सवाल (4): क्‍या आई.एस.आई.एस नाम के ग्रुप में कोई बाहरी ताक़तें तो नही घुस गई हैं? जो इसको तोड़ने की कोशिश कर रही हों।

सवाल (4): क्‍या आई.एस.आई.एस नाम के ग्रुप में कोई बाहरी ताक़तें तो नही घुस गई हैं? जो इसको तोड़ने की कोशिश कर रही हों।


जवाब : दुनिया में जितने भी मुस्लिम गिरोह साम्राज्‍यादियों के खिलाफ खडे़ हुऐ हैं, वोह स्वयं नही बने बल्‍कि ज्‍़यादातर रियासतों की मदद से बने हैं और रियासतों ने ही इनको हथियार मुहैया कराए है। जैसे की तालीबान, तालीबान को बनाने, ट्रेनिंग व हथियार देने वाली पाकिस्‍तान कि हुकूमत थी और पाकिस्‍तान के पीछे अमरिका था। अमरिका ने इसे रूस से लड़ने के लिए तैयार करवाया था।

आम तौर पर सभी जिहादी गिरोह सरकारों की मदद से ही बनते हैं। सरकारें ही इनको बनाती हैं, इनको पैसा, हथियार और, ट्रेनिंग देती हैं। सीरिया में भी पिछले 30 सालों में ऐसे कई जिहा‍दी गिराहों को तैयार किया गया जिसमे सीरिया के खुफिया विभाग ने कई गिरोहों के साथ अपने संबंध बनाऐ रखे और इस तरह की गतिविधियों को बढा़वा दिया। बाद में इसी खुफिया विभाग के लोग सीरियाई हुकुमत के खिलाफ हो गए और दूसरे जिहादी लोगों के साथ मिल गए।

सीरियाई हुकूमत ने ऐसे हालात बनाऐ रखे की वोह ईराक़ में अमरीका के खिलाफ लड़ने वालो की मदद करता रहे ताकि वोह लोग उसके खिलाफ ना हो जाए। और इसके ज़रिये सीरिया को इराक़ के उन लोगो की खुफिया खबरे भी मिलती रही जो अमरीका के खिलाफ लड रहे है. ताकि यह जानकारी सीरिया की हुकूमत अमरीका तक पहुंचाती रहे।

सन्सन 2006 में बेकर हैंमिल्‍टन नाम की एक रिपोर्ट जारी की गई। डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस की रिपोर्ट जिसका टाईटल था “Measuring Stability and Security in Iraq” इस रिपोर्ट मे सीरिया के प्रभाव को इन शब्दो मे बयान किया गया: ''सीरिया बॉडर्स के इलाक़ो पर लगातार इराक के विद्रोही लोगों की मदद करता रहा खास तौर से सद्दाम हुसैन की बाथ पार्टी के तत्वों की। सीरिया इराक़ की भूतपूर्व सरकार के तत्वों को संगघठ्नात्मक संगघठनात्मक गतिविधियों की इजाज़त देता रहा है, और यह सहायता इस हद तक दी गई की सीरिया पूर्व इराक़ी सरकार के समर्थको की गतिविधियो का मुख्य सहायक् सहायक के रूप मे सामने आया. हालांकि सीरिया की सिक्यूरिटी और गुप्तचर विभाग लगातार इराक़ी लडाकों को गिरफ्तार करता रहा और उन्हे वापस इराक़ भेजता रहा. इस तरह सिरीया इराक़ मे विदेशी लडाको को दाखिल करने का बुनियादी ज़रिया बना रहा.'' बशर उल असद की बाथ पार्टी हैं जो सद्दाम हुसैन की भी थी। यह कम्‍यूनिस्‍ट नज़रिए के मानने वाले लोग है। इसलिए उन्‍होंने उन फौजियो की मदद की थी जो सद्दाम के साथ लगे हुए थे।

ईराक़्इराक़ में अल-क़ायदा के नाम पर बहुत से वाक़ेआत होते रहे हैं। जिसमें सुसाइड बोम्बिन्ग के वाक़ेआत अक्‍सर न्‍यूज में आते रहते हैं। ईराक़्इराक़ में शहरियों पर हमले होने से यह लडा़ई शिया सुन्‍नी लडा़ई में तब्‍दील हो गई अब तक अमरीका के खिलाफ लड़ने वाले बाग़ी गिरोह आपस में ही लड़ने लगे और इस जंग का रूख शिया-सुन्‍नी की तरफ बनने लगा। पश्‍चिमी ताक़ते जब किसी देश पर क़ब्ज़ा करती हैं तो वहाँ के सभी लोग उसके खिलाफ एकजुट होकर लड़ते हैं लेकिन पश्‍चिमी ताक़ते उनके बीच फिरकावारियत फिरकावारी इख्तिलाफ (संप्रदायिकता) को हवा देती तथा ऐसा प्रभाव पैदा कर देती हैं कि लोगों को लगने लगे कि फलॉ गिरोह हावी होना चा रहा हैं इस तरह वोह आपस में लड़ने लगे। यहीं कहानी उन्‍होंने सीरिया में भी दोहराई हैं। यह चीज़ें सीरिया में भी होना शुरू हो गई हैं। सीरिया का, नवाब अल फरस नाम का राजदूत जो बाद में बाग़ीयों के साथ हो गया था, ने भी इस बात कि तस्दीक़ एक इंटरव्‍यू में कि जिसमें उसने बताया कि, सीरिया की हुकूमत ने कुछ जिहादी गिरोह के लोगों का इस्तिमाल शहरियों पर हमला करवाने के लिए किया ताकि वोह सीरिया के बाग़ीयों को दोषी क़रार दे सके। इस तरह सीरियाई हुकुमत ने विद्रोहियों पर संगीन इल्ज़ाम लगाये एंव बहाना बनाया कि यह विद्रोही लोग ही शहरियों को मार रहे हैं।

उन्होनें इंटरव्‍यू में यह भी बताया कि पूरे देश में जितने भी सरकारी बिल्डिंगों पर सुसाइड बोम्बिंग के वाके़आत हुए, जिनमें सैकडो लोग मारे गये और बहुत से लोग अपंग हुए, यह सभी काम सिक्‍यूरिटी फोर्सेस (सुरक्षाबल) के साथ मिलकर अलकायदा ने किये हैं। हालांकि उम्मत में सीधे-साधे लोगों की कमी नही हैं जो ऐसे हालात में आ जाते हैं की उन्‍हेंजिन्हें ऐसी घटनाओं की हक़ीक़त समझ नही आती और काफी कुछ भुगत चुके होने के कारण इंतकाम लेना चाहतें हैं, ऐसे में उन्हें गलत मुहीम ही मिल जाए उसके साथ लग जाते हैं। ऐसे में इस बात के पूरे अवसर होते हैं कि कुछ बाहरी तत्‍व आ जाऐं जो उनको अपने मंसब और मक़सद हासिल करने के लिए इस्तिमाल करते है।

Share on Google Plus

About Khilafat.Hindi

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments :

इस्लामी सियासत

इस्लामी सियासत
इस्लामी एक मब्दा (ideology) है जिस से एक निज़ाम फूटता है. सियासत इस्लाम का नागुज़ीर हिस्सा है.

मदनी रियासत और सीरते पाक

मदनी रियासत और सीरते पाक
अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) की मदीने की जानिब हिजरत का मक़सद पहली इस्लामी रियासत का क़याम था जिसके तहत इस्लाम का जामे और हमागीर निफाज़ मुमकिन हो सका.

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास
इस्लाम एक मुकम्म जीवन व्यवस्था है जो ज़िंदगी के सम्पूर्ण क्षेत्र को अपने अंदर समाये हुए है. इस्लामी रियासत का 1350 साल का इतिहास इस बात का साक्षी है. इस्लामी रियासत की गैर-मौजूदगी मे भी मुसलमान अपना सब कुछ क़ुर्बान करके भी इस्लामी तहज़ीब के मामले मे समझौता नही करना चाहते. यह इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी की खुली हुई निशानी है.