सबब की तारीफ़:
کل وصف ظاہر منضبط دل الدلیل
السمعی علی کونہ معرفا لوجود الحکم لا لتشریع الحکم
(हर वो वस्फे ज़ाहिर मुनजबित जिस पर कोई समई दलील ये दलालत करे कि वो इस हुक्म के
वजूद का मुअरिफ है, ना हुक्म की तशरीअ का)
أَقِمِ ٱلصَّلَوٰةَ لِدُلُوكِ ٱلشَّمۡسِ
नमाज़ को क़ायम करो आफ़ताब के ढलने से (अल
इसरा-78)
यहां सूरज के ढलने को वजूद-ए-नमाज़ की अलामत बताया गया है, यानी जब ये वक़्त आ जाए यानी इस अलामत की मार्फ़त हासिल हो जाए, तो अपनी दीगर शराइत के साथ, नमाज़ अदा करने की इजाज़त है। लेकिन ये (ज़वाल-ए-आफ़ताब) वजूब-ए-नमाज़ की अलामत नहीं
है, इस के अपने दूसरे दलायल हैं जो तलब-ए-जाज़िम के साथ वारिद हुए
हैं।
فَمَن شَہِدَ مِنكُمُ ٱلشَّہۡرَ
فَلۡيَصُمۡهُۖ
तुम में से जो इस महीने को पाए उसे रोज़ा रखना चाहिए
(अल बक़रह-185)
’’ صوموا
لرؤیتہ‘‘(مسلم(
चांद नज़र
आने पर रोज़ा रखो
इसी तरह यहां चांद का तलूअ होना और इस का नज़र आना, माह-ए-रमज़ान में रोज़े के वजूद की अलामत है, ना कि रोज़े फ़र्ज़ होने की, इस के दूसरे दलायल हैं जो ख़िताबे तकलीफ से साबित हैं। इसी तरह निसाब वजूद-ए-ज़कात
का सबब है और शरई उक़ूद मिलकीत से नफ़ा उठाने या इस के तसर्रुफ़ की इबाहत के अस्बाब हैं।
पस सबब हुक्म के लिए मूजिब नहीं है, वो बस इस
के वजूद के लिए मुअर्रिफ़ है जिस पर कोई शरई दलील है। और सबब का वजूद इस हुक्म को मुरत्तिब
करता है और उसकी अदमे मौजूदगी हुक्म की अदमे मौजूदगी को, यानी जब सबब होगा तो हुक्म भी होगा और अगर सबब नहीं होगा तब हुक्म भी नहीं होगा।
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