पहले
यह जाने
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क़रीना:
क़रीना का मानी ख़िताब की मुराद
(मायने) तय करने वाली लफ़्ज़ी या अहवाली अलामत है। हुक्मे शरई की क़िस्म को नुसूस
(क़ुरआन और सुन्नत) के कराईन (इशारों) से समझा जाता है। यानी उन्ही कराईन से किसी फे़अल
का फ़र्ज़,
मंदूब,
मुबाह,
मकरूह या हराम होना ज़ाहिर होता है।
क़रीना की तीन अक़साम हैं:
1) वो जो तलबे जाज़िम होने का
फ़ायदा दे। इस से फे़अल के फ़र्ज़ या हराम होने का तअय्युन होता है।
2) वो जो तलबे ग़ैर-जाज़िम होने
का फ़ायदा दे। इस से फे़अल के मंदूब या मकरूह होने का तअय्युन होता है।
3) वो जो इख़्तियार
(अधिकार) देने का फ़ायदा दे। इस से फे़अल के मुबाह होने का तअय्युन होता है।
अब
समझे
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किसी
फेल के मुबाह होने के कराईन
1) जब रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم से किसी
फे़अल (काम) का कभी करना और कभी तर्क करना साबित हो।
मय्यत का जनाज़ा गुज़रते वक़्त
आप صلى الله عليه وسلم का खड़ा
हो जाना और बैठा रहना,
दोनों साबित हैं, लिहाज़ा इस में इख़्तियार दिया
गया है और ये मुबाह ठहरा।
2 ) जब किसी फे़अल पर, बगै़र किसी उज़्र के,
शरअ (शरीअत) ने आम तौर पर माफ़ी दी हो।
الحلال
ما أحل اللّٰہ في کتابہ والحرام ما حرم اللّٰہ
في کتابہ وما سکت عنہ فھو مما عفا عنہ (ترمذي(
في کتابہ وما سکت عنہ فھو مما عفا عنہ (ترمذي(
हलाल वो
है जिसे अल्लाह ने अपनी किताब में हलाल क़रार दिया है और हराम वो है जिसे अल्लाह ने
अपनी किताब में हराम क़रार दिया है और जिस पर वो ख़ामोश है वो माफ़ है
3) अफआले जिबिल्ली (मूल
प्रवृती वाले काम) जो जिस्म की खुसूसियत के साथ जुडे हुये है और इंसान के लिए अल्लाह
की तख़लीक़ में से हैं और जिन की तख़सीस और तक़य्युद (हदबन्दी) ना की गई.
ڪُلُواْ وَٱشۡرَبُواْ
مِن رِّزۡقِ ٱللَّهِ
अल्लाह
के दिए हुए रिज़्क में से खाओ और पियो (अल बक़रह-60)
أَوَلَمۡ
يَنظُرُواْ فِى مَلَكُوتِ ٱلسَّمَـٰوَٲتِ وَٱلۡأَرۡضِ
और क्या
उन लोगों ने देखा नहीं आसमानों और ज़मीन के आलम में (अल
आराफ-185)
فَٱمۡشُواْ
فِى مَنَاكِبِہَا
ताकि तुम
उस की राहों में चलते फिरते रहो (अल मुल्क-15)
4) जब कोई फे़अल किसी सबब की वजह से हराम हो, तो सबब ख़त्म होते ही ये दुबारा जायज़ हो जाएगा। मसलन नमाज़े जुमा के बाद
तिजारत फ़ौरन जायज़ हो जाएगी क्योंकि जुमे की नमाज़ का सबब ज़ाइल हो गया है। इसी तरह
अगर कोई फे़अल किसी माने की वजह से हराम हो, तो माने
ज़ाइल होते (हटते) ही वो फ़ेअल जाइज़ हो जाएगा। मसलन नापाकी मे मुसहफ़ (क़ुरआने पाक) को
छून माना है,
पस जब तुहर (पाकी) हासिल हो गई तो क़ुरआन को छूना मुबाह हो
जाएगा।
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