुल साफ रखना चाहिये. हमे फसीह और बलीग़ बातों को एक तरफ रख कर अपना तवज्जोह इस बात की तरफ केन्द्रित करनी चाहिये की वोह किस तरह की दुनिया है जिसे यह बनाना चाहते है. इनका मक़सद एक नई शिद्दत पसन्द खिलाफत मुस्लिम दुनिया मे बनाना है – तालिबान के तर्ज़ पर एक मज़हब-पसन्द (धर्म-प्रधान देश या theocratic state) देश. शिमाली मश्रिक़ी (south east) ऐशिया से यें मग़रिबी असरात को बाहर निकाल देना चाहते है और एक ऐसी बुनियाद परस्त हुकूमत बनाना चाहते हैं जो इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलेंड और जुनूबी फिलीपींस तक फैली होगी. यह लोग मश्रिके वुस्ता के लिये भी यही चाहते है. ऐक ऐसी खिलाफत जो कोकाज़ (Caucuses) से शिमाली अफ्रिका तक फैली हो. ये इन मुमालिकों मे जम्हूरियत (लोकतंत्र) से छुटकारा पाना चाहते है और उसकी जगह ऐसी खालिस हुकूमत लाना चाहते है आज़ादिये फर्द (freedom of individual) की इजाज़त नहीं देती. इस मब्दे (ideology) को समझने के मामले मे कुछ भी पेचीदगी नहीं है. इस्लामी क़ानून की बिग़डी हुई तश्रीह, जिसमे मुख्तलिफ लोगों के एक साथ रहने की कोई जगह नहीं.
खिलाफत के खात्मे पर
अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और मुस्लिम लीग के सय्यद अमीर अली, ‘द टाईम्स’ अखबार के 5 मार्च, 1924, के इशू मे लिखते है: “हिन्दुस्तान के मुसलमानों के ज़हनो पर खिलाफत के खात्मे के असरात का सहीह अन्दाज़ा लगाना बहुत मुश्किल होगा. लेकिन मै यह यक़ीन के साथ कह सकता हूँ की यह इस्लाम और इस्लामी तहज़ीब के लिये तबाहकुन साबित होगा. उस बाइज़्ज़त इदारे का खात्मा जिसे पूरी दुनिया मे इस्लामी इत्तिहाद का निशान माना जाता है, इस्लाम को उसकी अखलाक़ी कुव्वत के लिहाज़ से तोड देगा. इसने 250 इमानवाले सुन्नी समाज को एक समान आदर्श से जोड रखा था. ”
रिपोर्ट और पोल्स (राये शुमारी)
अमरीकी थिंक टेंक
दिसम्बर 2004 मे नेश्नल इंटेलिजेंस कॉंसिल (NIC) ने एक रिपोर्ट ‘न्यू केलिफेट’ के नाम से सन 2020 तक एक मुमकिनाना मंज़रनामा (scenario) बयान किया है. यह 123 पेज की रिपोर्ट जिसका टाईटल ‘मेपिंग द ग्लोबल फ्यूचर’ है, ने बुश प्रशासन को आने वाले मुस्तक़बिल मे तैयार रहने के लिये लिखा गया है और जिस मे अमरीकी सदर, कांफ्रेंस के मेम्बर, केबिनेट मेम्बर्स और पॉलिसी बनाने वाले महत्वपूर्ण अफसरों को मुखातिब किया गया है. CSIS (Center for Strategic and International Studies) (जो की वाशिंगटन मे स्थित थिंक टेंक है), इस रिपोर्ट को एक भविष्यवाणी नही बल्कि केस स्टडी (रिसर्च) मानता है जिसमे दुनिया भर मे होने वाले कई वाकियात (धटनाओं) का बारीकी से मुशाहिदा किया गया है. फिर इन धटनाओं को आपस मे जोड कर इस बात की सम्मभावना को ज़ाहिर किया है की एक रियासते खिलाफत का क़याम अमल मे आ सकता है.
इस बात को फर्ज़ करते हुए की इस तरह की रियासत अगर वजूद मे आ गई तो यह बात आज ही से तय करने की ज़रूरत है की इसे रोकने के लिये क्या करना चाहिये, अगर इसे रोकने की ज़रूरत है. इसके अलावा ऐसे दो संघठन है जिन्होने इस स्टडी को किया है, पहला CIA और दूसरा शेल (Shell Oil Company) ऑयल कम्पनी है.
नेशनल स्ट्रेटजी फॉर कॉम्बेटिगं टेररिज़्म (National Strategy for Combating Terrorism (NSCT)) [इस स्ट्रेटजी के वरज़न का अभी वर्गीकरत नहीं किया गया और इसकी शुरूआत 11 सितम्बर, 2001 से हुई है. इसका पहला इजरा फरवरी 2003 मे किया गया, इसको दुश्मन की फिरतरत के बदलते रहने के कारण इसमे इज़ाफा किया गया ]
“...........वोह किसी मुल्क को एक मर्कज़ (बुनियाद) के तौर पर इस्तेमाल करेंगे और वहाँ से दहशतगर्दी फैलाने की शुरूआत करेंगे/ इस केन्द्र से वोह मश्रिके वुस्ता (Middle East) को अस्थिर बना सकेंगे और अमरीका और दूसरे स्वतंत्र देशो पर तशद्दुद के साथ हमला करेंगे. इसकी हम इजाज़त नहीं दे सकते............. ”.
वर्ल्ड पब्लिक ओपिनियन रिपोर्ट (अप्रेल 24, 2004)
“ज़्यादातर (मुस्लिम) देशों की अक्सिरियत शरीअत के सख्त निफास के मक़सद का समर्थन करती है. मग़रिबी मूल्यों (values) को दूर रखना, और सारे इस्लामी देशो को एक इस्लामी राज्य मे मुत्तहिद करने का समर्थन करती है.”
द पीयू ग्लोबल प्रोजेक्ट (14 जुलाई, 2005)
पाकिस्तानी (79%), मराकश (70%) और उरदुन (63%) के ज़्यादातर शहरी अपने आप को पहले मुस्लिम की हैसियत से अपनी पहचान देखते है. यहाँ तक की तुर्की, जहाँ की तहज़ीब ज़्यादा सेक्यूलर है, के 43% लोग अपने आप को सबसे पहले मुस्लिम होने की अपनी पहचान बताते है और न की अपनी क़ौमी पहचान (nationalistic identity). इंडोनेशिया के लोग थोडे से बटे हुये हैं; 39% पहले अपने आप को मुस्लिम बताते है, 35% इंडोनेशियन और 26% दोनों. लेबनान मे (यह सबाल इसाईयों से नहीं किया गया) 30% मुस्लिम कहते है की वह अपनी पहचान इस्लाम से देखते है न की लेबनानी की हैसियत से.
एक सर्वे के मुताबिक मुस्लिम अक्सिरियती देशों की बहुत बडी अक्सिरियत यह सोंच रखती है की इस्लाम उससे बहुत बडा किरदार अदा कर सकता है जैसा की उसका अभी है. मोरक्को के 84% मुस्लिम, जोरडन (उरदुन) के 73%, पाकिस्तान के 70% और इंडोनेशिया के 64% मुस्लिम यही राय रखते है. यहाँ तक की लेबनान और तुर्की जैसे मुल्कों की भी अच्छी मुस्लिम तादाद इसका समर्थन करती है.
पॉलिसी ऐक्सचेंज
एक खास सर्वे के मुताबिक मुस्लिम नौजवान सियासी इस्लाम से ज़्यादा प्रेरित हैं. 16-24 साल के तक़रीबन 37 प्रतिशत ब्रिटिश मुस्लिम, ब्रिटिश क़ानून की बजाये इस्लामी शरीया क़ानून के तहत रहना चाहते है.
हवालाजात:
Tony Blair: http://www.epolitix.com/EN/News/200507/5cae2365-f920-47d4-b91c-968adfe8ecaa.htm
Charles Clarke: http://www.hizb-ut-tahrir.info/english/leaflets/2005/oct1105.htm
Bush: http://www.presidentialrhetoric.com/speeches/10.06.05.html
Dick Cheney: http://www.whitehouse.gov/news/releases/2007/02/20070223.html
Donald Rumsfeld http://www.sais-jhu.edu/mediastream/rumsfeld_qa.ram
Eric Edelman: http://www.cfr.org/publication/9342/
Henry Kissinger: Hindustan Times Interview with Henry Kissinger, Nov 2004
Patrick J. Buchanan: http://www.antiwar.com/pat/?articleid=9192
Putin: http://www.telegraph.co.uk/news/main.jhtml?xml=/news/2002/11/12/wput12.xml
http://www.eubusiness.com/Russia/96062/
The Washington Post: http://www.washingtonpost.com/wp-dyn/content/article/2006/01/13/AR2006011301816.html
Terrorism - From a War on Terror to a War of Ideas by David Lazarus
http://www.army.gov.au/LWSC/Publications/journal/AAJ_Summer_05_06/lazarus_ideas_AAJ_Summer_05_06.pdf
NIC Report: http://www.foia.cia.gov/2020/2020.pdf
NSCT: http://www.whitehouse.gov/nsc/nsct/2006/sectionV.html#control
World Public Opinion Report: http://www.worldpublicopinion.org/pipa/pdf/apr07/START_Apr07_rpt.pdf
The Pew Global Attitudes Project: http://pewglobal.org/reports/pdf/248.pdf
Policy Exchange: http://www.policyexchange.org.uk/images/libimages/243.pdf
टोनी ब्लेयर Tony Blair (भूतपर्व ब्रिटिश प्रधान मंत्री) ने एक राष्ट्रीय सभा से भाषण देते हुये कहा: “तुम्हारा सामना एक शैतानी आयडियोलोजी से है. वोह चाहते है की इस्राईल का खात्मा हो जाये, लोगों और हुकूमतों के जज़बात का ख्याल किये बिना वोह चाहते है की मुस्लिम देशो से पश्चिम के लोग लौट जायें. और वोह तालिबानी रियासत क़ायम करना चाहते है. और वोह सारे मुस्लिम ममालिक में एक ख़िलाफत के ज़रिये पूरी अरब दुनिया में शरीअत को लागू करना चाहते है”.
चाल्स क्लार्क Charles Clarke (ब्रिटिश होम सेक्रेटरी), ने 5 अक्तूबर, 2005, को दहशतगर्दी के खिलाफ जंग के विषय पर हेरिटेज फाउंडेशन, अमरीकी थिंक टेंक के एक संस्थान में भाषण देते हुये कहा: इन लोगों को जो चीज़ हरकत में लाती है वोह है इन का अक़ीदा (idea) है. दूसरे आज़ादी के आन्दोलन की तरह जो द्वितीय विश्व युद्ध में शुरू हुऐ थे, यह लोग सियासी विचारधारा जैसे उपनिवेशवाद से आज़ादी मांगने वाले लोगों की तरह नहीं है, ना ही यह तमाम शहरियों के लिये बिना किसी नसली और अक़ीदे (आस्था) की बुनियाद पर बराबरी चाहते है या यह की अभिव्यक्ति की आज़ादी (freedom of expression) चाहते हो. ऐसी महत्वकांशा रखने वालों की माँगें तो किसी क़ाबिल थी बल्कि उन से बात करके उसका हल निकाला गया. हालांकि खिलाफत की स्थापना पर कोई वार्तालाप और बात नहीं की जा सकती. शरीअत के लागू करने के सम्बन्ध मे कोई गुफ्तगू नहीं कि जा सकती, दो जिंसो (लिंग भेद) के दर्मियान बराबरी के मामले में कोई समझौता नहीं किया जा सकता. यह मूल्य हमारी सभ्यता में बुनियादी अहमियत रखते है जिन पर कोई गुफ्तो-शनीज़ नहीं की जा सकती.
लार्ड करज़न Lord Curzon, 1924 में ब्रिटिश विदेश सेक्रेटरी, ने ख़िलाफते उस्मानिया के खात्मे के बाद इन शब्दो में अपनी राय का इज़हार किया था: “आज सब से अहम नुक्ते की बात यह है की तुर्की (उस्मानी खिलाफत) खत्म हो चुका है, जो अब दोबारा ज़िन्दा नहीं होगा क्योंकि हमने उस की रूहानी ताक़त यानी खिलाफत और इस्लाम को खत्म कर दिया है”
लार्ड करज़न Lord Curzon: एक और मौके पर खिलाफते उस्मानिया के खात्मे के बाद, हाउस ऑफ कामंस से खिताब देते हुये खिलाफत की अहमियत को वाज़ेह कर दिया: "आज सूरते हाल यह है की तुर्की खत्म हो चुका है और दोबारा नहीं उठेगा क्योंकि हम ने उसकी नैतिक क़ुव्वत, यानी ख़िलाफत और इस्लाम को बरबाद कर दिया है”.
“हमें हर उस चीज को खत्म कर देना है जो मुसलमान के बेटों के दर्मियान इत्तेहाद पैदा करें जैसे की हम पहले ही खिलाफत को खत्म करने में कामयाब हो चुकें है. हमें इस बात को यक़ीनी बनानी चाहिये की मुसलमानों में फिर कभी कोई इत्तेहाद पैदा न हो, चाहे यह इत्तेहाद फिकरी (वैचारिक) या तहज़ीबी (सांस्कृतिक) ही क्यों न हो.
सर केम्पबेल बेन्नरमेन, बरतानिया के प्रधानमंत्री (1905-08)
“........ऐसे कुछ लोग है जिन के क़ाबू मे बहुत बडी रियासतें है; जिन मे ज़ाहिर और छुपे हुये वसाईल (संसाधन) हैं. दुनिया की खास रास्ते उन (के इलाक़ो) से हो कर गुज़रते है. उनकी सरज़मीने तहज़ीब और मज़हब का गहवारा रही है. इन लोगों का एक ही अक़ीदा, एक भाषा, और एक जैसी ही उम्मीदें है. किसी भी तरह की क़ुदरती रूकावटे इन लोगों को एक दूसरे से अलग नहीं कर सकती......... अगर कभी इत्तेफाक़ से यह क़ौम एक रियासत मे मुत्तहिद हो गई, तो यह दुनिया की तक़दीर अपने हाथों मे ले लेगी और यूरोप को पूरी दुनिया से काट देगी. इन बातो पर संजीदगी के साथ ग़ौर करते हुए, (यह लाज़मी हो जाता है) की एक विदेशी वजूद इस क़ौम के बीच मे बिठा दिया ताकि यह कभी अपने परों को न समेट सके और यह अपने ताक़त कभी न खत्म होने वाली जंगों मे ज़ाया करती करती रहे. यह मग़रिब के लिये भी उन चीज़ो को पाने का वसीला होगा जिसका वोह लालच रखता आया है.” 1902
लार्ड ज़ेटलेंड [मार्च 24, 1940, मुस्तमराती हिन्दुस्तान मे बरतानिया के सेक्रेटरी British Secretary of State for the colonial India]
“इस्लाम की पुकार ऐसी है जो देशो की सरहदो की रूकावट से परे है. हालांकि इसने अपनी ताक़त मुस्तफा कमाल पाशा के ज़रिये खिलाफत के खात्मे से खो दी है, लेकिन इसमे आज भी अच्छी खासी कशिश मौजूद है. मिसाल के तौर पर जिन्नाह की तरफ से इस बात पर इसरार की हम इस बात का वादा करें की भारतीय फौज कभी भी किसी मुस्लिम देश के खिलाफ न इस्तेमाल होने दी जाये और उसका (जिन्नाह का) लगातार फिलिस्तीनी अरबो के लिये बेचेनी का इज़हार.”
अमरीकी सदर बुश
“तशद्दुद पसन्द यह समझते है की किसी एक मुल्क पर क़ाबू पा कर वोह सारी मुस्लिम दुनिया को अपने पीछे कर लेंगे, और इस तरह वोह इस क़ाबिल हो जायेंगे की इन इलाक़ो की एतदाल पसन्द (moderate) रियासतों का तख्ता पलटने मे कामयाब हो जायेंगे, और एक ऐसी बुनियाद-परस्त (radical) रियासत क़ायम करेंगे जो स्पेन से लेकर इन्डोनेशिया तक फैली होगी”.
“इस्लामी बुनियाद-परस्तों की क़ातिलाना मब्दा (आइडियोलोजी) हमारी इस नई सदी के लिये बहुत बडा चेलेंज है. हांलाकि यह जंग कई तरह से पिछली सदी के कम्यूनिस्टो के खिलाफ संघर्ष से मिलती जुलती है”.
डिक चेनी (अमरीका के नायब सदर, सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) मे तक़रीर करते हुए, फरवरी 2007)
“ .........और ये है वोह, दहशतगर्द, जो रियासत (क़ायम करने) की आरज़ू रखते है. बडे मश्रिक़े वुस्ता (Middle East) मे इनका मक़सद किसी एक मुल्क को अपने क़ब्ज़े मे लेना है, ताकि उन्हे कोई मरकज़ हासिल हो जाये जहाँ से उन हुकूमतों पर हमले कर सकें जो इनकी मांगे पूरी करने से इंकार करती हो. उन सबसे बडा मक़सद, जिसका वोह खुले मे दावा करते है, खिलाफत को क़ायम करना है जो स्पेन, शिमाली अफ्रिक़ा से गुज़रती हुई मश्रिके वस्ता और जुनूबी ऐशिया, और इससे आगे इंडोनेशिया के इलाक़े तक पहुंचती हो. और वोह यही पर नहीं रुकेगी.
.......दहशतगर्दी के खिलाफ जंग सिर्फ हथियारो के मुक़ाबले से ज़्यादा है और यह इरादे की जंग से भी ज़्यादा है. यह अफकार की जंग है .................”
“डोनाल्ड रम्सफील्ड
(अमरीका के वज़ीरे दिफा, दिसम्बर 5, 2005) जोन होपकिंस के पौल निट्ज़ स्कूल ऑफ ऐडवांस स्टडीज़ की एक तक़रीर को मुखातिब करते हुए कहते है: “इराक़ नई इस्लामी खिलाफत के लिये बुनियाद बन सकता है जो मश्रिके वस्ता (Middle East) तक फैलती होगी और जो यूरोप, अफरीका और ऐशिया की जाईज़ हुकूमतों के लिये एक खतरा होगी. इन का यह मंसूबा है. उन्होने ऐसा कहा है. हमसे बहुत बड़ी ग़लती होगी अगर हम सुनने और सीखने में ग़लती करेंगे.”
ऐडरिक ऐडमेन
”......... तो मै समझता हूँ की हमें इस मामले मे बहुत साफ रहना चाहिये. इराक़ का मुस्तक़बिल या तो दहशतगर्दों का हौंसला बढा देगा और खिलाफत को दोबारा क़ायम करने मे उनकी क़ाबलियत बडा देगा या फिर उन्हे बहुत बडा धक्का देगा. इसलिये हमारे लिये इराक़ मे नाकाम होना जैसा कोई विकल्प नहीं है.”
जनरल जॉन अबीज़ेद
अमरीकी क़ानूनसाज़ो को खिताब करते हुए उसने कहा: “अल-क़ायदा दहशतगर्द मश्रिके वुस्ता मे अमरीका के प्रभाव को खत्म करने की कोशिश करते है और सऊदी अरेबिया मे एक आलमी मुस्लिम क़यादत को क़ायम करने की कोशिश करना चाहते है................ अगर अल-क़ायदा के दहशतगर्द सऊदी अरब पर क़ाबू पाने मे कामयाब हो गये तो वोह उस खित्ते मे अपना असर बढाने की कोशिश करेंगे और खिलाफत क़ायम कर लेंगे.”
अबीज़ेद न कहा: “फिर शरीअत की ‘बहुत तंग’ तश्रीह के नाफिस करने की तरफ बढेंगे, इस्लामी क़ानून की ऐसी तश्रीह जिस पर न लोग इमान रखते है न ही आज के दौर मे उस पर कहीं अमल किया जाता है..................... उसका अगला मक़सद गैर-अरब इस्लामी देशो मे फैलाना होगा. इसमे मध्य अफ्रीक़ा, उत्तरी और पूर्वी ऐशिया होगा”.
एक दूसरे मौक़े पर जॉन अबीज़ेद ने कहा, “हम एक बहुत क़ाबिले नफरत दुश्मन से लड रहे है.................. जो की 7 वी सदी की जन्नत के नज़रिये को फैलाने के लिए 21 वी सदी की आधुनिक टेक्नोलोजी इस्तेमाल करते है और कोशिश करते है पैगम्बर मुहम्मद के ज़माने की उस इस्लामी हुकूमत को बनाने की जिसे वोह असली और खालिस समझते है.”
जनरल रिचार्ड मेयर्स
पेंटागन की एक न्यूज़ कांफ्रेंस को खिताब करते हुए ज़ोर दिया की “अगर उस इलाक़े के ज़रकाबियों को उनके अपने नज़रिये के मुताबिक़ कामयाब होने दे दिया जाये, तो वोह जिस खिलाफत का तसव्वुर करते है, उसकी शुरूआत होगी. और उस इलाके के लिये यह एक बहुत बडा खतरा होगा.”
हेनरी कीसिन्जर
एक इंटरव्यू मे जब उन से पूछा गया, “आपकी राय मे इस दौर का सबसे बडा खतरा क्या है?” उन्होने जवाब दिया, “सबसे पहले तो अमरीका मे होने वाली दहशतगर्दी, लेकिन हक़ीक़त मे वोह (खतरा) बुनियाद परस्त (radical) इस्लाम का सेक्यूलर दुनिया के खिलाफ विद्रोह है, और लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ एक तरह की खिलाफत का क़याम करके. और यह “ऐतदाल पसन्द” (moderate) इस्लाम के भी उतना ही खिलाफ है जितना की ग़ैर-इस्लामी समाज के.”
पेटरिक जे. बचनन:
इसने वाईट हाउस मे अमरीका के तीन सदर के मातहत काम किया है. “अगर इस्लामी हुकूमत एक फिक्र है जो की मुस्लिम आबादी मे जड पकडता जा रहा है, तो किसी दुनिया की बहतरीन फौज इसे रोकेगी? क्या हमे एक नई पॉलिसी की ज़रूरत नही है.”
व्लादिमिर पुतिन, रूस के राष्ट्रपति
रूस के सदर ने यूरोपी यूनियन के ब्रूसेल्स मे एक इजलास के कहा की मग़रिबी तहज़ीब को मुस्लिम दहशतगर्दो की तरफ से घातक खतरा है और उनका “आलमी खिलाफत” बनाने का मंसूबा है. “.......................... रूस की संघिय हुकूमत की रियासत पर खिलाफत बनाना तो उनके मंसूबे का सिर्फ एक हिस्सा है. दरहक़ीक़त अगर आप हालात पर निगाह रखे हुए हो, तो आप अच्छी तरह से समझ जाओगे की बुनियाद परस्त इससे भी बडा मंसूबा रखते: वोह आलमी खिलाफत के क़याम की बात कर रहे है ...................”
वाशिंगटन पोस्ट
वाशिंगटन पोस्ट मे एक मज़मून छपा जिसका टाईटल था “ ”. इस मज़मून ने इस बात पर बहस की के इस तरह की दावत (खिलाफत की) बुनियाद परस्त नहीं है न ही यह इस्लामी गोरिल्ला आन्दोलनो के उद्देश्यो के मिलती है.
दहशतगर्दी – दहशतगर्दी के खिलाफ जंग से फिक्री जंग तक (by David Lazarus)
: ...............जिहादियों के छुपे हुऐ यक़ीन (नीयत) के पीछे इन (मुस्लिम) रियासतों मे सख्त इस्लामी क़ानून का दोबारा क़याम और निफाज़ दिखाई देता है जिससे तमाम मुसलमानों के लिये एक इंसाफ पसन्द (न्यायपूर्वक), शुद्ध, और सम्पूर्ण समाज का रहस्यमयी अन्दाज़ मे जन्म होगा. खास तौर से मश्रिके वुस्ता मे इस नज़रिये की तरफ झुकाव देखा जा सकता है. और कोई भी अरब समाज के ज़्यादातर शोबो मे जदीदियत (modernism) के आम तौर से नाकामयाब होने का मुशाहिदा करके (इसके कारण को) आसानी से समझ सकता है. हालांकि की किसी भी तरह के इस्लामी इंक़लाब को आमरियत की तानाशाही (authoritarian dictatorship) के ज़रिये रोका जा रहा है, जैसा की मिस्र और सऊदी अरब मे हो रहा है.
पीटर कोस्टेलो (भूतपूर्व ऑस्ट्रेलियाई वज़ीरे खज़ाना), 2006, ऑस्ट्रेलियन क्रिस्चन लॉबी:
“ऐसे कई देश हैं जो की धर्मप्रधान (theocratic) देश है, जैसे की इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ इरान, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफग़ानिस्तान, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ मोरिटेनिया वग़ैराह. कुछ ऐसे भी देख हैं जो शरीअत का क़ानून लागू करते है – जैसे किंगडम ऑफ सऊदी अरेबिया, लेकिन बुनियाद परस्त इस्लामिस्टो को यह काफी नही. उनक नज़रिया ऐसी खिलाफत का है जो पूरे मश्रिक़े वुस्ता मे फैली होगी और उन सभी हुकूमतों को गिरा देगी जिन्हे वोह भ्रष्ट राज्य मानते है उसकी जगह इस्लाम का ज़्यादा ‘खालिस’ (शुद्ध या pure) वरज़न लाना चाहते है. हमारे अपने इलाक़े मे जमाहे इस्लामिया की महत्वकांक्षा एक खालिस इस्लाम पसन्द राज्य (pure Islamic state) बनाने की है जो नीचे तक फैला हुआ हो और फिलीपींस, मलेशिया और इंडोनेशिया को अपने दायरे मे लेता हो.”
ऐलेक्ज़ेंडर डाउनर, 2006, सेंटर फॉर मुस्लिम स्टेट्स एन्ड सोसाईटी (UWA)
”दहशतगर्द जो चाह रहे है हमे इस बात पर अपना मौक़फ बिल्कुल साफ रखना चाहिये. हमे फसीह और बलीग़ बातों को एक तरफ रख कर अपना तवज्जोह इस बात की तरफ केन्द्रित करनी चाहिये की वोह किस तरह की दुनिया है जिसे यह बनाना चाहते है. इनका मक़सद एक नई शिद्दत पसन्द खिलाफत मुस्लिम दुनिया मे बनाना है – तालिबान के तर्ज़ पर एक मज़हब-पसन्द (धर्म-प्रधान देश या theocratic state) देश. शिमाली मश्रिक़ी (south east) ऐशिया से यें मग़रिबी असरात को बाहर निकाल देना चाहते है और एक ऐसी बुनियाद परस्त हुकूमत बनाना चाहते हैं जो इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलेंड और जुनूबी फिलीपींस तक फैली होगी. यह लोग मश्रिके वुस्ता के लिये भी यही चाहते है. ऐक ऐसी खिलाफत जो कोकाज़ (Caucuses) से शिमाली अफ्रिका तक फैली हो. ये इन मुमालिकों मे जम्हूरियत (लोकतंत्र) से छुटकारा पाना चाहते है और उसकी जगह ऐसी खालिस हुकूमत लाना चाहते है आज़ादिये फर्द (freedom of individual) की इजाज़त नहीं देती. इस मब्दे (ideology) को समझने के मामले मे कुछ भी पेचीदगी नहीं है. इस्लामी क़ानून की बिग़डी हुई तश्रीह, जिसमे मुख्तलिफ लोगों के एक साथ रहने की कोई जगह नहीं.
खिलाफत के खात्मे पर
अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और मुस्लिम लीग के सय्यद अमीर अली, ‘द टाईम्स’ अखबार के 5 मार्च, 1924, के इशू मे लिखते है: “हिन्दुस्तान के मुसलमानों के ज़हनो पर खिलाफत के खात्मे के असरात का सहीह अन्दाज़ा लगाना बहुत मुश्किल होगा. लेकिन मै यह यक़ीन के साथ कह सकता हूँ की यह इस्लाम और इस्लामी तहज़ीब के लिये तबाहकुन साबित होगा. उस बाइज़्ज़त इदारे का खात्मा जिसे पूरी दुनिया मे इस्लामी इत्तिहाद का निशान माना जाता है, इस्लाम को उसकी अखलाक़ी कुव्वत के लिहाज़ से तोड देगा. इसने 250 इमानवाले सुन्नी समाज को एक समान आदर्श से जोड रखा था. ”
रिपोर्ट और पोल्स (राये शुमारी)
अमरीकी थिंक टेंक
दिसम्बर 2004 मे नेश्नल इंटेलिजेंस कॉंसिल (NIC) ने एक रिपोर्ट ‘न्यू केलिफेट’ के नाम से सन 2020 तक एक मुमकिनाना मंज़रनामा (scenario) बयान किया है. यह 123 पेज की रिपोर्ट जिसका टाईटल ‘मेपिंग द ग्लोबल फ्यूचर’ है, ने बुश प्रशासन को आने वाले मुस्तक़बिल मे तैयार रहने के लिये लिखा गया है और जिस मे अमरीकी सदर, कांफ्रेंस के मेम्बर, केबिनेट मेम्बर्स और पॉलिसी बनाने वाले महत्वपूर्ण अफसरों को मुखातिब किया गया है. CSIS (Center for Strategic and International Studies) (जो की वाशिंगटन मे स्थित थिंक टेंक है), इस रिपोर्ट को एक भविष्यवाणी नही बल्कि केस स्टडी (रिसर्च) मानता है जिसमे दुनिया भर मे होने वाले कई वाकियात (धटनाओं) का बारीकी से मुशाहिदा किया गया है. फिर इन धटनाओं को आपस मे जोड कर इस बात की सम्मभावना को ज़ाहिर किया है की एक रियासते खिलाफत का क़याम अमल मे आ सकता है.
इस बात को फर्ज़ करते हुए की इस तरह की रियासत अगर वजूद मे आ गई तो यह बात आज ही से तय करने की ज़रूरत है की इसे रोकने के लिये क्या करना चाहिये, अगर इसे रोकने की ज़रूरत है. इसके अलावा ऐसे दो संघठन है जिन्होने इस स्टडी को किया है, पहला CIA और दूसरा शेल (Shell Oil Company) ऑयल कम्पनी है.
नेशनल स्ट्रेटजी फॉर कॉम्बेटिगं टेररिज़्म (National Strategy for Combating Terrorism (NSCT)) [इस स्ट्रेटजी के वरज़न का अभी वर्गीकरत नहीं किया गया और इसकी शुरूआत 11 सितम्बर, 2001 से हुई है. इसका पहला इजरा फरवरी 2003 मे किया गया, इसको दुश्मन की फिरतरत के बदलते रहने के कारण इसमे इज़ाफा किया गया ]
“...........वोह किसी मुल्क को एक मर्कज़ (बुनियाद) के तौर पर इस्तेमाल करेंगे और वहाँ से दहशतगर्दी फैलाने की शुरूआत करेंगे/ इस केन्द्र से वोह मश्रिके वुस्ता (Middle East) को अस्थिर बना सकेंगे और अमरीका और दूसरे स्वतंत्र देशो पर तशद्दुद के साथ हमला करेंगे. इसकी हम इजाज़त नहीं दे सकते............. ”.
वर्ल्ड पब्लिक ओपिनियन रिपोर्ट (अप्रेल 24, 2004)
“ज़्यादातर (मुस्लिम) देशों की अक्सिरियत शरीअत के सख्त निफास के मक़सद का समर्थन करती है. मग़रिबी मूल्यों (values) को दूर रखना, और सारे इस्लामी देशो को एक इस्लामी राज्य मे मुत्तहिद करने का समर्थन करती है.”
द पीयू ग्लोबल प्रोजेक्ट (14 जुलाई, 2005)
पाकिस्तानी (79%), मराकश (70%) और उरदुन (63%) के ज़्यादातर शहरी अपने आप को पहले मुस्लिम की हैसियत से अपनी पहचान देखते है. यहाँ तक की तुर्की, जहाँ की तहज़ीब ज़्यादा सेक्यूलर है, के 43% लोग अपने आप को सबसे पहले मुस्लिम होने की अपनी पहचान बताते है और न की अपनी क़ौमी पहचान (nationalistic identity). इंडोनेशिया के लोग थोडे से बटे हुये हैं; 39% पहले अपने आप को मुस्लिम बताते है, 35% इंडोनेशियन और 26% दोनों. लेबनान मे (यह सबाल इसाईयों से नहीं किया गया) 30% मुस्लिम कहते है की वह अपनी पहचान इस्लाम से देखते है न की लेबनानी की हैसियत से.
एक सर्वे के मुताबिक मुस्लिम अक्सिरियती देशों की बहुत बडी अक्सिरियत यह सोंच रखती है की इस्लाम उससे बहुत बडा किरदार अदा कर सकता है जैसा की उसका अभी है. मोरक्को के 84% मुस्लिम, जोरडन (उरदुन) के 73%, पाकिस्तान के 70% और इंडोनेशिया के 64% मुस्लिम यही राय रखते है. यहाँ तक की लेबनान और तुर्की जैसे मुल्कों की भी अच्छी मुस्लिम तादाद इसका समर्थन करती है.
पॉलिसी ऐक्सचेंज
एक खास सर्वे के मुताबिक मुस्लिम नौजवान सियासी इस्लाम से ज़्यादा प्रेरित हैं. 16-24 साल के तक़रीबन 37 प्रतिशत ब्रिटिश मुस्लिम, ब्रिटिश क़ानून की बजाये इस्लामी शरीया क़ानून के तहत रहना चाहते है.
हवालाजात:
Tony Blair: http://www.epolitix.com/EN/News/200507/5cae2365-f920-47d4-b91c-968adfe8ecaa.htm
Charles Clarke: http://www.hizb-ut-tahrir.info/english/leaflets/2005/oct1105.htm
Bush: http://www.presidentialrhetoric.com/speeches/10.06.05.html
Dick Cheney: http://www.whitehouse.gov/news/releases/2007/02/20070223.html
Donald Rumsfeld http://www.sais-jhu.edu/mediastream/rumsfeld_qa.ram
Eric Edelman: http://www.cfr.org/publication/9342/
Henry Kissinger: Hindustan Times Interview with Henry Kissinger, Nov 2004
Patrick J. Buchanan: http://www.antiwar.com/pat/?articleid=9192
Putin: http://www.telegraph.co.uk/news/main.jhtml?xml=/news/2002/11/12/wput12.xml
http://www.eubusiness.com/Russia/96062/
The Washington Post: http://www.washingtonpost.com/wp-dyn/content/article/2006/01/13/AR2006011301816.html
Terrorism - From a War on Terror to a War of Ideas by David Lazarus
http://www.army.gov.au/LWSC/Publications/journal/AAJ_Summer_05_06/lazarus_ideas_AAJ_Summer_05_06.pdf
NIC Report: http://www.foia.cia.gov/2020/2020.pdf
NSCT: http://www.whitehouse.gov/nsc/nsct/2006/sectionV.html#control
World Public Opinion Report: http://www.worldpublicopinion.org/pipa/pdf/apr07/START_Apr07_rpt.pdf
The Pew Global Attitudes Project: http://pewglobal.org/reports/pdf/248.pdf
Policy Exchange: http://www.policyexchange.org.uk/images/libimages/243.pdf
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