इल्ज़ाम लगाना (लेआन) की शरई हैसियत

लफ़्ज़ लेआन दरअसल लेअन का सैग़ा (लफ्ज़) है क्योंकि इस हलफ़ में शौहर और बीवी पांचवीं बार की क़सम में अपने आप को अगर वो झूठे हों तो कोसते हैं। उसकी बुनियाद अल्लाह (سبحانه وتعال) का ये क़ौल है:

وَٱلَّذِينَ يَرۡمُونَ أَزۡوَٲجَهُمۡ وَلَمۡ يَكُن لَّهُمۡ شُہَدَآءُ إِلَّآ أَنفُسُهُمۡ فَشَهَـٰدَةُ أَحَدِهِمۡ أَرۡبَعُ شَہَـٰدَٲتِۭ بِٱللَّهِۙ إِنَّهُ ۥ لَمِنَ ٱلصَّـٰدِقِينَ ( ٦ *) وَٱلۡخَـٰمِسَةُ أَنَّ لَعۡنَتَ ٱللَّهِ عَلَيۡهِ إِن كَانَ مِنَ ٱلۡكَـٰذِبِينَ (* ٧ ) وَيَدۡرَؤُاْ عَنۡہَا ٱلۡعَذَابَ أَن تَشۡہَدَ أَرۡبَعَ شَہَـٰدَٲتِۭ بِٱللَّهِۙ إِنَّهُ ۥ لَمِنَ ٱلۡكَـٰذِبِينَ ( *٨ ) وَٱلۡخَـٰمِسَةَ أَنَّ غَضَبَ ٱللَّهِ عَلَيۡہَآ إِن كَانَ مِنَ ٱلصَّـٰدِقِينَ

और जो लोग अपनी बीवीयों पर इल्ज़ाम लगाऐं और सिवाऐ उन की अपनी ज़ात के उन के लिए गवाह मौजूद ना हों तो इनमें से एक (यानी शौहर) चार शहादतें ये दे बख़ुदा वो बिल्कुल सच्चा है और पांचवी शहादत ये दे कि अगर वो झूटा हो तो उस पर अल्लाह की लानत हो। बीवी से भी सज़ा को ये बात टाल सकती है कि वो चार शहादतें ये दे कि बख़ुदा वो बिल्कुल झूटा है । और पांचवीं शहादत ये दे कि इस बंदी पर अल्लाह का ग़ज़ब हो अगर वो सच्चा हो। (तर्जुमा मआनीऐ क़ुरआन: अन्नूर  6-9)

सुनन अबु दाऊद में अपनी असनाद से हज़रत इब्ने अब्बास (رضي الله عنه) से रिवायत किया है कि, वो कहते हैं कि हिलाल बिन उमय्या (رضي الله عنه) जो उन तीन अफ़राद में से एक हैं जिन की तौबा अल्लाह (سبحانه وتعال) ने क़बूल फ़रमाई थी, वो एक रात अपनी ज़मीनों से घर लौटे और अपनी बीवी के पास एक शख़्स को पाया, उन्होंने ख़ुद अपनी आँखों से देखा और अपने कानों से सुना लेकिन सुबह होने तक उन्हें टोका नहीं। सुबह को वो हुज़ूर नबी करीम (صلى الله عليه وسلم) के पास आए और उन से अर्ज़ किया:

))یا رسول اللّٰہ ، إني جئت أھلي فوجدت عندھم رجلاً فرأیت بعیني وسمعت بأذني فکرہ رسول اللّٰہا ما جاء بہ،و اشتدت علیہ فنزلت (وَالَّذِیْنَ یَرْمُونَ أَزْوَاجَہُمْ وَلَمْ یَکُن لَّہُمْ شُہَدَاء إِلَّا أَنفُسُہُمْ فَشَہَادَۃُ أَحَدِہِمْ۔۔۔الخ((

ऐ अल्लाह के रसूल! मैं जब अपने घर लौटा तो मैंने बीवी के साथ एक आदमी को पाया। मैंने ख़ुद अपनी आँखों से देखा और अपने कानों से सुना। हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) को ये बहुत नागवार और नापसंद गुज़री और उन्होंने इस पर सख़्ती की, फिर ये आयात नाज़िल हुईं:
وَٱلَّذِينَ يَرۡمُونَ أَزۡوَٲجَهُمۡ وَلَمۡ يَكُن لَّهُمۡ شُہَدَآءُ إِلَّآ أَنفُسُهُمۡ.......

इन आयात के नाज़िल होने पर हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) को इत्मिनान  हुआ और आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया:

))أبشر یا ھلال قد جعل اللّٰہ فرجاً و مخرجاً۔ قال ھلال:قد کنت أرجو ذلک من ربي تبارک و تعالیٰ فقال رسول اللّٰہ أرسلوا إلیھا۔ فأرسلوا إلیھا۔ فتلاھا علیھا رسول اللّٰہ و ذکّر ھما و أخبرھما أن عذاب الآخرۃ (شد من عذاب الدنیا۔ فقل ھلال واللّٰہ لقد صدقت علیھا۔ فقالت کذب۔ فقال رسول اللّٰہ:لاعنوا بینھما((

ऐ हिलाल ! तुम्हें ख़ुशख़बरी हो अल्लाह (سبحانه وتعال) ने तुम्हारे लिए आसान रास्ता निकाल दिया है। हज़रत हिलाल (رضي الله عنه) ने अर्ज़ किया कि मैंने अल्लाह (سبحانه وتعال) से इसकी दुआ की थी। हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया: उस औरत को बुला भेजो चुनांचे उसे बुलवाया गया। हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) ने ये आयात पढ़ कर सुनाईं फिर उन्हें बताया और याद दिलाया कि आख़िरत का अज़ाब दुनिया के अज़ाब से शदीद तर होगा। हज़रत हिलाल (رضي الله عنه) ने कहा कि अल्लाह की क़सम मैंने इसके बारे में जो कहा था वो सच्च है, औरत ने कहा कि नहीं ये झूट है। हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया कि उन लोगों पर लेआन की कार्रवाई करो।

फिर हज़रत हिलाल (رضي الله عنه) से कहा गया कि वो चार मर्तबा अल्लाह को हाज़िर जान कर ये शहादत दें कि वो सच्चे हैं, फिर पांचवीं बार के लिए उनसे कहा गया कि ऐ हिलाल! अल्लाह से डरो कि दुनिया का अज़ाब आख़िरत के अज़ाब से आसान है और यही पांचवीं बार की शहादत वो चीज़ है जो (झूटे के लिए) अल्लाह के अज़ाब को वाजिब ठहराती है। हज़रत हिलाल (رضي الله عنه) ने कहा अल्लाह की क़सम अल्लाह मुझे इसकी सज़ा ना देगा जैसा मुझे इसके कोड़े नहीं मारे गए। फिर उन्होंने पांचवी शहादत दी कि अगर उन्होंने झूट कहा हो तो अल्लाह का उन पर क़हर हो। फिर औरत से कहा गया कि वो शहादत दे। औरत ने अल्लाह की क़सम पर चार बार ये शहादत दी कि शौहर ने झूट कहा है। पांचवीं बार के लिए औरत से कहा गया कि अल्लाह से डरे क्योंकि दुनिया का अज़ाब आख़िरत के अज़ाब से आसान है और ये कि पांचवीं क़सम ही वो चीज़ है कि झूटी होने पर उसके लिए अज़ाब की मूजिब होगी। औरत एक लम्हे के लिए दुविधा में पड़ गई फिर कहा, अल्लाह की क़सम मैं अपने लोगों को रुसवा ना करूंगी और ये कह कर उसने पांचवीं बार क़सम खाई कि उस पर अल्लाह की लानत हो अगर उसके शौहर ने सच्च कहा हो। हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने इन दोनों में अलैहदगी फ़रमा दी और फ़ैसला किया कि औरत के लिए ना घर दिया जाएगा और ना ही उसे गुज़ारा भत्ता मिलेगा।

लिहाज़ा अगर एक शौहर अपनी बीवी पर इल्ज़ाम लगाऐ और उससे कहे कि तूने ज़िना किया या कहे, ऐ ज़ानिया, या ये कि मैंने तुझे ज़िना करते देखा लेकिन शौहर अपनी सफ़ाई में सबूत पेश ना करे तो उस पर हद क़ायम की जाएगी अगर वो लेआन वाली (पाँच) क़सम ना खाए। और अगर वो पाँच क़समें लेआन की खाता है और उस की बीवी लेआन की पाँच शहादतें नहीं देती तो फिर औरत पर हद क़ायम की जाएगी क्योंकि अल्लाह (سبحانه وتعال) ने फ़रमाया:

وَيَدۡرَؤُاْ عَنۡہَا ٱلۡعَذَابَ أَن تَشۡہَدَ أَرۡبَعَ شَہَـٰدَٲتِۭ.....
बीवी से भी सज़ा को ये बात टाल सकती है कि वो चार शहादतें ये दे.......(तर्जुमा मआनीऐ क़ुरआन: अन्नूर 8)

जो अज़ाब उस औरत पर से टला वो एक शौहर वाली औरत केज़िना करने की हद का अज़ाब है, क्योंकि हिलाल बिन उमय्या (رضي الله عنه) ने जब अपनी बीवी पर इल्ज़ाम लगाया और हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) के पास हाज़िर हुए और उसे बुलवाने को कहा, फिर हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) ने दोनों के बीच लेआन कराया। यह उन हालत में से एक ख़ास सूरते हाल है जहाँ ज़िना साबित हुआ। ये वो हालत नहीं है जहाँ शौहर ने इल्ज़ाम लगाया फिर उसके सबूत के तौर पर उसने लेआन की कसमें भी खा लीं लेकिन औरत ने ऐसा ना किया। जबकि अगर औरत भी लेआन की शहादतें दे दे तो ज़िना साबित नहीं होता। औरत का लेआन की शहादतों से परहेज़ करना ज़िम्मी होने का सबूत हुआ और अब शौहर के लेआन की शहादतें देना औरत पर हद क़ायम करने का मूजिब (कारण) हो गया।

अगर शौहर और बीवी दोनों लेआन की शहादतें दें और हाकिम या क़ाज़ी उन्हें अलग कर दे तो उन के बीच ये अलैहदगी हमेशा की होगी और वो कभी आपस में निकाह ना कर पाएंगे। अब ये औरत उस मर्द के लिए हमेशा को हराम हो गई क्योंकि हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) ने लेआन की शहादत देने वाले दोनों में अलैहदगी करा दी थी। इमाम मालिक (رحمت اللہ علیہ) ने नाफेअ (رضي الله عنه) से हज़रत इब्ने उमर (رضي الله عنه) की रिवायत नक़ल की है कि एक शख़्स ने हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) के ज़माने में अपनी बीवी पर इल्ज़ाम लगाया, लेआन की शहादत दी और बच्चे को तस्लीम नहीं किया तो हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) ने दोनों के बीच अलैहदगी कर दी और बच्चा माँ के साथ रहा। सहल बिन साअद (رضي الله عنه) से सुनन अबु दाऊद में रिवायत मनक़ूल है कि: दोनों लेआन करने वालों के लिए सुन्नत यही रही है कि उन्हें अलैहदा कर दिया जाये और फिर वो कभी ना मिलें। इस तरह लेआन के ज़रीये अलैहदगी निकाह को फिस्ख (Null & Void) कर देती है क्योंकि इससे हमेशा के लिए दोनों का फिर से निकाह करना हराम हो जाता है । अब वो औरत उस शौहर के लिए कभी हलाल नहीं होगी यहाँ तक कि अगर वो ये शहादत भी दे कि उसने झूट कहा था। अलबत्ता अगर वो अपने झूट कहने की शहादत दे देता है तो औरत का ये हक़ हुआ कि वो उस पर हद क़ायम कराए। जहाँ तक बच्चे की वलदीयत का सवाल है तो चाहे वो शौहर अपने झूट का इक़बाल लेआन से पहले करे या बाद, बच्चे पर उसी की वलदीयत साबित होगी।

वो लेआन जिससे शौहर हद क़ायम किए जाने से बरी हो जाता है और औरत के लेआन ना करने पर हद औरत पर वाजिब हो जाती है, वो लेआन है जहाँ शौहर हाकिम या क़ाज़ी की मौजूदगी में औरत की तरफ़ इशारा करते हुए कहे कि इसने ज़िना किया है और अगर औरत वहाँ मौजूद ना हो तो उसका नाम और नसब बता कर चार बार वही शहादत दे फिर वो रुके और इससे कहा जाए कि अल्लाह से डर, ये पांचवीं बार अज़ाब का कारण होगा और दुनिया का अज़ाब आख़िरत के अज़ाब से आसान तर है फिर वो अगर बाज़ ना आए और ये कहे कि अल्लाह का ग़ज़ब उस पर अगर उसने अपने इल्ज़ाम में झूट कहा हो कि बीवी ने ज़िना किया है।

वो लेआन जिस से बीवी हद क़ायम किए जाने से बरी हो जाती है ये है कि वो अल्लाह को गवाह रख कर चार मर्तबा शहादत दे कि शौहर ने झूट कहा है फिर वो थोडी देर रुके और उसे उसी तरह अल्लाह का ख़ौफ़ दिलाया जाये जिस तरह शौहर को अल्लाह का ख़ौफ़ दिलाया गया था फिर अगर वो औरत अपनी क़सम पर क़ायम रहे तो पाँचवीं मर्तबा ये शहादत दे कि उस पर अल्लाह का ग़ज़ब हो अगर शौहर ने उसके ज़िना करने के इल्ज़ाम में सच कहा हो। अगर इनका कोई बेटा हो तो इस लेआन में उसका ज़िक्र किया जाये। जब शौहर ये कहे कि में अल्लाह को शाहिद रख कर कहता हूँ कि इस औरत ने ज़िना किया और ये लड़का मेरा नहीं। औरत अल्लाह को शाहिद रख कर ये कहे कि शौहर ने झूट कहा, ये बच्चा उस ही का है।

लेआन की ये कैफ़ीयत और अल्फाज़ होते हैं लिहाज़ा अगर औरत एक बच्चे को जन्म दे और शौहर ये कहे कि ये बच्चा मुझ से नहीं या मेरा नहीं है तो उस पर हद क़ायम नहीं की जाएगी क्योंकि ये क़ज़फ़ (ज़िना का इल्ज़ाम) नहीं हुआ जबकि उससे पूछा जाएगा कि क्या इस औरत ने ज़िना किया है और तब ये बच्चा हुआ है? अब ये क़ज़फ़ हो गया और लेआन से सबूत को पहुंचेगा। लेकिन अगर शौहर ये कहे कि मेरा कहने का इरादा ये था कि बच्चा अपनी ख़लक़त में मुझ से समानता नहीं रखता या ये कि उस औरत ने जिन्सी मेलजोल किया था और ये बच्चा उस हमबिस्तरी से है तो शौहर पर हद क़ायम नहीं होती और उसी की वलदीयत बच्चे को मुंतक़िल (transfer) होती है क्योंकि उसने क़ज़फ़ नहीं किया। यहाँ लेआन की नौबत नहीं आती क्योंकि लेआन क़ज़फ़ की शर्त के साथ जुडा होता है।

  
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