सेहत, बुतलान और फ़साद

सेहत की तारीफ़:
ھي موافقۃ أمر الشارع و یطلق و یراد بھا ترتب آثار العمل في الدنیا کما تطلق و یراد بھا ترتب آثار العمل في الآخرۃ

(वो जो शारेअ के हुक्म के मुवाफ़िक़ हो और इस का इतलाक़ होता है जिस से मुराद इस दुनिया में अमल के आसार मुरत्तब होना है, इसी तरह इस का इतलाक़ होता है जिस से मुराद आख़िरत में अमल के आसार का मुरत्तब होना है )

मिसाल के तौर पर नमाज़ की तकमील इस के अरकान और शराइत को पूरा करने से सही होगी यानी उसकी सज़ा और इस के ज़िम्मा से बरी हुआ जाएगा और उसकी क़ज़ा साक़ित हो जाएगी। इसी तरह बैअ अपने तमाम अरकान और शराइत से पूरा करने से सही होगा, यानी शरई तौर पर उसे मिल्कियत हासिल होगी और इस के लिए इस से नफ़ा उठाना और इस का तसर्रुफ़ मुबाह हो जाएगा। आख़िरत में आसार मुरत्तब होने से मुराद ये है कि उसे इस अमल का आख़िरत में सवाब मिलेगा।

बुतलान की तारीफ़:
ھو عدم موافقۃ أمر الشارع و یراد بھا عدم ترتب آثار العمل في الدنیا و العقاب علیہ في الآخرۃ بمعنی أن یکون العمل غیر مجز و لا مبریء

(वो जो शारेअ के हुक्म के मुवाफ़िक़ ना हो जिस से मुराद इस दुनिया में अमल के आसार मुरत्तब ना होना है और आख़िरत में इस पर सज़ा है यानी अमल पूरा नहीं हुआ और ना ही इस से बरी हुआ गया है )

मिसाल के तौर पर अगर नमाज़ को इस के अरकान और शराइत के साथ अदा नहीं किया गया, तो ये नमाज़ बातिल होगी और उस वक़्त तक उस का ज़िम्मा बाक़ी रहेगा, जब तक उसकी सही अदायगी नहीं होती। इसी तरह अगर बैअ को इस के अरकान के साथ अदा नहीं किया गया तो ये बैअ बातिल होगी, नतीजतन उस चीज़ का मालिक नहीं बना गया और इसलिए इस से नफ़ा उठाना और इस का तसर्रुफ़ हराम होगा और आख़िरत में वो सज़ा का मुस्तहिक़ होगा। मसलन بیع الملاقیح ((बिला इत्तिला) हामिला जानवर की फ़रोख़्त) अपनी असास में ही बातिल है क्योंकि ये अपनी असल में ममनू है। पसवें ये बैअ माक़ूद अलैहि की असल में मजूहल है यानी ये बैइ-ए-गिरर है।
फ़साद की तारीफ़:

ھو یختلف عن البطلان لأن البطلان عدم موافقۃ أمر الشرع من حیث أصلہ أي أن الخلل في أرکانہ أو ما ھو حکمھا أو أن الشرط الذي لم یستوفہ مخل بأصل الفعل، بخلاف الفساد فإنہ في أصلہ موافق لأمر الشرع و لکن وصفہ غیر المخل بالأصل ھو المخالف لأمر الشارع و لذلک یزول الفساد بإزالۃ سببہ

(वो जो बुतलान से मुख़्तलिफ़ है क्योंकि बुतलान अपनी असल के ऐतबार से शराअ के हुक्म के मुवाफ़िक़ नहीं है यानी इस के अरकान में ख़लल है या इस में जो इस के हुक्म में है, या वो शर्त जिस के बगै़र फे़अल पूरा नहीं होता तो इस से (भी) अमल की असल में ख़राबी आती है, बरअक्स फ़साद के, क्योंकि उसकी असल हुक्मे शराअ के मुवाफ़िक़ है लेकिन उसकी कोई ऐसी वस्फ़ जो असल के लिए नहीं है, शारेअ के हुक्म के ख़िलाफ़ है और इसलिए इस के सबब को ज़ाइल करने से फ़साद भी ज़ाइल हो जाता है)


इबादात में फ़साद का तसव्वुर नहीं है क्योंकि इन में सारे अरकान और शराइत असल से मुताल्लिक़ हैं और अगर इन में कोई भी रह जाये, तो इबादत बातिल होगी। इस के बरअक्स उक़ूद में फ़साद पाया जाता है। मसलन एक बैअ जिस में सामान की क़ीमत के बारे में लाइलमी हो, तो चूँकि ये लाइलमी उसकी असल के बारे में नहीं है, इसलिए ये बैअ फ़ासिद होगा ना कि बातिल। पस अगर सामान की क़ीमत की लाइलमी दूर हो जाए यानी क़ीमत मालूम हो जाए, तो ये अक़्द सही हो जाएगा । अलबत्ता شرکۃ المساہمۃ  (joint-stock company) अपनी असास से बातिल है क्योंकि ये किसी शरीके बदन से ख़ाली है जो उसकी असल के मुताल्लिक़ एक शर्त है। इस के बरअक्स अगर शिरकत में माल मजहूल हो तो ये अक़्द फ़ासिद होगा और अगर ये जहालत (लाइलमी) दूर हो जाए (غرر في الوصف) यानी माल मारूफ़ हो जाए, तो ये अक़्दे शिरकत सही हो जाएगा। 
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