सवाल (9): हुकूमत अब तक बाग़ीयों को हराने में क्यूँ नाकामयाब हैं?
जवाब : बशर उल असद की हुकुमत महज़ एक धोखा हैं, उसके पास स्वयं की कोई ताक़त नही हैं। अपने गुप्त चर विभाग के बारे में कई अफवाहें फैलाए रखने और आवाम में सरकार के डर का माहौल बनाये रखने की वजह से ही पिछली कई दशको से असद खानदान की हुकूमत चल पाई है। मगर जैसें ही वहाँ के हालात बदले व आवाम का हौसला बड़ा तो हुकुमत के खिलाफ जंग शुरू हो गई। शुरूआत से ही बशर उल असद की फौज को इस बगावत को दबाने में संघर्ष करना पडा़ हैं, जिसे दबाने में वो अभी भी कामयाब नही हुए हैं।
सीरिया की थल सेना का बहुत बडा़ हिस्सा सुन्नीयों का हैं जिस पर असद भरोसा नही करता और उसके सभी बड़े अधिकारी अलवी फिरक़े से हैं। इसलिए उसका भरोसा हमेंशा उच्च स्तरीय अधिकारीयों पर ही रहा हैं। बशर उल असद की हुकूमत को सबसे बडा़ नुक्सान एक वक्त में कई जगहों पर एक साथ लडा़ई लड़ने की वजह से वोह एक भी जगह ढंग से कामयाब नही हो पाए हैं। एक ही जगह पर बाग़ी लगातार हमले करते रहे और क़ब्जे करते रहे। इसका ज़्यादातर भरोसा हवाई हमलो पर था क्योंकि हवाई हमलों के लिए ज़्यादा बड़ी फौज की ज़रूरत नही होती हैं। अलप्पो और इजलिब नाम के शहर में ज़्यादातर हवाई हमलो के ज़रिए ही जंग लड़ी गई। इसी वजह से, हुकूमत ने उत्तर के बहुत बडे़ हिस्से को दुबारा हासिल करने की कोशिश नही की। असद की फौज की सप्लाई लाईन को जारी रखने के लिए आज दमिश्क और हॉम्स के इलाक़े के लिए लडा़ई चल रही हैं। अलप्पों में उसकी फौज की टुकडिया मौजूद हैं, लेकिन उसके पास इतनी ताक़त नही हैं कि वोह एक बहतरीन किस्म का मुकाबला कर सके और बागियों को पूरी तरह से साफ कर सके।
दर हक़ीक़त हुकूमत के पास बाग़ीयों का सफाया करने के लिए पर्याप्त ताक़त नही है। इसलिए हुकूमत ने अपने क़ाबिज़ इलाक़ो को बचाने के लिए यह रणनीति अपनाई कि वोह शहरियों पर रासायनिक हथियारों के ज़रिए बडी़ तादाद में जनता पर हमलें करेगी इस तरह उन पर ज़हनी दबाव बनाया जा सकें और वोह समझौते पर राज़ी हो जाए।
असद ने हिज़्बुल्लाह की मदद से नेशनल डिफेंस फोर्स नाम की फौज बनाई जिसमें उसने लॉकल लोगों को भी शामिल किया। ईरान लगातार असद को मदद देता रहा है जिसमें ईरान की फौज की टुकडी़ ईरानी रिवोलूशनरी गार्ड (Iranian Revolutionary Guard Corps) लगातार इस्लाम पंसद बागियों को खत्म करने में बशर उल असद की मदद करती रही हैं। इसके अलावा ईराक़ के शिया मिलिशिया हमलाआवरों ने भी इसमें मदद की। बाग़ी गिरोह के एक जगह मौजूद नही होने की वजह से इसे अपनी ताक़त अलग-अलग जगहों पर लगानी पड़ रही हैं। इसी कारण वश लड़ाई को तीन साल गुज़र चुकें हैं और यह जंग किसी भी नतीजे पर नही पहुंच पाई हैं।
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