सवाल (12) : सीरिया में फिरकावाराना (संप्रदायिक) समस्या का क्या समाधान हैं?
जवाब : पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के बाद साम्राज्यवादी ताक़तों नें सभी मुस्लिम देशों पर क़ब्ज़ा क़िया। उसी वक़्त उन्होंनें इन देशों को तथा कथित आज़ादी देनें से पहलें इस तर्तीब से बनाया की वोह कभी भी एक न हो सके और हमेंशा कमज़ोर और बाहरी ताक़तों के मौहताज रहे। इसके लिए उन्होंनें इन सभी देशों पर ऐजेंट, संप्रदायिक और इनके वफादार हुकमराँ बिठाए। सीरिया में ब्रिटेन और फ्रांस नें यह रणनीति अपनाई कि वहॉ हमेशा अक्लियती (अल्पसंख्यक) गिरोह ताक़त में रहें। जिस गिरोह को वहॉ सत्ता में बिठाया गया उसे शियाओ का नुसैरी गिरोह या अल्वी गिरोह कहा जाता हैं, जिनकी तादाद सीरिया में सिर्फ 10 प्रतिशत हैं, जो इस वक़्त भी हुकूमत कर रहा हैं। इस तरह अपनी कमज़ोरी के मद्दे नज़र, यह गिरोह हुकूमत बनाए रखनें के लिए हमेंशा किसी की मदद चाहें।
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में डेविड फ्रोमकिन नाम के प्रोफेसर नें किताब “A Peace to End All Peace: Creating the Modern Middle East”, ''ए पीस टू एण्ड ऑल पीस : क्रियटिंग द मॉडर्न मिडिल ईस्ट'' में ‘पश्चिम की मिडिल ईस्ट में रणनीति’ बताते हुए, यह बात लिखी कि
“विशाल उस्मानी खिलाफत की बहुत बड़ी दौलत का हिस्सा इस वक़्त विक्टर्स (विजयी देशो) के पास हैं। लेकिन हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि इस्लामी खिलाफत नें सदियों तक ईसाइ यूरोप पर काबू पानें की कोशिश की। इस तरह इन विजेताओं नें पराजयी मुस्लिम देशों की तकदीर का फैसला करते हुए यह तय किया कि इन देशों को दूबारा से संघठित होनें का मौका ना मिले जो दर हक़ीक़त में पश्चिमी मफाद के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं। सैकड़ो सालों के व्यापारिक तर्जुबे कि वजह से ब्रिटेन और फ्रांस नें क़ाबिज़ देशो के छोटे-छोटे कई अस्थाई राज्य बनाए जिनके हुक्मराँ अपनी हुकूमत के लिए हमेंशा उनकी मदद के मोहताज रहें। पश्चिमी देश, इन देशों के विकास और व्यापार पर पूरी तरह नियंत्रण रखतें हैं और इन देशों के हालात इस तरह रखे जातें हैं कि वोह पश्चिम के लिए कभी खतरा ना बनें। इसके बाद इन विदेशी ताक़तों नें अपनें पिट्ठू अरब हुक्मरानों के साथ, मुआहिदे किए जिसके ज़रिए वोह उनसे बहुत सस्ते में प्राकृतिक संसाधन खरीद सकें। इस तरह उच्च वर्गीय लोगों को बहुत ज़्यादा मालदार बनाया गया जबकि शहरियों की बहुत बड़ी अक्सिरियत गरीबी में अपना माथा मारती रहें”
आखरी समय तक सीरिया, फ्रांस का उपनिवेश रहा हैं। अपनें असर को बाकी रखनें के लिए फ्रांस नें सीरिया को नाम निहाद आजादी देते वक़्त वहाँ पर अल्वी (नुसैरी) गिरोह को हुक्मरानी सौंपी, जिसकी तादाद सिर्फ 10 प्रतिशत हैं। इस तरह वहाँ अल्पसंख्यक की सत्ता स्थापित हो गयी। यहीं अल्पसंख्यक तबक़ा बरसो से राज कर रहा है। इस्लामी दौर में मुश्रिकाना अक़ीदा रखनें की वजह से यह लोग जनता में खुलकर नही आते थें। इस स्थिति में ताक़त में आनें पर यह संप्रदायिक सोच रखते थें।
इसी तरह की कोशिश साम्राज्यवादीयों नें पाकिस्तान में भी की। ब्रिटेन नें पाकिस्तान के बनते वक़्त क़ादीयानों को कई बड़े औहदों पर बिठा दिया था। मगर जब मौलाना मोदूदी (رحمت اللہ علیہ) नें इसके खिलाफ लिखा तो सुप्रीम कोर्ट नें उन्हें 20 साल की सज़ा सुना दी थी।
अल्वी हुकूमत यानी असद के खानदान, नें बहुत ज़ुल्म के साथ मुस्लिम बहुस्ंख्यक पर हुकूमत की एंव हुकूमत नें शुरू ही से आवाम में भेदभाव का रवैय्या रखा इसलिए यह बग़ावतें जाहिर हुई।
इसलिए ज़रूरत इस बात कि है कि, ऐसी हुकूमत हटाई जाए जो फिरकावाराना सोच रखती हैं। उसकी जगह दूसरी वैकल्पिक व्यवस्था लाई जाए जिसकी शासन व्यवस्था ऐसी हो जो शहरियों को शिया, सुन्नी, मुस्लिम और गै़र-मुस्लिम के रूप में ना देखते हुए उन्हे इंसान के रूप में देखें जो सिर्फ इस्लामी रियासत देखती हैं। उम्मत में क़ानूनी इख्तिलाफ पाये जाते हैं ना कि सियासी, इसके बावजूद भी क़ानूनी इख्तिलाफ, का समाधान इस्लाम देता हैं। क़ानूनसाजी की वजह से मुसलमानों में कभी इस स्तर का इख्तिलाफ नही पाया गया जो आज इस दौर में हम देख रहे है।
इस्लाम की बुनियादी बातों पर मुसलमानों में इख्तिलाफ नही पाया जाता चाहें वो शिया हो या सुन्नी हो या किसी भी मस्लक से हो। मुसलमानों पर यह सियासी इख्तिलाफ बाद में थौपें गए जिसे आज मुसलमानों नें स्वीकार कर लिए है और जायज़ इख्तिलाफात को आपसी मतभेदो की असल वजह मान लिया गया हैं। अत: संप्रदायिकता की असल वजह मस्लकी इख्तिलाफ नहीं हैं। इस्लामी फिक्ह और उसूल नें मुसलमानों के मतभेदो का हल साफ तौर पर बयान किया हैं।
दर हक़ीक़त यह ऐजेंट हुकूमतें अपनें मफादात के लिए क़ानूनी मसाईल को राजनीतिक रंग देती हैं। जैसे कि सऊदी अरब, सऊदी अरब नें फिक्ही सल्फी मस्लक की चन्द चीज़ों को इतना उजागर किया कि उसके माननें वालों नें दूसरे मुसलमानों को काफिर, गुमराह और मुश्रिक कहनें की बुनियाद बना दिया। इस तरह संप्रदायिकता सर उठाती हैं वरना संप्रदायिकता कभी भी सर नही उठा सकती अगर अच्छा निज़ाम हो जो इन नज़रियों को सही तरीके से देखता हैं।
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