सवाल-जवाब: सीरिया में मौजूदा सूरतेहाल
सीरिया (अश-शाम) समबन्धित यह 16 सवाल जवाक का मजमुआ खिलाफा डोट कोम (khilafah.com) पर अप्रेल 2014 मे प्रकाशित हुआ जो सीरियाई क्रांति की मौजूदा सूरतेहाल को समझने मे आज भी मदद करता है.
सवाल (1): इस वक़्त सीरिया की बगावतें किस हालत में हैं?
सवाल (1): इस वक़्त सीरिया की बगावतें किस हालत में हैं?
जवाब : सीरिया की क्रांति मार्च 2011 से शुरू हुई और उसे मार्च 2014 तक तीन साल होने वाले हैं, इस दर्मियान सीरिया के पस मंजर में काफी तब्दीलियॉ आई हैं। सीरिया का, मैसोफ से लेकर दैरूजूर तक का उत्तरी हिस्सा, हुकूमत के क़ब्जे़ से निकल कर, विद्रोहीयों के हाथ आ चुका हैं। लताकिया से लेकर दमिश्क तक, सीरिया का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जिसे सीरिया का दिल भी कहा जा सकता हैं। लताकिया, मेंडिटरेनियन समुद्र से सटा ईलाक़ा हैं। समुद्री इलाक़े कई लिहाज़ से अहम होते हैं क्योंकि वहाँ से फौजे दूसरे मुल्कों में भेजी जाती हैं और उसी रास्ते से दूसरे देशों के साथ आर्थिक रिश्तें बनाये जाते हैं, इसी तरह दक्षिण में स्थित, दमिश्क से लेकर डेरा नाम के शहर के दर्मियान वाले इलाक़े, में इस वक़्त जंग जारी हैं। इन सबके बावजूद बाग़ी, सीरिया के कई बडे इलाक़ो पर क़ाबिज़ हैं। अगर इलाक़ो के लिहाज़ से देखा जाए, तो इस समय बाग़ीयों के हाथों में 70 फीसदी से ज़्यादा इलाक़े हैं, मगर रणनीति तौर पर अहम इलाक़े बशर उल असद की हुकूमत के पास ही हैं। हुकूमत, उत्तर के बहुत बड़े छूटे हुए ईलाक़ो को पाने की कोशिश नही कर रही हैं बल्कि उसने दमिश्क से लेकर लताकिया वाले इलाक़े को बचाने में अपनी ताक़त झौंक दी हैं, यह स्ट्रेटेजिक इलाक़ा अभी भी सीरिया की हुकूमत के हाथो में हैं। क्योंकि कुछ इलाक़े अपनी लोकेशन (स्थिति) के ऐतबार से काफी अहम होते हैं इस तरह वोह ईलाका जिस किसी भी ताक़त के क़ब्जें में होगा हैं उसके लिए बाकि इलाक़ो पर क़ाबिज़ होना आसान जाता हैं, इसीलिए वो इसी को ही बचाने में लगे हुए हैं। इन सबके बावजूद, 70 फीसदी इलाक़ा विद्रोहियों के हाथों में हैं और उन्होने दमिश्क के इलाक़े पर लगातार हमले करना शुरू कर दिए हैं ताकि वो इन्हे भी अपने क़ब्जें में ले लें और मुकम्मल तौर पर बशर उल असद की हुकूमत को गिरा दे।
इन सभी परिस्थितियों को देख कर बशर उल असद की हुकूमत को लगा कि उनके हाथों से सबसे अहम जगह निकल जायेगी, तो उसने दमिश्क के आस-पास पड़ने वाले बोहता नाम के ईलाक़े पर कैमिकल हमले शुरू किये, क्योंकि बशर उल असद को अपने वजूद का खतरा पैदा हुआ जो सन 2013 में बना हुआ। दमिश्क के इलाक़े पर विद्रोही लगातर क़ब्जा करने की कोशिश करते रहे हैं जिसके नतीजें में उन्होंने रासायनिक हमलों का सामना भी किया। ये हमला उन पर राजधानी के आसपास वाले इलाक़े में ही हुआ। बिग्रेडियर जनरल जहन अल साकित नाम का व्यक्ति जो 'बशर उल असद' की फौज से टूटकर आया था, ने इस बात की पुष्टि की थी, कि असद की हुकूमत गिरने वाली हैं और जब उसने इस बात का ऐलान किया तो इसके नतीज़े में ईरान को चिंता हुई क्योंकि वोह इस्लामी नज़रिए के बजाए इलाकाई और फिरकापरस्ताना सोच रखता हैं। अमरीका की मदद से वो इस लडा़ई में शामिल हो गया और उसने हिज़बुल्लाह लडा़कू का इस्तेमाल करते हुए बशर उल असद का साथ दिया और वोह क़ुसैर नाम के इलाक़े से विद्रोहियों को हटाने में कामयाब हो गया। जिसके नतीजे में, बशर उल असद की गिरने ही वाली हुकूमत को ईरान की मदद से, फिर से ज़िन्दगी मिली। बाग़ी गिरोह 2013 में फिर से संघठित होने लगा, इस बार इन्होंने पहले कि तुलना में ज़्यादा ताक़तवर संघठन बनाया। क्योंकि शुरूआती दौर में लोगों ने ज़ज़्बाती अंदाज में अपने गठबंधन बनाए थे। ज़ज़्बाती अंदाज में बनाए जाने की वजह से समस्याएँ आने पर लोग टूटना शुरू हो जाते हैं। बाग़ी गिरोहो सेक्यूलरवादी बार-बार हुकूमत के साथ मिलने की बात करते रहे, जिसके नतीजे में बाग़ी गिरोहो में कई बार इंतशार (बिखराव) होता रहा। इस समय सारी जद्दोजहद दमिश्क और लताकिया नाम के सबसे महत्वपूर्ण इलाक़े में चल रही हैं।
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