सीरियाई क्रांति और खिलाफते राशिदा की वापसी
बुनियादी तौर पर असद की हुकूमत कई महिनों पहले खत्म हो चुकी है. पिछले बारह महिनो में वो अपने खात्मे के आखरी मरहले (चरण) में कई बार पहुच चुकी है, जब भी यह संघर्ष दमिश्क के आस-पास के इलाकों तक पहुचॉ यहा तक की राष्ट्रपति भवन तक।
जब अमरीका ने देखा की असद की हुकूमत अपने पैरों पर नही खडी़ रह सकती है तो उस नागुज़ीर गिरावट को रोकने के लिए अमरीका ने ईरान को हुक्म दिया के वोह अपने संसाधन और अपनी तादाद इस हुकूमत को बचाने के लिए लगाए और रूस को इस बात की इज़ाजत दी के वोह इस हुकूमत को हथियार सफ्लाई करें। इस्लामी क्रंतिकारियों की फौजी बिग्रेड ईरान से और उसके अंतर्गत लेबनानियों से सीधे तौर पर लड़ रही है और ईराक़, और अमरीका और रूस से गै़र-सीधे (अप्रत्यक्ष) तौर पर। हसन नसरूल्लाह, हिज़बुल्लाह का लीडर, ने कहा ''जब हमने देखा के फौजी बिग्रेड दमिश्क में फतह हासिल करने वाली है तो हमने मुदाख्लत (हस्तक्षेप) कर दिया।''
आज 10 हजार की तादात में हिज़बुल्लाह के तर्बियत याफ्ता फौजी टुकडियाँ दमिश्क, होम और ऐलप्पो शहर के इलाके में मौजूद है जो कि इस मोर्चे में अहम किरदार निभा रही है। असद हुकूमत की हक़ीक़त और इस क्रांति की प्रकृति को देखते हुए खास तौर से सीरिया की फौजी बिग्रेड के किरदार को देखते हुए; और सीरिया की भौगौलिक और राजनैतिक हक़ीक़त से इस बात में ईज़ाफा होता है के अमेरीका चुपचाप इन हालात को खडे़-खडे़ नहीं देख सकता के सीरिया की हथियारबन्द बिग्रेड हुकूमत को गिरा दे इसलिए वोह इस बात की पूरी कोशिश करता है या करेगा के वोह सीरिया की क्रांति का नतीजे को रोक सकें। इसलिए अमेरीका ने हमेशा राजनीतिक हल को एक बहतरीन हल के तौर पर इस क्रांति के लिए पेश किया जिसमें उसने एक अस्थाई सरकार बनाने का प्रस्ताव रखा जिसमें उसने असद हुकूमत के पुराने मेम्बरों को और विपक्षी दलो के उन लोगों को जिसको अमरीका ने खुद खडा़ किया है, शामिल करने की बात कही। अमरीका को इस जंगजू दोहरी सूरतेहाल से मामला करना है: यानी इस हथियारबन्द बिग्रेड का जिसकी तादात 1 लाख 50 हजार के करीब है. एक सही राजनीतिक हल निकालने के लिए और उसके साथ-साथ दिन पे दिन बड़ती जा रही हथियारबन्द बिग्रेड की तादात जो मुख्लिस है, उनको कमज़ोर करना फिर उन्हें रोकना मक़सद है. इसी के साथ-साथ सुप्रिम मिलेट्री कोंसिल को भी फण्डींग दी जा रही है, हथियार और तर्बियत दी जा रही है ताके वोह इस हथियारबन्दड बिग्रेड को अंदरूनी तौर पर कमज़ोर और अलग-थलग कर दे।
हाल ही में कतर में होने वाली हुई ‘फ्रेण्डस ऑफ सीरिया’ कॉफ्रेंस मे सिनेटर केरी ने साफ शब्दो में यह बात कही के हथियारबन्द बिग्रेड को हथियारों से लैस तब किया जायेगा:
(1) जब सत्ता में या शक्ति में संतुलन हासिल किया जा सकें (2) जिससे इस संघर्ष का कोई राजनीतिक हल निकल सकें ।
पश्चिम की तरफ से इस पूरे मामले का राजनीतिक हल ही सिर्फ कोई काबिले काबूल हल समझा जा रहा है। विलियम हेग, ब्रिटेन के विदेश मंत्री ने कहा, ''आखिर में इस झगडे़ का हल सिर्फ राजनीतिक हल है।'' जॉन के़री, अमरीका विदेश मंत्री ने कहा : ''हम समझते है के इसका राजनीतिक हल ही सबसे सही हल है।''
एक तरफ पश्चिमी लीडरों ने आर्म ब्रिग्रेड को कई बार यह वादा किया के वोह उन्हें हथियार मुहैया करेंगे, हांलाकि इस मामले में बहुत ही कम तरक्क़ी हो पाई सिवाये खोखले शब्दों के, और अगर कुछ हो भी पाया, तो वोह ये के सुप्रिम काँसिल (अमरीका के ज़रिये बनाई गई एक अस्थाई संस्था) पश्चिम से आदेश लेती रहे। इस पॉलिसी को राजनीति में “गाजर” की पॉलिसी कहा जाता है जिसके ज़रिए साधनों और फौजी हथियारों की कमी को दूर करने के लिए कुछ बिग्रेड को अपने इस्लामी महत्वकांक्षाओं से अलग-थलग किया जा सकें। फ्रांस के विदेश मंत्री लोरेंट फोबियस ने कहा ''जहां तक हथियारों की बात है तो इसका कोई सवाल नहीं होता के हथियार पहुचांये जाये इस हालात में जिसके बारे में हमें यकीन नही हो और इसका मतलब यह है के हम हथियार नही पहुचायेंगे की कहीं ऐसा ना हो के वोह हमारे खिलाफ इस्तिमाल कर लिये जाए।''
अमरीका के ज़रिए शक्ति का संतुलन एक तरफ हुकूमत और उसके इत्तेहादियों के साथ दूसरी तरफ फौजी बिग्रेडो के साथ रखने का मतलब यह है:
(1) के इस बात को यक़ीनी बनाया जा सके के यह हुकूमत अचानक नही गिरे,
(2) सीरिया की जितनी ज़्यादा मुमकिन हो तबाई की जा सकें और उसके इंफ्रास्टक्चर को बर्बाद किया जा सके।
(3) एक ना सुलझने वाले हालात पैदा किये जा सके।
(4) और सीरिया में बनाई जाने वाली मुस्तक़बिल (भविष्य) की लीडरशिप को ज़्यादा समय मिल सकें ताकि वोह तैयार हो सके।
अमरीका ने एक हद तक कामयाबी के साथ इस संघर्ष को ना सुलझने वाली स्थिति के रूप में परिवर्तित कर दिया है, जहां पर दोनो ही तरफ से कई महिनो से कुछ खास कार्यवाही आगे नही बढ़ पा रही है। यह हक़ीक़त जैसा कि अमरीका उम्मीद करता है, फौजी बिग्रेड को इस बात को महसूस करने की तरफ धकेलेगी के उनके पास फतह हासिल करने का कोई रास्ता नही है या वोह हुकूमत बिना (पश्चिमी देशों से) समझौते के नही गिराई जा सकती। हाल ही में कुछ ईस्लामी बिग्रेड के लोगों ने सलीम इदरीस, जो कि सुप्रीम आर्मी कोंसिल का लीडर है, उसकी पुकार पर जवाब दिया और एक मिटिंग की जो कि तुर्की में मुनक़्क़िद हुई ताके वोह हथियारों की वोह शर्तिया सहायता जो उन्हे इस समय दरकार है, मिल सकें. तो इससे यह बात साफ हो गई की:
(1) के हुकूमत के गिरने के बाद वोह लोग सिविल और लोकतांत्रिक राज्य की तरफ दावत देवें
(2) सलीम इदरीस की कयादत को क़बूल करें और उसकी पश्चिम की तरफ से समर्थन करने वाली जितनी भी संस्था है उनका समर्थन करें
(3) खिलाफ़त के क़याम के मक़सद के खिलाफ लडे़ और उन लोगों के खिलाफ लडे जो इसकी तरफ बुला रहे है
(4) हुकूमत और आपोजिशन (विपक्षी दल) के दर्मियान राजनीतिक हल को क़ुबूल करें और कोई भी फौजी कार्यवाही इस मक़सद को हल करने के लिए ही की जाए
(5) हुकूमत गिरने के बाद हुकूमत की राजनीतिक और मिलिट्री संस्थाओं को बाक़ी रखा जाए
(6) और हुकूमत गिर जाने के बाद नई रियासत को सारे हथियार और फौजी ताकत लौटा दी जाए। इससे पता लगा कि बिग्रेड को किसी भी तरह के हथियार देना सिर्फ इस मक़सद के लिए किया जाना है कि इसका कोई राजनीतिक हल निकाला जा सकें। जॉन केरी ने अपने एक बयान में कहा था ''अमरीका और उसके सहयोगी राष्ट्र बाग़ियों को इसलिए समर्थन नही कर रहे है की उन्हें सीरिया में फौजी विजय हासिल हो जाए। हम ऐसा इसलिए कर रहे . . . . ताके हमे राजनीतिक समाधान मिल सकें। ताके उसे राजनीतिक हल के ज़रिए हल किया जा सके।'' यह बात अब बिल्कुल साफ हो गई है के पश्चिम जिस बात से सीरिया के बारे में डरता है वोह खिलाफत के क़याम है। लखदर ब्राहीमी, जो सीरिया मे संयुक्त राष्ट्र संघ का नुमाइन्दा है, उसने खुले तौर पर यह बात कही के ''अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय सीरिया के लोगों की हर बात को क़बूल करेगा सिवाए इसके अगर वोह एक शिद्दतपसंद हुकूमत बनाना चाहे।'' जिस तरीक़े से सीरियाई क्रांति ने खिलाफत की दावत को खोलकर रख दिया है उसी तरह से लाखों लोगों ने उसके क़याम की मांग की है और इसने आधुनिक इतिहास के एक काले धब्बे जो कि दब चुका था उसको फिर से जिन्दा कर दिया और वोह काला धब्बा था साईकस पिकट संधी (मुआईदा) [Sykes-Picot Treaty] जिसने एक ईस्लामी रियासत (खिलाफते उस्मानिया) को 50 राष्ट्रवादी (कौमी) रियासतों में बांट दिया था।
जब नोम चोमुस्की से सीरियाई क्रांति के नतीजे के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा ''साईकस पिकट एग्रिमेंट के टुकडे-टुकडे हो रहे है।'' असद हुकूमत के विदेश मंत्री वलीद अल मोअल्लीम इस बात को साफ नही कर सकें जब उन्होंने टेलीविजन पर एक प्रेस कॉन्फ्रेस में जुमें के दिन 21/06/2013 को बयान दिया ''वोह लोग जो इस्लामी खिलाफत के क़याम की मांग करते है वोह सिर्फ सीरिया की बॉर्डर तक नही रूकेंगे ; तो हक़ीक़त में हम जो कर रहे है वोह जॉर्डन, लेबनान और तुर्की की भी रक्षा कर रहे है।''
अमरीका खिलाफत के सीरिया में क़ायम होने के मतलब से अच्छी तरह आगाह है और वोह बहुत संजीदगी और तैयारी के साथ इसका मुक़ाबला कर रहा है। जर्नरल मार्टिन डेम्से, अमरीकी ज्योइंट चीफ स्टाफ, ने इस सतर्कता और तैयारी की तरफ निशानदेही की जो अमरीका ने कर रखी है: ''जब हमने देखा की लेबनानी फौजियो (हिज़्बुलाह) ने जब चुनौतियों का सामना किया, (दूसरी तरफ) ईराकी सिक्यूरिटी फोर्सेज़ के मुक़ाबले मे भी जब अलक़ायदा ईराक़ में दौबारा से ज़ाहिर हुई और जार्डन मे भी, तो हमने इस तरफ मशवरा दिया की हम उनके साथ मिलझुल कर उनकी मदद कर सके और उनकी क्षमता को बढा़ सकें।''
जिनेवा कॉफ्रेंस-2 से उम्मीद की जा रही है पश्चिम के ज़रिए यह एक मील का पत्थर साबित होगी और जब इस मसले के राजनीतिक हल की शुरूआत होगी। हांलाकि इस कॉफ्रेंस के लिए अब तक कोई तारीख तय नहीं की गई और यह तब ही तय की जायेगी जब
(1) शक्ति में या सत्ता में संतुलन हांसिल कर लिया जायेगा और उसको ज़मीन पर लागू कर दिया जायेगा
(2) फौजी बिग्रेड हक़ीक़त के सामने धुटने टेक देंती और यह समझ जायेंगे के उनके लिए फौजी तौर पर कोई कामयाबी हाँसिल नही हो सकती और उसकी कोई उम्मीद नही है।
''जिनेवा में कोई शांति कॉफ्रेंस नही होगी जब तक कि ज़मीन के ऊपर संतुलन हासिल नही कर लिया जायेगा यानी आपोजिशन (बिपक्षी दल) उसमें भाग लेने के लिए राज़ी नही होगा और फिर भी उसका कोई राजनीतिक हल होना चाहिए है।'' यह बात लोरेन फेबियस जो कि फ्रांस के विदेश मंत्री है, ने कही। पता चला के अमरीका कही महाज़ो पर तेज़ी से काम कर रहा है ताके इस सियासी ''खाली स्थान'' या राजनीतिक ''वैक्यूम'' पैदा ना होने दे। और यह वोह वैक्यूम (खाली स्थान) है जिससे पश्चिमी लीटर एक दूसरे को चेतावनी दे रहे है क्योंकि वोह अच्छी तरह जानते है कि यह राजनीतिक वैक्यूम को कौन भरने वाला है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कहा, “असद जैसे ही जाता है, एक राजनीतिक खला (वैक्यूम) पैदा हो जायेगा और उसको कौन भरेगा? शायद यही आतंकवादी संगठन।''
यह बात अब बिल्क्ुल साफ हो चुकी है कि अमरीका और रूस सीरिया के मामले में एक ही धडे़ के अन्दर मौजूद है और जिनेवा कॉफ्रेंस को एक राजनीतिक हल के साधन के तौर पर इस्तमाल चाहते हैं ताके खिलाफत को सीरिया में रोका जा सकें. इस विचारधारा के अमरीका और रूस दोनों साझेदार हैं। ''सरगई लारव, रूस के विदेश मंत्री ने एक प्रेस कॉफ्रेंस में जो कि अमरीका के सैकेट्री ऑफ स्टेट जॉन केरी के साथ होने के बाद 08 मई 2013 को कही ''रूस और अमरीका दोनों को यानी सीरियन हुकूमत और विपक्षी दल को एक सियासी हल की तरफ प्रोत्साहित करेगा. हम इस बात पर सहमत है के इसके लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय कॉफ्रेंस बुलाई जाए और जितनी जल्दी मुम्कीन हो सकें जून में होने वाली जिनेवा मिटिंग को आगे जारी किया जाए शायद इस महीन के आखिर तक।
अमरीकी स्टेट डिपार्टमेंट की तरफ से 15 जून 2013 में दिया गया बयान ''सैकेट्री ने इस बात पर यकीन दिलाया कि अमरीका इसके सियासी हल की तरफ तेजी से जद्दोजहद करता रहेगा ताके वोह द्वितीय जिनेवा मिटिंग को आयोजित कर सके।”
रशिया के राष्ट्रपति पुतीन ने कहा ''इसमें सारे झगडा़लु दलो को मज़बूर करके इकट्ठा किया जाए ताके वोह जिनेवा में आए और वार्तालाब की टेबल पर बैठे, हिंसा छोड़ दे और काबिले क़बूल हल को क़बूल कर लें ताके वोह अपने राज्य के भविष्य के ढांचे को खडा़ कर सकें और उसमें सभी नस्लों के और धार्मिग गिरोहो की सुरक्षा का ध्यान रख सके।''
अमरीका गाजर और डण्डे की पॉलिसी को अपना रहा है खास तौर से हथियारबन्द फौजी बिग्रेडो के साथ : (1) गाजर यह है इस बात की कि ईस्लामी बिग्रेड को सीमित तादाद मे हथियार सफ्लाई किये जाए। यह सफ्लाई जब ही आयेगी जब बहुत सारे अनगिनत अमरीकी नेतोओं और अफ्सरों के बयान आते हैं यह कहते हुए के या तो वोह “सोच रहे है” या वोह “प्लान कर रहे है” बिग्रेड को हथियार पहुचाने का और इससे फौजी बिग्रेड्स दिमागी तौर पर थक जाते है और इन्तज़ार करते रहते है उस चीज़ के लिए जो कभी नही आती।
(2) ढण्डा इस तरह से है के मुसल्ला बिग्रेड को कई महाज़ो से हटाने और शिकस्त देने की कोशिश। सबसे पहले उनके एजेण्ट बशारुल असद को कत्लेआम करने के लिए हरी झण्डी दिखाना और हर तरह के हथियारो का इस्तमाल करना और दूसरा रूस को बात की ईज़ाजत देना के वोह सीरियन हुकूमत को भारी हथियार मुहय्या करा सकें और जितने ज़्यादा हो सके फौजी बिग्रेड को नुक्सान पहुचा सके।
पश्चिम में लिए सारे रास्ते सिर्फ राजनीतिक हल की तरफ जाते है जिसके अंदर एक धर्मर्निपेक्ष राज्य (सेक्यूलर हुकूमत) को बाक़ी रखा जायेगा और पश्चिम और इज़राइल के स्वार्थ का पूरा ध्यान रखा जायेगा. जहां तक सीरिया की क्रांति का ताल्लुक है – सारे रास्ते खिलाफत के क़याम की तरफ जाते है जो अल्लाह का वायदा है और उसके रसूल (स्वललल्लाहो अलहिवसल्लम) की खुशखबरी है। अगर इस पर सब्र, इस्तक़ामत और अल्लाह पर भरोसा रखकर क़ायम रहा जाए।
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