शारेअ का ख़िताब जब किसी फे़अल
को करने या तर्क करने के बारे में इख़्तियार दे, तो वो मुबाह
कहलाएगा। यानी इस इख़्तियार पर कोई शरई दलील हो। ये इसलिए क्योंकि मुबाह अहकामे
शरईया में से है,
यानी ये,
इबाहत के हुक्मे पर शारेअ का ख़िताब (सम्बोधन) है जो हमेशा दलील
से साबित होता है,
क्योंकि क़ाइदा है
)لا حکم قبل ورود الشرع(
(शराअ मे
वारिद होने से पहले कोई हुक्मे नहीं)
लिहाज़ा ये नहीं कहा जा सकता
कि हर वो फे़अल जिस पर शराअ (शरीअत) ख़ामोश है, यानी जिसे
ना शराअ ने हराम क़रार दिया हो और ना हलाल, तो वो मुबाह
है। जहां तक इस हदीस का ताल्लुक़ है :
الحلال ما أحل اللّٰہ في کتابہ
والحرام ما حرم اللّٰہ
في کتابہ وما سکت عنہ فھو مما عفا عنہ )الترمذي(
في کتابہ وما سکت عنہ فھو مما عفا عنہ )الترمذي(
(हलाल वो
है जिसे अल्लाह ने अपनी किताब में हलाल क़रार दिया है और हराम वो है जिसे अल्लाह سبحانه
وتعال ने अपनी किताब में हराम क़रार दिया है और जिस पर वो ख़ामोश है
वो माफ़ है)
तो इस में इस बात की दलील नहीं
है कि जिस चीज़ पर क़ुरआन ख़ामोश है तो वो मुबाह है, क्योंकि
क़ुरआन की तरह हदीस में भी हराम और हलाल के अहकाम पाए जाते हैं जैसा कि आप का फ़रमान
है:
ألا اني أوتیت القرآن و مثلہ معہ )
أحمد(
(बेशक मैं
क़ुरआन और उस की मिस्ल (सुन्नत) के साथ भेजा गया हूँ)
पस पहली हदीस का मानी ये नहीं
है कि जिस बात पर वह्यी ख़ामोश है तो वो मुबाह है। ये इसलिए क्योंकि आप صلى الله عليه وسلم के फ़रमान: الحلال
ما أحل اللّٰہ में हर वो चीज़ शामिल है जो हराम ना हो, चुनांचे
इस में फ़र्ज़,
मंदूब,
मुबाह और मकरूह, सब शामिल हैं क्योंकि ये सब
हलाल हैं,
यानी वह्यी ने उन्हें हराम नहीं क़रार दिया। जहां तक हदीस के
दूसरे हिस्से का ताल्लुक़ है : وما سکت
عنہ فھو مما عفا عنہ तो इस का मतलब ये है कि जिन चीज़ों पर सुकूत (खामोशी) है, वो हलाल हैं और ये अल्लाह की तरफ़ से माफ़ हैं और ये इंसानों पर उस की रहमत है कि
उस ने,
उन के लिए उन्हें हराम नहीं बल्कि हलाल क़रार दिया। उस की दलील
ये हदीस है:
إن أعظم المسلمین في المسلمین جرما
من سأل عن شیء
لم یحرم علی المسلمین فحرم علیھم من أجل مسألتہ ‘‘(مسلم(
لم یحرم علی المسلمین فحرم علیھم من أجل مسألتہ ‘‘(مسلم(
(मुसलमानों
में से वह जो मुसलमानों के ख़िलाफ़ अपने जुर्म में सब से बड़ा है जिस ने किसी ऐसी चीज़
के बारे में जो मुसलमानों के लिए हराम नहीं थी मगर इस के सवाल करने की वजह से वो उन
पर हराम कर दी गई)
यानी ऐसी चीज़ के बारे में पूछ
जिस की तहरीम (हराम होने) पर वह्यी ख़ामोश है। लिहाज़ा इन अहादीस में सुकूत (खामोशी)
से मुराद किसी चीज़ की तहरीम पर सुकूत है, ना कि हुक्मे शरई के बयान पर
सुकूत। ये इसलिए क्योंकि ऐसा कोई फे़अल या चीज़ है ही नहीं जिसे शारेअ (अल्लाह
कानून साज़) ने बयान ना किया हो,
बल्कि वह्यी में हर मसले का हल है क्योंकि अल्लाह سبحانه
وتعال का फ़रमान
है:
وَنَزَّلۡنَا
عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَـٰبَ تِبۡيَـٰنً۬ا لِّكُلِّ شَىۡءٍ۬
हम ने ऐसी
किताब नाज़िल की है जो हर चीज़ को खोल खोल कर बयान करती है
(अल नहल-89)
यह आयत इस बात की क़तई दलील
है कि शराअ ज़िंदगी के किसी मसले में ख़ामोश नहीं, बल्कि इस
में ज़िंदगी के तमाम अफ़आल और अशिया (ज़रूरत की चीज़ों) पर हुक्मे मौजूद है और इस बात
पर एतिक़ाद ईमान का तक़ाज़ा है। पस दूसरे अहकामे शरईया की अक़साम की तरह मुबाह भी अपनी
दलील से साबित होता है।
मिसाल
:
وَإِذَا
حَلَلۡتُمۡ فَٱصۡطَادُواْۚ
जब तुम
एहराम उतार डालो तो शिकार खेलो (अल माईदा-2)
यहां एहराम खोलने के बाद शिकार
का हुक्म दिया जा रहा है मगर एक दूसरे क़रीना की वजह से शिकार खेलना फ़र्ज़ या मंदूब
नहीं, बल्कि मुबाह है। वो क़रीना ये है:
غَيۡرَ
مُحِلِّى ٱلصَّيۡدِ وَأَنتُمۡ حُرُمٌۗ
हालते
एहराम में शिकार को हलाल जानने वाले ना बनना (अल
माईदा -1)
शिकार का हुक्मे, एहराम पहनने की नहीं (मनाही) के बाद आया है, पस एहराम
खोलने के बाद शिकार मुबाह ठहरा क्योंकि ये अपनी असली हालत की तरफ़ वापस लौटेगा, यानी एहराम से पहले वाली हालत जिस में शिकार मुबाह है।
नेज़ी यह भी नहीं कहा जा सकता
कि अगर किसी फे़अल के बारे में कोई हर्ज (ना इत्तिफाकी) ना पाया जाये तो वो फे़अल ख़ुदबख़ुद
मुबाह (हलाल) ठहरेगा। या अगर किसी फे़अल से हर्ज उठा लिया गया हो तो इस के मानी इजाज़त
है। ये इसलिए क्योंकि किसी चीज़ की हुर्मत से उस की ज़िद (उल्टा/opposite) का हुक्म साबित नहीं होता और ना ही किसी चीज़ के हुक्मे से
उस की ज़िद पर तहरीम (हराम होना) साबित होती है। बल्कि रफ़उल हर्ज (हर्ज का उठना) किसी
फ़र्ज़ से जुडा हुआ हो सकता है जैसे :
فَلَا
جُنَاحَ عَلَيۡهِ أَن يَطَّوَّفَ بِهِمَاۚ
पस बैतुल्लाह
का हज व उमरा करने वाले पर उनके तवाफ़ कर लेने में भी कोई गुनाह नहीं (अल बक़राह-158)
इस आयत में, रफ़उल हर्ज (हर्ज का उठना) के बावजूद, हज और उमरा के दौरान तवाफ़ करना
फ़र्ज़ है मुबाह नहीं। इसी तरह रफ़उल हर्ज किसी रुख़सत के साथ भी मुंसलिक (जुडा) हो
सकता है जैसे:
وَإِذَا
ضَرَبۡتُمۡ فِى ٱلۡأَرۡضِ فَلَيۡسَ عَلَيۡكُمۡ جُنَاحٌ أَن تَقۡصُرُواْ مِنَ
ٱلصَّلَوٰةِ
जब तुम
सफ़र में जा रहे हो तो तुम पर नमाज़ों के कस्र करने में कोई गुनाह नहीं (अन्निसा- 101)
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