सवाल (3): इस्लामी स्टेट ऑफ ईराक़ एण्ड शाम (I.S.I.S) क्या हैं? और उसका मकसद और उसकी क्षमता क्या हैं?
जवाब : इस्लामी स्टेट ऑफ ईराक़ एण्ड शाम इस वक़्त मीडिया के मे आइ.एस.आइ.एस के नाम से जाना जाता हैं। आइ.एस.आइ.एस एक गिरोह हैं जो ईराक़ पर अमरीकी क़ब्ज़े के खिलाफ लड़ते-लड़ते ईराक़ में पैदा हुआ। यह अमरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ एक मज़बूत गिरोह के रूप में ऊभर कर आया जो कि ईराक़ में संघर्ष कर रहा था, इस संघर्ष के दौरान यह दूसरे नामों से भी जाना गया जैसे ईराक़ में अलक़ायदा या ईराक़ की इस्लामी रियासत। इस गिरोह से कुछ, लोग जो ईराक़ में लड़ रहे थे सीरिया की बगावत में, बशर उल असद की हुकूमत को खत्म करने के लिए भाग लेने आए थें।
अबु बक्र अल बग़दादी और अबू मोहम्मद अल जोलानी ने मिलकर जनवरी 2012 में जुब्बतुल नुसरा (नुसरा फ्रंट) नाम का संघठन बनाया। लेकिन अप्रेल 2013 में जिहादी गठबंधन गिरोहों के बीच उस वक्त तनाव पैदा होने लगा जब अल बगदादी ने जुब्बतुल नुसरा को अपने अधीन लेने का ऐलान किया और उसको ''इस्लामी स्टेट ऑफ ईराक़ एण्ड लीवेंट'' नाम दिया और यह वक्त से पहले ही सीरिया के एलोप्पो शहर पर क़ब्जा करना चाहते थें मगर यह बात सभी गिरोहों को ना मंजूर थी क्योंकि अभी बशर उल असद की मुख्य हुकूमत को खत्म नही किया गया था। ऐसे में इन्होंने पहले वहाँ रियासत क़ायम करने का इरादा कर लिया था। इस बात से पूरे सीरिया के लोगों को काफी झटका लगा और इसके नतीजे में दूसरे गिरोह के लीडर अबू मोहम्मद अल जोलानी, ने उनका साथ नही दिया और ऐमान अलज़वाहिरी को अपना समर्थन घोषित किया, जो जोलानी की नज़र मे, आलमी जिहाद की नुमाईन्दगी करते हैं. जबकि बगदादी साहब का संघर्ष सिर्फ बगदाद के इलाक़े तक सीमित था और इनका इरादा एक इलाक़े में वक़्त से पहले ही हुकूमत बनाने का था। इसका नतीजा यह हुआ की इराक़ से लडाके सीरिया की तरफ रुख कर गये और उन इलाक़ों को अपने क़ब्ज़े मे लेना शुरू कर दिया जिन पर जुब्बत अल-नुसरा का कंट्रोल और हुकूमत थी. यह मामला उस वक़्त और भी उबाल पर पहुंच गया जब जनवरी 2014 मे जुब्भत अलनुसरा ने अहरार अल-शाम के साथ मिल कर सीरिया के उत्तरी इलाक़े मे अमेठा की एक पोस्ट को अपने क़ब्ज़े मे ले लिया.
अबु बक्र अल बग़दादी और अबू मोहम्मद अल जोलानी ने मिलकर जनवरी 2012 में जुब्बतुल नुसरा (नुसरा फ्रंट) नाम का संघठन बनाया। लेकिन अप्रेल 2013 में जिहादी गठबंधन गिरोहों के बीच उस वक्त तनाव पैदा होने लगा जब अल बगदादी ने जुब्बतुल नुसरा को अपने अधीन लेने का ऐलान किया और उसको ''इस्लामी स्टेट ऑफ ईराक़ एण्ड लीवेंट'' नाम दिया और यह वक्त से पहले ही सीरिया के एलोप्पो शहर पर क़ब्जा करना चाहते थें मगर यह बात सभी गिरोहों को ना मंजूर थी क्योंकि अभी बशर उल असद की मुख्य हुकूमत को खत्म नही किया गया था। ऐसे में इन्होंने पहले वहाँ रियासत क़ायम करने का इरादा कर लिया था। इस बात से पूरे सीरिया के लोगों को काफी झटका लगा और इसके नतीजे में दूसरे गिरोह के लीडर अबू मोहम्मद अल जोलानी, ने उनका साथ नही दिया और ऐमान अलज़वाहिरी को अपना समर्थन घोषित किया, जो जोलानी की नज़र मे, आलमी जिहाद की नुमाईन्दगी करते हैं. जबकि बगदादी साहब का संघर्ष सिर्फ बगदाद के इलाक़े तक सीमित था और इनका इरादा एक इलाक़े में वक़्त से पहले ही हुकूमत बनाने का था। इसका नतीजा यह हुआ की इराक़ से लडाके सीरिया की तरफ रुख कर गये और उन इलाक़ों को अपने क़ब्ज़े मे लेना शुरू कर दिया जिन पर जुब्बत अल-नुसरा का कंट्रोल और हुकूमत थी. यह मामला उस वक़्त और भी उबाल पर पहुंच गया जब जनवरी 2014 मे जुब्भत अलनुसरा ने अहरार अल-शाम के साथ मिल कर सीरिया के उत्तरी इलाक़े मे अमेठा की एक पोस्ट को अपने क़ब्ज़े मे ले लिया.
इस वक़्त आइ.एस.आइ.एस की स्थिति यह हैं कि वो सीरिया के कुछ इलाक़ो पर अपना क़ब्जा बनाऐ हुए हैं जैसे कि उत्तरी सीरिया, अतमा, अज़ाज़, अलबाब और जराबुलस । इस तरह से यह सीरिया से तुर्की जाने वाले इलाके पर अपना कंट्रोल रखता है। आइ.एस.आइ.एस ग्रुप में अमरीका के खिलाफ, इराक़ में 15-20 सालों से लड़ रहे कई लडा़कू लोग हैं। इन्होंने लड़-लड़कर इराक़ में ऐसे हालात बना दीए थें कि, अमरीका ईराक़ पर पूरी तरह से क़ाबिज ना हो सके। जब तक यह दोनों गिरोह (जुब्बतुल नुसरा और आइ.एस.आइ.एस) मिलकर काम करते रहे काफी हावी रहें। इस तरह इन्होंने दुश्मनो की सप्लाई लाईन को रोका, एंव उनके हवाई मर्कज़ (Air Bases) पर क़ाबिज़ होने में कामयाब रहे। जुब्बतुल नुसरा और आइ.एस.आइ.एस दोनो का मक़सद एक ही हैं, यानी इस्लामी रियासत का क़याम मगर इनकी रणनीति में फर्क़ पाया जाता हैं। जैसे की तर्जीहात यानी पहले कौनसा काम करना चाहिए, इस मामलें में इन दोनों में इख्तिलाफ पाया जाता हैं। जुब्बतुल नुसरा का मानना हैं कि जब तक बशर उल असद की हुकुमत को मुकम्म्ल तौर पर ना खत्म कर दिया जाए तब तक उसे सत्ता अपने हाथ में नही लेनी हैं और रियासत और क़ानून को लागू नही करना हैं क्योंकि सही मायनों में तब तक उनके पास ताक़त नही होगी हैं। लेकिन आइ.एस.आइ.एस ने वक़्त से पहले ही एक सीमित इलाक़े में क़ानून लागू करने का ऐलान कर दिया जबकि उसके पास राज्य मे कानून व्यवस्था जारी करने और अपने शहरियो को सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता नहीं है।
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