जवाब : सीरिया का ज़्यादातर हिस्सा बाग़ीयों के हाथ में हैं, लेकिन एक अहम ईलाक़ा अभी भी हुकूमत के पास हैं। सन 2013 के आखिर में असद हुकूमत ने ऐलोप्पो और दमिश्क में कुछ कामयाब फौजी कार्यवाहीयाँ की। यह फौजी कार्यवाहीयाँ, विदेशी ताक़तों की मदद से चलाए जाने कि वजह से कामयाब हो सकीं। इससे यह पता चलता हैं कि सीरियाई फौज कमज़ोर हैं, इसमें इतनी क्षमता नही हैं कि बिना विदेशी सहायता के विद्रोहीयों से लड़े और उनसे जीते। दमिश्क, सीरियाई हुकुमत की शक्ति का सबसे बडा़ केन्द्र बिन्दु हैं। यह शहर बशर उल असद की हुकुमत के हाथ से निकल जाने से बशर उल असद की हुकुमत खत्म हो जाएगी। पहले पश्चिमी देश इसमें सीधे तौर पर मुदाखलत (हस्तक्षेप) करना चा रहे थे, बाद में उन्होंने फौज के ज़रिए अप्रत्यक्ष रूप से मदद देना शुरू किया। ईरान, रूस और हिज़बुल्लाह से लगातार मदद मिलने के बावजूद भी बशर की फौज अपनी क्षमता में कमजोर पड़ती जा रही हैं।
बाग़ीयों की तादाद कम हैं व उनके पास बहुत अच्छे हथियार नही हैं। इसीलिए वो दमिश्क का घेराव मज़बूती से नही कर पा रहे हैं। उनको बाहर से मिलने वाली मदद इतनी नही हैं कि बैलेंस ऑफ पावर उनके पक्ष में आ जाए। वहाँ हालात इस तरह से हैं कि एक तरफ सीरिया के मुसलमान हैं, जिसमें वहाँ की फौज और आवाम ने मिल कर बाग़ीयों और विद्रोहीयों का गिरोह बनाया हैं, वहीं दूसरी तरफ अलवी हुकूमत हैं। कई दिनों से ना सुलझने वाली स्थिति बनी हुई हैं। इस बारे में कुछ मुस्लिम दानिशमंदो ने पहले ही बता दिया था कि, अमरीका सीरिया में चाहेगा कि, सीरिया ना सुलझने वाली स्थिति में पहुंच जाए जिसमें बाग़ी गिरोह के सब्र की आजमाईश हो कि वो टिक पाते हैं या नही। ऐसे में जब लम्बा समय लग जाएगा तो वोह खडे़ नही रह पाएगें और समझौता करने की नौबत आ जाएगी।
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