सीरिया में अमरीकी और बर्तानवी मुदाखलत
वहॉ के लोगों की मदद करने के लिए नही बल्कि इस्लामी तब्दीली को रोकने के लिए है।
(यह मज़मून सन 2014-15 के हालात के दौरान khilafah.com पर प्रकाशित हुआ था जो आज भी मायने रखता है)
दमिश्क के किनारों के इलाको पर असद के ज़ालिमाना हमलों के बाद जिसमें सैकडो़ मासूम औरते, मर्द और बच्चे मारे गये सीरिया के संघर्ष में पश्चिमी सरकारों ने फौजी हस्तक्षेप की भाषा अपनाई। इस बात को समझना चाहिए के पश्चिम दखलअन्दाजी बशर अल-असद को हटाने के लिए बिल्कुल भी नही है। ना ही यह सीरिया के लोगों को बचाने के लिए है उसके बाद जब दमिश्क पर जालिमाना खौफनाक गैस का हमला किया गया। यह मुदाखलत (हस्तक्षेप) इसलिए की जा रहा है जिससे उनके मफाद को बचाया जा सके और इस्लाम के ज़रिए आने वाली तब्दीली (परिवर्तन) को रोका जा सके और इसके साथ-साथ अपने आलोचको को अपने घर और विदेश में खामोश किया जा सके।यह बात कही वजह से साफ है जो निम्नलिखित है :
पहली - यह पहले किये गये क़त्लेआम से बिल्कुल नहीं है जिसको हम पीछे के ढा़ई साल से देख रहे है। इसलिए कोई गै़र-जानिबदार तौर पर देखने वाला माफी चाहेगा और यह बात पूछेगा की ''आखिर अब क्यू?'' जबकि बशर ने 1 लाख से ज़्यादा लोगों को क़त्ल दिया और कई लाख लोग बेघर हो गए और उस वक़्त जब हुकूमत ने रासायनिक हथियारों का छोटे पैमाने पर इस्तिमाल किया और अब जबकि मामूली सी सिसकिया है तो अब यह पूछा जाए ''अब क्यू?''
दूसरी - असद के खिलाफ खडा़ होने वाले इस्लामी विपक्षी दल के खिलाफ अमरीकी और बर्तानवी दुश्मनी बिल्कुल ज़ाहिर है। उनकी कोशिश पिछले दो सालो में यह रही है के वोह अपने मफाद को बचाने के लिए एक वेकल्पिक सरकार की स्थापना करें उस इलाके में जिसमें अभी तक उन्हें कामयाबी नही मिल पाई है और इसके साथ-साथ उन्होंने देखा के इन सारे विपरीत हालात में भी विपक्षी दल असद के द्वारा इस बग़ावत को कुचलने की सब कोशिशों को नाकाम कर चुका है ।
उनकी ख्वाहिश पश्चिमी मफाद (स्वार्थ) के खातिर दखलअन्दाजी करने की यह बात बिल्कुल साफ है. कुछ ही दिनो पहले जनरल डेम्स, अमरीकी ज्योन्ट चीफ ऑफ स्टाफ के चेयरमैन, ने कहा ''सीरिया इस वक़्त दो पक्षों मे से एक को चुनने का नाम नही है बल्के कई पक्षों में से एक को चुनने का नाम है।'' इसमें इस बात ऐतराफ किया के यह असद का विरोध करना और विपक्षी दल का समर्थन करना असल मसला नही है। उसने आगे कहा ''यह मेरा मानना है के जिस पक्ष को हम चुने वोह अपने और हमारे मफाद को फायदा पहुचाते हो जब शक्ति का संतुलन उनके पक्ष में हो। लेकिन आज वोह ऐसे नही है।''
तीसरा : अभी जिस योजना के बारे में चर्चा चल रही है यानी हुकूमत के खिलाफ सर्जीकल हमले (हल्के हमलें) वोह किसी भी तरह से इस क़ातिलाना हुकूमत को हटाने के सम्बन्ध में दिखाई नही देता। यह काबिले ज़िक्र है के असद का खानदान पश्चिमी राजधानियों मे बहुत अच्छी तरीके से जाना जाता है यानी लंदन और वाशिंटन ने, 2011 में यह खून-खराबा शुरू हो जाने के बहुत बाद, उनके लिए माफीयां मांगी है । यह बात भी काबिले ज़िक्र है के अमरीका अपनी सारी चर्ख ज़बानी के बाद भी अभी भी असद हुकूमत के साथ राजदूती सम्बन्ध बनाए हुए है और अमरीका के सैकेट्री ऑफ स्टेट जॉन कैरी ने सीरियन फोरेन मिनिस्टर वलीद अल मोअल्लम को पिछले हफ्ते इस गैस अटेक के बाद निजी तौर पर फोन किया।
पश्चिमी मुदाखलत (हस्तक्षेप) का मध्य पूर्वी एशिया और मुस्लिम दुनिया में चाहे किसी भी बहाने से हो, स्वागत नही किया जा सकता। बर्तानिया और फ्रांस ने मुस्लिम सरज़मीनो को बांटा, और विश्वयुद्ध प्रथम के बाद फूट के बीज बोए। पश्चिमी देशों ने फिलिस्तीन को अपने कब्जे़ में लिया और वहॉ पर सेहूनी (यहूदी) हुकूमत को इस इलाके में क़याम किया, और दसयो सालों से जाहिरियत (क्रूरता) और ज़ुल्म का समर्थन किया। इन्होंने फौजी बग़ावतो को भड़काया और एक के बाद एक बग़ावते करवाई. सीरिया में यहॉ तक की असद के खानदान के हाथ में शक्ति आ गई जो इनके मफाद के लिए काम करता रहा।
कुछ ही हफ्तो पहले अमरीका ने मिस्र की फौज का समर्थन किया, वहॉ के चुने हुए राष्ट्रपति को हटाने में. ताके वोह अपने मफाद की हिफाजत कर सके और अब सियासी इस्लाम के खिलाफ पूरी तरीके से जंग करने के लिए बाहर आ गए है। इन सबको महसूस करने के बाद कोई पश्चिमी फौजी दखलअन्दाजी का स्वागत कैसे कर सकता है। विदेशी ताकतों का - अमरीका, बर्तानिया, यूरोपीय यूनियन या रूस - चाहे सीधे तौर पर या गै़र सीधे तौर पर; सीरिया में कार्यवाही करना या कार्यवाही नही करना, या अपने पिट्टू हुकूमतों के ज़रिए, सब का सब इस इलाके में अपने मफाद की सुरक्षा के लिए काम करना है. और इसके लिये वोह एक सियासी संघर्ष को मसलकी और फिरकावाराना झगडे़ में तब्दील कर देते है और सेहूनी (यहूदी) हुकूमत की सुरक्षा करना है और वोह यह कोशिश कर रहे है के इस इलाके में एक आजाद खिलाफत राज्य को रोक सके।
तमाम मुस्लिम देशों के मुसलमानों को यह दावत देते है के वोह इस हुकूमत के खिलाफ उठ खडे़ हुए है और जो असद हुकूमत को हटता हुए देखना चाहते है वोह इस काम के लिए मदद करते रहे और उस दावत के लिए जो सीरिया में दी जा रही है। और हर विदेशी मुदाखलत का विरोध करे क्योंकि यह जिन्दगी बचाने के लिए नही है बल्कि साम्राज्यवादी मफादो की सुरक्षा करने के लिए है। जहॉ तक इस हफ्ते लोगों को क़त्लेआम से बचाने की बात है तो इसमें यह उन मुसलमान फौजियो के ऊपर एक ज़रूरी फर्ज़ है जो इस इलाके में है, जो क्षमता रखते है, चाहे वोह तुर्की से ताल्लुक रखते हो या जॉर्डन से या कही और से, उन्होंन अपने हथियार पिछले दो सालो से रखे हुए है और वोह मासूम लोगों के पाक खून को गिरते हुए देख रहे है जो कि इन ज़ालिम हुकूमतो के ज़रिए गिराया जा रहा है। यह वोह लोग है जिन पर अधिकार है वहॉ के लोगों का के उन्हें उनकी मदद मिले क्योंकि अल्लाह सुबाहनहू व तआला फरमाते है
''अगर वोह दीन के मामले में तुमसे मदद चाहे तो तुम उनकी मदद जरूर करो।'' (सूरे अल अन्फाल : 72)
“और यह कभी मत सोचो के अल्लाह तआला इन ज़ालिम लोगो से बेखबर है। वोह उन्हें छूट देता है उस दिन के लिए जब आंखे फटी रह जायेगी (डर के मारे) जब वोह आगे की तरफ भाग रहे होंगे और उनके सर ऊठे हुए होंगे तो उनकी निगाहे वापस उनकी तरफ पीछे की तरफ नही लौटेगी और उनके दिल खाली होंगे”। (सूरे अल इब्राहिम : 42, 43)
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